पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- मर्यादा में रहने पर शक्ति , विजय , कीर्ति और विभूतियाँ उपलब्ध होती हैं l उनसे विचलित होने पर अनिष्ट होता है l रावण आतंक और आसुरी शक्तियों का प्रतिनिधि था l सामान्य रूप से अधिक शक्ति का अर्जन अहंकार को जन्म देता है l शक्ति का प्रदर्शन इसी अहंकार और दर्प का परिणाम है , रावण इसी का जीता - जागता रूप था l " आचार्य श्री लिखते हैं ----- ' रावण ने शक्ति का अर्जन बहुत किया था , परन्तु शक्ति के अर्जन के साथ वह उसका लोक कल्याण के लिए उपयोग करना भूल गया l वह अपने अहंकार के प्रदर्शन और मर्यादाओं को छिन्न - भिन्न करने में लग गया और इसीलिए उसका अंत मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के हाथों हुआ l आचार्य श्री लिखते हैं --- ' लगता है रावण रूपी आसुरी तत्व मरकर आज सूक्ष्म रूप में सभी के भीतर तांडव नर्तन करने में जुट गया है और यही कारण है कि मानव मर्यादाओं का उल्लंघन करने में अपने को अहोभागी मान रहा है l मानवीय मर्यादाओं के उल्लंघन के कारण आज मानव समाज की जितनी दुर्दशा हुई है , संभवत: उतनी कभी देखी नहीं गई l " यदि सद्बुद्धि आ जाए तो रूपांतरण होने में देर नहीं लगती l शक्ति और वैभव के बल पर आप लोगों को भयभीत कर झूठा सम्मान पा सकते हैं लेकिन जिनके पास अकूत सम्पदा है , शक्ति है वे इसका उपयोग शक्ति प्रदर्शन और यश लूटने में न कर के सच्चे हृदय से विभिन्न गरीब देशों के निर्धनता और भूख से मरते हुए लोगों के कल्याण के लिए , उनकी पीड़ा को दूर करने के लिए करें तो इसी जन्म में लोग उन्हें देवता मान कर पूजने लगें l