6 May 2020

WISDOM ------

 संसार  के  इतिहास  में  स्वर्ण  युग  तो  बहुत  कम   रहे  हैं  ,  अधिकांशत:  यह  युद्ध , अत्याचार , अन्याय  और  उत्पीड़न  का  इतिहास  है  l   लेकिन  मनुष्य  पर  दुर्बुद्धि  का  ऐसा  प्रकोप  है  कि   वह  इससे  शिक्षा  नहीं  लेता   बल्कि  अत्याचार , अन्याय  और  गुलाम  बनाने  के  नए - नए  तरीके  खोज  लेता  है   l
  अत्याचार  और  अन्याय  के  लिए  कभी  भी  किसी  एक  व्यक्ति  या  संस्था  को  दोष  नहीं  दिया  जा  सकता  ,  यह  सब  श्रंखलाबद्ध  तरीके  से  होता  है   या  कहा  जाये  कि   एक  की  आड़  में  अन्य  लोग  अपना  स्वार्थ  पूरा  करते  हैं  l
  एक  कहावत  है  --- ' बहती  दरिया  में  हाथ  धोना  "  इसे  इस  ढंग  से  समझा  जा  सकता  है  --- जब  भारत  पर  अंग्रेजों  का  राज्य  था  ,  उनके  अत्याचारों  की  कहानी  इतिहास  में  दर्ज  है  ,  लेकिन  इसके  साथ  एक  और  कहानी  भी  दर्ज  है   की  देश  के  ही  जमींदारों , जागीरदारों  और  सामंतों  ने  गरीबों , किसानों   आदि  पर  बहुत  अत्याचार  किये  l   जिसने  भी  उनकी  बात  नहीं  मानी ,  थोड़ा  भी  सिर   उठाया  उसे  कुचलने  का  प्रयास  किया  l  सामाजिक  जीवन  में  जाति - पाँति ,  छुआछूत , ऊंच - नीच , विधवाओं  का  उत्पीड़न  और  सती - प्रथा  जैसी  बुराइयों  के  कारण  असहनीय  अत्याचार  हुए  l 
उस  समय  में  पराधीनता  के  दुःख  के  साथ   देश  के  ही   ऐसे  लोगों  के  अत्याचार  से  जनता  पीड़ित  थी  l
  इतिहास  अपने  को  बार - बार  दोहराता  है  l  अत्याचार  करने  वालों  के    चेहरे  बदल  जाते  हैं ,   तरीके  बदल  जाते  हैं   लेकिन  जो  मानसिक  कमजोरियां  हैं  -- लालच , अहंकार ,  तृष्णा  ,  ईर्ष्या - द्वेष , बदले  का  भाव  आदि  नहीं  बदलता  l
जब  विकास  की  परिभाषा  बदलेगी  और  मनुष्य  में  पशुता  के  स्थान  पर  इंसानियत  होगी  तभी  शांति  होगी   l 

WISDOM ----

   जब  संसार  में  आसुरी  शक्तियां   प्रबल  हो  जाती  हैं  तो  वे  संसार  को   अपनी  इच्छानुसार  चलाना   चाहती  हैं  ,  वे  स्वयं  को  ईश्वर  से  भी  बड़ा  समझती  हैं   l   उनका  अहंकार  इतना  बढ़  जाता  है  कि  वे  मनुष्य  के  क्रिया- कलाप  पर  भी  अपना  नियंत्रण  करना  चाहती  हैं  l  जीवन  के  प्रत्येक  क्षेत्र  में  चाहे  वह  कृषि  हो , उद्दोग , चिकित्सा , शिक्षा  , कला , मनोरंजन  --कोई  भी  क्षेत्र  हो  उसे  वह  अपनी  मर्जी  से  चलाना   चाहती  हैं   l   आसुरी  प्रवृति  का  मुख्य  लक्षण  ही  अनीति  और  अत्याचार  है   , इसलिए  हर  क्षेत्र  में  शोषण , उत्पीड़न    के  कारण  जनता  त्राहि - त्राहि  करने  लगती  है  l
 पुराणों  में  हिरण्यकश्यप  की  कथा  आती  है  ,  वह  असुर  राजा  था  , शक्तिशाली  था  l  वह  स्वयं  को  ईश्वर  से  भी  बड़ा  समझता  था  , उसका  कहना  था  सब  उसकी  पूजा  करें ,  ईश्वर  की  नहीं  l   लेकिन  उसके  पुत्र  प्रह्लाद  ने  उसकी  बात  नहीं  मानी  l   प्रह्लाद  ने  कहा --- पितृभक्त  के  नाते   आपकी  सेवा  करना  ,  और  सुख  देना  मेरा  कर्तव्य  है   लेकिन  आपकी  अनीति  और  अविवेकपूर्ण  बात  को  मैं  स्वीकार  नहीं  करूँगा  ,  कुमार्ग  पर  नहीं  चलूँगा  l
हिरण्यकश्यप  ने  प्रह्लाद  को  कष्ट  देने  में ,  उसे  मृत्यु  के  मुख  में  डालने  में  कोई  कसर   नहीं  छोड़ी  l
 कहते  हैं  ' जाको  राखे   साइंया    मार  सके  न  कोई  '    असुरता  यहीं  पराजित  हो  जाती  है  l  वह  व्यक्ति  की  मृत्यु  पर  भी  अपना  नियंत्रण   चाहती  है  l    प्रत्येक  व्यक्ति  की   मृत्यु  कब , कहाँ  और  कैसे  होगी  ,  यह  ईश्वर  के  हाथ  में  है    l     हिरण्यकश्यप  का   यह  दुस्साहस  भगवान   को  सहन  नहीं  हुआ   और  नरसिंह   रूप  में  प्रकट  होकर  उन्होंने  हिरण्यकश्यप  को  चीड़ - फाड़   के  रख  दिया   l