29 June 2020

WISDOM ----

 सिकन्दर   का  सपना  था  विश्व विजय  करने  का  l  शासक  बनते  ही  उसने  विश्व विजय  के  सपने  को  साकार  करना  आरम्भ  किया   l   स्वयं  को  विश्व विजेता  सिद्ध  करने  के  लिए   उसने  हजारों  आदमियों  का  रक्त  बहाया ,  कितनी  ही  माँगों   का  सिंदूर  पोंछ  दिया  ,  कितनी  माताओं  की  गोद   सूनी  कर  दी    और  कितने  बच्चों  को  अनाथ  कर  दिया   l
सिकन्दर   केवल  33  वर्ष  जिया   और  उसने  केवल  13  वर्ष  राज्य  किया   l   विश्व - विजय  करने  का  पागलपन   मस्तिष्क   में   बिठाये   स्वयं  भी  चैन  से  नहीं  बैठा   और  न  ही  अपने  सैनिकों  को  और  दूसरे  राजाओं  को  चैन  से  बैठने  दिया  l  अनावश्यक  रूप  से  उसने  सारे  संसार  की  शांति   भंग    कर  दी   l   सुख  और  चैन  से  रहती  जनता  में   भय , रोष  और  शंका  की   वृत्तियाँ  जगा  दीं  l
  ' केवल  स्वार्थ  और  मिथ्याभिमान  से  प्रेरित  होकर   किया  गया  काम  कितना  ही  बड़ा  क्यों  न  हो   न  तो  वह  उस  व्यक्ति  को  ही  सुखी  और  संतुष्ट  कर  सकता  है   और  न  ही  मानव  समाज  को  कुछ  दे  सकता  है   l   सिकंदर  का  जीवन  इस  सत्य  को  सिद्ध  करता  है  ,  सिखाता  है   कि  बड़े  आदमी  बनने  की  अपेक्षा   महान  कार्य  करने  की   कामना  हजार  गुनी  श्रेष्ठ  है   l '
  

WISDOM ----- अहंकार आसुरी प्रवृति है

  पं. श्रीराम  शर्मा   आचार्य जी  ने  वाङ्मय ' मरकर  भी  अमर  हो  गए  जो  '    में  लिखा  है  ----  ' अहंकार  सारी   अच्छाइयों  के  द्वार  बंद  कर  देता  है  l '   अहंकार  के  मद  में  लोग  इतने  मत्त   हो  जाते  हैं  कि ,  इस  बात  पर  विचार  ही  नहीं  करते   कि   उनके  अहंकार  के  नीचे  दबकर   कितने  निरपराध  तथा  असहाय  लोगों  का  बलिदान  हो  रहा  है  ?  यदि  धन  है   तो  उसके  बल  पर  लोगों  को  खरीदकर   अपना  अधीनस्थ  बनाने  में   बड़प्पन  अनुभव  किया  करते  हैं  l   दूसरों  की  उन्नति  तथा  प्रगति   देखकर  जल  उठना   वे  मनुष्य  का  सहज  स्वभाव   मानते  हैं   और  दूसरों  के  विकास  में  बाधा  डालना   वे  अर्थ  अथवा   राजनीति   माना  करते  हैं   l   अपने  दम्भ  की  तुष्टि  में   बड़ी  से  बड़ी  सामाजिक , राष्ट्रीय   अथवा  मानवीय  हानि   कर  डालने  में   किंचित  संकोच  नहीं  करते  l   अपनी  इस  दुर्बलता  पर   जरा  सा  आघात  पाकर   सर्प  की  तरह  कुपित  होकर   अपना  अथवा  पराया   अनिष्ट  कर  डालने  पर  तत्पर  हो  उठते  हैं  l
  मनुष्य  की  यह  अमानवीय  प्रवृति   पाप  के  अंतर्गत  आती  है  ,  जो  इस  लोक  में  तो  शांति , संतोष , शीतलता , निर्भयता   का  सुख  अनुभव   नहीं  करने  देती  ,  और  परलोक  में  भी  सद्गति  से   वंचित  कर  देती  है  l  प्रकृति  में  क्षमा  का  प्रावधान  नहीं  होता  अत:  देर - सबेर   उसका  दंड  मिलना  निश्चित  है  l '
    आचार्य श्री  ने  लिखा  है --- मानव  जीवन  एक  अलभ्य  अवसर  है   l  संसार  की  सुख - शांति   तथा  सुंदरता  बढ़ाने  के  लिए   ही  परमात्मा   ने  यह  मानव - जीवन  प्रदान  किया  है  l   इस  मंतव्य  में  ही  इसको  लगाए  रखना   जीवन  की  सुरक्षा  तथा  सम्मान  करना  है  l