संसार के इतिहास में स्वर्ण युग तो बहुत कम रहे हैं , अधिकांशत: यह युद्ध , अत्याचार , अन्याय और उत्पीड़न का इतिहास है l लेकिन मनुष्य पर दुर्बुद्धि का ऐसा प्रकोप है कि वह इससे शिक्षा नहीं लेता बल्कि अत्याचार , अन्याय और गुलाम बनाने के नए - नए तरीके खोज लेता है l
अत्याचार और अन्याय के लिए कभी भी किसी एक व्यक्ति या संस्था को दोष नहीं दिया जा सकता , यह सब श्रंखलाबद्ध तरीके से होता है या कहा जाये कि एक की आड़ में अन्य लोग अपना स्वार्थ पूरा करते हैं l
एक कहावत है --- ' बहती दरिया में हाथ धोना " इसे इस ढंग से समझा जा सकता है --- जब भारत पर अंग्रेजों का राज्य था , उनके अत्याचारों की कहानी इतिहास में दर्ज है , लेकिन इसके साथ एक और कहानी भी दर्ज है की देश के ही जमींदारों , जागीरदारों और सामंतों ने गरीबों , किसानों आदि पर बहुत अत्याचार किये l जिसने भी उनकी बात नहीं मानी , थोड़ा भी सिर उठाया उसे कुचलने का प्रयास किया l सामाजिक जीवन में जाति - पाँति , छुआछूत , ऊंच - नीच , विधवाओं का उत्पीड़न और सती - प्रथा जैसी बुराइयों के कारण असहनीय अत्याचार हुए l
उस समय में पराधीनता के दुःख के साथ देश के ही ऐसे लोगों के अत्याचार से जनता पीड़ित थी l
इतिहास अपने को बार - बार दोहराता है l अत्याचार करने वालों के चेहरे बदल जाते हैं , तरीके बदल जाते हैं लेकिन जो मानसिक कमजोरियां हैं -- लालच , अहंकार , तृष्णा , ईर्ष्या - द्वेष , बदले का भाव आदि नहीं बदलता l
जब विकास की परिभाषा बदलेगी और मनुष्य में पशुता के स्थान पर इंसानियत होगी तभी शांति होगी l
अत्याचार और अन्याय के लिए कभी भी किसी एक व्यक्ति या संस्था को दोष नहीं दिया जा सकता , यह सब श्रंखलाबद्ध तरीके से होता है या कहा जाये कि एक की आड़ में अन्य लोग अपना स्वार्थ पूरा करते हैं l
एक कहावत है --- ' बहती दरिया में हाथ धोना " इसे इस ढंग से समझा जा सकता है --- जब भारत पर अंग्रेजों का राज्य था , उनके अत्याचारों की कहानी इतिहास में दर्ज है , लेकिन इसके साथ एक और कहानी भी दर्ज है की देश के ही जमींदारों , जागीरदारों और सामंतों ने गरीबों , किसानों आदि पर बहुत अत्याचार किये l जिसने भी उनकी बात नहीं मानी , थोड़ा भी सिर उठाया उसे कुचलने का प्रयास किया l सामाजिक जीवन में जाति - पाँति , छुआछूत , ऊंच - नीच , विधवाओं का उत्पीड़न और सती - प्रथा जैसी बुराइयों के कारण असहनीय अत्याचार हुए l
उस समय में पराधीनता के दुःख के साथ देश के ही ऐसे लोगों के अत्याचार से जनता पीड़ित थी l
इतिहास अपने को बार - बार दोहराता है l अत्याचार करने वालों के चेहरे बदल जाते हैं , तरीके बदल जाते हैं लेकिन जो मानसिक कमजोरियां हैं -- लालच , अहंकार , तृष्णा , ईर्ष्या - द्वेष , बदले का भाव आदि नहीं बदलता l
जब विकास की परिभाषा बदलेगी और मनुष्य में पशुता के स्थान पर इंसानियत होगी तभी शांति होगी l