18 March 2023

WISDOM

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- 'आज  के  इस  विज्ञान  के  युग  में   मनुष्य  ,  ह्रदय  की  संवेदना   एवं  भक्तिभाव  को  भूलकर   बुद्धिवादी  और  तर्कवादी  बन  गया  है  ,  स्वयं  को  विधाता  समझ  बैठा  है  l  आज  सबसे  बड़ी  आवश्यकता  सद्बुद्धि  की  है  l  "      दुर्बुद्धि  के  कारण  ही  मनुष्य   अपने  धन  और  ज्ञान  का  दुरूपयोग  करता  है  l  संसार  में  जितनी  भी  उथल -पुथल  है , युद्ध , दंगे , हत्या , जाति  और  धर्म  के  नाम  पर   झगड़े  l  यह  सब  दुर्बुद्धि  के  कारण  ही  है  l    पुराण  की  एक  कथा  है  ---- महर्षि  व्यास जी  एक  बार  अपने  आश्रम  में  बहुत  उदास  और  चिंतित  बैठे  थे  l  तभी  नारद ही  वहां  आए   और  कहने  लगे --- " महर्षि  व्यास जी !  आपने   अठारह  पुराण , महाभारत  जैसे  ग्रन्थ  लिखे , आप  वेदज्ञ   हैं   फिर  आपकी  चिंता  का  कारण  क्या  है   ?  "  यह  सुनकर  व्यास जी  ने  कहा ---- "हे   देवर्षि  !  मेरी  चिंता  का  कारण  यही  है  कि  मैंने  इतना  सब  कुछ  लिखकर   मानव  को  मानवता  का  सन्देश  दिया  ,  तो  भी  मनुष्य  को  ऐसी  सद्बुद्धि  नहीं  मिली  कि  वह  सुखमय  जीवन  जी  सके  l  वह  आज  भी  उसी  तरह  भटक  रहा  है   और  परोपकार  करने  के   बजाय   एक  दूसरे  को  परेशान  करने  में  लगा  है  l  समझ  में  नहीं  आता  मैं  क्या  करूँ  ?  "  तब  नारद जी  ने  कहा --- " हे  ऋषि  श्रेष्ठ  !   आपने  पुराणों  में  ज्ञान -विज्ञान   की  बातें  तो  लिखी  हैं  , परन्तु  भक्तिरस  से  परिपूर्ण  साहित्य  नहीं  लिखा  , अत :  भक्तिरस    की  रचना  कीजिए  ,  जिससे  जनता  का  कल्याण  होगा   और  आपको  भी  शांति  मिलेगी   l  "  तब  उन्होंने   भगवान  के  समस्त  अवतारों  की  लीला  का  वर्णन  करते  हुए    ' भागवत पुराण  '  की  रचना  की  ,  जिससे  जनता  और  व्यास जी   दोनों  को  ही  आनंद  की  अनुभूति  हुई  l