स्वर्ग का राज्य पाकर भी देवराज इंद्र के मन से ईर्ष्या , द्वेष नहीं गया , तब सामान्य मनुष्य की क्या कहें ? पुराण की एक कथा है ----- जब भगवान वामन ने राजा बलि से पृथ्वी और स्वर्ग का राज्य छीनकर इंद्र को दे दिया l राज्य पाकर इंद्र फिर अहंकार से भर गए l उनके मन में अभी भी बलि के लिए द्वेष था l वे जब - तब बलि को ढूंढते रहते थे ताकि वे उनका उपहास कर सकें l इसी हेतु वे ब्रह्माजी के पास पहुंचे और बोले --- " हे पितामह ! मैं बहुत दिनों से दानवेन्द्र बलि को ढूंढ़ रहा हूँ l आप मुझे उनका ठिकाना बताएं l " ब्रह्मा जी देवेंद्र के मन में क्या है समझ गए , उन्होंने कहा ---" देवराज ! तुम्हारा उद्देश्य ठीक नहीं है l राजा बलि इस समय वन में , बस्तियों में विभिन्न पशुओं का रूप धर कर भ्रमण कर रहे हैं l " इंद्र ने फिर पूछा ---- " हे पितामह ! क्या मैं उनका अपने वज्र के प्रहार से वध कर सकता हूँ l " इस पर ब्रह्माजी हँसे और बोले ---- "इंद्र ! यह गलती भूल कर भी न करना l राजा बलि भगवान नारायण के भक्त हैं और सतत उनके संरक्षण में हैं l उनका अहित करने की चाह में तुम अपना अहित अवश्य कर लोगे l " अब इन्द्र ने देवताओं के राजा के वैभव को प्रदर्शित करने वाला वेश धारण किया और ऐरावत पर चढ़कर बलि की खोज में निकल पड़े l उन्होंने वन में एक गधे को देखा , उसके लक्षणों को देखकर उन्होंने अनुमान लगा लिया कि यही राजा बलि हैं l उन्होंने कहा -- " दानवराज ! तुम्हे अपनी दुर्दशा पर दुःख नहीं होता l तुम्हारे पास न राज्य है न ऐश्वर्य l " इस पर बलि ने कहा ---- ' देवेंद्र ! मुझे ज्ञात है तुम यहाँ मेरा उपहास करने आये हो l तुम जीवन के रहस्य को नहीं जानते l जीवन में कुछ भी स्थिर नहीं है , काल सभी को विनष्ट कर देता है l तुम जिस ऐश्वर्य और वैभव का प्रदर्शन करने आये हो , वह कल तक मेरे पास था l संभव है वह कल तुम्हे छोड़कर कहीं और चला जाये l मैं चाहूँ तो अभी भयानक रूप धारण कर तुमको वज्र और ऐरावत समेत भूमि पर गिरा सकता हूँ l लेकिन कोई काल को लाँघ नहीं सकता l यह समय सह लेने का है , पराक्रम दिखाने का नहीं l हम सब काल के आधीन है l " राजा बलि की इन बातों से देवराज को भी जीवन का मर्म समझ में आया और अपनी कुटिलता पर पछतावा हुआ l
2 January 2021
WISDOM -------
स्वार्थ और लालच व्यक्ति को किस हद तक गिरा देते हैं , इस सत्य को बताने वाली एक कथा है ---- प्राचीन काल की बात है , जब छोटे - छोटे राज्य हुआ करते थे , कहीं सामंत , कहीं जागीरदार तो कहीं राजा हुआ करते थे l उनके पास अपार सम्पदा थी l राज्य की स्थिति बहुत उन्नत थी, प्रजा भी बहुत सुखी थी l सब दिन एक से नहीं होते l कोई व्यक्ति अच्छा होता है लेकिन बुरी संगत उसे बहुत जल्दी बुरा बना देती है l पड़ोसी राज्य का राजा और उसके सामंत आदि बहुत लालची थे , चाहते थे कि उनकी सत्ता हरदम बनी रहे l जब तक वे जीवित हैं गद्दी पर बने रहें और दूर - दूर तक उनकी हुकूमत चले l इस मंतव्य से उन्होंने दूर दूर से भी सब राजाओं को बुलवाया और उन्हें भी इसका लालच दिया l बुराई की राह बड़ी सरल होती है , सभी उनके लालच में आ गए l लेकिन यह कार्य हो कैसे ? इसमें सबसे बड़ी बाधा थी --- जागरूक प्रजा l यह विचार किया गया कि शिक्षा व्यवस्था को ही चौपट कर दो , जिससे जनता जागरूक न होने पाए l गुरुकुलों को मदद देनी बंद कर दी ------- l अब दूसरी बाधा थी कि यदि लोग स्वस्थ हैं तो वे कहीं से भी ज्ञान प्राप्त कर लेंगे और विरोध करेंगे l इसलिए ऐसे तरीके अपनाये कि लोगों को पता भी न चले कि क्या कारण है और वे बीमार रहें l जो स्वस्थ हैं वे भी बीमारी से भयभीत रहें l इन सबका परिणाम घातक हुआ l बुराई ने अपनी जड़ें जमा लीं l कहते हैं जैसे धरती पर राज्य व सरकारें हैं वैसे ही हिमालय पर ऋषियों , आचार्यों की संसद है l जब धरती पर पाप व अनाचार बढ़ जाता है तब बागडोर वे अपने हाथ में ले लेते हैं जिससे संसार में पुन: सुख - शांति कायम हो l