2 January 2024

WISDOM ----

  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " मनुष्य  का  मन  एक  चोर  है , उसे  बाहरी  दबाव  से  एक  सीमित  मात्रा  में  ही  काबू  में  रखा  जा  सकता  है  l  आत्म  सुधार  तो  ह्रदय  परिवर्तन  से  ही  संभव  है   और  उसे  स्वयं  ही  संयम  साधना  के  आधार  पर  करना  होता  है  l  "      यदि  हम  केवल  सामाजिक  बुराइयों  को  ही  देखें  तो  उन्हें  दूर  करने  के  लिए  कितने  नियम  कानून  बन  गए  हैं   लेकिन  फिर  भी  कोई  सतयुगी  वातावरण  नहीं  है  l  नियम  कानून  से  बहुत  सीमित  मात्रा  में  ही  नियंत्रण  संभव  है  ,  चेतना  परिष्कृत  न  होने  से   शराफत  का  आवरण  ओढ़  कर   व्यक्ति  गलत  काम  छुपकर  करने  लगता  है  l                                                                       संत  एकनाथ  के  साथ  एक  चोर  भी  तीर्थयात्रा  पर  चल  पड़ा  l  साथ  लेने  से  पूर्व  संत  ने  उसे  चोरी  न  करने  की  प्रतिज्ञा  करवाई  l  यात्रा  मंडली  को  नित्य  ही  एक  परेशानी  का  सामना  करना  पड़ता  l  रात  को  रखा  गया  सामान  कहीं  से  कहीं  चला  जाता  l  नियत  स्थान  पर  न  पाकर  सभी  हैरान  होते   और  जैसे -तैसे  ढूंढ  कर  लाते  l  नित्य  की  इस  परेशानी  से  तंग  आकर   इस  स्थिति  के  कारण  की  खोज  शुरू  हुई  l  रात  को  जागकर   इस  उलट -पुलट  की  वजह  ढूँढने  का  जिम्मा  एक  चतुर  यात्री  ने  उठाया  l  खुराफाती  पकड़ा  गया  l  सवेरे  उसे  संत  एकनाथ  के  सम्मुख  पेश  किया  गया  l  पूछने  पर  उसने  वास्तविकता  कही  l  चोरी  करने  की  उसकी  आदत  मजबूत  हो  गई  है   लेकिन  यात्रा  काल  में  चोरी  न  करने  की  कसम  निभानी  पड़  रही  है  ,  पर  उसका  मन  नहीं  मानता   तो  तूंबा -पलटी  (इधर  का  उधर  सामान  रख  आने  )  से  उसका  मन  बहल  जाता  है  l  इससे  कम  में  काम  चल  नहीं  सकता   इसलिए  वह  यह  खुराफात  करने  लगा  l