20 April 2022

WISDOM -------

   व्यक्तित्व  का  उत्थान -पतन  किस  प्रकार  सुख -दुःख  का  कारण  बनता  है  ,  इस  पर  गुरुकुल  में  विचार विमर्श  चल  रहा  था  l    पूर्णिमा  पर   चंद्रमा  के  शीतल  प्रकाश  को  देखकर   महर्षि  गार्ग्य   से  उनके  एक  शिष्य  ने  पूछा ---- ' पंद्रह  दिन  चंद्रमा  की  आभा  बढ़ती  रहती  है  ,  पंद्रह  दिन  घटती  रहती  है   l  इसका  रहस्य  क्या  है   ? "  महर्षि  गार्ग्य   ने  समझाया  ----- " तात  ! विधाता  ने  चंद्रमा  का  यह  क्रम  ,  यह  बताने  के  लिए   अपनाया  है   कि  व्यक्तित्व  के  विकास  से  लोग   न  केवल  स्वयं  प्रकाशित  होते  हैं  ,  वरन  संसार  को  भी  प्रकाशित  करते  हैं  ,  जबकि  पतन  की  और   उन्मुख   होने  वाले   क्षीण  होते  हैं   और  अज्ञान  के  अंधकार  में  गिरकर  नष्ट  हो  जाते  हैं   l   "           लोभ ,  लालच , तृष्णा   के  कारण     व्यक्ति   स्वयं  ही  पतन  के  गर्त  में  गिरता  जाता  है   ,  इस  सत्य  को  समझाने  वाली  एक  कथा  है  ------- '  एक  बार  भगवान  श्रीराम  के  दरबार  में  एक  कुत्ता  न्याय  मांगने  आया  ,  उसने  मानव  बोली  में  कहा ---- ' प्रभो  !  एक  ब्राह्मण  ने  मेरे  सर  पर  प्रहार  किया   है ,  उसे  दंड  दीजिये  l  '   ब्राह्मण  को  बुलवाया  गया  , वह  बोला ---- "  हे  भगवन  !  मैं  भूखा  था  ,  भोजन  हेतु  बैठता  इसके  पूर्व  ही  यह  कुत्ता   मेरे  सामने  आकर  बैठ  गया   l   मेरे  कहने  पर  भी  न  हटा    तब  क्रोध  में  आकर  मैंने  इसे  मारा  l  "  भगवान  राम  ने  सभी  सभासदों  से  पूछा   कि  इस  ब्राह्मण  को  क्या  दंड  दिया  जाए   l   कोई  कुछ  बोलता  उसके  पहले  कुत्ता  बोला ----- " " भगवान  !  आप  इसे  कलिंजर  का  मठाधीश  बना  दें  l  "  सुनकर  सभी  को  बहुत  आश्चर्य  हुआ   l     भगवान  तो  समझ  गए  पर  संसार  को  शिक्षण  देने  के  लिए   उन्होंने  सबके  समक्ष  कुत्ते  से  ही  इसका  कारण  पूछा    कि  इसे  भिक्षावृति   से  मुक्ति  दिलाकर    मठाधीश  क्यों  बनाना  चाहता  है  ? "  कुत्ता  बोला ---- "भगवन  ! मैं  भी  पिछले  जनम  में  कलिंजर  का  मठाधीश  था  l  मैं  पूजा -पाठ  करता  , लेकिन  चढ़ावे  की  सामग्री  मैं  व  मेरा  परिवार  खाता  l   इस  कारन  मुझे  कुत्ते  की  योनि  मिली  l  जो  व्यक्ति  देव , बालक ,  स्त्री  तथा  भिक्षुक  के  लिए   अर्पित  धन  और  खाद्य  सामग्री  का   संकीर्ण  स्वार्थ  के  साथ  उपभोग  करता  है   वह  नरकगामी  होता  है  l   क्रोधी  और  हिंसक  स्वभाव वाले  इस  ब्राह्मण  के  लिए    यही  सही  दंड  होगा   l   "   हँसकर  भगवान  श्रीराम  ने  उसे  वही  दंड  दिया   l    आचार्य श्री  लिखते  हैं --- 'आज  के  तथाकथित  मठाधीशों  की   अगले  जन्म  में  क्या  स्थिति  होने  वाली  है  ,  उसका  संकेत  यह  कथा  देती  है  l