31 May 2023

WISDOM -----

     लघु कथा ----  यह  संसार  प्रकृति  के  नियमों  से  चल  रहा  है  l  कर्म  का  विधान  हर  जगह  लागू  है  l  कोई  भी  उससे  बच  नहीं  सकता  l  ईश्वर  ने  यह  कर्म  विधान  बनाया   और  सर्वशक्तिमान  होते  हुए  भी  वे  स्वयं  इस  कर्म विधान  से  बच  नहीं  सकते  l  यदि  उनसे  भी  कोई  भूल  हुई  है   तो  उन्हें  भी  अपने  कर्म  का   फल  भोगना  पड़ता  है  l  पुराण  की  एक  कथा  है ---- एक  बार  दैत्यों  ने  बहुत  उपद्रव  मचाया   और  देवताओं  को  बहुत  कष्ट  देकर  भागने  लगे  l  जब  देवताओं  ने  उनका  पीछा  किया   तो  वे  भृगु  ऋषि  के  आश्रम  में  छिप  गए   l  उस  समय  ऋषि  बाहर  एकांत  में  तप  करने  गए  थे  l  ऋषि  पत्नी  ने   उन्हें  कहा  कि  तुम  लोग  अत्याचार , अन्याय  करते  हो  , यह  ठीक  नहीं  है  l  दैत्यों  ने  कहा  --- ' आप  ठीक  कहती  हैं  लेकिन  विष्णु  हमारे  पीछे  आ  रहे  हैं  ,  हमें  शरण  दो , हमारी  रक्षा  करो  l "  और  वे  वहां  छुप  गए  l  विष्णु  भगवान  आए  और  ऋषि  पत्नी  से  प्रार्थना  की  --- " आप  इन  दैत्यों  को  बाहर  कर  दें  l "  ऋषि  पत्नी  ने  कहा --- "  अभी  तो  ये  हमारे  शरणागत  हैं  , आश्रम  में  आप  इन्हें  नहीं  मार  सकते  ,  जब  बाहर  निकलें  तब  आप  इन्हें  मार  देना  l "  विष्णु  भगवान  ने  कहा ---- " ये  हमारे  अपराधी  हैं  , इन्हें   अभी  ख़त्म  कर  देंगे  l  "  ऋषि  पत्नी  ने  जब  उन्हें  आगे  बढ़ने  से  रोका  , शरणागत  की  रक्षा  करना  उनका  धर्म  था  l  इसलिए  भगवान  विष्णु  को  उनका  वध  करना  पड़ा   और  इसके  बाद  उन्होंने  अपने  चक्र  से  दैत्यों  को  मार  गिराया  l   भृगु  ऋषि  तक  जब  पत्नी  की  मृत्यु  का  समाचार  पहुंचा  तो  वे  आए  और  मन्त्र  बल  से  पत्नी  को  जीवित  कर  दिया  l  उन्होंने  कहा ---- " स्रष्टि  में  कोई  नियम  है   कि  नहीं  , विष्णु  की  हिम्मत  कैसे  पड़  गई  l   बिना  पत्नी  के  जीवन  कैसा  होता  है  ,  यह  विष्णु  को  भी  अनुभव  होना  चाहिए  l  उन्होंने  विष्णु  भगवान  को  शाप  दिया   जिसके  फलस्वरूप  रामावतार  में    भगवान  राम  कभी  सीता  के  साथ  नहीं  रह  पाए  l    कर्मफल  के  नियम  का  कोई   अपवाद  नहीं  है  l     आज  मनुष्य   अपराध  करके , दुष्कर्म  कर  के    दंड  से  बच  सकता  है   लेकिन  ईश्वर  के  न्याय  से , कर्मफल  से  कोई  नहीं  बच  सकता   ' भगवान  के  घर  देर  है , अंधेर  नहीं   है  l '             

30 May 2023

WISDOM -----

   जरथुस्त्र  जब  जन्मे  तो  हँसते  हुए  पैदा  हुए  l  अन्य  बच्चों  की  तरह  रोये  नहीं  सभी  आश्चर्य चकित  थे  l    जब  जरथुस्त्र  बड़े  हुए  तो   लोगों  ने  जन्म   के  समय    हँसने  का  कारण  पूछा  और  रहस्य  जानना  चाहां  l   वे  बोले --- हम  जन्म  के  समय  ही  नहीं  हँसे  ,  हर  परिवर्तन  हँस  कर  ही  झेला  जाता  है  l "   जरथुस्त्र   अंतिम  समय  भी  हँसे   तो  लोगों  को  समझ  में  नहीं  आया  कि  अब  क्यों  हँसे  l   उनसे  पूछा  तो  वे  बोले  --- " लोगों  को  रोते  देखकर  हंसी  आ  गई  कि  कितने  नादान  हैं ये ,  हम  मकान  बदल  रहे  हैं  !  तो  इन्हें  क्यों  परेशानी  हो  रही  है  l "    वे  हमें  जीवन  जीने  का  मन्त्र  सिखा  गए  कि  परिवर्तन  को  मुस्करा  कर , ख़ुशी  से  स्वीकार  करो  l  

29 May 2023

WISDOM -----

   श्रीमद् भगवद्गीता  में  भगवान  श्रीकृष्ण  अर्जुन  को  अपनी  विभूतियों  का  विवरण  देते   हैं  l   श्रीकृष्ण  मृत्यु  के  अधिपति  ' यम ' को  अपना  स्वरुप  कहते  हैं   और  इन्हें  शासन  करने  वालों  में  श्रेष्ठतम  मानते  हैं  l    भगवान  श्रीकृष्ण  अन्तर्यामी  थे  ,  किसी  भी  शासन  प्रणाली  का  भूत , वर्तमान  , भविष्य  उनसे  छिपा  नहीं  था  ,  उनकी  दिव्य  द्रष्टि  सबके  गुण -दोष  देख  रही  थी  l  त्रेतायुग  में   लंका  का  राजा  रावण  था  , उसका  शासन  का  यह  तरीका  था  कि  वह  ऋषि -मुनियों  पर  बहुत  अत्याचार  करता  था  , उनके  यज्ञ , हवन पूजन  को  नष्ट  कर  देता  , उनका  जीवन  मुश्किल  कर  दिया  था  l  शनि , राहू ,केतु  सबको  उसने  बंदी  बना  लिया  था l  रावण  बहुत  बड़ा  तपस्वी  था  , शिवजी  को  उसने  प्रसन्न  तो  किया , इसके  फलस्वरूप  उसे  सोने  की  लंका  मिली  , लेकिन   भगवान  की  कृपा  नहीं  मिली   l  वह  अत्याचारी  , अहंकारी  था  , उसके  अहंकार  की  अति  थी  -सीता -हरण  l  इस  कारण  एक  लाख  पूत , सवा  लाख  नाती  समेत    समाप्त  हो  गया  l  द्वापरयुग  में  भगवान  श्रीकृष्ण  द्वारकाधीश  थे  l  वहां  धन -वैभव  बहुत  था  , लोग  भोग - विलास  में  डूब  गए  l  अति  का  नशा  करने  के  कारण  और  गांधारी  के  शाप  के  कारण  वे  सब  आपस  में  ही  लड़  मरे  और  द्वारका  समुद्र  में  डूब  गई  l  भगवान  कहते  हैं  ---सब  जन्म  मुझी  से  पाते  हैं  , फिर  लौट  मुझ में  आते  हैं  l  उन्हें  तो  कलियुग  का   और  आने  वाले  हजारों , लाखों  वर्षों  का  ज्ञान  था  l  उन्हें  पता  था  कि  काम , क्रोध , लोभ , मोह , तृष्णा , महत्वाकांक्षा  में  लिप्त  संसार  में  कभी  स्वर्ण युग  होगा ,  कभी   अत्याचार , अन्याय  भी  होगा   इसलिए  उन्होंने   पृथ्वी    के  किसी  भी  शासन  को  अच्छा  नहीं  बताया  l   भगवान  ने  गीता  में   मृत्यु  के  देवता  यम  के  शासन  को  सर्वश्रेष्ठ  बताया  है  l  यम  के  शासन  में  कोई  खोट  नहीं , कोई  शिथिलता  नहीं  l  यह  सबके  लिए  समान  है  l  यम  के  शासन  में  अमीर , गरीब , छोटे -बढ़े , ऊँच -नीच , शहरी -ग्रामीण , राजा -प्रजा , सुन्दर -कुरूप , धर्म , जाति  किसी  भी  आधार  पर  कोई  भेदभाव  नहीं  है  l  जब  जिसकी  आ  गई  उसे  जाना  पड़ता  है  , फिर  संसार  की  कोई  ताकत  उसे  एक  पल  के  लिए  भी  नहीं  रोक  सकती   l  यम  के  शासन  में  कानून  सबके  लिए  समान  है  , कोई  भेदभाव  नहीं  l  वहां  कोई  चापलूसी , विशेष  सुविधा  नहीं  चलती  इसलिए  भगवान  ने  यमदेव  को  अपना  स्वरुप  बताया  है  l  

28 May 2023

WISDOM -----

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं --- "  ईर्ष्या  मानवीय  स्वभाव  की  विकृति  है  l   ईर्ष्यात्मक   जीवन  की  यात्रा  अधूरी  सी  होती  है  , जिसमे  जो  मिलता  है  , उसकी  कद्र  नहीं  होती   और  जो  नहीं  मिल  पाता  उसका  विलाप  चलता  रहता  है  l  इसलिए  जरुरी  यह  है  कि  दूसरों  की  ओर  न  देखकर   अपनी  ओर  देखा  जाये  , क्योंकि  हर  इनसान   अपने  आप  में   औरों    से  भिन्न  है  , विशेष  है  , उसकी  जगह  कोई  नहीं  ले  सकता   और  न  ही  उसकी  पूर्ति  कोई  कर  सकता  है  l  "  आचार्य श्री  आगे  लिखते  हैं --- " ईर्ष्या  तभी  हमारे  मन  में  प्रवेश  करती  है  , जब  हमारी  तुलनात्मक  द्रष्टि  होती  है   और  हम  उसमें  खरे  नहीं  उतरते  l  इसलिए  यदि  तुलना  ही  करनी  है  तो  अपने  ही  प्रयासों  में  करनी  चाहिए  कि  हम  पहले  से  बेहतर  हैं  या  नहीं  ,  तभी  ईर्ष्या रूपी  विष बीज   को  पनपने  से  रोका  जा  सकता  है   और  इसका  समूल  नाश  किया  जा  सकता  है  l  "                           अमेरिका  के  प्रसिद्ध  मनोवैज्ञानिक  डॉ . लेपार्ड  ने  लिखा  है ---- " किसी  की  सफलता  से  ईर्ष्या  करना  अपने  आपको  संकुचित  कर  के  सोचना  है   क्योंकि  एक  व्यक्ति   कभी  भी   किसी   दूसरे  की  सफलता   पर  डाका  नहीं  डाल  सकता   और  न  ही  किसी  अन्य  तरीके  से  उसे  छीन  सकता  है  l  सफलता  यदि  सच  में  प्राप्त  करनी  है   तो  उसके  लिए   ईर्ष्या  की  नहीं  अथक  प्रयास  की  जरुरत  है  l  '                                                          ईर्ष्यालु  व्यक्ति  कभी  भी  अपने  जीवन  से  संतुष्ट  नहीं  होता  l  वह  अपने  जीवन  की  बहुमूल्य  ऊर्जा  को  दूसरों  को   नीचा  दिखाने  के  प्रयासों  में  ही  गँवा  देता  है  l  ईर्ष्या  एक  आग  है  जिसमें  ईर्ष्यालु  व्यक्ति  निरंतर  जलता  रहता  है  l  इसलिए  आचार्य श्री  लिखते  हैं  ---- ' जीवन  जीना  एक  कला  है  l  यदि  ईर्ष्या  के  बिना   हमने  जीवन  जीना  सीख  लिया   तो  हमारी  जिन्दगी  बहुत  आसान  और  आशा  से  परिपूर्ण  हो  जाएगी  l 

27 May 2023

WISDOM ----

   ' हिरन , हाथी , पतंगा , मछली  और  भौंरा  ये  अपने -अपने  स्वभाव  के  कारण    विषयों  में  से  केवल  एक  में  आसक्त  होने  के  कारण   मृत्यु  को  प्राप्त  होते  हैं  ,  तो  इन  पांच  विषयों  में      जकड़ा  हुआ  असंयमी   मनुष्य   कैसे  बच   सकता  है  l  असंयमी  की  दुर्गति  निश्चित  है   l  "   -------- रावण  का  मरा  हुआ  शरीर  पड़ा  था  l  उसमे  सौ  स्थानों  पर  छिद्र  थे   l  सभी  से  लहू  बह  रहा  था  l  लक्ष्मण जी  ने  भगवान  राम  से  पूछा  --- आपने  तो  एक  ही  बाण  मारा  था  , फिर  इतने  छिद्र  कैसे  हुए  ?  भगवान  ने  कहा --- मेरे  बाण  से  तो  केवल  एक  ही  छिद्र  हुआ  l  पर  इसके  कुकर्म  घाव  बनकर   अपने  आप  फूट  रहे  हैं   और  अपना  रक्त  स्वयं  बहा  रहे  हैं                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                        

26 May 2023

WISDOM -----

   लघु कथा ---  एक  राजा  बहुत  सज्जन , दयालु  और  उदार  थे  l   उनके  दरबार  से  कोई  भी  खाली  हाथ  नहीं  लौटता  था  l  बात  फैलने  लगी  l  उदारता  का  लाभ  उठाने  के  लिए   चालाकों  और  चापलूसों  की  भीड़  जुटने  लगी  l  उनके  चतुर  मंत्री  ने   बात  को  समझा  और  एक  दिन   घोषणा  करा  दी  कि  महाराज  बीमार  हैं  , उन्हें  पांच  व्यक्तियों  का  रक्त  चाहिए  , तभी  उनके  प्राणों  की  रक्षा  की  जा  सकती  है  l  पूरा  एक  सप्ताह  बीत  गया  लेकिन  कोई  भी  शुभ  चिन्तक , , याचक , चापलूस   आगे  नहीं  आया  l  राजा  को  बड़ी  चिंता  होने  लगी  l   चतुर  मंत्री  ने  राजा   को  संसार  की  रीति -नीति  बताते  हुए  कहा ---  महाराज   , आप  व्यथित  न  हों  l  आप  तो  एक  छोटे  राज्य  के  राजा  हैं  ,  लोगों  ने  आपको  ठग  लिया  तो  कौन  सी  बड़ी  बात  है  l  परमात्मा  के  दरबार  में  तो  यह  नित्य  ही  होता  है  ,  उसके  भक्त  कोरे  कर्मकांड  कर  के ,  मात्र  चिन्ह  पूजा  कर के   उसे  दिन -रात  ठगते  हैं   किन्तु  कष्ट  सहने , त्याग  करने ,  साधना  करने   कोई  विरला  ही  आगे  आता  है  l  

25 May 2023

WISDOM ----

   अनमोल  मोती ---- 1 . ' मेढ़क  दौड़ता  है , उसके  पीछे  सर्प  दौड़ता  है  ,  सर्प  के  पीछे  मयूर  , मयूर  के  पीछे  सिंह  और  सिंह  के  पीछे  शिकारी  दौड़  रहा  है  l  इस  प्रकार  अपने -अपने   भोजन    और  विहार  की  सामग्रियों  के  पीछे  सभी  व्याकुल  हो  रहे  हैं  ,  पर   पीछे  चोटी  पकड़े   काल  खड़ा  है  ,  उसे  कोई  नहीं  देखता  l  "  

2 .   एक  बार  अग्निवेश  ने  आचार्य  चरक  से  पूछा  --- " संसार  में  जो  अगणित   रोग  पाए  जाते  हैं  ,   उनका  कारण  क्या  है  ? "   आचार्य ने  उत्तर  दिया -----" व्यक्ति   के  पास  जिस  स्तर  के  पाप  जमा  हो  जाते  हैं  ,  उसी  के  अनुरूप  शारीरिक  और  मानसिक  व्याधियां  उत्पन्न  होती  हैं  l  व्यक्तिगत   व्याधियां  ही  नहीं  ,  प्रकृति  के  सामूहिक  दंड  भी   मनुष्य  के  सामूहिक  पतन  का   दुष्परिणाम  होते  हैं  l  "  कर्मफल  के  सिद्धांत  पर  समस्त  संसार  का  व्यापार  चल  रहा  है  l  सम्पूर्ण  स्रष्टि   इस  मर्यादा  से  बंधी  हुई  है  l  जो  समझदार  हैं  , वे  इस  शाश्वत  सत्य  को  समझते  हैं   और  कर्मों  के  फल  को  सहर्ष  स्वीकार  करते   हैं   l 

24 May 2023

WISDOM ----

   कबीरदास जी  कहते  हैं ---- कबीर चन्दन  पर  जला ,   तीतर   बैठा  माहिं  l  हम  तो  दाझत  पंख  बिन  l                      तुम  दाझत  हो  काहि l कबीर  कमाई  आपनी  ,  कबहुं  न  निष्फल  जाय  l  सात  सिंधु  आड़ा  पड़े  ,  मिले  अगाड़ी  आय  l      अर्थात  जलते  हुए  चंदन  के  पेड़  पर  एक  तीतर  आकर  बैठ  गया   और  वह  भी  जलने  लगा  l  पेड़  कहता  है  ,  हम  तो  इसलिए  जल  रहे  हैं  , क्योंकि  हमारे  पास  पंख  नहीं  हैं  ,  हम  उड़  नहीं  सकते  l   लेकिन  तीतर  तुम  तो  पंख  वाले  हो  ,  फिर  तुम  क्यों  जलते  हो  ?  तीतर  उत्तर  देता  है   कि  अपना  किया  हुआ  कर्म  बेकार  नहीं  जाता  l  सात  समुद्र  की  आड़  में  रहे  तो  भी   आगे  आकर  मिलता  है  l  ---                          पुराण  की  एक  कथा  है  जो  यह  बताती  है  कि  सत्कर्मों  के  फलस्वरूप  व्यक्ति   इंद्रासन  भी  प्राप्त  कर  सकता  है   लेकिन   सफलता  की  ऊँचाइयों  पर  पहुंचकर  यदि  वह  अपनी  शक्ति  का  दुरूपयोग  करता  है , लोगों  को  अपमानित , उत्पीड़ित  करता  है   तो  वहां  से  नीचे  गिरने  में  देर  नहीं  लगती  l  ----- नहुष  को  पुण्य  फल  के  बदले  इंद्रासन  प्राप्त  हुआ  l  ऐश्वर्य  और  सत्ता  का  मद  जिन्हें  न  आवे , ऐसे  विरले  होते    हैं  l   नहुष    पर  भी  सत्ता  का  नशा  चढ़  गया  , उनकी  द्रष्टि  रूपवती  इन्द्राणी  पर  पड़ी   और  उन्होंने  इन्द्राणी  को  अंत:पुर   में   आने  का  प्रस्ताव  भेजा  l   इन्द्राणी  बहुत  दुःखी  हुई  , उन्होंने  देवगुरु  ब्रहस्पति  से   इस  मुसीबत  से  बचने  का  उपाय  पूछा  l  उनकी  सलाह  के  अनुसार  इन्द्राणी  ने  नहुष   के  पास  सन्देश  भेजा  कि  यदि   नहुष  सप्त ऋषियों   को  पालकी  में  जुतवाए  और  उस  पालकी  में  बैठकर  मेरे  पास  आए  तो  मैं  प्रस्ताव  स्वीकार  कर  लूंगी  l    आतुर  नहुष  ने  ऋषि  पकड़  बुलाए , उन्हें  पालकी  में  जोत  दिया   और  उस  पर  चढ़  बैठा  l   नहुष    इन्द्राणी  के  पास  पहुँचने    को  बहुत  आतुर  था   इसलिए  ऋषियों  को  बार -बार  हड़का  रहा  था ---' जल्दी  चलो , जल्दी  चलो  l '  दुर्बल  काया  के  ऋषि  इतना  भार  दूर  तक   ढोने   और  जल्दी  चलने  में  समर्थ  नहीं  थे  l  लेकिन  नहुष   उन्हें  बार -बार  जल्दी  चलने  को  कह  रहा  था  l  अपमान  और  उत्पीड़न  से  क्षुब्ध  हो    एक  ऋषि  ने    उसे  शाप  दे  डाला --- '" दुष्ट  !  तू  स्वर्ग  से  पतित  होकर   पुन:  धरती  पर   जा  गिर  l  "  शाप  सार्थक  हुआ   और  नहुष  स्वर्ग  से  पतित   हो  कर   मृत्युलोक  में  दीन -हीन  की  तरह   विचरण  करने  लगे  l  

23 May 2023

WISDOM ------

     अनमोल  मोती ----- 1. एक  संत  अपने  दस  शिष्यों  सहित  एक  वन  में  रहते  थे  l  एक  रात्रि  को  उन्होंने   अपने  दसों  शिष्यों  से   विशेष  साधना  कराई  ,  उन्हें  पंक्तिबद्ध    बैठाकर  ध्यान  करने  को  कहा  l   रात्रि  के  तीसरे  पहर  गुरु  ने  राम  नामक  शिष्य  को  धीरे  से  बुलाया   और  उसे  दुर्लभ  सिद्धि  प्रदान  की  l  थोड़ी  देर  बाद  श्याम  को  बुलाया  ,  पर  वह  सो  रहा  था  l  अत:  राम  आया  और  वह  सिद्धि  लेकर  चला  गया   l  इसी  प्रकार  एक -एक  कर  के  सभी  शिष्यों  को  गुरु  ने  पुकारा  ,  पर  वे  सभी  सो  रहे  थे  l  सोते  को  जगाने  का  निषेध  था  l  दसों    बार   राम  आया  और  एक -एक  कर  के  दसों  सिद्धियाँ   ले  गया  l  सोने  वाले  शिष्य   दूसरे  दिन  अपनी  भूल भूल  पर  पछताने  लगे  l   '  जो  सोये , सो  खोये  l '  

२.  श्रीकृष्ण  बांसुरी  को  अपने  ओठों  से  लगाए  रहते  थे  l  अर्जुन  ने  बांसुरी  को  इसके  लिए  बहुत  सराहा   और  इस  सौभाग्य  का  कारण  पूछा  l   बांसुरी  ने  कहा ---- ' बांसुरी   बनने   के  पूर्व  में   मैं   बांस  का  एक  दुकड़ा  मात्र  थी  ,  किन्तु  जब  मैंने   अपने  आप  को  कलाकार  के  हाथों  सौंप  दिया   तो  उसने  मेरे  मूल   अस्तित्व  को  ही  समाप्त  कर  दिया   और  मुझे  पोला  बनाकर  , गरम  लोहे  की  सलाखों  से   सारा  शरीर  छेद    दिया  l  इससे  मुझमे  सुरीले  स्वर  निकलने  लगे  l  यही  करण  है  कि   कृष्ण  मुझे  हमेशा  ओठों  से  लगाये  रहते  हैं  l  अर्जुन  को   अहं   को  समाप्त  कर   सच्चे  समर्पण  का  एक  महान  सूत्र  ज्ञात  हो  गया  l  

22 May 2023

WISDOM ----

  सम्राट  पुष्यमित्र  के  एक  सेनापति  पर  महाभियोग  लगा  l   आचार्य  मार्तण्ड  न्यायधीश  बनाए  गए   l  सेनापति स्वयं  भारी  धनराशि  लेकर    आचार्य  मार्तण्ड  के  सामने  उपस्थित  हुआ   और  बोला ---- " महाशय , आप  चाहें  तो   अशर्फियों  की   यह  थैलियाँ  लेकर   अपनी  दरिद्रता  दूर  कर  सकते  हैं  l  इन्हें  रखिये  और  न्याय  हमारे  पक्ष  में  कीजिए  l  विश्वास  रखें  यह  बात   हम  दोनों  के  अतिरिक्त  और  कोई  नहीं  जान  पायेगा  l  आचार्य  ने  एक  उपेक्षित  द्रष्टि  थैलियों  पर  डाली   और  हँसकर  बोले ---- " वत्स  !  धरती , आकाश  , मेरी  आत्मा , आपकी  आत्मा  और  परमात्मा  की  जानकारी  में   जो  बात  आ  गई  , वह  छुपी  कहाँ  रही  l  इन्हें  ले  जाइये  , कर्तव्य  और  उत्तरदायित्व  को  प्रलोभन   के  बदले   झुठलाना  मेरे  लिए  संभव  नहीं  है    l  

21 May 2023

WISDOM-----

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ----' भक्ति  भावना  अन्दर  तक  ही  सिमित  न  रहे  ,  वह  परमार्थ  हेतु  सत्कर्मों  के  रूप  में   अभिव्यक्त  हो    तो  ही  सार्थक  है  l  वृत्ति  कृपण  जैसी  हो   तो  कुबेर  का  खजाना  भी    व्यर्थ   हैं  l  उदार  के  लिए  तो  प्रतिकूल  परिस्थिति  में  भी  परमार्थ  की  आकुलता  रहती  है  l  --------  भगवान  श्रीकृष्ण  एक  दिन  कर्ण  की  उदारता  की  चर्चा  कर  रहे  थे  l  अर्जुन  ने  कहा ---- " धर्मराज  युधिष्ठिर  से  बढ़कर  वह  क्या  उदार  होगा  ? "  कृष्ण  ने  कहा --- " अच्छा  परीक्षा  करेंगे  l "  एक  दिन  वे  ब्राह्मण  का  वेश  बनाकर   युधिष्ठिर  के  पास  आए  और  कहा  ---"  एक  आवश्यक  यज्ञ   के  लिए   एक  मन  सूखे  चन्दन  की  आवश्यकता  है  l '  युधिष्ठिर  ने  अपने  नौकर  को  चंदन  लाने  भेजा  ,  लेकिन  तेज  वर्षा  के  कारण   सब  चंदन  की  लकड़ी  गीली  हो  गई  थीं  l  बड़ी  कठिनाई  से  बहुत  थोड़ा  सूखा    चंदन    मिल  सका  ,  l  युधिष्ठिर  ने   अधिक  न  दे  पाने  के  लिए   अपनी  असमर्थता  व्यक्त  की  l    अब  वे  कर्ण  के  पास  पहुंचे   और  वही  एक  मन  सूखे  चंदन  की  मांग  की  l  वह  जानता  था  कि  वर्षा  में  सूखा  चंदन  नहीं  मिलेगा   इसलिए  उसने  अपने  घर  के  किवाड़ - चौखट   निकालकर  फाड़  डाले   और  ब्राह्मण  को  सूखा  चंदन  दे  दिया  l 

WISDOM -----

   एक  बार  एक  व्यक्ति  शंकराचार्य जी  से  मिलने  गया   और  बोला ---- " भगवान  ! मैं  अपने  क्रोध  से  बहुत  परेशान  हूँ  l  यह  कहीं  भी  आ  जाता  है  l  लाख  कोशिश  करूँ  छूटता  ही  नहीं  है  l  आप  इससे  छूटने  का  कोई  मार्ग  बताइए  ? "  शंकराचार्य  बोले  ---- " थोड़ी  देर  में  आना  , तब  उपाय  बता  सकूँगा  l  अभी  मेरे  हाथों  को   मेरे  कमण्डलु  ने  पकड़  रखा  है  l  यह  कमण्डलु  मेरा  हाथ  छोड़े   तो  मैं  कुछ  और  करूँ  ? "  वह  आदमी  आश्चर्य मिश्रित  स्वर  में  बोला --- " क्यों  मजाक  करते  हैं  भगवन  !  कमण्डलु  कैसे  आपको  पकड़ेगा  ?  आपने  ही  तो  इसे  पकड़  रखा  है  l  "  शंकराचार्य जी  बोले ---- "वत्स  ! ऐसे  ही  क्रोध  ने  तुमको  नहीं  पकड़ा  , तुमने  ही  इसे  पकड़  रखा  है  l  तुम  मालिक  हो  अपने  मन  के  , फिर  गुलाम  की  तरह  व्यवहार  क्यों  कर  रहे  हो  ? "  यह  सुनते  ही  उस  व्यक्ति  की  आँखें  खुल  गईं   और  उसकी  सोच  और  उसका  जीवन  सदा  के  लिए  बदल  गया  l 

19 May 2023

WISDOM -----

   लघु कथा ---- ' आचरण  से  शिक्षा ' -----  एक  नगर  का  राजा  बड़ा  निर्दयी  था  , प्रजा  को  उत्पीड़ित  कर  बहुत  धन  जमा  करता  और  उसे  अपने  भोग विलास  पर  खर्च  करता  l  उसे  शिकार  का  भी  बहुत  शौक  था , निर्दोष  प्राणियों  का  शिकार   करने  नित्य  ही  जंगल  में   जाता  l  उस  जंगल  में  एक  महात्मा  रहते  थे  l  घायल  और  निरीह  प्राणियों  की  चीत्कार  से  उनका  मन  बहुत  दुःखी  हो  जाता  था , कभी  कोई  निरीह   हिरण  उनके  पास  भागता  हुआ  आता   और  अपने  शरीर  में  घुसे  बाण  को  निकालने  के  लिए   अपनी  भाषा  में   ,  आंसू  भरे  नेत्रों  से  प्रार्थना  करता  l    महात्मा  ने  विचार  किया  कि   पूजा  और  साधना  का  स्वरुप  केवल  ध्यान  करना  और  कर्मकांड   करना   ही  नहीं  है  l  संसार  के  कल्याण  के  लिए   लोगों  को  प्रेम  और  सदव्यवहार  की  शिक्षा  देना   और  राजा  को  उसका  राजधर्म  सिखाना  भी  जरुरी  है  l   सब  सोच -विचारकर  वे  उस  नगर  में  पहुंचे  और  राजा  से  कहा ---- ' राजन  !  मैं   आपके  नगर  में  कुछ  दिन  रहकर  साधना  करना  चाहता   हूँ  और  उसके  लिए  एक  स्थान  चाहता  हूँ  l '  राजा  के  ह्रदय  में  संत-महात्माओं  के  लिए   कोई  विशेष  स्थान  नहीं  था  , कुछ  सोचकर  राजा  ने  कहा ---- "  हमारा  एक  आम  का  बगीचा  है  , आप  उसमे  रह  कर  साधना  कर  सकते  हैं   लेकिन  उस  बगीचे  की  देखभाल  और  सुरक्षा  का  पूरा  दायित्व   आप   पर  होगा  l '  महात्मा जी शर्त  मान  कर  बाग़  में  चले  गए  l  वे  बाग़  में  रहकर  भजन -पूजन  भी  करते  और  बाग़  की  देखभाल  भी  करते  l  जो  बच्चे  वहां  आते  उन्हें  प्रेम व   सदव्यवहार  की  शिक्षा  देते  और  जो  फल  अपने  आप  जमीन  पर  गिर  जाते  , उन्हें  अपने  हाथ  से  खिलाते  l   एक  दिन   इस  राजा  का  एक  मित्र  राजा   इस  नगर  में  आवश्यक  कार्य  से  आया  l  वह  अभिमानी  नहीं  था  l   सुशील    और  संतों  की  सेवा  करने  वाला  था  l  उसने  जब  महात्मा  को  बाग  में  कार्य  करते  देखा  तो  कहा  भी  कि  इस  तरह  महात्मा  से  सेवा  लेना  उचित  नहीं  है  l   इस  अभिमानी  राजा  ने  उसकी  बात  पर  कोई  ध्यान  नहीं  दिया  और   उस  महात्मा  को  कुछ  आम  लाने  का  आदेश  दिया  ताकि  उस  मित्र  को  अपने  बाग  के  आम  खिलाये  l  मित्र  तो  महात्मा  की  वजह  से  संकोच  में  था  ,  इस  राजा  ने  जैसे  ही  आम  चूसा  तो  वह  बहुत  खट्टा  था , तो  थूक  दिया  l  उसने  क्रोध  से  उस  महात्मा  से  कहा --- ' मैंने  आपको  मीठे  आम  लाने  के  लिए  कहा  था   और  आप  जानबूझकर  सबसे  खट्टे  आम  लाये  l "  महात्मा  ने  शांत  स्वर  में  कहा --- " राजन  !  मुझे  इस  बात  का  ज्ञान  ही  नहीं  है  कि  इस  बाग  के  कौन  से  फल  मीठे  हैं  और  कौन  से  खट्टे  l  क्योंकि  मैंने  आज  तक  एक  भी  आम  चखा  भी  नहीं  है  l "  राजा  ने  कहा ---- " क्यों  ऐसी  क्या  बात  थी  जो  आपने  एक  भी  आम  आज  तक  नहीं  खाया  l '  महात्मा  ने  शांत  स्वर  में  उत्तर  दिया ---- " राजन  ! मैं  इस  बाग़  में  रक्षक  होकर  नियुक्त  हुआ  हूँ  , भक्षक  होकर  नहीं  l  आपने  मुझे  केवल  रखवाली  का  उत्तरदायित्व  सौंपा  था  , फल  खाने  का  अधिकार  नहीं  दिया  था  l  तब  मैं  आम  खाने  की  अनाधिकार  चेष्टा  कर   इस  लोक  में  अपयश  और  परलोक  में  नरक  यातना  का  भागी   नहीं  बनना  चाहता  l "  महात्मा  का  यह  उत्तर  सुनकर  मित्र  राजा  बहुत  प्रभावित  हुआ  , उसने  झुककर  महात्मा  का  चरण स्पर्श  किया  किन्तु  इस  अभिमानी  राजा  को  कुछ  समझ  में  नहीं  आया  l  तब  इस  मित्र  राजा  ने  कहा --- ' महात्मा  ने  अपने  इस  उत्तर  से  राजधर्म  को  समझाया  है   कि  राजा  को  अपनी  प्रजा  का  रक्षक  होना  चाहिए  , भक्षक  नहीं   l  उसे  प्रजा  का  पोषण  करना  चाहिए ,  शोषण  नहीं  l  "  महात्मा  के  सरल  और  शांत  व्यवहार  और  अपने  आचरण  से  सदाशयता  की  शिक्षा  से   राजा   की  आँखें  खुल  गईं   और  उसने  संकल्प  लिया  कि  अब  वह  प्रजा  का  शोषण  और  निरीह  प्राणियों  की  हत्या  नहीं  करेगा  l  आचरण  द्वारा  दी  गई  शिक्षा  से  जीवन  की  दिशा  बदल  गई  l  

17 May 2023

WISDOM ------

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं --- " जाति -पाँति , ऊँच -नीच  के  भेदभाव  को  भुलाकर   यदि  सभी  लोग   पिछड़े  रुग्ण  व्यक्तियों  की   सच्ची  सेवा  में  लग  सकें   तो  इस    धरती  पर  स्वर्ग  जैसा  वातावरण  उत्पन्न  कर  सकना  संभव  है  l  जो  शांति   किसी  योग  साधना   और  सांसारिक  वैभव   से  नहीं  मिलती  , वह   निष्काम  कर्मयोग  से  मिल  जाती  है  l   ईश्वर  को  अपनी   आराधना  कराने  की  तुलना  में   अपनी  रचना  की  आराधना  अधिक  प्रिय  है  l  "   वर्तमान  समय  में  संसार  में  जो  इतनी  अशांति  है   उसका  एक  कारण  यह  भी  है  कि   आज  लोकसेवक  तो  बहुत  है   लेकिन  सेवा  के  नाम  पर  दिखावा ,  प्रदर्शन , प्रचार -प्रसार  कर  अपना  स्वार्थ  सिद्ध  करना   अधिक  है  l   इसी  सत्य  को  स्पष्ट  करने  वाली  एक  कथा  है ---- एक  समाजसेवी  ने  एक  स्कूल  खोला  l  वे  बच्चों  को  रोज  शिक्षा  देते  थे  कि  कोई  दया  का  कार्य  प्रतिदिन  अवश्य  करना  चाहिए  l  एक  दिन  उन्होंने  बच्चों  से  पूछा  की  तुमने  क्या  दयालुता  का  काम  किया  l  तीन  लड़कों  ने  हाथ  उठाया  और  कहा   हमने  एक   वृद्ध  जो  बहुत  ही  कमजोर  था  उसको  सड़क  पार  कराने  में  मदद  की  l  शिक्षक  ने  कहा  ---क्या  तुम  तीनों  ने  एक  ही  वृद्ध  को  सड़क  पार  कराने  में  मदद  की  ?  बच्चे  बहुत  भोले  होते  हैं  , उन्होंने  कहा ---- ' वृद्ध  को  सड़क  पार  जाना  तो  नहीं  था  , लेकिन  हमें  दया धर्म  का  पालन  तो  करना  था   इसलिए  हम  तीनो  उससे  चिपट  गए   और  उसका  हाथ  पकड़कर  घसीटते  ले  गए   और  सड़क  पार  करा  के  ही  माने  l ' शिक्षक  ने  अपना  माथा  पीट  लिया  , उसे  बहुत  दुःख  हुआ  लेकिन  यह  सोचकर  मन  शांत  कर  लिया  कि   दुनिया  में  लोकसेवा  के  नाम  पर   यही  विडंबना  तो  चल  रही  है  , बच्चे   गुनहगार  नहीं  हैं  l  

16 May 2023

WISDOM ----

   लघु कथा ----1 . 'संसार  की  शोभा  '----  ऋषि  लाओत्से  अपने  प्रिय  शिष्य   योत्जी  के  साथ   किसी  यात्रा  पर  जा  रहे  थे  l  वे  उस  नगर  के  पास  से  गुजरे  जहाँ  के  राजा  को   कुछ  दिन  पूर्व  युद्ध  में  मार  दिया  गया  था  l  राज महल  जो  कभी  हास -विलास  का  केंद्र  था  , आज  भूत -प्रेतों  का  वास  बना  हुआ  था  l  खंडहर  देखकर   लाओत्से  ने  कहा ---" कितना  भयंकर  लगता  है  यह    स्थान  !  आदमी  की  गति  न  होने  से   स्थान  नीरव  और  उदास  लगते  हैं  l  पता  नहीं  उस  दिन   धरती  की  स्थिति  क्या  होगी  , जिस  दिन  पृथ्वी  से  मानव  का  अस्तित्व  उठ  जायेगा  l "  शिष्य  योत्जी  ने  प्रश्न  किया --- " क्या  यह  संभव  है  कि  पृथ्वी  जनशून्य  हो  जाएगी  ? "  लाओत्से  ने  कहा ---- " हाँ  वत्स  !  यह  संभव  है  l  लाखों , करोड़ों  आदमी  भले  ही  न  मरें  , पर  जिस  दिन  धरती  से   उन  आदमियों  का  अंत  हो  जाएगा  , जिनके  आधार  पर  मनुष्यता  और  धरती  की  प्रतिष्ठा  है  , उस  दिन  धरती  वीरान  हो  जाएगी  l  प्राणवान  पुरुषों  के  न  रहने  से   धरती  की  शोभा  जाती  रहती  है  l  संसार  की  गति  उसमें  बसने  वाले  साधारण  आदमियों  से  नहीं  है  , बल्कि  उस  आदमी  के  कारण  है  , जिसकी  स्फूर्ति  से   अनेक  आदमियों  के  जीवन  सही  दिशा  में  चलते  हैं  l  उनका  न  रहना   और  संसार  का    प्रेतवास    बनना  एक  समान  है   l  

15 May 2023

WISDOM ----

    पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ----' अहंकार  से  ईर्ष्या , द्वेष   और  क्रोध  उत्पन्न  होता  है  l  अहंकार  सारी  अच्छाइयों  के  द्वार  बंद  कर  देता  है  l "  अहंकारी  व्यक्ति  स्वयं  को  श्रेष्ठ  समझकर  दूसरों  का  अपमान  करता  है  l   अपमानित  व्यक्ति  के  भीतर  कभी  बदले  की  भावना  उत्पन्न  हो  जाती  है   तो  उसका  परिणाम  घातक  होता  है  l  महाभारत  का  एक  प्रसंग  है ---  द्रोणाचार्य    और  द्रुपद   लड़कपन  में  गहरे  मित्र  थे  l  साथ -साथ  खेले -कूदे  , उठे -बैठे  l  लेकिन  जब  द्रुपद  राजा  बन  गए   तो  ऐश्वर्य  के  मद  में  आकर   द्रोणाचार्य  को  भूल  गए  l  उनकी  गरीबी  देखकर  उनका  अपमान  किया   और  कहा --- राजा  ही  राजा  के  साथ  मित्रता  कर  सकता  है  l  द्रोणाचार्य  इस  अपमान  को  भूले  नहीं  ,  उन्हें  सही  वक्त  का  इंतजार  था  l    उन्होंने  कौरव -पांडवों  को  धर्नुविद्या  सिखाई  l  जब  राजकुमारों  की  शिक्षा  पूर्ण  हो  गई   तो  उन्होंने  गुरु दक्षिणा  के  रूप  में  महाराज  द्रुपद  को   कैद  कर  लाने  के  लिए  कहा  l  उनकी  आज्ञानुसार   पहले  दुर्योधन   ने   द्रुपद  के  राज्य  पर  धावा  बोला  , पर  पराक्रमी   द्रुपद  के  आगे  वे  ठहर  नहीं  सके  l  तब  द्रोणाचार्य  ने  अर्जुन   को   भेजा   l  अर्जुन  ने  द्रुपद  की  सेना  को  तहस -नहस  कर  दिया   और  राजा  द्रुपद  को  उसके  मंत्री  सहित  कैद  कर   गुरु  द्रोणाचार्य  के  सामने  ला  खड़ा  कर  दिया  l   अब  द्रोणाचार्य  ने  द्रुपद  को  पुरानी    बात  याद  दिलाई  कि  तुमने  कहा  था --- राजा  ही  राजा  के  साथ  मित्रता  कर  सकता  है  '  , इसलिए  तुम्हारा  आधा  राज्य  ही  तुम्हे  वापस  कर  रहा  हूँ   क्योंकि   मेरा  मित्र  बनने  के  लिए  तुम्हे  भी  तो  राज्य  चाहिए  l     द्रोणाचार्य  ने  इसे  अपने  अपमान  का  काफी  बदला  समझा   और  द्रुपद  को  सम्मान  के  साथ  विदा  किया  l  इस  प्रकार  द्रुपद  का  घमंड  तो  चूर  हुआ   लेकिन   उनके    अभिमान  को  ठेस  पहुंची   और  उनमें  द्रोणाचार्य  से  बदला  लेने  की  भावना  बलवती  होती  गई  l   इस  उदेश्य  को  पूरा  करने  के  लिए  उन्होंने  कई  कठोर  तप  किए   कि  उन्हें  एक  ऐसा  पुत्र  हो  जो  द्रोणाचार्य  को  पराजित  कर  सके   और  एक  पुत्री  हो   जिसका  विवाह  अर्जुन  से  हो  l  उनकी  यह  कामना  पूर्ण  हुई  l  महाभारत  के  युद्ध  में  उनके  पुत्र  धृष्टद्द्युमन  ने   द्रोणाचार्य  का  वध  किया   और  द्रुपद  की  पुत्री  द्रोपदी  से  अर्जुन  का  विवाह  हुआ  l   

14 May 2023

WISDOM -----

  यह  कथा  उस  समय  की  है  जब   कौरव -पांडव  बहुत  छोटे   बालक  थे  l  ये  सब  राजकुमार  नगर  से  बाहर  कहीं  गेंद  खेल  रहे  थे  कि  इतने  में  उनकी  गेंद  एक  अंधे  कुएं  में  जा  गिरी  l  युधिष्ठिर  उसको  निकालने  का  प्रयत्न  करने  लगे   तो  उनकी  अंगूठी  भी  कुएं  में  जा  गिरी  l  सभी  राजकुमार  कुएं  के  चारों  ओर  खड़े  हो  गए  , उन्हें  गेंद  निकालने  का  कोई  उपाय  नहीं  सूझ  रहा  था  l  एक  ब्राह्मण  मुस्कराता  हुआ  यह  सब  देख  रहा  था  , उसने  उन  राजकुमारों  से  कहा ---- " राजकुमारों  !  तुम  क्षत्रिय  हो  ,भरत  वंश  के  दीपक  हो  l  जरा  सी  धर्नुविद्या  जानने  वाले   जो  काम  कर  सकते  हैं  , वह  भी  तुम  लोगों  से  नहीं  हो  सकता  l  बोलो , मैं  गेंद  निकाल  दूँ   तो  तुम  मुझे  क्या  दोगे  ? "  युधिष्ठिर  ने  हँसते  हुए  कहा --- " ब्राह्मण श्रेष्ठ !  आप  यदि  गेंद  निकाल  देंगे  तो  कृपाचार्य  के  घर   आपकी  बढ़िया  दावत  करेंगे  l "  तब   द्रोणाचार्य  ने  पास  में  पड़ी  एक  सींक  उठा  ली   और  मन्त्र  पढ़कर  उसे  कुएं  में  फेंका  l   सींक  गेंद  में  जाकर  ऐसे  लगी  जैसे  कोई  तीर  हो  l  फिर  इस  तरह  वे  लगातार  मन्त्र  पढ़कर  सींक  कुएं  में  डालते  रहे  l  सीकें  एक -दूसरे  के  सिरे  से  चिपकती  गईं  l  जब  आखिरी  सींक  का  सिरा  कुएं  के  बाहर  पहुंचा   तो  द्रोणाचार्य  ने  उसे  पकड़कर  खींचा   और  गेंद  बाहर  निकल  आई  l  सब  राजकुमार  आश्चर्य  से  यह  करतब  देखकर  उछल  पड़े  l  उन्होंने  ब्राह्मण  से  विनती  की  कि  युधिष्ठिर  की  अंगूठी  भी  निकाल  दें  l  द्रोणाचार्य  ने  तुरंत  धनुष  चढ़ाया  और  कुएं  में  तीर  मारा  l  पल  भर  में  बाण  अंगूठी  को  अपनी  नोक  में  लिए  ऊपर  आ  गया  l  राजकुमारों  के  आश्चर्य  की  सीमा  न  रही  l  उन्होंने  द्रोणाचार्य  के  आगे  आदर पूर्वक  सिर  झुकाया  और  कहा  --- "  आप  अपना   परिचय  दीजिये   और  हमें  आगया  दें  कि  हम  आपकी  क्या  सेवा  कर  सकते  हैं  l "  द्रोणाचार्य  ने  कहा ---" राजकुमारों  !  यह  सारी  घटना   सुनाकर  पितामह  भीष्म  से  ही  मेरा  परिचय  प्राप्त  करो  l  राजकुमारों  ने  जाकर  पितामह  भीष्म  को  सारी  बात  सुनाई  तो  वे  समझ  गए   कि   वे  सुप्रसिद्ध  आचार्य  द्रोणाचार्य  ही  हैं  ,  उन्होंने  बड़े  सम्मान  के  साथ  द्रोणाचार्य  का  स्वागत  किया   और  राजकुमारों  को  आदेश  दिया  कि   वे  गुरु  द्रोणाचार्य  से  धर्नुविद्या  सीखा  करें  l  

13 May 2023

WISDOM ------

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- ' दुर्लभ  है  मनुष्य  का  जीवन  पाना  l इससे  भी  दुर्लभ  है  , सम्पूर्ण  स्वस्थ  होना  l  यदि  यह  भी  संभव हो   तो  दुर्लभ  है  , शिक्षित  और  विचारशील  होना  l  यदि  किसी  को  यह  भी  मिल  जाए   तो  फिर  दुर्लभ  है  , विज्ञानं  और  अध्यात्म  में   एक  साथ  आस्थावान   होकर   वैज्ञानिक  अध्यात्म  के  प्रयोगों  के  लिए   स्वयं  को  समर्पित  करना  l  यदि  कोई  ऐसा  निष्काम  दिव्य  जीवन  जीने  लगे  ,  तो  उसके  स्वागत  में   न  केवल  देवदूत   स्वर्ग  का  द्वार   खोलते  हैं  , बल्कि  स्वयं  परमेश्वर   अपनी  बाहें   पसारकर   उसे  स्वयं  से  एकाकार  कर  लेते  हैं  l "      आचार्यश्री  लिखते  हैं ---- "इनसान  के  पास  जो  भी  संपदाएं  हैं  , वे  एक  अमानत  के  रूप  में  हैं   और  वे  इसलिए  मिली  हैं  कि  दुनिया  में  इस  दुनिया  में  खुशहाली  पैदा  करें ,  इस  दुनिया  में  शांति  पैदा  करें  l   ईश्वर  ने  मनुष्यों  को  बुद्धि  दी  है  ,  और  यह  इसलिए  मिली  है  कि  हम  इसका  सदुपयोग  करें  l  '  आचार्य श्री  कहते  हैं ---- हमें  कम  से  कम  भेड़  के  बराबर  समझदार  तो  होना  ही  चाहिए  l   भेड़ों  से  हमको  नसीहत  लेनी  चाहिए  l   भेड़   अपने  बदन  पर  ऊन  पैदा  करती  है   और   इस    ऊन  को  वह  उन  लोगों  को  मुहैया  कराती  है  , जिन  लोगों  को  सर्दियों  में  कंबल   और  गरम  कपड़ों  की  जरुरत  है  l  अपने  बदन  पर  से  वह  बार -बार  ऊन  कटवाती  है   और  भगवान  उस  ऊन  का  मुआवजा  बार -बार  देते  हैं  l  जितनी  बार  ऊन  काटी  जाती  है  , उतनी  ही  बार  नई  ऊन  पैदा  होती  चली  जाती  है  l  मनुष्य  को  कम  से  कम  भेड़  जैसा  तो  होना  ही  चाहिए  l  उसे  रीछ  जैसा  नहीं  होना  चाहिए  l  रीछ  के  बदन  पर  भी  भगवान  ने  ऊन  दी   थी   लेकिन  रीछ  ने  अपनी  ऊन  किसी  को  नहीं  दी  ,  जो  भी  मांगने  आया था  , उसे  काटने  के  लिए  दौड़ा  l  इस  कारण  कुदरत  ने  उसे  ऊन  देना  बंद  कर  दिया  l  जन्म  के  समय  जितनी  ऊन   भगवान  से  लेकर  आया  ,  उसमें  उसके  अंतिम  समय   कोई  वृद्धि  नहीं  होती   जबकि   भेड़  को   प्रकृति  हर  बार  देती  है   l  '

11 May 2023

WISDOM -----

   महान  दार्शनिक  सुकरात  हर  सुबह  घर  से  निकलने  के  पहले   आईने  के  सामने  खड़े  होकर  खुद  को  देर  तक  निहारते  रहते  थे  l  एक  दिन  उनके  एक  शिष्य  ने  उन्हें  ऐसा  करते  देखा   तो  उसके  चेहरे  पर  मुस्कान  तैर  गई  l  सुकरात  समझ  गए  l  वे  शिष्य  से  बोले ---- " तुम  जरुर  यह  सोचकर   मुस्करा  रहे  हो   कि  यह  कुरूप  व्यक्ति   आईने  में  खुद  को  इतने  ध्यान  से  क्यों  देख  रहा  है  ? "   पकड़े  जाने  पर  शिष्य   थोडा  झेंप  सा  गया  l  वह  कुछ  कहता  , इसके  पहले   ही  सुकरात  उससे  बोले  --- " मैं  आईने  में   हर  दिन  सबसे  पहले  अपनी   कुरूपता  देखता  हूँ  ,  ताकि  उसके  प्रति  सजग  रह  सकूँ  l  इससे  मुझे  जीवन  जीने  की  प्रेरणा  मिलती  है  , जिससे  मेरे  सद्गुण  इतने   निखरें  कि  वे  मेरी  कुरूपता  पर  भारी  पड़  जाएँ  l "  शिष्य  ने  कहा ---- " तो  क्या  सुन्दर  मनुष्यों  को  क्या  आईना  नहीं  देखना  चाहिए  ?  "  सुकरात  ने  उत्तर  दिया ---- " नहीं  वत्स  !  आईना  उन्हें  भी  देखना  चाहिए  ,  लेकिन  जब  वे  स्वयं  को  आईने  में   देंखें   तो  यह  अनुभव  करें   कि  उनके  गुण  भी  उतने  ही  सुन्दर  हों  , जितना  सुन्दर   भगवान  ने  उन्हें  शरीर  दिया  है  l  "

10 May 2023

WISDOM ------

   लघु -कथा ---- ' कर्म  फल ----- बहुत  वर्ष  पूर्व  की  बात  है  , मथुरा  नगरी  में  धनासुर  नामक  एक  धनी  व्यक्ति  रहता  था  l  सुख -सुविधा  के  सभी  साधन   होते  हुए  भी  वह  बहुत  कंजूस  था  l  एक  दिन  उसे  समाचार  मिला  कि  व्यापार  के  लिए   निकला  उसका  जहाजी  बेड़ा   समुद्र  में  डूब  गया  l  उसके  अगले  ही  दिन  उसे  ज्ञात  हुआ  कि   उसके  गोदामों  में  आग  लग  गई  l  अभी  वो  इन  शोक  समाचारों  से  उबार  भी  नहीं  पाया  था  कि   उसके  महल  में  चोरी  हो  गई   और  उसका  सारा  खजाना  लूट  लिया  गया  l  धनासुर  के  दुःख  का  पारावार  न  रहा  l  अचानक  सम्पन्नता  छीन  जाने  से   उसकी  मानसिक  स्थिति   बिगड़  गई   और  वह  नगर  की  गलियों  में  विक्षिप्त  की  भांति  घूमने  लगा   l        ऐसी  ही  दशा  में  घूमते -घूमते   एक  दिन  उसकी  भेंट  मुनि  धम्म  कुमार  से  हुई  l  उनके  मुख  पर  एक  गंभीर  शांति  , धैर्य  एवं  मुस्कराहट  थी  l  धनासुर  ने  मुनि   से  पूछा  --- मुनिवर  !  मुझे  बताएं  कि  किन  कर्मों  के  कारण  मैं  इतने  अकूत  धन  का  स्वामी  बना   और  किन  कर्मों  के  कारण   कंगाल  होकर  इस  स्थिति  में  हूँ  l  "  मुनि  बोले --- ' वत्स  ! वर्षों  पूर्व  अम्बिका  नगरी  में  दो  भाई  रहा  करते  थे  l  बड़ा  भाई  धर्म , दान , पुण्य  के  मार्ग  पर  चलता  था   और  छोटा  भाई  सदैव  अधर्म ,  अनाचार  का  पथ  अपनाता  l  निरंतर  दान  करने  के  बाद  भी   बड़े  भाई  की  संपदा  में  निरंतर  वृद्धि  होती  गई    जबकि  कंजूसी  और  लालच  के  पथ  पर  चलने  के  कारण   छोटे  भाई  के  व्यापार  में  कोई  वृद्धि  नहीं  हुई ,  जितना  था  वैसा  ही  रहा  l    ईर्ष्यावश  छोटे  भाई  ने  बड़े  भाई  की  हत्या  करा  दी  l  कालान्तर  में  बड़ा  भाई   साधु  रूप  में  जन्मा   और  छोटे  भाई  का  जन्म  एक  धनी  परिवार  में  असुर  संस्कारों  के  साथ  हुआ  l  वो  छोटे  भाई  तुम  ही  हो  ,  जो  अपने  पूर्व  जन्म  के  पापों  का  दंड  भुगत  रहे  हो  l  "  धनासुर  ने  प्रश्न  किया  ---- " मेरे  बड़े  भाई  का  क्या  हुआ  ? "  मुनि  हँसे   और  बोले  ---- " तुम  अभी  उनसे  ही  बात  कर  रहे  हो  l  "  यह  सुनते  ही   धनासुर  का   ह्रदय  परिवर्तन  हो  गया  , वह  समझ  गया  कि  कर्मों  का  फल  अवश्य  मिलता  है  , उसके  लिए  चाहे  कितने  ही  जन्म  क्यों  न  लेने  पड़ें   l   इसलिए  तृष्णा , लालच , ईर्ष्या  से  दूर  रहकर  सन्मार्ग  को  चुनें  l  यह   विवेक  जाग्रत  होते  ही  उसने   मुनि  धम्म  कुमार  से  दीक्षा  ली  और  भिक्षु  बन  गया  l  

9 May 2023

WISDOM -----

  लघु कथा --- राजू  एक  चंचल  लड़का  था , जंगल  में  सैर  के  लिए  जाता  था  l  एक  दिन  उसने  देखा  कि  एक  शेर  बैठा  है , उसकी आँख  में  आंसू  है , पैर  में  काँटा  चुभा  हुआ  है  , वह  दर्द  से  कराह  रहा  है  l  राजू  ने  हिम्मत  की   और   आगे  बढ़कर  शेर  के  पैर  से  काँटा  निकाल  दिया   और  अपने  पास  जो  मरहम  रखे  था  , वह  उसकी  चोट  में  लगा  दिया  l  शेर  को  बहुत  आराम  मिला   और  अब  उसकी  राजू  से  दोस्ती  हो  गई  l  इस  अहसान  के  बदले  वह  राजू  को  अपनी  पीठ  पर  बैठकर  जंगल  की  सैर  कराया  करता  था  l  एक  दिन  कुछ  गाँव  वालों  ने  राजू  को  शेर  के  साथ  देखा  तो  शेर  से  डरकर  भागने  लगे  l  राजू  ने  उन्हें  रोकते  हुए  कहा --- अरे  !  भागो  मत  !  यह  तो  मेरा  पालतू  कुत्ता  है  l  '  शेर  को   यह  सुनकर  बहुत  बुरा  लगा  , वह  गुर्रा कर  चला  गया  l  उसके  बाद  उसने  कभी  राजू  को  अपनी  पीठ  पर  नहीं  बैठाया  , उसके  पास  भी  नहीं  आया  l   यह  कथा  इस  सत्य  को  बताती  है  कि   प्रेम , अपनापन , मान -सम्मान  जानवर  भी  समझते  हैं  , मजाक  में  भी  झूठ  बोलकर  कभी  किसी  का  अपमान  नहीं  करना  चाहिए  l  

8 May 2023

WISDOM------

   लघु कथा -----  एक  माली  के  लड़के  बड़े  आलसी  थे  l  वे  कामकाज  से  जी  चुराते  थे   और  व्यर्थ  की  बातों  में  अपना  समय  नष्ट  करते  थे  l  जब  माली  मरने  लगा  , तो  उसने  लड़कों  को  बुलाया  और  कहा --- "  तुम  लोग  आलस्य  में  पड़े  रहकर   घर  में  जो  कुछ  है  , सबको  अवश्य  बरबाद   कर  लोगे  , पर  मैंने  तुम्हारे  भविष्य  का  ध्यान  रखा  और  बाग़  में  प्रत्येक  पेड़  के  नीचे   थोडा -थोडा  सोना  गाढ़  रखा  है  l  जब  जरुरत  हो  तब  निकाल  लेना  l  यह  कहकर  माली    गया  l   घर  में  जो  थोड़ी  सी  पूंजी  थी   वह  भी  समाप्त  हो  गई   l  लड़के  भूखों  मरने  लगे  l  उन्होंने  सोचा  कि   चलो  पेड़ों  के  नीचे  से  सोना  निकालें   l  अब  वे  खुदाई  करने  में  जुट  गए  और  एक -एक  कर  के   सभी  पेड़ों  को  खोदते  गए   पर  किसी  के  नीचे  कुछ  नहीं  निकला  l  लड़के  जानते  थे  कि   हमारा  बाप  कभी  झूठ  नहीं  बोलता  था  ,  फिर  उनकी  यह  सोने  वाली  बात  कैसे  झूठ  निकली  , इसका  उन्हें  आश्चर्य  था  l  कुछ  दिनों  बाद  वर्षा  हुई  ,  पेड़ों  के  नीचे  की  जमीन  खुद  जाने  के  कारण   जड़ों  में  काफी  पानी  पहुंचा   और  हर  पेड़  ने  काफी  संख्या  में  फल  दिए   l  आमदनी  इतनी  हुई  कि   हर  पेड़  के  नीचे  सोना  निकलने  की  बात  सच  हो  गई   l   श्रम  और  संयम  से  मनुष्य  अपना  जीवन  सफल  बना  सकता  है   l 

7 May 2023

WISDOM -----

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " मानव  जीवन  की  सफलता  इसी  में  है   कि  हम  व्यक्तिगत  लाभ  और  सुख  का  विचार  छोड़कर   अपनी  शक्तियों  का  उपयोग  परोपकार  के  लिए  करें  l " -------- वृक्षों  में  प्रतिस्पर्धा  होने  लगी  कि  कौन  बड़ा  होकर  आसमान  छू  लेता  है  ?  सबने  अपना -अपना  प्रयत्न  किया   और  ऊंचाई  छू  लेने  की   प्रतिस्पर्धा  में   ध्यान  ही  नहीं  रहा  कि  विस्तार  और  फैलाव  भी  रुक  सकता  है   और  वही  हुआ  l  ताड़  का  वृक्ष  बाजी  जीत  गया  l  वह  ऊँचा  तो  हो  गया   और  अहंकार  में  गर्दन  उठाए  खड़ा  भी  हो  गया   किन्तु  विस्तार  न  होने  से   वह  किसी  के  काम  का  न  रहा  l  ' पक्षी  को  छाया  नहीं  फल  लागे  अति  दूर '    आचार्य जी  लिखते  हैं ---- ' मनुष्य  यश , धन , पद   पाकर   अहंकार  तो  बड़ा  कर  सकता  है   किन्तु  ताड़  के  वृक्ष  की  तरह  उपयोगिता  घटा  बैठता  है  l  '

6 May 2023

WISDOM ------

  गुलामी  एक  मानसिकता  है   l  यह  व्यक्तिगत  गुण  है  l  एक  धन -वैभव  संपन्न  व्यक्ति  भी  किसी  का  गुलाम  हो  सकता  है   और  एक  निर्धन  व्यक्ति  जो  अपनी  मेहनत  से  परिवार  का  गुजर -बसर  करता  है , किसी  के  हाथ  की  कठपुतली  नहीं  है  वह  गुलामी  की  जंजीर  में  जकड़ा  नहीं  है  l  सत्य  तो  यह  है  कि  व्यक्ति  अपनी  ही  कामना , वासना , तृष्णा , लोभ , लालच , स्वार्थ , महत्वाकांक्षा  ------अपनी  ही  कमजोरियों  का  गुलाम  है  l  हर  तरह  से  समर्थ  होने  के  बावजूद  भी  अपनी  इन  कमजोरियों  के  पोषण  के  लिए  वह  किसी  न  किसी  की  गुलामी  करता  है  l  महाभारत  में  पितामह  भीष्म , द्रोणाचार्य , कृपाचार्य , कर्ण  और  दुर्योधन   के  सभी  भाई , कोई  भी  राज -वैभव  से , सत्ता  के  सुख  से  वंचित  होना  नहीं  चाहता  था  , इसलिए  सबने  आँख  बंद  कर  के  दुर्योधन  का  समर्थन  किया  , उसके  हर  षड्यंत्र   और  द्रोपदी  के  चीरहरण  जैसे  दुष्कृत्य  पर  भी  वे  सब  मौन  रहे  l  यह  सुख -भोग  की  चाहत  के  लिए  गुलामी  थी  l  ऐसा  नहीं  है  कि  दुर्योधन  इसके  लिए  उनका  सम्मान  करता  था ,  उसे  जब  भी  मौका  मिलता  उन्हें  बातें  सुनाने , ताने  देने  से  नहीं  चूकता  था  l                                     दो  तरह  के  व्यक्ति  होते  हैं  ---एक  वे  जो  अपने  स्वार्थ  के  लिए  किसी  की  भी  गुलामी  स्वीकार  कर  लेते  हैं   और  दूसरे  वे  जो   दूसरों  को  अपना  गुलाम  बनाने  की  कला  में  माहिर  होते  हैं  l  ये  दूसरे  प्रकार  के  व्यक्ति  लोगों  की  कमजोरियों  का  पता  लगते  हैं  और  फिर  उन  पर  लालच  का , कामनाओं  का  जाल  फेंकते  हैं  l  अपने  मन  पर  नियंत्रण  न  होने  के  कारण  लोग  ऐसे  जाल  में  फँस  जाते  हैं   और  जीवन  भर  की  गुलामी  स्वीकार  कर  लेते  हैं   l  यदि  यह  सामान्य  व्यक्ति  है  तो  ऐसी  गुलामी  के  फायदे  और  नुकसान   केवल  उसके  परिवार  तक  ही   सीमित  रहते  हैं  लेकिन  यदि  व्यक्ति  का  स्तर  ऊँचा  है   तो  ऐसी  गुलामी  से  होने  वाले  नुकसान  की   गणना    असंभव  है  l  जैसे  --- जब  सिकंदर   विश्व -विजय  के  अभियान  में  भारत  की  ओर  बढ़ा  तो  उसने   तक्षशिला  के  महाराज  आम्भीक  को   पचास  लाख  रूपये  की  भेंट    के  साथ    सन्देश  भेजा  कि  यदि  वह  सिकंदर  की  मित्रता  स्वीकार  करे   तो  वह  उसे   महाराज  पुरु  को  जीतने  में  उसकी  मदद  करेगा    और  पूरे  भारत  में  उसकी  दुन्दुभी  बजवा  देगा  l  आम्भीक  को  महाराज  पुरु  से  बहुत  ईर्ष्या -द्वेष  था  , वह  इस  लालच  के  जाल  में  फँस  गया  l  ऐसे  इतिहास  में  अनेकों  उदाहरण  हैं   और  उसके  घातक  परिणामों  से  इतिहास  भरा  है  l    इसीलिए  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  गीता  में  कहा  है  --- अपनी  इच्छाओं  को  अपने  वश  में  रखो , अपने  मन  पर  नियंत्रण  रखो   तभी  सुख -शांति  और    असीम  आनंद  का  जीवन  जी  सकते  हो  l  

4 May 2023

WISDOM ------

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- ' इस  संसार  की  सभी  समस्याओं  का  एकमात्र  हल  ' संवेदना '  है   और  स्वार्थ  इनसान  को  संवेदनहीन  बना  देता  है  l  '                                                                                               संवेदनहीन  मनुष्य  हिंसक  पशु  के  समान  है  l  भौतिक  द्रष्टि  से  मानव  समाज  बहुत  विकसित  हो  गया  है   लेकिन  चेतना  के  स्तर  पर  वह  आज  भी  पशु  है  l  यदि  मनुष्य  और  पशु  की  तुलना  की  जाए  तो  कई  बातों  में  पशु  श्रेष्ठ  हैं  --- पशु  कभी  किसी  को  धोखा  नहीं  देते , किसी  के  विरुद्ध  छल , कपट  षड्यंत्र  नहीं  रचते , किसी  का  शोषण , उत्पीड़न  नहीं  करते  , स्वयं  को  श्रेष्ठ  सिद्ध  करने  के  लिए  कभी  किसी  को  अपमानित  नहीं  करते  l  यह  सब  इसलिए  संभव  है  क्योंकि  पशुओं  के  पास  बुद्धि  नहीं  है  l  ईश्वर  ने  मनुष्यों  को  बुद्धि  दी  है  , अपनी  चेतना  को  विकसित  करने  के  लिए  उसके  पास  अनेक  अवसर  हैं   लेकिन  स्वार्थ , लोभ , लालच , कामना , वासना , महत्वाकांक्षा   आदि  दुष्प्रवृत्तियां   इतनी  प्रबल  हैं   की  मनुष्य  अपनी  सारी  बुद्धि  इन  बुराइयों  के  पोषण  में  ही  लगा  देता  है   और  इससे  भी  बड़ी  बात  यह  है  कि  इन  दुष्प्रवृतियों  को  पोषण  मिलता  रहे    , इसके  लिए  समान  विचारों  के  लोग  परस्पर  सहयोग  भी  करते  हैं  l  यही  कारण  है  की  सम्पूर्ण  समाज  का  वातावरण  दूषित  हो  जाता  है  l  संसार  में  अच्छे  लोग  भी  हैं  लेकिन  वे  संगठित  नहीं  है जबकि  असुरता  बहुत  मजबूती  से  संगठित  है  l  समाज  के  नैतिक  पतन  का  एक  कारण  यह  भी  है  कि   सभ्य    समाज  में  व्यक्ति  स्वयं  को   बहुत  सभ्य  , सेवाभावी और  श्रेष्ठ  व्यक्तित्व  का  दिखाना  चाहता  है   लेकिन  इसके  पीछे  का  जो  काला  पक्ष  है  , वे  उसे  छुपाना  चाहते  हैं   l   लेकिन  आसुरी  प्रवृत्ति  के  व्यक्ति   एक  दूसरे  के  काले  पक्ष  को  अच्छी  तरह  जानते  हैं  और  इस  सिद्धांत  के  अनुसार  कि  'तुम  हमारी  न  कहो , हम  तुम्हारी  न  कहें  ' परस्पर  मजबूती  से  संगठित  रहते  हैं  l  इसी  कारण  समाज  में  इतनी  अशांति , तनाव , लड़ाई , झगड़े  , असंतोष  है  l  

3 May 2023

WISDOM -----

 देवता  और  असुरों  के  संबंध  में  पुराण  में  अनेक  कथाएं  हैं  l  कहते  हैं  असुर  बहुत  तपस्वी  और  अहंकारी  होते  हैं  l  इनके  पास  तपस्या  का  अथाह  बल  होता  है   किन्तु  ये  अपने  इस  बल  को  अहंकार  के  प्रदर्शन  में  लगा  देते  हैं  और  अपनी  शक्ति  का  दुरूपयोग  करते  हैं  l  लेकिन  सभी  असुर  एक  जैसे  नहीं  होते  ,  कई  भगवान  के  बड़े  भक्त  होते  हैं  जैसे  भक्त  प्रह्लाद  l  ऐसे  ही  एक  और  असुर  भक्त  हुआ  है  जिसका  नाम  था  ---- गयासुर  l   यह  विलक्षण  भक्त  था  , भक्ति  और  तपस्या  का  उसमें  अनोखा  संगम  था  l  उसने  तपस्या  से  प्राप्त  ऊर्जा  का  दुरूपयोग  नहीं  किया  l   इस    उर्जा  को  उसने  अपने  आंतरिक  परिष्कार  में  लगाया  l  जब  भी  कोई  असुर  कठिन  तपस्या  करता  है  ,  ईश्वर  की  भक्ति  करता  है  तो  उससे  सबसे  ज्यादा  भय  स्वर्ग  के  राजा  इंद्र  को  होता  है  l  उन्हें  अपने  सिंहासन  को  खोने  का  भय  सताता  है  l  इसलिए  उन्होंने  देवगुरु  ब्रहस्पति  के  साथ  एक  षड्यंत्र  की  रचना  की  ,  जिसके  अंतर्गत  एक  ऐसा  यज्ञ  करने  की  योजना  बनाई  जो  धरती  पर  संपन्न  नहीं  हो  सकता  था  l  इसके  लिए  उन्होंने  निर्णय  किया  कि   गयासुर  से  कहा  जाए  कि  वह  अपने  शरीर  का  इतना  विस्तार  कर  दे  कि  उसके  ऊपर  यज्ञ   संपन्न  किया  जा  सके  l  इंद्र  और  ब्रहस्पति  दोनों  गयासुर  के  पास  गए  और  उससे  कहा --- "  स्रष्टि  के  कल्याण  के  लिए  परमात्मा  ने  हमें  एक  यज्ञ  करने  का  आदेश  दिया  है   और  वह  यज्ञ   केवल  तुम्हारे  शरीर  के  ऊपर  ही  संपन्न  किया  जा  सकता  है  क्योंकि  तुम  भगवान  के  भक्त  हो  और  तुम  में  असीम  धैर्य  और  सहनशीलता  है  l  "    गयासुर  ने  कहा --- " यदि  भगवान  और  स्रष्टि  के  निमित्त   मेरी  देह  जरा  सी  भी   उपयोगी  है   तो  अवश्य  ही  आप  इसका  उपयोग  करें  और  वह  यज्ञ   मेरी  देह  के  ऊपर  संपन्न  करें  l "  निश्चित  मुहूर्त  में  गयासुर  ने  अपनी  देह  का  विस्तार  किया   और  उसके  ऊपर  देवताओं  का  यज्ञ  दीर्घकाल  तक   चला  l  यज्ञ  की  अग्नि  उसकी  देह  को  जलाने -गलाने  लगी  , पीड़ा  से  गयासुर  का  शरीर  टूटने  लगा   l  लेकिन  वह  इस  पीड़ा  को  भगवान  की  कृपा  मानकर  सहन  करता  रहा   और  इस  असीम  कष्ट  भगवान  का  नाम  स्मरण  करता  रहा  l  देवताओं  का  यज्ञ  समाप्त  हुआ  , इसके  साथ  ही  गयासुर  की  देह  भी  मृतप्राय  हो  चुकी  थी  l   देवताओं  का  षड्यंत्र  सफल  हुआ  l  अंत  में  देवताओं  ने  उससे  वरदान  मांगने  को  कहा   तो  गयासुर  ने  कहा --- " आप  मुझे  कुछ  देना  चाहते  हैं  तो  इतनी  कृपा  करें   कि  जहाँ  तक  मेरी  देह  है  ,  पृथ्वी   के  उस  स्थान  पर   यदि  मानव   अपने  पितरों  का  श्रद्धापूर्वक   विधिवत   पिंडदान  करे   तो  उनके  पितरों  को  अवश्य  मुक्ति  मिले  l  "  देवताओं  ने  कहा ---- " गयासुर  !  तुम  धन्य  हो  !  तुम्हारी  देह  वाले  इस  स्थान  को   ' गया '  नाम  से  प्रसिद्धि  मिलेगी   और  इस  गया जी  में  पिंडदान  करने  वालों  के  पितर   अवश्य  ही  मुक्त  होंगे  l  "