1 July 2018

WISDOM ------ तृष्णा बूढ़ी नहीं होती !

  भर्तहरि  ने  अपने  वैराग्य  शतक  में  लिखा  है ------ " तृष्णा  बूढ़ी  नहीं  होती ,  हम  ही  बूढ़े  होते  हैं  l  भोग  नहीं  भोगे  जाते ,  हम  ही  भोग  लिए  जाते  हैं  l  "    शरीर  ढल  जाता  है ,  इन्द्रियां  शिथिल  हो  जाती  हैं   लेकिन  कल्पनाएँ - मनोभाव  उसी  दिशा  में  दौड़ - भाग  लगते  हैं   l  कामनाएं  - वासनाएं  कभी  समाप्त  नहीं  होतीं  l "
                बूढ़ा    आदमी  पेड़  के  समीप  आकर  रुका    और  बोला  ---- " अरे ,  फल  नहीं ,  फूल   भी  नहीं   और  पत्ते  भी  नहीं  l  क्या  हो  गया  ,  हर  वसंत  में  तुम्हारी  बहार   देखते  ही  बनती  थी   l  "
  पेड़  ने  लम्बी  आह  भरी   और  बोला ---- "  काश  !  तुमने  अपना  झुर्री  भरा  चेहरा  देख  लिया  होता  l  वसंत ऋतू  तो    सदा  आती - और   जाती  रहेगी  ,  पर  बूढी  पीढ़ी  को   अपना  दायित्व  पूरा  करते  हुए   नयी  पीढ़ी  के  लिए  भी  तो   स्थान  खाली करना  होता  है  ,   अन्यथा  यह  स्रष्टि  भी   बूढी  होकर  समाप्त  हो  जाएगी   l  " 
ययाति   का  उदाहरण  बड़ा  प्रासंगिक  है   l  उसने  सब  सुख  भोगे  l तृष्णा  बढ़ती  चली  गई  l  देह  जवाब  दे  गई  l  मृत्यु  आने  को  थी  l  औरों  से  पुण्य  लेकर  समय  बढ़ा  लिया  l  वह  काल  भी  समाप्त  हो  गया  l   मृत्यु  का  समय  आ  गया  , काल  आ  गया , बोला ---- " जवानी  किसी  और  से  मांग  लो   l "
 ययाति  ने  अपने  बेटों  से   भोगने  के  लिए  जवानी  मांगी   l  अन्य  बेटों  ने  तो  मना  कर  दिया  l  सबसे  छोटा   बेटा  पुरु  बोला --- " आप  जवानी  मुझसे  ले  लें  l  जिन  इन्द्रियों  से  आपकी  तृष्णा  शांत  नहीं  हुई ,  हमारी  क्या  होगी --- आप  भोग  लें  l "
 भर्तहरि  ने  सच  कहा  है ----  तृष्णा  न  जीर्णा   वयमेव  जीर्णा   l