19 February 2023

WISDOM -----

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ----' इस  स्रष्टि  में   मात्र  कर्मफल  का  सिद्धांत  ही  अकाट्य  है  l  स्रष्टि  में  कभी  किसी  के  साथ  पक्षपात  नहीं  होता  l   व्यक्ति  अपने  कर्मों  से   बँधा  है  , कर्म  को  काल  नियंत्रित  करता  है  l  लेकिन  जो   कर्म  और  काल  दोनों  को  नियंत्रित  करता  है  ,  वह  महाकाल  है  l "  आचार्य श्री  आगे  लिखते  हैं ----- "ऋणानुबंधन   ही  वह  कारण  है  ,  जिसके  कारण  सभी  मनुष्य  इस  संसार  में  बँधे   हुए  हैं  l  जिस  व्यक्ति  के  प्रति  हमारा  ऋण  होता  है  ,  हमें  उसी    व्यक्ति  को   वह  ऋण  चुकाना  पड़ता  है  ,  फिर  चाहे  वह  इस  जन्म  में  हो   या  अगले  जन्म  में  l  कर्मफल  को  पूरा  भोगे  बिना  प्रकृति  हमें  आगे  बढ़ने  नहीं  देती   और  इसे  भोगने  के  लिए  किसी  न  किसी  को  निमित्त  बनाकर   हमारे  समक्ष  प्रस्तुत  कर  देती  है  l   "     कर्मफल  से  कोई  नहीं  बचा  है ,  चाहे  फिर  वह  स्वयं  भगवान  ही  क्यों  न  हों  ल  भगवान  श्रीकृष्ण  जब  रामावतार  के  रूप  में  थे  , तब  उन्होंने  छिपकर   बालि  पर  तीर  चलाकर  उसे  मारा  था  l  इस  कर्म  के  पीछे  सुग्रीव  का  हित  था  , लेकिन   जब  उन्होंने  श्रीकृष्ण  के  रूप  में  अवतार  लिया  तो  इस  कर्म  का  फल  भोगना  पड़ा  l   उसी  बालि  ने   ' जरा '  नाम  के  बहेलिये   के  रूप  में  छिपकर    उनके  ऊपर  यह  समझकर  तीर  चलाया  था   कि   जंगल  में  वहां  कोई  जानवर  है  l   इस  तरह  भगवान  श्रीकृष्ण  का  भोग  पूरा  हुआ   l  "  आचार्य श्री  कहते  हैं --- 'प्रकृति  के  इस  रहस्य  को  जो  व्यक्ति  समझता  है  , वह  कभी  अपने  जीवन  से  शिकायत  नहीं  करता  , बल्कि  स्वयं  को  शुभ  कर्मों  की  ओर  प्रेरित  करता  है  l   वह  अपने   दुःख , कष्ट  आदि  के  लिए  दूसरों  पर  दोषारोपण  नहीं  करता  ,  और  शुभ  कर्मों  द्वारा   स्वयं  के  जीवन  को  प्रकाशित  करने  का  प्रयास  करता  है  l