मनुष्यों को जागरूक करने के लिए भगवान ने बार - बार धरती पर जन्म लिया लेकिन मनुष्य पाप का , अधर्म का रास्ता ही नहीं छोड़ता l कितने भी नियम - कानून बन जाएँ , जब तक व्यक्ति के विचारों का परिष्कार नहीं होगा , उनके संस्कार में परिवर्तन नहीं होगा , तब तक आकर्षक योजनाओं से भी कुछ नहीं होता l ऐसे में संसार को सुधारने का दायित्व प्रकृति स्वयं अपने हाथ में लेती है l ईश्वर स्वयं कुछ नहीं करते , वे जिससे प्रसन्न हैं उसे सद्बुद्धि देते हैं और जिससे नाराज हैं उसे दुर्बुद्धि देते हैं l जब बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है तब व्यक्ति स्वयं अपने अंत का रास्ता चुन लेता है l इसका सबसे बड़ा उदाहरण है पर्यावरण प्रदूषण l मनुष्य स्वयं अपनी भ्रष्ट बुद्धि से ऐसे पदार्थ खोज लेता है जिनके प्रयोग से कृषि , खाद्य पदार्थ ऐसे प्रदूषित हो जाएँ जो मनुष्य के शरीर में धीमा जहर भरकर उसे बीमार कर दें l दुर्बुद्धिग्रस्त व्यक्ति बीमारी से रक्षा के लिए ऐसी दवा , आदि का प्रयोग करने लगता है जो उसकी शारीरिक और मानसिक शक्ति को क्षीण कर दे l मृत्यु से डरने वाला स्वयं आत्महत्या की ओर बढ़ने लगता है l