21 April 2020

WISDOM

 कहते  हैं  जो  कुछ  महाभारत  में  है ,  वही  इस  धरती  पर  है  l    धर्म , जाति   -- तो  मनुष्य  ने  बनायें  हैं   वास्तव  में  केवल  दो  ही  जातियां  हैं --- एक  वे  जिनकी  सोच  सकारात्मक  है  और  दूसरी   वे   जिनकी  सोच  नकारात्मक  है   l   और   केवल  दो  ही  धर्म  हैं --- एक  देवत्व  और  दूसरा   असुरता  l
  महाभारत   ---  देवत्व  और  आसुरी  प्रवृति  के  बीच  का  युद्ध  है  l   जो  धर्म  पर  थे  , सन्मार्ग  पर  थे  उन्होंने  पांडवों  का  पक्ष  लिया   और   जो   छल - छद्द्म , षड्यंत्र , लालच , ईर्ष्या , द्वेष   आदि  आसुरी  प्रवृति  के  थे   अथवा  मौन  रहकर  इन  प्रवृतियों  का  समर्थन  करते  थे  ,   वे  कौरवों  के  साथ  थे   l
  हमारे  महाकाव्य  हमें  बहुत  कुछ  सिखाते  हैं   लेकिन  मनुष्य  वही  ग्रहण  करता  है ,  वही  सीखता  है  जैसी  उसकी  प्रवृति  है , उसके  संस्कार  है  l  इस  संसार  में  जो  आसुरी  प्रवृति  के  लोग  हैं  वे  महाभारत  से  छल , छद्द्म , षड्यंत्र   सीखते  हैं ,   किस  तरह  मजबूती  से  संगठित  होकर  कायरतापूर्ण  ढंग  से   दैवी  प्रवृतियों  को   समाप्त  किया  जाये  , यह  सीखते  हैं  l
  इसका  सबसे  बड़ा  उदाहरण  है --- चक्रव्यूह  l   सारे  संसार  में  यही  चक्रव्यूह  है  l   आसुरी  प्रवृति  के  लोग  संगठित  हो  जाते  हैं  और  अपने  साम्राज्य  को  कायम  रखने  के  लिए   हर  संभव  प्रयास  करते  हैं  ,  चाहे  इसके  लिए  कितना  ही  नर संहार  क्यों  न  करना  पड़े  l
महाभारत  में   चक्रव्यूह  यही  है ---' सात  योद्धाओं  से  लड़ते  एक  बालक  की  कथा   l "   दुर्योधन  अपनी  पराजय  देख  बौखला  गया    और  चक्रव्यूह  रचकर   सात  महारथियों  ने  मिलकर   बालक  अभिमन्यु  का  वध  कर  दिया  l   महाभारत  का  यह  प्रसंग   बताता  है   कि   आसुरी  प्रवृति  के  लोग   चाहे  कितने  ही  संपन्न  हों ,  कितने  ही  संगठित  और  शक्तिशाली  हों    लेकिन  अधर्म  के  मार्ग  पर  चलने  के  कारण   वे  भीतर  से  कमजोर  होते  हैं   इसलिए  एक  बालक  की  वीरता  से  डर   गए   और  मिलकर  उसको  मार  दिया  l   पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  का  कहना  है   कि --- आसुरी  शक्तियों  के  विरुद्ध  यदि  दैवी  शक्तियां  संगठित  हो  कर   एक  कदम  भी  आगे  बढ़ें  तो  आसुरी  तत्वों  को  पराजित  होने  में  देर  न  लगेगी  l