अनमोल मोती ----- 1. किसी ने एक संत से पूछा ---- " महाराज ! अब संत और धूर्त सब एक ही तरह के कपड़ों में विचरण करने लगे हैं l हम लोगों के सामने बड़ी कठिन समस्या खड़ी हो जाती है l कोई ऐसा उपाय बताइए जिससे धूर्तों से बचकर हम संतों की सेवा कर सकें l " संत ने कहा ---- " इसमें कौन सी बड़ी बात है ! धूर्त सेवा कराने के फेर में रहते हैं और संत सेवा करने के फेर में l संत सेवा जैसा व्यवहार करता है और धूर्त का व्यवहार अपनी कार्यसिद्धि के लिए चापलूसी और चतुराई से भरा रहता है l धूर्त मांगता है और संत देता है l "
2. एक बार वाराणसी में गंगा घाट पर एक वृद्ध नहाने उतरे , उनका पाँव फिसल गया और डूबने लगे l एक युवक तुरंत कूदा और वृद्ध को बचा लाया l वृद्ध की प्रार्थना पर भी युवक ने कोई पुरस्कार लेना स्वीकार नहीं किया l इस पर वृद्ध ने कहा --- 'आवश्यकता पड़ने पर कलकत्ता आना , मैं अवश्य तुम्हारी सहायता करूँगा और उन्होंने अपना पता युवक को दे दिया l कुछ महीने बाद युवक वृद्ध से मिला और कुछ कविताएँ सामने रखता हुआ बोला ---- इन्हें आप अपनी पत्रिका में छाप दें l कविताओं का स्तर देखकर और युवक की अनुचित मांग को देखते हुए वे बहुत दुःखी हुए और बोले ---- ' एक बात कहूँ ? मैं इन्हें छाप नहीं सकता l तुम चाहो तो उस उपकार के बदले में मुझे फिर गंगा में धकेल दो l " यह थी उनकी आदर्शवादिता और सिद्धांत निष्ठा l ऐसे ही व्यक्तियों के कारण हमारी संस्कृति सुरक्षित थी l ऐसे व्यक्ति जीवन व्यापर में भले ही असफल हो जाएँ , लेकिन उनका अंत:करण उन्हें सदा आशीष देता है तथा उन्हें जन - सम्मान भी मिलता है l