19 January 2021

WISDOM ------

  '  जो  जागरूक  नहीं  हैं  ,   अज्ञानी  हैं  ,  वे  स्वयं  का  ही  अहित  कराते   हैं  l '    स्वामी  विवेकानंद  ने  अपने  शिष्य   को   एक  कथा  सुनाई  ------- एक  तत्व  ज्ञानी   अपनी  पत्नी  से  कह  रहे  थे  --- ' संध्या  आने  वाली  है  ,  काम  समेट   लो  l   एक  सिंह   कुटी  के  पीछे  यह  सुन  रहा  था  ,  उसने  समझा  संध्या  कोई  बड़ी  शक्ति  है  ,  जिससे  डरकर   यह  निर्भय  रहने  वाले  ज्ञानी  भी  अपना  सामान  समेटने  को  विवश  हुए   l   सिंह  चिंता  में  डूब    गया  और  उसे  संध्या  का  डर   सताने  लगा  l   पास  के  घाट   का  धोबी   दिन  छिपने  पर    अपने   कपड़े   समेट    कर   गधे  पर  लाने  की  तैयारी   करने  लगा   l   देखा  तो  गधा  गायब  l   उसे  ढूंढ़ने   में  देर  हो  गई   l   रात  घिर  आई  और  पानी  बरसने  लगा   l   धोबी  को  एक  झाड़ी   में  खड़खड़ाहट  सुनाई  दी ,  उसने  समझा  गधा  है   l    तो लाठी  से  पीटने  लगा --- धूर्त  यहाँ  छिपकर  बैठा  है  l    सिंह  की  पीठ  पर  लाठियां  पड़ीं   तो  उसने  समझा  यही  संध्या  है  ,  सो  डर   से  थर - थर   काँपने   लगा  l   धोबी  उसे  घसीट  लाया   और  कपड़े   लाद   कर  चल  दिया   l   रास्ते  में  एक  दूसरा  सिंह  मिला  ,  उसने   अपने  साथी  की  दुर्गति  देखी   तो  पूछा   --- यह  क्या  हुआ   ?  तुम  इस  तरह  लदे   क्यों  फिर  रहे  हो   ?    सिंह  ने  कहा  ---- संध्या  के  चंगुल   में फँस   गए  हैं  l   वह  बुरी  तरह  पीटती  है  और   इतना वजन  लादती  है    l   वास्तव  में  सिंह  को  कष्ट  देने  वाली  संध्या  नहीं  ,  उसकी  भ्रान्ति  थी  l   वह  भयभीत  हो  गया  ,  उसने  धोबी  को  कोई  बड़ा  देव - दानव  समझ  लिया     और  उसके  प्रहार  का   विरोध  नहीं  किया  ,  भय  के  कारण  सामना   ही नहीं  किया    ,  तो  दुर्गति    हुई   l     मनुष्य जागरूक  हो  ,  निर्भय  हो  ,  अपने  वास्तविक     स्वरुप  को  समझे  ,  स्वाभिमान  से  रहे   l 

WISDOM -----

   प्रसिद्ध   साहित्यकार   हरिवंश  राय  बच्चन  ने  अपनी  आत्मकथा  ' दशद्वार  से  सोपान  तक  '  में   अपनी  एक  अनुभूति  को  लिखा  है   कि   जब  वे  विदेश  मंत्रालय  में   अवर  सचिव   के  पद  पर  कार्यरत  थे  ,  तब  उनका  निवास   २ १ ९ , डी.  १ , डिप्लोमैटिक  इन्क्लेव , सफदरजंग   था  l  यहीं  रहकर   उन्होंने     गीता  का   अनुवाद         ' जनगीता '  के  नाम  से  किया  था   l   जब  वे  यह  अनुवाद  कार्य  कर  रहे  थे   ,  तो  अनेक  बार   उन्हें  यह  स्पष्ट  अनुभव  हुआ   कि   जहाँ  वे  बैठे  हैं  ,  वहां  कभी  द्वारिका  से    हस्तिनापुर   जाते  हुए    भगवान  कृष्ण  का  रथ  खड़ा  हुआ  था  l   इस  क्रम  में  यदा -कदा   रथ  की  ,  रथ  में   जुते   थके  घोड़ों  की  . सवार   और  सारथी   दोनों  रूपों  में   रथ  पर  बैठे     श्रीकृष्ण  की   स्फुट   झलकी  मिलती  थी  ,  मानो  वह  साक्षात्    द्वापर  में   उपर्युक्त   तथ्य   के  साक्षी  के  रूप  में  विराजमान  हों   l