30 June 2022

WISDOM -------

    पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  अपने  आचरण  से  संसार  को   ' सादा  जीवन - उच्च  विचार  का  संदेश  दिया  ---- सादगी  का  अर्थ  केवल  खान-पान  या  सरल  जीवन  शैली  नहीं  है  ,  बल्कि  यह  वास्तव  में  एक  सोच  है  ,  क्योंकि  इस  सोच  के  कारण  ही   जीवन  को  देखने  का  हमारा  नजरिया   बदल  जाता  है   l   यदि  यह  नजरिया  सीधा -सादा  होगा    तो  फिर  ज्यादा  झूठ  बोलने  की ,  छल - कपट  करने , षड्यंत्र  करने  की  आवश्यकता  नहीं  होगी  ,  फिर  जीवन  में  दूसरों  से  आगे  निकलने  की ,  अपनी  महत्वाकांक्षा  को  उचित - अनुचित  किसी  भी  तरीके  से  पूरा  करने  की ,   दूसरों  पर  आधिपत्य  जमाने  की  जरुरत  भी  महसूस  नहीं  होगी   l   '  आचार्य श्री  लिखते  हैं ---- ' आज    संसार  में  बाहरी  आकर्षण  का  प्रभाव  इतना  अधिक  है   कि  लोग  सादगी  को  अपने  जीवन  में  उतार  ही  नहीं  पाते   l  आज  समाज  में  सच्चे  लोग  ढूँढना  मुश्किल  है    और  जटिल  मनोग्रंथियों  से  युक्त   व्यक्तियों  आज  बहुतायत  है   l   व्यक्ति  की  इच्छाएं , महत्वाकांक्षा  बहुत  बढ़  गई  हैं   इसलिए  जीवन  जटिल  और  तनावग्रस्त  है  l  '     आचार्य जी  के  सादा जीवन -उच्च विचार  के  संदेश  को  न  समझ  पाने  के  कारण  ही   आज  संसार  में    हर  दिशा  में   --परिवार , समाज , राष्ट्   और  सारे    संसार    में  भीषण  रूप  से   छीना  -झपटी ,  छल -कपट , षड्यंत्र  का   बोलबाला  है   l    अति  की  महत्वाकांक्षा  और  उन्हें  अतिशीघ्र  पूरा  करने  की  लालसा   के  कारण  ही  व्यक्ति  आत्महीनता  की  ग्रंथि  से  ग्रस्त  हो  जाता   और  ऐसे  व्यक्ति    चाहे  जिस  भी   इकाई में , क्षेत्र  में  हों  ,  भीतर  से  अशांत  होने  के  कारण   सब  तरफ  अशांति  फैलाते  है  l  सिकंदर , तैमूर लंग  जो  लंगड़ा  था  और  हिटलर  केवल  इतिहास  के  पन्नों  में  ही  नहीं  हैं  ,  उनकी  सोच  लोगों  के  मनो -मस्तिष्क  में  समा  गई  है   इसलिए  परिवार  बिखर  रहे  हैं , संसार  में  अशांति  है   l  समस्या  इसलिए  जटिल  है   क्योंकि  अब  प्रकृति  भी  इस  मानव व्यवहार  से   कुपित  हो  गई  है   और  कब  प्रकृति  का  क्रोध  किस  रूप  में  सामने  आ  जाये ,  कोई  नहीं  जानता   l   

29 June 2022

WISDOM -------

   हकीम  लुकमान  बचपन  में  गुलाम  थे  l  वे  अपने  मालिक  के  घर  रहकर   काम  करते ,  उनका  दिया  अन्न  खाते  एवं  उनकें  दिए   कपड़े  पहनते  l  एक  दिन  उनके  मालिक  ने  ककड़ी  खरीदी ,  ककड़ी  मुंह  में  डालते  ही  मालिक  का  मुंह  कड़वा  हो  गया  l  उन्होंने  मजाक  में  ही  वह  ककड़ी  लुकमान  को  खाने  को  दे  दी   l  लुकमान  को  भी  ककड़ी  कड़वी  लगी , परन्तु  उन्होंने  प्रसन्न  भाव  से  उसे  खा  लिया  l   मालिक  को  यह  देखकर   बहुत  आश्चर्य  हुआ   l  उन्होंने  लुकमान  से  पूछा  ---- " तुमने  इतनी  कड़ुई  ककड़ी  कैसे  खा  ली  ? "  लुकमान  ने  उत्तर  दिया  --- "  मालिक  !  आप  मुझे  प्रतिदिन  खाने  के  लिए  अनेक  स्वादिष्ट  पकवान  देते  हैं  ,  उनको  खाकर  मैं  आनंदित  होता  हूँ   l   आज  जब  आपने  मुझे  खाने  के  लिए  कड़ुई  ककड़ी  दी   तो  मैंने  सोचा  कि  मुझे   इसे  भी  प्रसन्नता  से  ग्रहण  करना  चाहिए  l '  लुकमान  का  मालिक  एक  धार्मिक  व्यक्ति  था   और  उस  पर  लुकमान  की   इस  बात  का  गहरा  प्रभाव  पड़ा   l  वह  बोला ---- "  लुकमान  , आज  तुमने  मुझे  उपदेश  दिया  है   कि  परमात्मा  हमें  इतने  सुख  देता  है   l  यदि  वह  कभी  हमें  दुःख  दे  तो  उस  दुःख  को  भी   हमें  प्रसन्नतापूर्वक  स्वीकार  करना  चाहिए   l  "  इतना  कहकर  मालिक  ने  लुकमान  को  गुलामी  से  आजाद  कर  दिया  l  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  कहते  हैं--- ' यदि  हम  जीवन  के   सुख  और  दुःख ,  दोनों  को  भगवान  का  आशीर्वाद  माने  तो  जीवन  कभी  कष्टकारी  प्रतीत  नहीं  होगा  l  ' 

28 June 2022

WISDOM -------

    कलियुग  की  सबसे  बड़ी  समस्या   है   कि   इस  युग  में  मनुष्य  की  पहचान  कठिन  है   l  जो  जैसा  दिखाई  देता  है  , वो  वैसा  है  नहीं   l   त्रेतायुग  में  यह  स्पष्ट  था  कि  राक्षस  कौन  है  ?  सीता  हरण  रावण  ने  ही  किया  था  , सच  सबके  सामने  था ,  कुम्भकरण  कौन , मेघनाद  कौन  ,  खर , दूषण  कौन  ,  सब  जानते  थे  कि  ये  राक्षस  हैं  , समाज  में  आतंक  मचाते  हैं , ऋषियों  को  तंग  करते  हैं  l    इसी  तरह  द्वापरयुग  में   यह  सब  जानते  थे  कि कि  दुर्योधन , शकुनि  , दु:शासन  आदि  पांडवों  पर  अत्याचार  कर  रहे  हैं , उनका  हक  छीन  रहे  हैं   l   लेकिन  वर्तमान  युग  में   देवता  और  असुर  की  पहचान  करना  सबसे  कठिन  काम  है  l  कहते  हैं   अच्छाई  में  गजब  का  आकर्षण  होता  है  इसलिए  बुरे  से  बुरा  व्यक्ति  भी   अच्छाई  का  आवरण  ओड़  कर  समाज  में  आराम  से  रहता  है   l  रावण  के  दस   सिर  थे  ,  जो  उसने  तपस्या  कर  शिवजी  को  अर्पित  किए  थे   लेकिन  आज  मनुष्य      नकाब  पहन  कर   अपने  विभिन्न  सिरों  का  प्रयोग  उन  गतिविधियों  में  करता  है   जो  अँधेरे  में  होती  हैं   l  यही  कारण  है  कि  समाज  में  अपराध , तनाव , अशांति  बढती  जा  रही  है   l  एक  ओर  लोगों  को  अपने  नकाब  सँभालने  के  लिए  बहुत  धन  खर्च  करना  पड़ता  है ,  जुगाड़   करनी  पड़ती  है ,  तनाव  उत्पन्न  होता  है    दूसरी  ओर      ब्लैक मेलिंग   करने  वालों  का  व्यवसाय  चमक  जाता  है  ,  इस  सब  में  जो  पीड़ित  है  वह  अपने  ही  भाग्य  को  दोष  दे  पाता  है   l  यह  स्थिति  भगवान  के  लिए  भी  बड़ी  कठिन  हो  गई  ,  किसे  पहले  दंड  दें  ?  जो  अपराध  करता  दीख  रहा  है   उसे  ,  या  फिर  जो  इसका  सूत्रधार  है  उसे  ?  इसलिए  कलियुग  में  प्राकृतिक  प्रकोप  बहुत  होते  हैं   l  जानबूझकर ,   छिपकर ,   कायरतापूर्ण  तरीके  से  जो  अपराध  होते  हैं  उनसे  प्रकृति   भी  क्रोधित  हो  जाती  है   और  सामूहिक  दंड विधान  लागू  होता  है   l   जब  मनुष्य  की  चेतना  जाग्रत  होगी ,  विचार  परिष्कृत  होंगे   तभी  स्थिति  में  सुधार  होगा   l  

27 June 2022

WISDOM ---

   एक  दिन  नदी   से    समुद्र   ने   पूछा ----- "  मेरे  पास  कोई  फटकता  भी  नहीं  है   और  न  कोई  आदर  करता  है  ,  पर  तुम्हे  लोग  प्यार  करते  हैं  l  इसका  क्या  कारण  है  ? "    नदी  ने  कहा ---- " आप  केवल  लेना  ही  जानते  हैं   l  जो  मिलता  है , उसे  जमा  करते  हैं   l  मैं  जो  इस  हाथ  पाती  हूँ ,  उस  हाथ  आगे  बढ़ा  देती  हूँ   l  लोग  मुझसे  जो  पाते  हैं  ,  उसी  के  बदले  में  तो  प्यार  देते  हैं  l  "  जो  केवल  लेना  ही   लेना  जानते  हैं   ,  वे  उपेक्षित  रह  जाते  l   जिन्हें  देना   भी  आता  है  ,  वे  सबके  प्री प्रियपात्र  बनते  हैं  l 

26 June 2022

WISDOM -----

   इस  संसार  में  अंधकार  है  , तो  प्रकाश  भी  है  l   दैवी  शक्तियां  हैं  तो  असुरता  भी  है  l  यह  व्यक्ति  के  अपने  संस्कार  हैं ,  उसका  चुनाव  है   कि  वो  अपने  जिंदगी  के  सफ़र  में   आगे  बढ़ने  के  लिए  दैवी  शक्तियों  की  मदद  लेना    चाहता  है  या  आसुरी  तत्वों  की  मदद  लेता  है   l   परिणाम  निश्चित  है ---असुरता  को , अंधकार  को  मिटना  ही  पड़ता  है  l  विजय  हमेशा  सत्य  की  , देवत्व  की  होती  है  l   असुर  अपनी  सफलता  के  लिए  तांत्रिक  शक्तियों  की  मदद  लेते  हैं   l   पुराण   की    भक्त   प्रह्लाद   की   यह   कथा  बताती  है  कि  ईश्वर  का  नाम ,  उनकी  भक्ति   तांत्रिकों  के  सम्राट  को  भी  पराजित  कर  देती  है  ------ भक्त  प्रह्लाद  असुरराज  हिरण्यकश्यप   के  पुत्र  थे  l  अपने  बल , पराक्रम  और   कठोर  तपस्या  से  वह  स्वयं  को  भगवान  समझने  लगा  था   और  चाहता  था  कि  प्रह्लाद  उसे  ही  अपना  इष्ट  माने , उसे  ही  परमात्मा  मानकर  पूजा  करे  l लेकिन  प्रह्लाद  का  कहना  था  --- आप  तो  पिता  हैं , परमपिता  कैसे  हो  सकते  हैं   ?  पिता  तो  हमारी  देह  के   सर्जक  हैं  ,  परन्तु  परमपिता  तो  हमारी  आत्मा  के  सर्जक  हैं  l  ईश्वर  से  बड़ा  कोई  नहीं  l  जब  से  प्रह्लाद  ने  बोलना  शुरू  किया  हमेशा   'नारायण -नारायण  जपते   l  यह  सब  देख  हिरण्यकश्यप  को  बहुत  क्रोध  आया  , उसने  अपने  पांच  वर्ष  के  अबोध  बालक  को  भयंकर  कष्ट  दिए   और  दैत्यगुरु , स्रष्टि  के  महान  तांत्रिक  शुक्राचार्य    को   प्रह्लाद  को  अपनी   तांत्रिक  क्रियाओं   से  वश  में  करने  को  कहा  l   -----  बालक  प्रह्लाद  अपनी  माता  कयाधू  की  गोद  में  लेते  थे  , राजवैद्यों  के  हर  संभव  इलाज   के  बावजूद  उनका  बुखार  नहीं  उतर  रहा  था  , कोई  दवा  कारगर  नहीं  थी ,  बार -बार  बेहोश  हो  जाते , जब  थोडा  सा  होश  आता  तो  नारायण -नारायण  बुदबुदाते  l  पांच  दिन  बीत  गए  ,  माता  कयाधू  ने  देवर्षि  नारद  को  याद  किया  ,  नारद जी  ने  आकर  प्रह्लाद  को  गोद  लिया   विष्णु  भगवान  की  कथा  सुनाई  तो  बालक  प्रह्लाद  का  बुखार  उतर  गया  और  स्वस्थ  हुए  l  तब  माता  कयाधू  ने  पूछा ---- ' हे  देवर्षि  !  मेरे  पुत्र  की  बीमारी  का  मूल  कारण  क्या  है  ? '  तब  नारद जी  ने  बताया  --- " यह  कोई  रोग  नहीं  है   l  यह  दैत्यगुरु  शुक्राचार्य  द्वारा   की  गई   अनवरत   तांत्रिक  क्रियाओं  का  परिणाम  है  l "  माता  के  यह  पूछने  पर  कि  इतने  छोटे  बालक  से  दैत्यगुरु  का  क्या  बैर  है  ?  नारद जी  ने  कहा ---- " हे  देवी  !  यह  अहंकार  सबसे  खतरनाक  चीज  है  l  अहंकार  विवेकरूपी  आँखों  पर  पट्टी  बांध  देता  है  ,  वह  अपनी  शक्ति  का  प्रयोग  अबोध  बालक  पर  भी  करने  से  नहीं  चूकता  l  शुक्राचार्य  को  अपने  तंत्र  पर  बड़ा  गर्व  है  ,  वे  तंत्र  के  माध्यम  से  प्रह्लाद  के  मन  में  यह   विचार  डालना  चाहते  थे  कि  वे  अपने  पिता  को  ही  परमात्मा  माने   लेकिन  प्रह्लाद  ने  उनकी  बात  नहीं  मानी , वे  तो  विष्णु  भगवान  को  ही  हर  पल  याद  करते , और  परमात्मा  मानते  l  इसलिए  शुक्राचार्य  ने   उन  पर  मारण  जैसी  क्रिया  का  प्रयोग  किया  था  जिससे  उन्हें  बुखार  और  शरीर  में  भयंकर  पीड़ा  हुई  l  आप  चिंता  न  करें ,  शुक्राचार्य  का  बड़े  से  बड़ा  मारक  तंत्र  प्रह्लाद  का  कुछ  नहीं  बिगाड़  सकता   ,  परमात्मा  के  प्रति  उनकी  निष्ठां  और  भक्ति  उनका  सुरक्षा  कवच  है  l  " --------   आखिर  वो  दिन  आ  ही   गया  जब  भगवान  ने  नृसिंह  अवतार  लेकर  हिरण्यकश्यप   का  वध  किया   l    

24 June 2022

WISDOM -------

   पुराण  की  अनेक  कथाएं  हैं  जो  यह  बताती  हैं  कि  छल -कपट ,  ईर्ष्या -द्वेष , लोभ , पद  का  लालच ,  महत्वाकांक्षा ,--  ये  सब  बुराइयाँ  केवल  धरती  पर  ही  नहीं  है ,  स्वर्ग  भी  इनसे  अछूता  नहीं  है   l  वहां  भी  षड्यंत्र ,    धोखा   , छल  है  l  ये  कथाएं  हमें  जीवन  जीने  की  कला  सिखाती  हैं   कि  कैसे  इन  विपरीत  परिस्थितियों   के  साथ  तालमेल    बैठाकर    धैर्य  और  शांति  से  रहा  जाये  l  --------  दैत्यकुल  के  राजा  बलि  अपनी  तपस्या , भक्ति   और  सद्गुणों  के  कारण  स्वर्ग  में  इंद्र के  पद  पर  सुशोभित   थे  l  देवताओं  को  यह  बात  सहन  नहीं  हो  रही  थी   l    उन्होंने  भगवान  विष्णु   से  प्रार्थना  की  कि  कोई  उपाय  करें   जिससे  महाराज  बलि  उस  पद  से  हट  जाएँ   l  जिसे  बल  से  न  हराया  जा  सके  उसे  हराने  के  लिए  स्वर्ग  में  भी  छल -कपट  होता  है   l  भगवान  विष्णु  वामन  रूप  धरकर  बलि  को  छलने  आए  l  महाराज  बलि  को  उनके  गुरु  शुक्राचार्य  ने   भगवान  विष्णु  के  इस  छल  के  प्रति  आगाह  किया , समझाया  कि  वे  उन्हें  दान  न  दें  ,  परन्तु  बलि  ने  कहा ---- " हे  गुरुवर  ! जब  भगवान  स्वयं  वामन  बनकर  मेरे  दरवाजे  याचक  बन  कर   ,  हाथ  फैलाकर  कुछ  मांगने  आए  हैं  , तो  मैं  उन्हें  मना    कैसे  कर  सकता   हूँ  ?  मैं  अपना  दान  का  कर्म  अवश्य  पूरा  करूँगा  l "  वामन  बनकर  भगवान  विष्णु  ने  कहा --- " बलि  !  दान  में  मुझे  केवल  तीन  पग  जमीन  ही  चाहिए   l  "   जैसे  ही  बलि  ने  संकल्प  लेकर  कहा --- " मैं  आपको  तीन  पग  जमीन  दान  देता  हूँ  ,  "   भगवान  विष्णु  ने  वामन  से  विरत  रूप  धरकर  दो  पग  में  सारी  धरती  और  आसमान  नाप  लिया  l  अब  तीसरा  पग  कहाँ  धरें  ?  बलि  ने  कहा ---   अब  कहाँ  बताएं  ?  तीसरा  पग  मेरे  सिर  पर  धर  लो  l   भगवान  ने  उसके  सिर  पर  पग  धरकर  बलि  को  सीधा   पाताल  भेज  दिया   l  बलि  ने  समझ  लिया  कि  यह  तो  काल  चक्र  की  विपरीतता  है  l  वे  तो  भगवान  के  भक्त  थे   l   एक  साधारण  इनसान  बनकर  पाताल  में  भी  प्रसन्न  रहने  लगे  l   परिजनों  को   यह    मंजूर  नहीं  था  , तब  महाराज  बलि  ने  परिजनों  को   काल  की  महत्ता   को  स्पष्ट  करते  हुए  कहा ---- " काल  की  महिमा  से  जो  अवगत  होते  हैं  ,   वे  उसे  प्रणाम  कर  के  स्वयं  को   उसके  अनुकूल  ढाल  लेते  हैं   l  बड़े -बड़े  साम्राज्य   जिनका  सूर्य  कभी  ढलता  नहीं  है ,  उन्हें  काल  क्षण  भर  में   धूल  -धूसरित  कर  देता  है  l   काल  उठाता  है  तो  एक  तिनका  भी  पहाड़  बन  जाता  है  l  एक  गरीब  कुबेर  जैसा  समृद्ध , संपन्न  बन  जाता  है   l  काल  साथ  देता  है  तो  कठिन  परिस्थितियां  भी  सरल  हो  जाती  हैं  l     आज  काल  हमारे  साथ   नहीं  खड़ा  है   l  ऐसे  विपरीत  समय  में  कोई  साधन , तप , ज्ञान  काम  नहीं  आता  l  सब  कुछ  धरा - का -धरा  रह  जाता  है   l  अत:  ऐसे  विपरीत  समय  हमें  शांत  और  स्थिर  रहना  चाहिए   और  प्रभु  द्वारा  निर्धारित  स्थान  पर    अपनी  भक्ति  के  सहारे  अनुकूल  समय   की  प्रतीक्षा  के   अलावा  और  कोई  विकल्प  नहीं  है   l  ऐसे  समय  कोई  अपना  साथ  नहीं  देता ,  केवल  भगवान  ही  सुनते  हैं  l  "

23 June 2022

WISDOM -----

   लघु -कथा ---- एक  गिद्ध  था  l  उसके  माता -पिता  अंधे  थे  l  गिद्ध  प्रतिदिन  अपने  साथ -साथ  अपने  माता -पिता  के   भोजन    की  व्यवस्था  भी  जुटाता  था   l एक  दिन  वह  किसी  बहेलिये  के  जाल  में  फंस  गया   l  वह  बेहद  दुःखी   हुआ  कि  मैं  मर  जाऊंगा  तो  माता -पिता  का  क्या  होगा   ?  वह  जोर- जोर   से   विलाप  करने  लगा  l  बहेलिये  ने  उसके  रोने  का  कारण  पूछा  तो   गिद्ध  ने  अपनी  व्यथा  कही   l  बहेलिया  बोला --- "  गिद्धों  की  द्रष्टि  तो  इतनी  तेज  होती  है   कि  सौ  योजन  ऊपर   आसमान  से  भी  देख  लेती  है  ,  लेकिन  तू  जाल  को  कैसे  नहीं  देख  पाया   ? "  गिद्ध   बोला  ---- " बुद्धि  पर  जब  लोभ  का  पर्दा  पड़  जाता  है   तो  उसे  ठीक -ठीक  दिखाई  नहीं  देता  l  जीवन  भर  मांस  के  पिंड   के  पीछे  भागते - भागते  मेरी  नजर  को  अब  उसके  सिवाय   कुछ  और  दिखाई  ही  नहीं  देता   l  इसी  कारण  मैं  तेरा  जाल  नहीं  देख  पाया   l  "  बहेलिये  को  गिद्ध  की  ज्ञान  भरी  बातें अच्छी  लगीं   l   उसने  कहा ---- ' गिद्धराज  !  जाओ  मैं  तुम्हे  मुक्त  करता  हूँ  l  अपने  अंधे  माता - पिता  की  सेवा  करो   l  तुमने  मुझे  लोभ  का  दुष्परिणाम  बता  दिया  l  '

22 June 2022

WISDOM -------

   पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- ' जीवन  का  स्वरुप  कोई  भी  हो , व्यक्तिगत  अथवा  सामूहिक  ,  उसके  साथ  काल , कर्म   और  स्थान  की  निरंतरता  अनिवार्य  रूप  से  जुड़ी  है   l  सभी  को  अपने  कर्मों  के  अनुसार  स्थान  मिला  है ,  साथ  ही  नए  कर्मों  की  स्वतंत्रता  भी  ,  लेकिन  इनके  परिणाम  तो  काल  ही  तय  करता  है   l  कहते  हैं ---- परमेश्वर  ने  स्वयं  इस  युग  में  महाकाल  का  रूप  धारण  किया  है   l  वे  व्यक्ति  को  और  समूह  को  ,  राष्ट्र  और  विश्व  को   उसके  कर्मों  का  उचित  दंड  देकर   नए  युग  का  आरम्भ  करेंगे   l  युग  का  प्रत्यावर्तन  करेंगे   l    श्रीमद् भगवद्गीता  में   भगवान  अपना  परिचय  देते  हुए  कहते  हैं ---- ' मैं  काल  हूँ  l '  उन्होंने  मंदिरों  में ,  विभिन्न   देवस्थानों  में   पूजे  जाने  वाले    किसी  देवी -देवता  के  रूप  में   स्वयं  का  परिचय  नहीं  दिया   l  सीधा - सपाट  कहा ---- ' मैं  काल  हूँ  l '  महाभारत  में  परमेश्वर  काल  रूप  में   कुरुक्षेत्र  में  महायुद्ध  का  दंड   लेकर  प्रकट  हुए  हैं    l  अर्जुन  से  कहते  हैं  --- तुम  इन  प्रतिपक्षी  योद्धाओं  को   मारो  या  न  मारो  ,  पर  ये  मरेंगे  अवश्य   l  इन्हें  मारने  का  माध्यम   तुम  बनो  या  फिर   कोई  और  ,  इनका  मरना  सुनिश्चित  है  ,  क्योंकि  व्यक्ति  अथवा  समूह  को    कोई  परिस्थिति   या  घटनाक्रम  नहीं  मारता    l  उसे  मारता  है  ,  उसका  कर्म   l  भीष्म  और  द्रोणाचार्य  अपने  व्यक्तिगत   जीवन  में  भले  ही  अच्छे  हों  ,  पर  दुर्योधन  के  अनगिनत   दुष्कर्मों  के  साथ   उनकी  मौन  स्वीकृति  ने  उन्हें   दंड  का  भागीदार  बना  दिया    l  यही  स्थिति   अन्य   सभी  की  है  l    जीवन  में  शुभ  और  अशुभ  के  लिए  प्रत्यक्ष  में  जिम्मेदार   कोई  भी  हो  ,  पर  यथार्थ  में   उत्तरदायी  होता  है  कर्म  l   इस  कर्म  के  अनुसार  ही  काल  नियत  समय  और  नियत  स्थान  पर  परिस्थितियों   और  घटनाक्रमों  का  सृजन  कर  देता  है   l  कर्म  जितना  व्यापक  और  तीव्र  होता  है  ,  उसी  के  अनुरूप   काल  भी   अपना  आकार  बढ़ा  लेता  है   l   

21 June 2022

WISDOM -------

     लघु -कथा  -----  एक  बार  अमेरिका  की   एक  पचास  मंजिली  इमारत  का  लिफ्ट  खराब  हो  गया   l  सबसे  ऊपरी  मंजिल  में  स्थित  एक  कार्यालय   के  कर्मचारी   जब  सीढियाँ  चढ़कर   ऊपर  जाने  लगे   तो  उन्होंने  समय  काटने  के  लिए   तय  किया  कि   प्रत्येक  बारी -बारी  से   एक  छोटी -छोटी  कहानी   सुनाता  चलेगा  l   कहानी  सुनने  का  जब  दौर  चल  रहा  था  ,  तो  एक  कर्मचारी  बीच  में   टोकने  का  बार -बार  प्रयत्न  करता  ,  किन्तु  सब  लोग  उसे  चुप  करा  देते   l  मंजिल  निकट  आने  पर  जब  उसकी  बारी  आई   तो  लोगों  ने  उससे  कहा -- "  हाँ  भाई ,  अब  तू  सुना  ,  तब  से  क्या  बीच  में  टोक  रहा  था   l  "  उसने  बड़ी  स गंभीरता  से  कहा --- " मैं  केवल   यही  कहना  चाहता  था  कि   कार्यालय  की  चाबी  तो  नीचे   कार  में  ही  रह  गई  है   l   इतनी  देर  से  कोई  मेरी  सुनता  ही  नहीं  है   l  " ----

20 June 2022

WISDOM ------

   हकीम  लुकमान  कहते  थे ---- ' भोजन  का  असंयम  कर   मनुष्य  अपनी  जीभ  से   अपनी  कब्र  खोदता  है  l '   ---एक  सेठ जी  थे ,  वे  खाँसी  से  बहुत  परेशान  थे  l   वैद्य जी  के  पास  गए  ,  तो  वैद्य जी   ने  उनसे  परहेज  करने  को  कहा   l  सेठ जी  ने  कहा ---- " आप  चाहें   तो  जितनी  कड़वी  दवा   दें  दे,    पर  मैं  परहेज  नहीं  कर  सकता  l  "  वैद्य जी  ने  कहा --- फिर  आप  परहेज   भी  मत  कीजिए  ,  दवा   भी    मत  लीजिए  ,  क्योंकि  खांसी  के  तीन  लाभ  आपको  अवश्य  ही  होंगे  l  एक  लाभ  तो  यह   कि  आप   रात   भर  खांसते  रहेंगे  तो   ,  घर  में  चोर  नहीं  आयेंगे  l    दूसरे    आपको  कुत्ते  नहीं  काटेंगे   क्योंकि  कमजोरी  के  कारण  आप   बिना  लाठी  नहीं  चल   सकेंगे  l   तीसरा  लाभ  यह  है  कि  बुढ़ापा   नहीं  आएगा  ,  क्योंकि  खांसी  के  कारण   जीवन  जल्दी  ही  समाप्त  हो  जायेगा   l  यह  सुनकर  सेठजी  को   वैद्य जी  की  बात  समझ  में  आ  गई   और  उन्होंने  खाने -पीने  पर  नियंत्रण  कर  अपने  को  स्वस्थ  कर  लिया  l 

19 June 2022

WISDOM -----

    मोह  के  कारण  मनुष्य  की  कैसी  दुर्गति  होती  है  ,  इसे  बताने  के  लिए  पुराणों  में  अनेक  कथाएं  हैं   l  ऐसी  ही  एक  कथा  है ------   एक  आदमी  बूढ़ा  हुआ  तो  नारद जी  उसके  पास  गए   और  कहा  कि  अब  जिन्दगी  का  आखिरी  पड़ाव  है , भगवान  को  याद  कर  लो   l  शरीर  चाहे  वृद्ध  हो  जाये   ,इच्छाएं  समाप्त  नहीं  होतीं  l  वह  बोला --- अभी  सुख - वैभव  भोग  लें , नाती -पोते  देख  लें  फिर  भगवान  को  याद  करेंगे   l  कुछ  दिन  बाद  उसकी  मृत्यु  हो  गई   l   दूसरी  योनि  मिलने  से  पूर्व  नारद जी  उसके  पास  गए   और  कहा -- तुमने   अपना  जीवन  धन  कमाने  और  भोग विलास  में  बिताया ,  भगवान  को   याद    नहीं  किया , कोई  सत्कर्म  नहीं  किए    इसलिए  अब  तुम्हे  बैल   का  जन्म  मिलेगा  l  बैल  का  जन्म  लेकर  भी  बेटे - बेटी  के   यहाँ  रहा ,  उसे  पूर्व  जन्म  की  याद  थी ,  खूब  दौड़ -दौड़  कर  काम  करता   l  नारद जी  आए  और  बोले  -अब  भगवान  का  नाम  ले  लो  तो  इस  योनि  से  मुक्ति  मिल  जाएगी   l  वह  बोला -- यह  हमारी  ही  जमीन   है ,  अपने  ही  बच्चों  के  लिए  काम  कर  रहे  हैं  l   अब   मरा  तो  कुत्ते  की  योनि  मिली   l  मोह  उसी  घर  में  खींच  लाया ,  अब  अपने  बच्चों  के  घर  की  सुरक्षा  करता   l  नारद जी  फिर  आए  और  बोले -- अब  तो  भगवान  को  याद  कर  , मुक्ति  मिल  जाये जाए  l    कुत्ता  बोला ---- अब   नाती -पोते  का  घर  बस  जाये   l    अब   मृत्यु  हुई  तो  सांप  का  जन्म  मिला ,  मोह  नहीं  छूटा   तो  अपने  गाड़े  हुए  खजाने  की  रक्षा  करने  लगा   l   बच्चों  को  खजाने  का  पता  चला    तो  सब  मिलकर    उसे  मारने  लगे  जिससे  खजाना  मिल  जाये  l   अब  वह  नारद  जी  से  बोला --- हमने  आपकी  बात  मान  ली  होती  तो  यह  दुर्गति  नहीं  होती   l  अब  न  जाने  कौन  सी  योनि   मिलेगी  l   यह  कथा   मनुष्य   को  समझाने  के  लिए  है   कि  ये  मोह  कर्तव्य पालन  तक   सीमित   रहे  तो  ठीक  है  अन्यथा  दुर्गति  करा  देता  है  l  

18 June 2022

WISDOM ------

    लुकमान  से  किसी  ने  प्रश्न  किया  कि   आपने  इतनी  शिष्टता  कहाँ  से  सीखी  ?   लुकमान  ने   उत्तर  दिया  --- " भाई  ,  मैंने  शिष्ट  व्यवहार   अशिष्ट   लोगों  के  बीच  रहकर  ही  सीखा    है  l  लुकमान  का  उत्तर  सुनकर   लोग  अचरज   में  पड़  गए  l   लुकमान  ने  और  आगे  स्पष्ट  करते  हुए  कहा  कि   अशिष्ट  लोगों लोगों  के  बीच  रहकर  ही  मैंने  जाना  कि  अशिष्ट  व्यवहार  क्या  है  l  मैंने  पहले  उनकी  बुराइयों  को  देखा   l  फिर  देखा  कि  कहीं  ये   बुराइयाँ  मुझ  में  तो  नहीं  हैं   l  इस  तरह  के  आत्म निरीक्षण  से   मैं  बुराइयों  से  दूर  होता  गया   और  आत्मसुधार   के  फलस्वरूप   लोग  मुझे   लुकमान  से  हजरत  लुकमान  कहने  लगे   l  

WISDOM --------

    एक  दिन  राजा  भोज  गहरी  निद्रा  में  सोए  हुए  थे   l  उन्हें  स्वप्न  में  एक  अत्यंत  तेजस्वी   वृद्ध  पुरुष  के  दर्शन  हुए  l  भोज  ने  उससे  पूछा ----- " महात्मन  ! आप  कौन  हैं  ? "  वृद्ध  ने  कहा ---- " राजन  !  मैं  सत्य  हूँ  l  तुझे  तेरे  कार्यों  का  वास्तविक  रूप  दिखाने  आया  हूँ  l  मेरे  पीछे -पीछे  चला  आ   और  अपने  कार्यों  की  वास्तविकता   को  देख  l  "  राजा  उस  वृद्ध  के  पीछे -पीछे  चल  दिए   l  राजा  भोज  बहुत  दान , पुण्य ,  यज्ञ , व्रत , तीर्थ , कथा - कीर्तन   करते  थे , उन्होंने   अनेक  कुएं , मंदिर , तालाब , बगीचे   आदि  भी  बनवाये  थे   l  राजा  के  मन  में  इन  कार्यों   के  कारण  बहुत  अभिमान  आ  गया  था   l  वृद्ध  पुरुष  के  रूप  में  आया  सत्य   राजा  भोज  को   अपने  साथ उसकी  कृतियों   के  पास  ले  गया  l  वहां  जैसे  ही  सत्य  ने  पेड़ों  को  छुआ  ,  सब  एक - एक  कर  के  ठूंठ  हो  गए  l  राजा  आश्चर्य चकित  रह  गया   l  इसके  बाद  सत्य  राजा  भोज  को  मंदिर  ले  गया  l  सत्य  ने  जैसे  ही  उसे  छुआ  ,  वह  खंडहर  के  रूप  में   परिणत  हो  गया   l  वृद्ध  पुरुष  ने  राजा  के   यज्ञ  ,  तीर्थ ,  कथा , पूजन ,  दान  आदि  के  निमित्त  बने  स्थानों  , उपादानों , व्यक्तियों   को  जैसे  ही  छुआ  ,  वे  सब  राख  हो  गए   l   राजा  यह  सब  देखकर  विक्षिप्त  सा  हो  गया   l  सत्य  ने  कहा  ---- " राजन  !  यश  की  इच्छा  से   और    अपने  किसी  स्वार्थ  की  पूर्ति  के  लिए   जो  कार्य  किए  जाते  हैं  ,  वह  दिखावा  है  ,  उनसे  केवल  अहंकार  की  पुष्टि  होती  है   l  सच्ची  सद्भावना  से   निस्स्वार्थ  होकर   कर्तव्य  भाव  से   जो  कार्य  किए  जाते  हैं  ,  उन्ही  का  फल  पुण्य  रूप  में  मिलता  है   l  "  इतना  कहकर  सत्य  अन्तर्धान  हो  गया  l     राजा  ने  निद्रा  टूटने  पर  स्वप्न  पर  गहरा  विचार  किया    और  सच्ची  भावना  से  कर्म  करना  प्रारम्भ  कर  दिया  l  

17 June 2022

WISDOM

   महाभारत  में  एक   प्रसंग  है ---- 'शिशुपाल  वध  '  l  शिशुपाल  के  जन्म  के  समय    ज्योतिषियों  ने  लक्षणों  के  आधार  पर  बताया   था  कि  भगवान  कृष्ण  के  हाथों  उसके  इस  पुत्र  का  वध  होगा  l   यह  सुनकर  वह   भगवान  श्रीकृष्ण  के  पास  गई  और  उनसे  अपने  पुत्र  के  जीवन दान  के  लिए  प्रार्थना  की  l  तब  कृष्ण जी  ने  उसे  वचन  दिया  कि   शिशुपाल   के  सौ  गुनाहों  को  वे  माफ  करेंगे  लेकिन  जैसे  ही  उसने  101  वीं  गलती  की ,  उसका  वध  कर  दिया  जायेगा  l   शिशुपाल  की  माँ  आश्वस्त  हुईं  कि  उनका  पुत्र  इतनी  अधिक  गलतियाँ  नहीं  करेगा  l  कहते  हैं ' विनाशकाले  विपरीत  बुद्धि  ' l l  राजसूय  यज्ञ  में  भरी  सभा  में  जब  शिशुपाल   भगवान  श्रीकृष्ण  को  गालियाँ  देने  लगा  तब  भगवान  गिनते  रहे ---- 1 , 2 ------- 97 . ---- 99 , 100  , और  इसके  बाद  जैसे  ही  उसने  एक  और  गाली  दी  कि  भगवान  की  उंगली  में  सुदर्शन चक्र  आ  गया   और  फिर  शिशुपाल  भागता   फिरा  ,  उसे  किसी  ने  भी  नहीं  बचाया  ,  उसका  अंत  हुआ   l   शिशुपाल  में  उद्दंडता   का  ये  दुर्गुण   बाल्यकाल  से  ही  था   l      श्रीकृष्ण  तो   भगवान  थे   वे  जानते  थे  कि  कलियुग  में    दुर्बुद्धि  के  कारण  अपराध  अपने  चरम  स्तर  पर  होंगे   इसलिए  इस  प्रसंग  के  माध्यम  से  उन्होंने  संसार  को  समझाया  कि   किसी  की  गलती  को  प्रथम  कदम    पर  ही  रोक  देना  चाहिए   जिससे  वह  गलती    एक  से  बढ़कर  सौ  तक  न  पहुंचे  l   अपराध  की  शुरुआत   परिवार  में  की  गई  एक  छोटी  सी  गलती  से  होती  है  ,  जिसे   उसके  माता -पिता  और  परिवार  के  बड़े -बुजुर्ग   लाड़ -प्यार  की  वजह  से  रोकते  नहीं , बच्चे  को  समझाते  नहीं  l  यही  गलती  उसे  आगे  जाकर  एक  बड़ा  अपराधी  बना  देती  है    और  ये  अपराधी  प्रवृति  उस  तक  सीमित  नहीं  रहती  ,  उसकी  संतानों  में  संस्कार  रूप  में  आ  जाती  है  ,  इस  तरह  अपराध  का  दायरा  बढ़ता  ही  जाता  है   l '  बबूल  के  पेड़  में  कभी  आम  नही   लगता  l  '    पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  कहा  है -- विचारों  का  परिष्कार , संस्कारों  में  परिवर्तन  अनिवार्य  है  l  

16 June 2022

WISDOM-------

   लघु -कथा ----  ' क्रोध  करने  वाला  शत्रुओं  से  पहले   अपने  को  ही  नुकसान  पहुंचाता  है  l  '-------  एक  साँप  को  बहुत  गुस्सा  आया  l  उसने  फन  फैलाकर  गरजना   और  फुफकारना  शुरू  किया   और  कहा ---- '  मेरे  जितने  भी  शत्रु  हैं  ,  आज  उन्हें  खाकर  ही  छोडूंगा  l  उनमे  से  एक  को  भी  जिन्दा   नहीं  रहने  दूंगा  l  '        मेढक ,  चूहे , केंचुए   और  छोटे -छोटे  जानवर   उसके  उस  गुस्से  को  देखकर  डर  गए   और  छिपकर  देखने  लगे  ,  देखें  आखिर   होता  क्या  है  ?    साँप  दिनभर  फुफकारता  रहा   और  दुश्मनों  पर  हमला  करने  के  लिए    दिन  भर    इधर -उधर   बेतहाशा  भागता  रहा   l  फुफकारते -फुफकारते  उसके  गले  में  दर्द  होने  लगा   l  शत्रु  तो  कोई  हाथ  नहीं  आया  ,  पर  कंकर - पत्थरों  की  खरोंचों  से   उसकी  सारी     देह  जख्मी   हो  गई  ,  शाम  को  थकान  से   चकनाचूर   होकर  एक  तरफ  जा  बैठा   l ----- '  अनावश्यक  आवेश   और   विशेष  व्यक्ति    को  संत्रस्त    करना  करना  अंतत:  दुःख   पहुँचाता  है  l 

WISDOM-------

   स्वर्ग  में  किसी  की  शोभा  यात्रा  निकल  रही  थी  l   किसी  ने  पूछा ----- ' इस  पालकी  में  कौन  बैठा  है   ? '  उत्तर  मिला ----- '  एक   शेर   बैठा  है  l '  प्रश्नकर्ता  ने  पूछा ---- " उसे  स्वर्ग  का  वैभव  कैसे  प्राप्त  हो  गया   ? "  उत्तर  मिला ----- " एक  रात  को  बहुत   आँधी , तूफान  व  बरसात  होने  लगी  थी   l   शेर  अपनी  गुफा  को  लौट  रहा  था  l   उसे  गंध  से  मालूम  पड़ा  कि  उसकी  अँधेरी  गुफा  में  एक  बकरी  आकर  बैठ  गई  है  l  शेर  ने  विचार  किया  कि  बकरी  अगर  मुझे  देख  लेगी   तो  भयभीत  हो  जाएगी  ,  इसलिए  वह  बाहर  ही  बैठ  गया  l  वह  रात  भर  पानी  में  भीगता  रहा   और  बकरी  को  कष्ट  न  हो  ,  इसलिए  स्वयं  कष्ट  उठाता  रहा   l  बकरी  के  प्राण  बचाने  के   पुण्य  के  फलस्वरूप   ही  उसको  स्वर्ग  मिला  है  l  "  परोपकार  कभी  व्यर्थ  व्यर्थ  नहीं  जाता  l 

15 June 2022

WISDOM -------

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- ' वास्तविकता  बहुत  देर  तक  छिपाए  नहीं नहीं  रखी   जा  सकती  l  व्यक्तित्व  में  इतने  अधिक  छिद्र  होते  हैं   कि  उनमे  से  होकर  गंध   दूसरों  तक  पहुँच  ही  जाती  है   l   अपने  को  सभ्य   कहने  वाला  मनुष्य   आज  कितना  बनावटी  हो  चला  है  ,  बात -बात  पर   अभिनय  करने  वाला , समय - समय  पर   भिन्न -भिन्न  मुखौटे  ओढ़ने   की   विडम्बना  में  फँसा  हुआ  है   l      एक  लघु - कथा  है  ----------------- एक  जंगल  में  एक  सियार  रहा  करता  था   l  एक  दिन  वह  मार्ग  भटक  कर   इनसानों  की  बस्ती  में  जा  पहुंचा  l  उसे  वहां  देखते  ही  नगर  के  कुत्ते  उसके  पीछे   पड़    गए  l  सियार  जान  बचाकर  भागने  लगा  कि  रास्ते  में  एक  रंगरेज  का  घर  पड़ा  l   घर  के  पिछवाड़े  रंगरेज  ने   नीला  रंग  बरतन  में  रखा  था   और  भागता  हुआ  सियार  उसी  में  गिर  पड़ा   l  रंगा  हुआ  सियार   जब  वापस  जंगल  पहुंचा   तो  नीले  रंग  के  सियार  को  देखकर   जंगल  में  सभी  जानवर   उससे  डरने  लगे   l  अब  क्या  था  , सियार  के  दिमाग  में  एक  कुटिल  तरकीब   आई  l  एक  बड़े  से  पत्थर  पर  चढ़कर  वह  जोर  से  चिल्लाया  --- " जंगल  के  निवासियों  !  मैं  तुम्हारा   नया  राजा  हूँ   l  मुझे  भगवान  ने  दर्शन  देकर   नीला  रंग  दिया  है  ,  ताकि  मैं  नए  राजा  के  रूप  में  तुम्हारी  रक्षा  कर  सकूँ  l "  जानवर  भयभीत  थे  ,  उसकी  बात  को  सच  मानकर  उसे  अपना  राजा  मान  लिया  ,  अब   रंगे    सियार  के  दिन  सुख  से  बीतने  लगे   l  एक  दिन  जब  वह  सभा  कर  रहा  था   टी,  उसी  समय  दूर  से  सियारों   के  एक  झुण्ड  से   ' हुआ -हुआँ  '  की  आवाज  आई  l  रंगे  सियार  के  मुंह  से  भी   स्वाभाव वश  वही  आवाज  निकली   और  उसे  सुनते  ही  उसकी  असलियत  सबके  सामने  आ  गई   l  अब  सब  उसे  मारने  दौड़े  ,  बड़ी  मुश्किल  से  वह  अपनी  जान  बचाकर  उस  जंगल  से  ही  भाग  गया   l    इस  कथा  से  यह  शिक्षा  मिलती  है  कि  ----- केवल  बाह्य  परिवेश  बदल  लेने  से   कुछ  नहीं  होता  ,  यदि  चिन्तन  और  चरित्र  में   श्रेष्ठता  नहीं  आती   तो  एक  दिन  सच्चाई  सबके  सामने   आकर  रहती  है    l   

14 June 2022

WISDOM ----

   '  सफलता  जिस  ताले  में  बंद  रहती  है   वह  दो  चाबियों  से  खुलता  है  --- एक  परिश्रम  और  दूसरा  सत्प्रयास  l  कोई  भी  ताला  यदि  बिना  चाबी  के  खोला  गया   तो  आगे  उपयोगी  नहीं  रहेगा   l  इसी  प्रकार  यदि   परिश्रम  और  प्रयास   नहीं  किया  गया   तो  कोई  भी  थोपी  गई  सफलता  टिक  न  सकेगी   l    परिश्रम  और  प्रयास  के  साथ  जरुरी  है  ' मनोयोग '   --  जो  समस्त  सफलताओं  की  कुंजी  है   l   ----------  रवीन्द्रनाथ  टैगोर   अपने  कमरे  में  बैठे   कविता  लिखने  में  व्यस्त  थे   कि  इतने  में  छुरा  लिए  हुए   एक  गुंडे  ने  उनके  कमरे  में  प्रवेश  किया   l  उसे  किराये  पर  हत्या  करने  के  लिए  किसी  ईर्ष्यालु  ने  भेजा  था   l   उन्होंने  आँख  उठाकर  उसकी  तरफ  देखा  और  सारा  मामला  भांप  लिया  l  उनने  उंगली  का  इशारा  कर  के   शांत  भाव  से   चुपचाप   एक  कोने  में  पड़े  स्टूल  पर  बैठ  जाने  को  कहा   और  बोले --- ' देखते  नहीं  मैं  कितना  जरुरी  काम  कर  रहा  हूँ  l '   और  फिर  वे  एकाग्रचित्त  अपना  काम  करने  लग  गए   l  हत्यारा  सकपका  गया   l  इतना  निर्भीक  और  संतुलित  व्यक्ति   उसने   अपने  जीवन  में  पहले  कभी  नहीं  देखा  था   l  वह  कुछ  देर  तो  बैठा  रहा   लेकिन  फिर  बहुत  घबरा  गया  और  उलटे  पैरों  भाग  खड़ा  हुआ   l 

13 June 2022

WISDOM ------

   लघु -कथा ---  एक  दिन  किसी  की  जेब  से   एक  सोने  का  सिक्का   गंदे  चीथड़े  के  पास  गिर  पड़ा  ,  चिथड़े   को  देख  कर  सोने  का  सिक्का  बोला  ---- " ओ  गंदे  चिथड़े  ! जरा  दूर  हट  जा  ,  देखता  नहीं  मैं  सोने  का  सिक्का  हूँ   , जिसे  पाने  के  लिए  राजा  से   लेकर   रंक    तक   दिन -रात  यत्न  करते  हैं   l  "  यह  बात  चिथड़े  को  बहुत  अखरी  ,  किन्तु  कर  ही  क्या  सकता  था   l       दिन  पलटे   और  चिथड़े  के  भी  कायाकल्प  के  दिन  आए   l  कचड़ा  बीनने  वाले  ने  उसे  उठा  लिया   और  कागज   के  कारखाने  में   बेच  दिया  ,  उससे  जो  कागज  तैयार  हुआ   वह  करेंसी  नोट  -दस  स्वर्ण  मुद्राओं   के  बराबर  मूल्य  का  आँका  गया   l   एक  दिन   जब  वह   अपने  कार्य स्थल  पर  था   तब  उसका  सामना  सोने  के  सिक्के  से  हुआ   l   उसने  सोने  के  सिक्के  को  पहचान  लिया   और  बोला  ---- " भैया  !  उस  दिन  तो  तुम  मुझे  दुत्कार  रहे  थे  ,  किन्तु    आज   मैं  तुमसे  अधिक  कीमत  का  बन   गया  हूँ   l  तुम  जैसे  लोग  दूसरों  की   निरर्थक  निंदा  करते  रहते  हो   और  जब  वे  बड़े  बन  जाते  हैं  तो  या  तो  उनसे  ईर्ष्या  करने  लगते  हो     लेकिन  यदि  उनसे  कोई  स्वार्थ  सिद्ध  होता  है   तो  उनकी  पूजा  करने  दौड़  पड़ते  हो   l  "  सोने  का  सिक्का  अपनी  अहंता   पर  लज्जित  था  l  

WISDOM------

   लघु -कथा ----   ' व्यक्ति  का  जैसा  स्वभाव -चिंतन  होता  है  , उसे  वैसी  ही  दुनिया  दिखाई  देती  है  l '    ---      एक  चित्रकार  ने  बड़ी  मेहनत  से  एक  भूखे - गरीब  आदमी  का   बड़ा  सा   चित्र  बनाया  l   चित्र  इतना   प्राकृतिक  लगता  मानो  आदमी  की  पीड़ा   उभरकर   कैनवस  पर  रख  दी  हो   l  दर्द  से  कराहता ,  झुर्रियां  पड़ी  हुईं  l  कपड़े  चीथड़े ,  तार -तार  दर्शाए  गए  थे   l  चित्र  को  देखकर  लोगों  के  मन  में   दुःख  के  चिन्ह  उभरते   l   लोग  अपनी - अपनी  मनोवृति  के  अनुसार   अटकलें  लगाते , चित्र  का  वर्णन  करते   l  चित्रकार  के  एक  डॉक्टर  मित्र  ने   चित्र  को  देखा   और  बड़ी  देर  तक  चित्र  को  देखता  ही  रहा  l   अंत  में  उसकी  प्रशंसा  करते  हुए  बोला ---- " लगता  है  इस  आदमी  के  पेट  में  तकलीफ  है  l  वही  अपने  इस  चित्र  में  बताई  है   l  "  दुनिया  अपने  चिंतन  के  अनुरूप  ही  दिखाई  पड़ती  है   l  

12 June 2022

WISDOM------

  लघु -कथा -------  जंगल  में  खरगोशों  की  सभा  बुलाई  गई  l  सभा  का  उद्देश्य  अपनी -अपनी  पीड़ा  व्यक्त  करना  था  l  भोजन  के  अभाव  से  लेकर   शिकारी  जानवरों  द्वारा  द्वारा  पीछा  करना   तक   आदि  बहुत  से  विषयों  पर  चर्चा  हुई  l   अंत  में  निष्कर्ष  यह  निकला  कि  उनकी  व्यथा  का  मूल  कारण विधाता  ही  हैं  ,  जिन्होंने  उन्हें  इतना  छोटा  ,  दुर्बल  और  असहाय  बना  दिया   है  कि  वे  निरीह  माने  जाते  हैं   l  सबने  निर्णय  किया  कि  ऐसी  परिस्थिति  में   सामूहिक  आत्महत्या  के  अतिरिक्त   और  कोई  विकल्प  ही  नहीं  बचता  l      इसी  संकल्प  के  साथ  वे  सब  तालाब  को  चले   कि  वहां  जाकर  डूब  मरेंगे  l  तालाब  के  किनारे  मेढ़क  बैठे  थे  ,  वे  खरगोशों  को  देखकर  डर  कर  भागे   l  यह  देखकर  एक  समझदार  खरगोश  बोला ----- " मित्रों  !  अब  हमें   आत्महत्या  करने   आवश्यकता  नहीं   है  l  इस  संसार  में   हमसे  दुर्बल  अनेकों  जीव  हैं   l  हमें  विधाता  ने  जो  दिया  है  ,  उसी  पर  संतोष  करना  चाहिए   l  "   विषम  परिस्थितियों  में  भगवान  को  कोसने  के  बजाय   उन    विशेषताओं  पर  गर्व  करना  चाहिए  ,    जिन  से    सुसज्जित    कर  भगवान  ने  हमें   मनुष्य  रूप के  रूप  में  धरती  पर  भेजा  है  l     

11 June 2022

WISDOM ------

   किसी  व्यक्ति  के  जीवन  में  या  राष्ट्र  में  जो  भी  घटनाएँ  घटती  हैं  वे  हमें  कुछ  सिखाने  के  लिए  आती  हैं  ,  हम  उनसे  कुछ  शिक्षा  लेते  हैं  या  नहीं  ये  हमारे  विवेक  पर  निर्भर  है   , जैसे  हम  अपनी  आपसी  फूट  और  मतभेदों  की  वजह  से  युगों  तक  गुलाम  रहे  l  अब  यह  हमारे  विवेक  पर  निर्भर  है  कि  हम   अपनी  गलती  सुधारते  हैं  या  उसे  दोहराते  हैं   l  इसी  सत्य  को  समझाने  वाली  एक  कथा  है ---------  बहेलिया  जाल  फैलाता   बटेरों  का  समूह  उसे  उठाता  ,  झाड़ी  में  उलझाता   और  निकल  भागता  l   बहेलिया  नित्य   खाली  हाथ  घर  वापस  लौट  जाता   l   पत्नी  ने  कहा --- ' आज  भी   खाली  हाथ  लौट  आए  l l '  उसने  कहा ---- ' पक्षियों    में  संगठन  ही  ऐसा  है   कि  जाल  डालता  हूँ  ,  वे  उसे  उठाकर  ,  झाड़ी  में  उलझाकर   निकल  भागने  में  सफल  हो  जाते  हैं  l   '  पत्नी  ने  कहा ---- " धैर्य  रखो  !   उनमे  फूट  पड़ने  का  इंतजार  करो   l  देखना  सब  फँसेंगे  l  " एक  दिन  हुआ  भी  ऐसा  ही   l  बहेलिया  ने  दाना  डाला   और  जाल  फैलाया   l  बटेरों  का  झुंड  आया  और  सभी  दाना  चुगने  में  लग  गए   l  भूल  से   एक  बटेर  ने   दूसरे  के  सिर  पर  पैर  रखकर  कुलाँच  मारी  l  विवाद  शुरू  हो  गया   l  विवाद  बढ़ते -बढ़ते   नौबत  मारामारी  की  आ  गई   l  दूसरा  बोला ---लगता  है   जैसे  जाल  तू  ही  उठाता  है   l  पहले  ने  पलट  कर  जवाब  दिया  -- और  क्या  तू  उठाता  है   l   ' यदि  मैं  न  उठाऊं    तो  तेरी  क्या  बिसात   !  बस  विवाद  बढ़ता  ही  गया   l  एक   दूसरे   के  समर्थन  में   झुंड  दो  दलों  में   विभाजित  हो  गया  l  बहेलिया  समझ  गया  कि  अब  काम  होने  वाला  है   l  बटेर  विवाद  में  उलझे  रहे   और  जाल  उठाना  भूलकर   एक -एक  कर  जाल  में  उलझते  गए   l  जब  सब  जाल  में  फँस  गए   तो  बहेलिए  ने  जाल  समेटा  और  चल  दिया   l  अब  बटेर  पछता  रहे  थे   कि  व्यर्थ  के  विवाद  और  झगड़े  में  पड़कर   वे  सब  जाल  में  फँस  गए  l  बहेलिए  को  पत्नी  की  बात  याद  आ  गई   कि   विवाद  होने  तक  इंतजार  करो  ,  संगठन  जरुर  बिखरेगा  l   

10 June 2022

WISDOM ------

    लघु - कथा ----  स्वार्थ  के  आधार  पर  की  गई  मित्रता    दुर्गति  ही  करा  देती  है  -----  तालाब  के  मेढ़क  और  पास  के  गोदाम  में  रहने  वाले  चूहे  के  बीच  घनिष्ठ  मित्रता  हो  गई  l  गोदाम  में  चूहे  के  लिए  पर्याप्त  भोजन  सामग्री  थी  और   मेढ़क  को  भी  कीड़े  मिल  जाते  थे  l   दोनों  के  बीच  घनिष्ठता  ज्यादा  बड़ी   तो  दोनों  ने  एक  रस्सी  ली   और  उसका  एक  छोर  चूहे  ने   अपनी  पूंछ  में   और  दूसरा  छोर   मेढ़क  ने   अपने  पैर  में  बाँध  लिया    ताकि  दोनों  एक  दूसरे  से  ज्यादा   दूर  न  जा  पाएं  , हमेशा  साथ  रहें   l   रस्सी  बांधे  ज्यादा  समय  नहीं  गुजरा  था   कि  मेढ़क  को  एक  कीड़ा  दिखाई  दिया  l  प्रवृति वश  वह  उसके  पीछे -पीछे  पानी  में  कूद  पड़ा   और  अपने  साथ  चूहे  को  भी   ले  गया  l   पानी  में  तैर  न  पाने  के  कारण   चूहा  डूबकर  मर  गया   और  उसका  मृत  शरीर  पानी  के  ऊपर  आ  लगा   l  आसमान  में  उड़ती  चील  की  द्रष्टि  जब   चूहे  पर  गई  तो  वह   झपट  कर  चूहे  को  ले  निकली   l  रस्सी  से  बंधा  होने  के  कारण  मृत  चूहे  के  साथ  मेढ़क  भी  खिंचता  चला  गया   l  चील  ने  दोनों  का  शिकार  कर  लिया   l    ' स्वार्थ  और  लालच  के  आधार  पर  की  गई  मित्रता   ऐसी  दुर्दशा  करा  देती  है   l ' यही  जीवन  का  सत्य  है  l 

9 June 2022

WISDOM-----

     इसे  मानव  जाति  का  दुर्भाग्य  ही  कहा  जायेगा   कि   ऐसा  समय  आ  जाता  है  जब   पूरा  वातावरण  प्रदूषित  हो  जाता  है  l  लोगों  की  मानसिकता  प्रदूषित  होने  से  ही   हर  दिशा  में  नकारात्मकता  ही   दिखाई  देती  है  l   जब -जब  धरती  पर  पाप  बढ़  जाता  है  ,  तब  ऐसी  ही  स्थिति  उत्पन्न  होती  है   l  रावण  ज्ञानी  था   लेकिन  उसने  इतने  अत्याचार  किए   कि  सारा  वातावरण  ख़राब  हो  गया  ,  इस  वजह  से  उन  दिनों  जितने  भी  बच्चे  हुए  लंका  में  ,वे  सब  एक से  बढ़कर  एक  राक्षस  हुए   l  एक   लाख    पूत  सवा  लाख  नाती  --सब  राक्षस  प्रवृति  के  थे  l    इसी  तरह  द्वापर  युग  में  कंस  और  दुर्योधन  के  अत्याचार  से  पूरा  वातावरण  प्रदूषित  हो  गया  था   l  अनेक  राजा  अत्याचारी  थे   l  आचार्य श्री  लिखते  हैं  ---- जब  इस  तरह  से  पूरा  वातावरण  प्रदूषित  हो  जाता  है    तब  उसे  साफ़  करने  के  लिए , उसके  परिशोधन  के  लिए  यज्ञ  करना  पड़ता  है  l    भगवान  राम  को  दस  अश्वमेध  यज्ञ   करने  पड़े   l  इसी  तरह  कंस  और  दुर्योधन  द्वारा    बिगाड़े  गए  वातावरण  को   ठीक  करने  के  लिए    भगवान  श्रीकृष्ण  को  राजसूय  यज्ञ   करना  पड़ा  l  आज  संसार  को  इसी  तरह  के  परिशोधन  की  आवश्यकता  है  l  

8 June 2022

WISDOM-------

   ईश्वर  दो  बार  हँसते  हैं  l   एक  बार  उस  समय  हँसते  हैं  ,  जब  दो  भाई   जमीन  बांटते  हैं  और  रस्सी  से  नापकर  कहते  हैं  ---- " इस  ओर  की  जमीन  मेरी  और  उस  ओर  की   तुम्हारी  l  "  ईश्वर  यह  सोचकर  हँसते  हैं   कि  संसार  है  तो  मेरा    और  ये  लोग  थोड़ी  सी  मिटटी  को   लेकर   इस  ओर  की  मेरी  ,  उस  ओर   की  तुम्हारी   कर  रहे  हैं   l         फिर  ईश्वर  एक  बार  और  हँसते  हैं   l  बच्चे  की  बीमारी  बड़ी  हुई  है  , उसकी  माँ  रो  रही  है   l  वैद्य  आकर  कह  रहा  है  --- " डरने  की  क्या  बात  है  माँ  !  मैं  अच्छा  कर  दूंगा   l  "  वैद्य  नहीं  जानता  कि  ईश्वर  यदि  मारना  चाहे    तो  किसकी  शक्ति  है  ,  जो  अच्छा  कर  सके   l  

6 June 2022

WISDOM-------

   परस्पर  सम्मान  का  भाव  हमारे  रिश्तों  को   और  उन  रिश्तों  के  भविष्य  को  कितना  प्रभावित  करता  है  ------- इस  तथ्य  को  पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी  ने   रामायण  और  महाभारत  के  उदाहरण  से  स्पष्ट  किया  है  l --------   रामायण ------- कैकेयी  मंथरा  के  बहकावे  में  आ  गई  l  भरत  को  राज्य  और  राम  को  वनवास  मांग  बैठी  l  राम  वनवास  पर  दशरथ जी  ने  शरीर  त्याग  दिया   l  भरत जी  को  वैराग्य  हो  गया   l  माता  कौशल्या  पर  तो  दुःखों   का  पहाड़  टूट  पड़ा   l  परन्तु  ऐसी  स्थिति  में  भी  किसी   ने  किसी  के  सम्मान  पर  चोट  नहीं  की  l   कौशल्या  राम  को  छोड़ना  नहीं  चाहती  थीं  ,  परन्तु   एनी  माताओं  के  सम्मान  का  उन्हें  पूरा  ध्यान  था  ,  अत:  उन्होंने  राम  को  वन  जाने  की  अनुमति  दे  दी   l   जब  राजा  जनक  ने  सुना  कि  जानकी  भी  साथ  गईं  हैं है  तब  उन्होंने  दूतों  द्वारा  सही  स्थिति  का  पता  लगाया   और  भरत  का  समर्थन  करने  चित्रकूट  पहुँच  गए   l  भरत  के  कारण  राम -सीता  को  वनवास  हुआ  ,  इस  नाते   भरत  को  अपमानित  करने  का  उन्होंने  भूलकर  भी  प्रयास  नहीं  किया   l   ऐसे  एक -दूसरे  के  सम्मान  के  भाव  ने  विकट    परिस्थितियों  में  भी  अयोध्या  का  संतुलन  बनाए  रखा   l  जो  भूल  थी  वह  भूल  रह  गई   उससे  परस्पर  स्नेह  में  कोई  फरक  नहीं  पड़ा   l  राम  की  अनुपस्थिति  में   और  राम  के  के  आने  के  बाद  भी   पारिवारिक  सद्भाव  स्वर्गीय  सुख  देता  रहा   l        दूसरी  ओर  महाभारत   एक - दूसरे  को  सम्मान  न  दे  पाने   की  ही  भीषण  प्रतिक्रिया   के  रूप  में  उभरा   l  दुर्योधन  ने  राजमद  में  पांडवों  को  सम्मान  नहीं  दिया   l  तो  प्रतिक्रिया  में  भीम  भी  अपने  बल  का  उपयोग  कर  के  उन्हें  तिरस्कृत  करने  लगे   l  द्रोपदी  सहज  परिहास  में  भूल  गई   कि  दुर्योधन   को    ' अंधे  का  बेटा    अँधा  '   संबोधन  से    अपमान  का  अनुभव  हो  सकता  है   l  दुर्योधन  भी  द्वेष वश    नारी  के  शील  का  महत्त्व  ही  भूल  गया   तथा  द्रोपदी  को  भरी  सभा  में  अपमानित  करने   पर  उतारू  हो  गया  l    यही  सब  कारण  जुड़ते  गए   और  छोटी -छोटी  शिष्टाचार  की  त्रुटियों  की   चिनगारियां  भीषण  ज्वाला  बन   गईं  l  यदि  परस्पर  सम्मान  का  ध्यान  रखा  गया  होता  ,  अशिष्टता  पर  अंकुश   रखा   जा  सका  होता  ,तो  स्नेह  बनाए  रखने  में   कोई  कठिनाई   नहीं  होती   l  भीष्म  पितामह  और  भगवान  कृष्ण  जैसे    युग -पुरुषों  के  प्रभाव  का  लाभ   मिल   जाता   l  

5 June 2022

WISDOM------

   हमारे  महाकाव्य  हमें  मार्गदर्शन  देते  हैं   की  जीवन  में  आने  वाली  विभिन्न  समस्याओं  के  कारण  को  गहराई  से  समझो  और  फिर  उसका  समाधान  करो   l  महामानव  सब  जानते  हैं  कि  आगे  का  युग  कैसा  आने  वाला  है   इसलिए   महाभारत  और   रामायण  के  माध्यम  से  उन्होंने  संसार  को  शिक्षण  दिया  है   l  छल कपट , षड्यंत्र , लोभ , लालच , महत्वाकांक्षा , आपसी  मनमुटाव ,  ईर्ष्या , द्वेष , सम्पति  के  झगडे --- ये  सब  त्रेतायुग  और  द्वापर  युग  में  भी  थे   ,  उस  समय  इनका  प्रतिशत  कम  था    लेकिन  कलियुग  में   इन  दुर्गुणों  के  कारण  होने  वाली   घटनाओं  की  भरमार  है   l  महाकाव्यों  के  अध्ययन  से  एक  बात  स्पष्ट  होती  है    कि  घात  तो  अपने  ही  करते  हैं ,  दुःख , धोखा  अपने  ही  देते  हैं  ,  गैर  तो  मौके  का  फायदा  उठाते  हैं   l  भगवान  राम  को  वनवास  उनकी  विमाता  कैकेयी  के  कारण  ही  हुआ  ,  किसी  गैर  के  कारण  नहीं   l  श्रीराम  तो  भगवान  थे    लेकिन  उन्होंने  मनुष्य  का  जन्म  लेकर  समझाया  कि   जब  परिवार  में    किसी  भी  संबंधों  में  झगडा  होता  है  तभी   दूसरे   लोग  फायदा  उठाते  l  यदि  भगवान  राम   अयोध्या  में  ही  रहते   तो  रावण  उस  ओर  देख  भी  नहीं  सकता  था ,  जब  वन  गए  ( मनुष्य  रूप  में  --)  तभी  रावण  को   सीताजी  के  अपहरण  का  मौका  मिला  l  इसी  तरह  महाभारत  में    दुर्योधन  हस्तिनापुर  का  युवराज  था  ,  इतना  बड़ा  साम्राज्य ,  कोई  कमी  नहीं  थी   लेकिन  ईर्ष्या , द्वेष  इतना  था   कि  शकुनि  के  साथ  मिलकर   सारा  जीवन  छल -कपट  और  षड्यंत्र  कर  के  अपने  ही  भाइयों  को  दुःख  देता  रहा  l     ये  प्रसंग  शिक्षा  देते  हैं   कि  चाहे  पारिवारिक  झगड़े  हों  या  जाति  और  धर्म  के  नाम  पर  होने  वाले  झगड़े  हो  ,  कहीं  कोई  रावण  है    जो  आएगा  ,  आपकी  संस्कृति  को  नष्ट  करेगा   l  कहीं  कोई  शकुनि  है  जो   आपके  पास  जो  थोडा  बहुत  सुख -चैन  है  ,  उसे  भी  अपनी  कुटिल  चाल  से  छीन  लेगा  l   आज  की  सबसे  बड़ी  जरुरत  है   मन  को  शांत   रखकर   जागरूक  और  चौकन्ना  रहने  की   l  

4 June 2022

WISDOM ------

   यह  प्रसंग  है  उस  समय  का  जब  सिकंदर   विश्व  विजय  की  लालसा  में  भारत  आया  था   l  प्रतापी  सम्राट  पोरस  से  युद्ध  करने  के  बाद   सिकंदर  की  सेना  ने  आगे  बढ़ने  से  इंकार  कर  दिया  ,  उस  समय  सिकंदर  ने  सोचा  कि  आसपास  के  छोटे  राज्यों  को   क्यों  न  अपने  कब्जे  में  कर  लिया  जाये  l   सिकंदर  की  वक्र  द्रष्टि   अमृतसर  के  समीप  रावी  नदी  के  तट  पर  बसे   अश्वपति  के  राज्य  पर  पड़ी   l  राजा  अश्वपति  सात  फुट  लम्बा  एक  वीर  शासक  था   l  उसकी  वीरता  के  किस्से  सिकंदर  ने  सुन  रखे  थे   l  सिकंदर  के  सैनिक  हिम्मत  हार  चुके  थे   इसलिए  सामने  मुकाबला  करने  की  बजाय   सिकंदर  ने  छल  से  रात  को  आक्रमण  कर  दिया    l   उसके  सैनिकों  ने  छल  से  रात  के  समय  बहुत  मारकाट  मचाई  और  राजा  अश्वपति  को  बंदी  बना  लिया  l    अश्वपति  के  शौर्य  की  परीक्षा  लेने  के  लिए  उसने  अश्वपति  को  बंधन  मुक्त  कर  उससे  संधि  कर  ली    और  इस  ख़ुशी  में  दोनों  नरेशों  ने  सम्मिलित  रूप  से  दरबार  का  आयोजन  किया  l   अश्वपति  अपने  खूंखार  लड़ाका  कुत्तों  के  लिए  विश्व विख्यात  था  ,  चार  कुत्ते  हमेशा   अश्वपति  के  साथ  रहते  थे  l  जब  वह  दरबार  में  पहुंचा   तब  वह  कुत्ते  भी  उसके  साथ  थे   l  सिकंदर  ने  उनके  पहुँचते  ही  व्यंग्य  किया  ------ ' महाराज  !  ये  ' भारतीय  कुत्ते '   हैं  l    अश्वपति  ने   तुरंत  उत्तर  दिया  ---- हाँ  ,  ये  कभी  भी  छिपकर  छल  से  आक्रमण  नहीं  करते  ,  शेरों  से  भी  मैदान  में  लड़ते  हैं   l  "  अब  लड़ाई  का  आयोजन  किया  गया  l  एक  ओर  शेर  और  दूसरी  ओर  दो  कुत्ते  l    कुत्तों  ने  शेर  के  छक्के  छुड़ा  दिए  l  शेष  दो  कुत्तों  को  भी  छोड़  दिया  ,  अब  शेर  को  भागते  ही  बना  l  पर  कुत्तों  ने  उसके  शरीर  में  ऐसे  दांत  चुभोए  कि  शेर  आहात  होकर  वहीँ  गिर  पड़ा   l  अब  अश्वपति  ने  ललकार  कर  कहा ---"  महाराज  !  आपकी  सेना  में  कोई कोई  वीर  है  जो   कुत्तों  के  दांत  शेर  के  मांस  से  अलग  कर  सके   ?  एक - एक  कर  के  सिकंदर  के  कई  योद्धा  उठे   लेकिन  वे  उसके  दांत   शेर  के  मांस  से  अलग  न  कर  सके  l   तब  अश्वपति  ने  अपने  अंगरक्षक  को  संकेत  किया  l  वह  उठकर  शेर  के  पास  पहुंचा   और   कुत्ते  को  पकड़कर  एक  झटका  लगाया   कि  शेर   की  हड्डी  और  मांस  सहित  कुत्ता  भी  खिंचा  चला  आया  l  सिकंदर  को  भारतीयों  की  वीरता  का  अंदाजा  पहले  ही  लग   चुका   था  l  महाराज  पोरस  और  अश्वपति  से  युद्ध  जीतकर  भी  वह  हार  गया   l   सिर झुकाए  अपने  देश  की  और  चल  पड़ा   l  























































































































































































3 June 2022

WISDOM------

 श्रीमद भगवद्गीता  में   भगवान  कहते  हैं ---- 'गहना  कर्मणोगति  l ,  कर्म  की  गति  बड़ी  गहन  है   l  कर्म  अविनाशी  है  ,इसका  बीज  कभी  नष्ट  नहीं  होता  l  सद्कर्म  से  पुण्य  और  दुष्कर्म  से  पाप  का  विधान  है  l   कर्म  का  फल  मिलता  अवश्य  है  , भले  ही  इसमें  देर  हो  जाये  l  महारानी  द्रोपदी  यज्ञ   से  उत्पन्न  हुईं  थीं  l  द्रोपदी  सहित  सभी  पांडवों  को  भगवान  कृष्ण  का  सान्निध्य  प्राप्त  था   लेकिन  फिर  भी   द्रोपदी  को  बहुत  इंतजार  करना  पड़ा  l  दु:शासन  ने  भरी  सभा  में  उसे  अपमानित  किया  था  ,  इस  पापकर्म  की  सजा  उसे  मिलनी  थी   l  यह  देखने  के  लिए  और  उसके  रक्त  से  अपने   केश  धोने  के  लिए   द्रोपदी  को  तेरह  वर्ष  इंतजार  करना  पड़ा   l  केवल  दु:शासन  ही  नहीं  सभी  कौरवों  ने  पांडवों  पर  अत्याचार  किए  l  जब  पाप  सामूहिक  होते  हैं  तब  उनका  दंड  भी  सामूहिक  होता  है   l  सारे  पापी  ईश्वरीय  विधान  के  अनुसार  एक  जगह  जुट  जाते  हैं ,  उनके  पापों  के  बोझ  से  चाहे  वह  कोई  वंश  हो ,  कोई  संस्था  हो ,  कोई  संगठन , कोई  समाज  हो  उसका  अस्तित्व  ही  समाप्त  हो  जाता  है   l   मनुष्य  अपनी  मानसिक  कमजोरियों  के  आगे  लाचार  है  l  यह  जानते  हुए  भी  कि  पाप कर्म  की  सजा  अवश्य  मिलेगी ,  फिर  भी  पाप कर्म  करना  नहीं  छोड़ता  l  कितने  ही  लोग   भयंकर  बीमार  हो  जाते  हैं , जब  तकलीफ  होती  है  तो  प्रार्थना  करते  हैं  कि  ठीक  हो  जाएँ  तो   कोई  गलती  नहीं  करेंगे  ,  लेकिन  स्वस्थ  होते  ही  फिर   गलतियाँ  करने  लगते  हैं   l  जिनके  भीतर  विवेक  है  वे  अपनी  गलतियों  से  सीखते  हैं  , उनको  सुधारने  का  और  उन्हें  पुन:  न  दोहराने  का  संकल्प  लेते  हैं   और  इस  तरह  महानता  के  स्तर  को  प्राप्त  करते  हैं   l 

2 June 2022

WISDOM ----

   लघु -कथा -----   बुरी  संगति   से   जीवन  कैसे  पतन  के  गर्त  में  चला  जाता  है , इस  सत्य  को  बताने  वाली  एक  कथा  है  ----  एक  चित्रकार  ने  एक   अति  सुंदर   बालक  का  चित्र  बनाया  l  चित्र  बहुत  ही  सुंदर  बना,  उसकी  लाखों  प्रतियाँ  बिक  गईं  l   वर्षों  बाद    चित्रकार    को  सूझा  कि   वह  एक  अत्यंत   दुष्ट  और  भयानक  अपराधी  का  चित्र  बनाए  जिसको  देखकर  ही  मन  में  घ्रणा  का  भाव  आ  जाए  l  इसके  लिए  वह  कारागार   और  दुराचारियों  के  आवास  स्थान  आदि  ठिकानों  पर  गया  l  कारागार  में  उसे  एक  भयानक  आकृति  का   खूंखार  कैदी  मिला  l  उसने  उससे  कहा --- ' मैं  तुम्हारा  चित्र  बनाना  चाहता  हूँ   l  "  कैदी  ने  पूछा --- 'क्यों  ? '  तब  चित्रकार  ने  उसे  अपना  विचार  बताते  हुए   उसे  बालक  का  चित्र  दिखाया   l  कैदी  उस  चित्र  को  देखकर  रोने  लगा    और  बोला  --- '  यह  चित्र  मेरा  ही  है , यह  सुंदर , सौम्य  बालक  मैं  ही  हूँ  l  '  चित्रकार  हतप्रभ  रह  गया    और  कहने  लगा ---- यह  परिवर्तन  कैसे  हो  गया  ? '  कैदी   की  आँखों  से  आंसू  थम  नहीं  रहे  थे  ,  वह   रुँधे  गले  से  बोला ---- बुरी  संगति  से  मैं  अपने  जीवन  की  राह  भटक  गया   और  दुष्प्रवृतियों   में  फंस  जाने  के  कारण  मेरी  यह  दुर्गति  हो  गई  l  '  आचार्य श्री  लिखते  हैं  --- जब  जागो  तब  सवेरा ,  कुछ  पतन  के  गर्त  में  जाकर  भी   महामानवों  का  अवलंबन  लेकर , श्रेष्ठ  साहित्य  के  अध्ययन  से  अपने  को  सुधार  लेते  हैं   और  मँझधार  में  फँसी  अपनी  नाव   को  खे  ले  जाते  हैं  l  स्वयं  को  सुधारने  का  संकल्प  जरुरी  है  l  '

WISDOM -------

  लघु -कथा -----  सत्य  की  राह  बहुत  कठिन  है , सच्चाई  की  राह  पर  चलना  तलवार  की  धार  पर  चलने  के   समान  है  ,  लेकिन  इस  राह  पर  शांति  है , कोई  तनाव  नहीं  l  बुराई  की  राह  पर  चलना  बहुत  आसान  है  ,  इसमें  तुरंत  लाभ  मिलता  है   लेकिन  ये  बुराइयाँ , दुष्प्रवृत्तियां , व्यसन   जिन्हें  लोग  एक  बार  पकड़ते  हैं,  वे  कुछ  ही  दिन  में  उन्हें  अपने  शिकंजे  में   जकड़  लेती  है   और  प्राण  लेकर  ही  छोड़ती  हैं   l ---------  नदी  में  रीछ  बहता  जा  रहा  था  l  किनारे  पर  खड़े  साधु  ने  समझा  कि   यह  कम्बल  बहता  आ  रहा  है  l  निकालने  के  लिए  वह  तैरकर   उस  तक  पहुंचा   और  पकड़कर   किनारे  की  तरफ  खींचने  लगा   l         रीछ  जीवित  था  , प्रवाह  में  बहता  चला  आया  था  l   उसने   साधु  को  जकड़  कर  पकड़  लिया   ताकि  वह  उस  पर  सवार  होकर   पार  निकल  सके   l   दोनों  एक  दूसरे  के  साथ  गुत्थमगुत्था  कर  रहे  थे  l   कोई  नीचे  कोई  ऊपर  l   किनारे  पर  खड़े  दूसरे  साधु  ने  उसे  पुकारा   और  कहा --- कम्बल  हाथ  नहीं  आता  तो  उसे  छोड़  दो  और  वापस  लौट  आओ  l '  जवाब  में  उस  फंसे  हुए  साधु  ने  कहा  --- मैं  तो  कम्बल  छोड़ना  चाहता  हूँ   पर  उसने  तो  मुझे  ऐसा  जकड़  लिया  है   कि  छूटने  की  कोई  तरकीब  नहीं  सूझती ,   ऐसा  लगता  है  ये  मेरे  प्राण  ही  ले  लेगा  l  '  व्यसन  ऐसे  ही  होते  हैं , छोड़ने  पर  भी  नहीं  छूटते  l   

1 June 2022

WISDOM ----

   लघु -कथा ----  एक  व्यक्ति  का  स्वभाव  बहुत  क्रोधी  था , हमेशा  पत्नी  और  बचों  को  डांटता  रहता  था  l  एक  दिन  एक  पंडित जी  उनके  घर  आए  ,जो  उसके  स्वभाव  से  परिचित  थे   l  उस  व्यक्ति  ने  पंडित जी  से  पूछा --- " मैं  व्यापर  कर  रहा  हूँ ,  उसमे  लाभ  होगा  या  नहीं  l "  पंडित जी  ने  कहा --- " लाभ -हानि  की  बात  छोडो ,  तुम  पर  अभी  बहुत  क्रूर  ग्रह  हैं   l  एक  सप्ताह  में  तुम्हारी  मृत्यु  का  योग  है   l  "  यह  सुनकर  वह  घबरा  गया   और  पंडित जी  से  उपाय  पूछा  l    पंडित जी  ने  कहा --- " दान -पुण्य  करो ,  माता - पिता  की  सेवा  करो ,  बच्चों  को  प्यार  करो , गरीब  और  अशक्त  लोगों  की  मदद  करो   l  सबकी  प्रार्थना  और  आशीर्वाद  से   ग्रह   टल  सकते  हैं  l  दुआ  में  बहुत  शक्ति  होती  है  l  "  यह  सुनकर  सबसे  पहले  वह  उन  स्थानों  पर  गया   जहाँ  जरूरतमंद  बैठे  थे  ,  उनको  अपनी  सामर्थ्य  के  अनुसार  दान  किया  l  बच्चों  को  प्यार  से  खाना  खिलाया ,  उन्हें  उनकी  जरुरत  का  समान  खरीदकर  दिया   l  माता -पिता  के  पास  बैठकर  उनका   मन  का हाल  जाना  l  पत्नी  के  साथ  घर  के  कार्य  में  सहयोग  किया  l  उसे  भी  उस  दिन  बहुत  अच्छा  लगा  l  तीन  दिन  बीत  गए  ,  घर  के   सब  सदस्य   खुश  थे  और  ईश्वर  से  उसके  स्वस्थ  होने  की  कामना  कर  रहे  थे  l  घर  का  वातावरण  ही  बदल  गया  l  मंदिर  पहुंचा  तो   पंडित  ने  कहा --- "  माता -पिता  के  आशीर्वाद  और  परिवार  के  सब  सदस्यों  की  प्रार्थना  से  ग्रह  टल  गए  ,  अब  तुम  ऐसे  ही  ठीक  तरह  से  रहो  l  

WISDOM --------

       आज  संसार  में  इतनी  अशांति  , इतना  तनाव  इसलिए  है   क्योंकि  लोग  ईश्वर  को  भूल  गए  हैं   l   अब  लोग  विभिन्न  कर्मकांड  कर  के  अपने  आस्तिक  होने  का  दावा  तो  करते  हैं    लेकिन  सच  तो  यह  है  कि  ईश्वर   की  शक्ति  का  लोगों  को  एहसास  ही  नहीं  है  ,  वे  उसे  अपनी  स्वार्थ पूर्ति  का  साधन  समझते  हैं   l   मनुष्य  के  इस  अहंकार  से  प्रकृति  नाराज  हो  जाती  है   और  प्रकृति  का  क्रोध  हमें  संसार  में  विभिन्न  रूपों  में  दिखाई  पड़ता  है   l   एक  कथा  है ----  एक  व्यक्ति  एक  मंदिर  में  बहुत  जोर -जोर  से  रामायण  पाठ  कर  रहा  था   l  एक  संत  बैठे  सुन  रहे  थे   और  बहुत  प्रसन्न  हो  रहे  थे   कि  इस  समय  भी  ऐसे  भक्त  हैं   l  जब  वह  पाठ  कर  के  उठा  तो  संत  ने  पूछा  --- "  बेटा  !  क्या  रोज  पाठ  करते  हो  ?  '  उसने  चरण  छूकर  कहा --- "  नहीं  महाराज  ,  रोज  तो  समय  नहीं  मिलता  ,  मंगलवार  को  करता  हूँ l  आज  कचहरी  में  पेशी  है  ,  जल्दी  में  हूँ ,  आकर  बात  करूँगा  l  "  संत  ने  पूछा --- "  कचहरी  में , क्या  किसी  से  कोई  मुकदमा  चल  रहा  है   ? "  वह  बोला  --- " हाँ ,  असल  में  मेरा  भाई  है न  ,  उस  दुष्ट  ने  मेरी   चार  गज  जमीन  दबा  ली  ,  आज  उसकी  पेशी  है  l  जीत  गया  तो  शाम  को  प्रसाद  बांटूंगा  l  "  यह  कहकर  वह  तो  चला  गया  ,  पर  संत  ने  अपना  माथा  पीट  लिया   l  रामायण  का  पाठ  कर  रहा  है ,  भगवान  श्रीराम  का  चरित्र  पढ़  रहा  है   और  भाई  पर  चार  गज  जमीन  के  लिए  मुकदमा  l  क्या  लाभ  है    ऐसी  भक्ति  से   ? दिखावा  है  l