आध्यात्मिक ज्ञान और तत्वदर्शी ज्ञानियों का कहना है कि मानव जीवन चेतना और पदार्थ का सम्मिलन है | उसके भविष्य के सफर के लिये भी इन दोनों का साथ चाहिये । जीवन के लिये संसाधन तो चाहिये, लेकिन इसके साथ इनका उपयोग कर सकने लायक विकसित एवं परिष्कृत चेतना भी चाहिये । ऐसा न होने पर सारे तकनीकी संसाधन किसी न किसी तरह भय-असुरक्षा-अविश्वास और विनाश का स्रोत बन जायेंगे ।
औजार, भाषा, खेती, उद्दोग एवं ज्ञान के रूप में इनसान ने कई क्रांतियाँ संपन्न की हैं । अब वह तकनीकी ज्ञान की नई ऊँचाइयों को छू रहा है लेकिन अभी भी कुछ बाकी है । यदि मनुष्य को अपने भविष्य के सफर की निरंतरता बनाये रखनी है, तो उसे विज्ञान व अध्यात्म में समन्वय स्थापित करना ही पड़ेगा । पदार्थ व चेतना से मिलकर बना उसका अस्तित्व इन दोनों के सम्मिलित विकास से ही विकसित और सुद्रढ़ रहेगा । मानव इसलिये है कि मशीनों का उपयोग करे न कि इसलिये कि सभी मशीने मिलकर उसकी चेतना समाप्त कर दें ।
' विज्ञान हमेशा लोकहितकारी बना रहे, इसके लिये उसे आध्यात्मिक संवेदनों से स्पंदित होना
चाहिये '
औजार, भाषा, खेती, उद्दोग एवं ज्ञान के रूप में इनसान ने कई क्रांतियाँ संपन्न की हैं । अब वह तकनीकी ज्ञान की नई ऊँचाइयों को छू रहा है लेकिन अभी भी कुछ बाकी है । यदि मनुष्य को अपने भविष्य के सफर की निरंतरता बनाये रखनी है, तो उसे विज्ञान व अध्यात्म में समन्वय स्थापित करना ही पड़ेगा । पदार्थ व चेतना से मिलकर बना उसका अस्तित्व इन दोनों के सम्मिलित विकास से ही विकसित और सुद्रढ़ रहेगा । मानव इसलिये है कि मशीनों का उपयोग करे न कि इसलिये कि सभी मशीने मिलकर उसकी चेतना समाप्त कर दें ।
' विज्ञान हमेशा लोकहितकारी बना रहे, इसके लिये उसे आध्यात्मिक संवेदनों से स्पंदित होना
चाहिये '