समर्थ गुरु रामदास के साथ एक उद्दंड व्यक्ति चल पड़ा और रस्ते भर खरी - खोटी सुनाता रहा l समर्थ उन अपशब्दों को चुपचाप सुनते रहे l सुनसान समाप्त हुआ और बड़ा गाँव नजदीक आया तो समर्थ रुक गए और उस उद्दंड व्यक्ति से कहने लगे , अभी और जो भला - बुरा कहना हो , उसे कहकर समाप्त कर लो अन्यथा एनी गाँव के लोग मेरे परिचित हैं , सुनेंगे तो तुम्हारे साथ दुर्व्यवहार करेंगे l तब इससे कहीं अधिक कष्ट मुझे होगा l वह व्यक्ति पैरों में गिरकर समर्थ गुरु रामदास से क्षमा मांगने लगा l समर्थ ने उसे अपना आचरण सुधारने एवं परिवार में भी उन्ही प्रवृतियों को फैलाने का आशीर्वाद दिया l
संत के इस व्यवहार ने उसके जीवन को तो बदला ही , उसे बदले में जहाँ गालियाँ मिलती थीं , वहां सम्मान मिलने लगा l
संत के इस व्यवहार ने उसके जीवन को तो बदला ही , उसे बदले में जहाँ गालियाँ मिलती थीं , वहां सम्मान मिलने लगा l