5 October 2023

WISDOM -----

   गुरु  नानक  देव जी  के  जीवन  का  प्रसंग  है --- एक  बार  वे  भ्रमण  के  दौरान  जगन्नाथ पुरी  जा  रहे  थे  l  वे  पैदल  भ्रमण  करते  हुए  लोगों  से  मिलते  , उनकी  समस्याएं  सुनते  और  उन्हें   पीड़ा  से  मुक्ति  दिलाने  के  उपाय  के बताने  के  साथ   मधुर -मंगलमय  जीवन  जीने  की  प्रेरणा  देते  l   मार्ग  में  उनका  सामना  डाकुओं  से  हुआ  l  गुरु नानक जी  के  चेहरे  का  तेज  और  उनकी  शांति  देखकर  डाकुओं  ने  उन्हें  मालदार  आदमी  समझा  और  कहा ---  ' तुम्हारे  पास  जो  भी  हीरे -मोती , सोना -चांदी   है  वह  सब  निकाल निकालकर  हमें  दे  दो  ,  नहीं  तो  हम  अभी  तुम्हारी  हत्या  कर  देंगे  l  " गुरु  नानक  जी  मानव  मन  के  मर्मज्ञ   थे  , उन्होंने      डाकुओं   से  कहा  --- " मेरी  अंतिम  इच्छा  यह  है  कि  जब  तुम  मुझे  मार  दो  तब  मेरे  शव  का  अंतिम  संस्कार  अवश्य  करना  l  इसलिए  पहले  आग  जलाने  का  प्रबंध  कर  लो  l "  यह  सुनकर  डाकू  चकित  हुए  लेकिन  फिर  सरदार  अपने  दो  डाकुओं  के  साथ  लकड़ी  लेने  चल  दिया  और  शेष  डाकू  नानक जी  को  घेरे  रहे  l   l  सरदार  ने  दूर  धुंआ  उड़ता  देखा  तो  वह  अपने  दोनों  साथियों  के  साथ  वहां  गया  तो  देखा   गाँव  के  लोग  एक  शव  का  अंतिम  संस्कार  कर  रहे  हैं  l  कुछ  लोग  वहीँ  खड़े  बात  कर  रहे  थे  , एक  व्यक्ति  कह  रहा  था ---- " अच्छा  हुआ  दुष्ट , पापी , शैतान , हत्यारा   मर  गया  ,  वरना    यदि  यह  जीवित  होता   तो  न  जाने  कितने  और  लोगों  को  दुःख  देता , उन्हें  सताता , अत्याचार  करता , पीड़ा  देता  l "  दूसरा  व्यक्ति  कह  रहा  था ---- " ऐसा  अधर्मी , पापी  दुष्ट , इन्सान  के  रूप  में  हैवान  है  शैतान  है  , इसका  जीवन  धिक्कार  है ! "  डाकुओं  ने  जब  मृतक  के  विषय  में  ऐसी  बातें  सुनी  तो  उन्हें  अपने  दुष्कृत्य  याद  आने  लगे  ,  उनकी  आत्मा  उन्हें  कचोटने  लगी  , बहुत  पश्चाताप  करने  लगे  l  वे  सोचने  लगे  कि  जिसको  हमने  पकड़  के  रखा  है  वह  कोई  असाधारण  व्यक्ति  है  जिसने  हमें  अपनी  गलतियों  का  एहसास  कराने  लकड़ियाँ  लाने  भेजा  है  l   वे   दौड़ते  हुए  आए  और  गुरु  नानक देव  के  चरणों  में  गिर  पड़े    और  कहने  लगे  --- '  आपके  बताये  मार्ग  पर  जाकर  हमने  जो  देखा , सुना  , उससे  हमें  हमारे  बुरे  कर्मों  का  एहसास  हुआ , हमने  अपने  जीवन  में  न  जाने  कितने  पापकर्म  किए   , आब  आप  ही  हमें  बताएं  कि  हम  क्या  करें  जो  इस  पाप  की  जिन्दगी  से  छुटकारा  मिले  l '  गुरु  नानक  देव  ने  कहा ----- ' जो  बीत  गया  उसे  बदलना  असंभव  है  , लेकिन  अब  तुम  संभल  जाओ  और  परोपकार  में  लग  जाओ  l  लेकिन  यह  याद  रखना  सबको  अपने  कर्मों  का  हिसाब  अवश्य  देना  पड़ता  है  l  तुम्हारी  वजह  से  किसी  दुःखी   इन्सान   की  आँखों  से  निकले  हर  एक  आँसू  का  हिसाब  तो  एक =न -एक  दिन  देना  ही  होगा  l  हाँ , लेकिन  यदि  तुम   दूसरों  का  भला  करोगे , परोपकार  करोगे   तो  तुम्हारे  मन  की  मलिनता  मिट  सकती  है  ,  बुरे  पापकर्म  करने  से  जो  आत्मग्लानि  हुई  है  वह  मिट  सकती  है   और  आत्म संतोष  प्राप्त  हो  सकता  है  l  तुम्हारे  जीवन  में  सुख -शांति  आ  सकती  है  l "  गुरु  नानक जी  का  यह  उपदेश  सुनकर   डाकुओं  ने  पापकर्म  करना  छोड़  दिया  , उनकी  जिन्दगी  सदा  के  लिए  बदल  गई  l