3 October 2022

WISDOM -----

  रामचरितमानस  के  विभिन्न  प्रसंग  हमें  यह  सिखाते  हैं  कि  किसी  भी  अत्याचारी , अधर्मी , अन्यायी  से  मुकाबला  केवल  इनसानी  ताकत  से  नहीं  हो  सकता  ,  उन  पर  विजय  पाने  के  लिए  ईश्वरीय  कृपा   अनिवार्य  है  l  राम  और  रावण  का  युद्ध  होना  निश्चित  हुआ  l  रावण  अति बलवान  और  परम  शिव भक्त  था  l  श्रीराम  स्वयं  भगवान  किन्तु  मनुष्य  रूप  में  थे  इसलिए  उन्होंने  ब्रह्मा जी  से  प्रार्थना  की  कि  रावण  पर  कैसे  विजय  प्राप्त  करें  , इस  हेतु  वे  सलाह  दें  l  तब  ब्रह्मा जी  ने  कहा --- " हे श्रीराम  !लंका  के  इस  युद्ध  में  आपको  विजय श्री  का  वरदान  आदिशक्ति  देवी  चंडी  से  प्राप्त  करना  होगा  l  एकमात्र  वहीँ  हैं  जो  आपको  विजय  पताका  फहराने  का  आशीर्वाद  दे  सकती  हैं  l  इसलिए   उन्हें   प्रसन्न  करने  के  लिए  चंडी पूजन  करें  और  पूजन  के  पश्चात  चंडी  यज्ञ  का  आयोजन  करें  l  ध्यान  रहे  इस  हवं  में  एक  सौ  आठ  नील कमलों  की  आवश्यकता  पड़ेगी  l "  ब्रह्मा जी  की  सलाह  अनुसार  यज्ञ  की  तैयारी  शुरू  हुई  , लक्ष्मण जी  ने  देवताओं  के  सहयोग  से  दुर्लभ  एक  सौ  आठ  नील कमलों  की  व्यवस्था  की  l  मायावी  रावण  को  इस  गुप्त  रहस्य  का  पता  चल  गया  और  उसने  एक  नीलकमल  गायब  कर  दिया  l  हवन   का  विशिष्ट  क्षण  समाप्त  होने  को  था  और  इतने  कम  समय  में  एक  नीलकमल  की  व्यवस्था  हो  पाना  कठिन  था  , सभी  बहुत  चिंतित  थे  l  भगवान  राम  को  उसी  क्षण  याद  आया  कि  उनके  नेत्र  को  ' कमलनयन '  ' नवकंजलोचन '  की  संज्ञा  दी  जाती  है  अत:  उन्होंने  नीलकमल  के  स्थान  अपना  एक  नेत्र  देवी  को  अर्पित  करने  का  निश्चय  किया  l  जैसे  ही  वे  तीर  से  अपना  नेत्र  निकालने  को  उद्यत  हुए   देवी  चंडी  प्रकट  हुईं  और  भगवान  श्रीराम  को  ' विजय श्री  '  का  आशीर्वाद  दिया  l  यहाँ  एक  बात  महत्वपूर्ण  है  कि  भगवान  राम  सन्मार्ग  पर  थे  , धर्म  की  राह  पर  थे  इसलिए  देवी  ने  उन्हें 'विजय श्री '  का  आशीर्वाद  दिया  l  रावण  भी  देवी  का  भक्त  था   उसने  भी  विजय  की  कामना  के  लिए   चंडी  पाठ  आरम्भ  किया  ,  उसके  सामने  भी  देवी  प्रकट  हुईं   लेकिन  रावण  क्योंकिं अधर्म  की  राह  पर  था  , आततायी  था  इसलिए  देवी  ने  उसे  ' कल्याण  हो ' का  आशीर्वाद  दिया  l  रावण  का  कल्याण   , भगवान  श्रीराम  के  हाथों  मरने  में  ही  था  l  उसने  भगवान  से  कहा --- मेरे  जीते  जी  आप  मेरे  धाम  लंका  में  नहीं  आ  सके  लेकिन  मैं  आपके   पृथ्वी    रहते  आपके  हाथों  से  मुक्त  होकर  आपके  धाम  विष्णु  लोक    जा  रहा  हूँ  l  

WISDOM-------

  राजा  दशरथ   और  मायासुर  का  युद्ध  हो  रहा  था  l  मायावी  राक्षस  से  सभी  राजा  पराजित  हो  चुके  थे  l  दशरथ  को  भी  अपनी  विजय  में  संदेह  दिखाई  दे  रहा  था  l  तब  एक  नारी  संग्राम  में  उतरी  l  कैकय  राज  की  पुत्री  और  दशरथ  की  पत्नी  महारानी  कैकयी  ने  सारथी  का  पद  संभाला  l  उस  दिन  राजा  दशरथ  ने  घोर  संग्राम  कर  असुरों  के  छक्के  छुड़ा  दिए  ,  इसी  बीच  रथ  के  एक  पहिए  की  धुरी  टूट  गई  , रथ  ने  हिलने -डुलने  से  जवाब  दे  दिया  l  उस  समय  कैकयी  ने  अपनी  उंगली  पहिए  में  लगा  दी   और  तब  तक  उस  स्थिति  में  बनी  रहीं  ,  जब  तक  उस  दिन  का  युद्ध  समाप्त  नहीं  हो  गया  l  वह  युद्ध  कहते  हैं  राजा  दशरथ  ने  जीता  था  ,  पर  यदि  सच्चाई  को  व्यक्त  होने  का  अवसर  दिया  जाए  ,  तो  यह  विजय  पत्नी  की                  कर्तव्यपरायणता   की  विजय  थी  l