31 March 2019

WISDOM ----- संवेदना का आभाव मानसिक समस्याओं को जन्म देता है

 बंट्रेण्ड  रसेल  का कथन  है ---- "  मानव  जाति  अब  तक  जीवित  रह  सकी  है   तो  अपने  अज्ञान  और  अक्षमता  के  कारण  ही  ,  परन्तु  यदि  ज्ञान  व  क्षमता     मूढ़ता  के  साथ   युक्त  हो  जाएँ    तो   उसके    बचे  रहने  की  कोई   संभावना  नहीं  है  l  विज्ञानं  के  साथ   विवेक   एवं   औचित्यपूर्ण  क्रिया कुशलता  की  आवश्यकता  है  l  "  विज्ञान  ने   साधन  और  सुविधाओं  का  अंबार  लगा  दिया  है   l  विज्ञानं  में  हर  चीज  का  भौतिक  मूल्यांकन  होता  है  l  इसमें  मानवीय  संवेदना      का  सर्वथा  अभाव  है   l  विकसित  देशों  में  आधुनिक  टेक्नोलॉजी  है  ,  आर्थिक  समस्या  नहीं  है  लेकिन  वहां  मानसिक  समस्याएं  बहुत  हैं    और  अनेक  लाइलाज  रोग  हैं   l  मनीषियों    का  कहना  है     आंसुओं  के  पानी  का  वैज्ञानिक  विश्लेषण   तो  किया    जा  सकता  है   लेकिन  उनके  पीछे     कौन  सी  भावना  ----  , ममता ,  करुणा, स्नेह , व्यथा ,  वेदना  आदि  क्या  छुपा  है  यह     विज्ञान नहीं  बताता  l   इस  कारण  व्यक्ति  के  जीवन  में  रिक्तता ,  एक  खालीपन  होता  है  l   उसके  ह्रदय  को , उसकी  भावनाओं  को  समझने  वाला  कोई  नहीं   होता  l   इसी  कारण  अनेक   मानसिक   समस्याएं  उत्पन्न  होती  है  l  

29 March 2019

WISDOM ---- देश के गौरवपूर्ण अतीत से परिचित होने से ही आत्मगौरव की भावना का विकास होगा

 रमेशचंद्र  दत्त  ( जन्म 1848)   अंग्रेजी  शासन काल  में  प्रशासनिक  सेवाओं  के  लिए  चुने  गए  l 1871  में  उन्हें  असिस्टेंट  मजिस्ट्रेट  के  पद  पर  नियुक्त  किया   गया  l   उन्होंने  अपने  बाल्यकाल  से  ही  देखा  कि  किस  प्रकार  अंग्रेज  भारतीयों  पर  अत्याचार  करते  हैं ,  चाबुक  और  हंटर  से  पीटते  निकल  जाते  हैं   और  भारतीय  इतनी  हीन  भावना  के  शिकार  हैं  कि  उनमे  प्रतिरोध  करने  का  साहस  ही  नहीं  है   l   उनका  विचार  था  कि  अपने  महान  अतीत  से  परिचित  होकर   भारतीय  जनता  में  आत्मगौरव  की भावना  का  विकास  होगा   और  उसकी  कर्म शक्ति  उस  गौरव पूर्ण  स्थिति  को   प्राप्त  करने  के  लिए  उठ  खड़ी  होगी  l   उनका  सर्वाधिक  लोकप्रिय  ग्रन्थ  ' प्राचीन  भारत  की  गाथाएं '  प्रकाशित  हुआ  , उसका  जनमानस  पर  सकारात्मक  प्रभाव  पड़ा  l  इसके  अतिरिक्त  उन्होंने  कई  उपन्यास  भी  लिखे  जिनमे  भारतीय  जनमानस  को  जगाने का  प्रयास  किया  गया  l  

28 March 2019

WISDOM ----- साहित्य समाज का दर्पण है

 साहित्य  द्वारा  ही  किसी  समाज  का   मानसिक , बौद्धिक  तथा  नैतिक  स्तर  अवगत  होता  है  l   रूस के  स्रजनशील  साहित्यकार    एंटन  चेखव  उन  गिने - चुने  साहित्यकारों  में  से  हैं  जिनकी  रचनाएँ  समाज  पर  अपना  प्रभाव  डाल  सकीं  l  उनकी  रचनाओं  में  कहीं   कहीं  इतना  तीखा  व्यंग्य  होता  है  कि  पाठक  पढ़कर  तिलमिला  उठता  है  l   उनका  एक  नाटक  ' वार्ड नं. 6 '  बहुत  लोकप्रिय  हुआ  l 
बुद्धिजीवी  वर्ग  की  नपुंसक  अकर्मण्यता  पर  तीव्र  प्रहार  करने  वाला  यह  नाटक  जब  लेनिन  ने  देखा   तो  वे  इतने  व्यग्र  हो  उठे  कि  अपने  स्थान  पर  बैठ  न  सके  l  इस  नाटक  में  इस  तथ्य  को   पूरी  तरह  उभारा  गया  है  कि  --- हिंसा   और  अत्याचार  को  रोकने  के  लिए   निष्क्रिय  विरोध , उपेक्षा  व  उदासीनता  से  काम   नहीं  चलता   l  उसे  रोकने  के  लिए  अदम्य  और  कठोर  संघर्ष  की  आवश्यकता  है   तभी  उसमे   सफल  हुआ  जा  सकता  है  l  
 मनुष्य  समाज  की  वर्तमान  स्थिति  का  चित्रण  करते  हुए   चेखव  ने  एक  स्थान  पर  लिखा  है --- ईश्वर  की  जमीन  कितनी  सुन्दर  है  l  केवल  हम  में   ही  कितना  अन्याय,     कितनी  अनम्रता   और  ऐंठ  है  l  
हम  ज्ञान  के  स्थान  पर  अभिमान  और  छल - छिद्र     तथा  ईमानदारी  के  पीछे  धूर्तता  ही  अधिक  प्रकट  करते  हैं   l  

26 March 2019

WISDOM ------ सफलता के लिए नैतिक बल जरुरी है

  शोषण  और  गरीबी  हमारे  समाज  का  बहुत  बड़ा  अभिशाप  है  ,  इससे मुक्त  हुए  बिना   सामाजिक  सुव्यवस्था  की  कल्पना  नहीं  की  जा  सकती   l 
सफलता  शक्तिवानों  का  वरण  करती  है   l   विजयी  होने  के  लिए  केवल  शस्त्र  बल ,  सैन्य  बल   व  भौतिक  बल  ही  पर्याप्त  नहीं  है   l  इसके  लिए  आत्म  शक्ति  की , नैतिक  बल  की  भी   बहुत  आवश्यकता  है   l  अत्याचार , अन्याय ,  आसुरी  तत्वों  से   निपटने  के  लिए  दैवी  कृपा  भी  बहुत  जरुरी  है  l  इस कृपा  को  पाने  के  लिए  मनुष्य  के  भीतर  छल - कपट  नहीं  होना  चाहिए   l 
  भगवान  राम    ने  रावण  से  युद्ध  के  पूर्व  ' शक्ति  पूजा'  की   l  नैतिक  बल  को  चिरस्थायी  बनाये  रखने  के  लिए   देवी  की  आराधना  की  l   देवी  ने  उन्हें ' विजयी भव '  का  आशीर्वाद  दिया  l 
  शक्ति - पूजा  तो  रावण  ने  भी  की   लेकिन  उसके  पास  नैतिक  बल  नहीं  था  ,  उसने  परायी  स्त्री  का  अपहरण  किया  था   l  चारों  और  फैले  हुए  उसके  राक्षसों  ने  ऋषियों  पर , सज्जनों  पर  बहुत  अत्याचार  किये  थे  ,  इस  कारण  देवी  ने  उसे ' कल्याण  हो '  आशीर्वाद  दिया  l  क्योंकि  आसुरी  तत्वों  के  मिट  जाने  में  ही  समाज  का  कल्याण  है    l 

25 March 2019

WISDOM ----- सत्साहित्य से जीवन को सही दिशा व मार्गदर्शन मिलता है

 ' विचारपूर्ण  पुस्तकें  देवता  होती  हैं  l   उनकी  प्रतिष्ठा  यदि  घर  में  होगी  तो  वे  अपनी  उपयोगिता  सिद्ध  कर  के  ही  रहेंगी   l 
 सद्विचार  और  सत्कर्मों  का  जोड़  होना  बहुत  आवश्यक  है  l  विचारों  की  शक्ति  जब  तक   कर्म  में  अभिव्यक्त  नहीं  होती  उसका  पूरा  लाभ  नहीं  होता  l 

21 March 2019

WISDOM ---------

 पेड़ों  में  चिड़िया , बिलों  में  दीमक , जंगलों  में  हिरन   कुदकते - फुदकते  प्रसन्नता  का  जीवन  जीते  हैं  l जलाशय  में  मछलियाँ  कल्लोल  करती  हैं   l  एक  मनुष्य  ही  ऐसा  है   जो  उत्कृष्ट  शरीर  संरचना , विशिष्ट  बुद्धिमत्ता   के  होते  हुए  भी  हर  घडी  चिंतित ,  शंकित  और  भयभीत   रहता  है   l  इसका  कारण  न  तो  संसार  की  परिस्थितियां   हैं  और  न  प्रतिकूलताओं  की  भरमार   l  केवल  अपनी  ही  मन;  स्थिति  अस्त व्यस्त  , अनगढ़  होने  से  विचारणा  भावना  विकृत  हो  जाती  है  l  
  मनुष्य   के  हाथ  पैरों  में  हथकड़ी   तो  तभी  पड़ती  है   जब  उसे  किसी  अपराध  में  जेल  जाना  पड़ता  है   l  किन्तु  मनोविकारों  के  बंधन  ऐसे  हैं  ,  जो  इस  प्रकार  जकड़ते  हैं  ,  मानो    किसी  भयंकर   व्यथा   ने  जकड़  लिया  हो   l   

20 March 2019

WISDOM ---- बदलती हुई परिस्थिति के साथ विचारों में परिवर्तन भी अनिवार्य है

 विचारकों  का  मत  है  कि--- यदि  मनुष्य  समय  के  अनुरूप  अपने  विचारों  में  परिवर्तन  नहीं  लाता,  तो  बदलते  परिवेश  में  उसका  अस्तित्व  समाप्त  होने  की  संभावना   उसी  प्रकार  बढ़  जाएगी  ,  जिस  प्रकार  शरीर  तंत्र  के  अनुकूलन  के  अभाव  में   किसी  जीव  का  अस्तित्व  संकट  गहरा  जाता  है  l 
  मनुष्य  अपने  विचारों  के  प्रति  हठी हो  जाता  है  , बदलते  समय  के  साथ  वह   अपने  विचारों  को  बदलना  नहीं  चाहता  ,  यही  उसके  पतन    और   विनाश  का कारण  है   l  

19 March 2019

WISDOM ----- संन्यास का सही स्वरुप --- सेवा लेना नहीं सेवा करना है l

 बात  उन  दिनों  की  है  जब  स्वामी  विवेकानंद  घूम - घूम  कर  समूचे  देश  की  स्थिति  का  अवलोकन  कर  रहे  थे   l  उन  दिनों  वे  दक्षिण  भारत में  थे   l  एक  मठ  में  प्रवेश  कर  उन्होंने  महंत  से  पूछा  -- " क्या  मैं  यहाँ   एक  दो  दिन  रह  सकता  हूँ  l "  उनका  उद्देश्य  वहां  की  जीवन  प्रणाली  का  अध्ययन  करना  था  l   उन्होंने  देखा  कि  कुछ  लोग  उपनिषद  पढ़  रहे  हैं  l  स्वामी विवेकानंद  ने  उनसे  पूछा --- " आप  लोग  इस  ज्ञान  को  जीवन  में  उतारने  के  लिए  क्या  कर्म  करते  हैं  ? "
वे  लोग  बोले --- " कर्म  !  कर्म  से  हमारा  क्या  प्रयोजन  ? "
स्वामीजी ---- " शरीर  की  आवश्यकताओं  की  पूर्ति  आप  लोग  कैसे  करते  हैं  ? "
 साधु  ने  जवाब  दिया --- " अरे !  इतना  भी  नहीं  मालूम ,  यह  काम  गृहस्थों  का  है   l  वे  ही  हमारी  आवश्यकताओं  की  पूर्ति  करते  हैं   l "
स्वामीजी उस  स्थान  पर   पहुंचे  जो  साधुओं  के  निवास  के  लिए  था  -- संगमरमर  का  फर्श , विशाल  कमरे , गद्देदार  पलंग   l  यह  सब  देखकर   स्वामीजी  ने  साधु  से  पूछा --- " क्यों  महात्माजी  !  क्या  आपने  मजदूरों  की  बस्तियां  देखी   हैं  ?   क्या  उनके  घरों  से  भिक्षा  ली  है  ?  "
 साधु  बोला --- " वे  भला  क्या  देंगे ?  उनके  पास   खुद  नहीं  है  l "
स्वामीजी---- "  क्या  आपने  कभी  उनके  दुःख - दारिद्र्य  दूर  करने  के  सम्बन्ध  में  विचार  किया  ? '
साधु ---- " वे  अपने  पापों  का  दंड  भुगत  रहे  हैं  l "
   स्वामी  विवेकानंद  विचारमग्न  हो  गए  l  क्या  यही  संन्यास  है   ?  मूढों, , अकर्मण्य  और  विलासियों  का  जमावड़ा  हो  गया  है  l   स्वामीजी  का  मन   परेशान   हो  गया , वे  कन्या कुमारी  जा  पहुंचे  और  समुद्र  की  उत्ताल  तरंगों  को  बेध  कर  पाषाण  शिला  पर  पहुंचकर  ध्यान  में  डूब  गए  l
स्वामीजी  के  शब्दों  में  यह  ध्यान  भारत  की  आत्मा   का  था  l   एक  नया  भारत  l  संन्यास  का  नया  स्वरुप  समझाना  होगा  ,  सुशिक्षित , अनुशासित , कर्मठ  व्यक्तियों  का  दल   घर - घर , द्वार - द्वार  जाकर  लोगों  को  जीवन  बोध  कराये  l  कर्मठता  जीवन  का  ध्येय  बन  जाये  ,  मानव मात्र  जागरूक  हो  और  सामाजिक  कर्तव्य  निभाने  में  जुट  जाये   l    विराट  विश्व  की  आराधना  जो  कर  सके , ऐसे  समय दानी , लोकसेवी , कर्मठ  व्यक्ति  ही  सच्चे  संन्यासी  हैं   l  

18 March 2019

WISDOM ---- जाग्रत विवेक ही सामाजिक बुराइयों को नियंत्रित कर सकता है

  यह  आवश्यक  नहीं  कि  शोषित  वर्ग  स्वयं  ही   समर्थ  शोषकों  को  परास्त  करे   l दास  प्रथा  इसलिए  नहीं  चली   कि  गुलामों  ने   मालिकों  को  लड़कर  हराया  था  ,  बल्कि  विश्व  के  जाग्रत  विवेक  ने  पीड़ित  पक्ष   की   हिमाकत  की  l  उत्तरी  और  दक्षिणी   अमेरिका  में  दास  प्रथा  विरोधी  और  समर्थक  गोरों  के  बीच  ही   इस  प्रश्न  को  लेकर  गृहयुद्ध  हुआ  था   और  उस  प्रचलन  की  कानूनी  मान्यता  समाप्त   हुई  थी
      बिस्मार्क , क्रोपाटिकिन , नेहरु  आदि  शोषित  वर्ग  के  नहीं  थे   तो  भी  उन्होंने  शोषकों  के   पैर  तोड़ने  में  डटकर  मोर्चा  लिया  l  भारत में  भी   बाल - विवाह , सती- प्रथा , बेगार -  प्रथा  ,  बंधुआ  मजदूरी   आदि  का  अंत   पीड़ितों  के  पराक्रम  ने  नहीं  , जाग्रत  विवेक  ने  किया  l 
  संसार  में  अनीति  इसलिए  नहीं  बढ़ी  कि दुरात्माओं  की  ताकत  अधिक  थी  ,  बल्कि  उसका  विस्तार  इसलिए  हुआ   क्योंकि   उसके  विरोध  में  सिर  उठाने  वाला  साहस  मूक  और  पंगु  बना  रहा  l  

17 March 2019

WISDOM ---- परिष्कृत द्रष्टिकोण के बिना सब अनुदान - वरदान व्यर्थ हैं

 एक  संत  सत्संग  को  चले  जा  रहे  थे  l  देखा  एक  व्यक्ति  नाली  में   गिरा  पड़ा  है   l  संत  ने  उसे  उठाया , मुंह  साफ  किया   व  बैठाया  l  देखते  ही  उसे  पहचान  गए   और  आश्चर्य  से  बोले ---- ' तुम  और  यहाँ  ? "  आदमी  ठिठका  फिर   होश  संभालकर  बोला --- " प्रभु  की  कृपा  है  , अन्यथा  मैं  तो  चारपाई  से  भी    नहीं  उठ  पाता  l  जब  से  आपने  ठीक  किया  ,  तब  से  रोज   बराबर  शराब  घर  तक  तो  चलकर  आ  ही  जाता  हूँ   l   संत  उदास  हो  गए , अपने  अनुदान  का  ऐसा   दुरूपयोग  देखकर  उन्हें  बहुत  पीड़ा  हुई   l   आगे  बढे  तो  देखा  एक  व्यक्ति  नवयुवती  के  पीछे   दौड़ा  चला  जा  रहा  है  l   संत  उसे  पहचान  गए   l   संत  ने  रोका  और  कहा ---  "  तुम  तो  पहले  अंधे  थे   l  आँख  मिलते  ही  इस  हरकत  पर  उतर  आये  l '
 वह  व्यक्ति  बोला  --- " सब  आपकी  कृपा  है  l   जब  तक  अँधा  था  तो  नरक  में  जी  रहा  था   l  आपकी  कृपा  से  नयनो  का  यह  सुख  मिला  है   l "  
  संत    को  यह  सत्य  समझ  में  आया  कि--- सदुपयोग  का  महत्त्व  समझाए  बिना   कोई  भी  अनुदान , वरदान , उपलब्धि  सब  व्यर्थ  है  ,  बल्कि  वह  विनाशकारी  और  पतनगामी  भी  हो  सकते  हैं   l  

16 March 2019

WISDOM ----- शक्ति का सदुपयोग जरुरी है

  जब  तक  लाठी  हाथ  में  है  ,  तब  तक  उसके  दुरूपयोग  का  बचाव  भी   हो  सकता  है  ,  पर  जब  मशीनगन  चलने  लगे   और  बम  बरसने लगे   तो  फिर  सुरक्षा  का  प्रश्न  कठिन  हो  जाता  है  l 
 असाधारण     उपलब्धियां   यदि  कभी  नियंत्रण  से  बाहर  होने  लगें   और  मनुष्य  की  उद्दंडता  पर  अनुशासन  न  लगे     तो  परिणति   कितनी  भयंकर   होती  है  ,  इसका  परिचय  भूतकाल  से  आज  तक   मनुष्य  जाति  अनेक  बार  प्राप्त  कर  चुकी  है   l  यह  सामर्थ्य  ही  है  जो  अनियंत्रित  होने  पर  प्रेत - पिशाच  का  रूप  धर  लेती  है   l   मदान्ध  जो  भी  कर  बैठे  कम  है   l  मानवी  दुर्बुद्धि  के  कारण  उपलब्धियां  वरदान  नहीं  अभिशाप  बन  गई  हैं   l 
  शक्ति  का  सदुपयोग  हो,    मनुष्य  इनसान  बने   इसके  लिए   विवेकशीलता  और  दूरदर्शिता   और  संवेदनशीलता  चाहिए  l  सभी  समस्याओं  का  एकमात्र  हल  है ---- संवेदना  l 

15 March 2019

WISDOM ------ ---

 मंदिरों  में  शंख   और  घड़ियाल,  गिरजाघरों  में  घंटियाँ  ,  मस्जिदों  में  अजान  के  स्वर   गूंजे   l  सभी  धर्मावलम्बी  अपने  अपने  पूजा  स्थलों  की   ओर  चल  पड़े   l
 मस्जिद  की  मीनार ,   गुरूद्वारे  का  निसान   साहिब  ,   मंदिर  का  गुम्बद   और  गिरजाघर  का  क्रास    भक्तों  की  भारी  भीड़  को    आता  देख   आपस  में  विस्मय  की  मुद्रा  में  मुस्कराए   l
  मस्जिद  की मीनार  ने    निसान  साहिब ,  गुम्बद  और  क्रास  से  कहा ---- "  भाईसाहब  !  ये  इन्सान  भी  क्या  खूब  है   ?  यह  सारी  भीड़    अभी  अपने - अपने   पूजाघरों  में   जाकर  भगवन  के सामने  बड़ी   भोली  बनकर   वेड मन्त्र ,  आयतें   और  कवितायेँ  गाएगी  ,  परवरदिगार  से  दुआ  करेगी  की  हमसे   कोई  गलती  न  हो  ,  हमारी  नियत  साफ  रहे , हम  नेक  इनसान  बनें ,      फिर  न  जाने  इस  पूजाघर  के  बाहर   क्या  हो  जाता  है  l  तब  इन्सान  का  दूसरा  मुखौटा  होता  है   l  भोला   बनने   वाला वही         इन्सान  शोषक  बन  जाता  है   और  सजातीय मनुष्यों  का  गला  काटने  से   भी  नहीं  चुकता  l "
 मंदिर  के  गुम्बद  ने  कहा ---- " चुप  रह  बहन  !  धीरे  बोल  l  यदि  इन  मनुष्यों  ने  सुन  लिया  तो   तेरी - मेरी   और  इन  सब  पूजाघरों  की  खैर  नहीं    l  यह  इन्सान  बड़ा  जिद्दी  है  ,  अपने  को  छोड़कर  सबको   मूर्ख      समझता  है   l  यही  इसकी  आज  की  दुर्गति  का  कारण  है   l  

14 March 2019

WISDOM ---- जो अधिक जानता है , वह कम बोलता है और जो कम जानता है , वह अधिक बोलता है और बकबक करता है

    संसार  में  जितनी  भी  उथल - पुथल  होती  रही  है  ,  उनमे  वाणी  की  भूमिका  प्रधान  रूप से  रही  है   l  इसलिए  इसे  शक्ति  कहकर   वर्णित  किया  गया  है   l  हम  चाहे  तो  इसका  सदुपयोग  कर   स्वर्ग  का  निर्माण  के  सकते  हैं   और  दुरूपयोग  कर   नरक  का  ---- यह  पूर्णत:  प्रयोक्ता  पर  निर्भर  है   l 
  मनुष्य  के  भाव - संस्थान  में  हलचल  उत्पन्न  करना ,  दिशा देना   और कुछ  से  कुछ  बना  देना   वाणी  के  लिए   ही  संभव  है   l  इसलिए    स्वार्थ , कामना ,  वासना   से  ऊपर  उठकर  अपनी  वाणी  का   सदुपयोग  दूसरों  के  जीवन  को  सही  दिशा  देने  के  लिए  करना  चाहिए  l  

12 March 2019

WISDOM---- जब आन्दोलन के लिए महिलाएं आगे आईं

 1930  के  नमक  सत्याग्रह  में   ' बा '  ने  इतना   काम  किया   कि  सरकारी  अफसर  भी  उनसे  डरने  लगे  थे   l  दांडी  कूच के  समय  जब  आन्दोलन  में  भाग  लेने  वाली बहनों  ने  पूछा   कि हमें  क्या  करना  चाहिए   तो  गांधीजी  ने  बताया  कि  उनको  नमक  बनाकर  जेल  जाने  की  आवश्यकता  नहीं   l  इसके  बजाय    उन्हें  शराब  बंदी  और  विदेशी   कपड़े  का  बहिष्कार  का  कार्य  करना  चाहिए   l  इस  कार्य  में  चार - पांच   हजार  स्त्रियों  ने  भाग  लिया   l  शराब  की  तमाम  दुकाने बंद कराई   गईं  l   अब  सरकार ने  कानून  को  ताक में  रखकर   फेरी  लगाकर  शराब   और   ताड़ी बेचने  की  इजाजत  दे  दी   l तब    स्त्रियों  ने  छप्पर  डालकर  छावनियां  बना  लीं   तो  पुलिस वालों  ने  छप्पर  में  आग  लगा  दी   और  बर्तन  उठाकर  ले  गए  l  तब  बा  ने  कहा --- " अब  हम  चटाई  तान  कर  रहेंगे   और  मिटटी  के  बर्तन  रखेंगे  , फिर  देखें  वे  क्या  ले  जाते  हैं  ? "
 अवंतिका  बाई  गोखले , सरोजिनी  नायडू  आदि  अनेक  संभ्रांत  परिवारों  की  महिलाएं  आन्दोलन  में  सक्रिय  रहीं   l  

11 March 2019

WISDOM ----- ईर्ष्या एक घुन के समान है जो आंतरिक विकास के सारे द्वार बंद कर देती है

 मानव  मन के  मर्मज्ञ   मानते  हैं  कि  ईर्ष्या  का  प्रादुर्भाव   एक  समान  स्तर  पर  होता  है  l  ईर्ष्या  एक  ही  कक्षा में  पढ़ने  वाले  छात्र - छात्राओं  के  बीच  पैदा  होती  है  l  ईर्ष्या  अपने  स्तरीय वर्ग  के  पारिवारिक  सदस्यों  के  बीच  , विभिन्न  संस्थाओं  में  कार्य  करने  वालों  के  मध्य  पैदा  होती  है  l
   आखिर  ईर्ष्या  क्यों  पैदा  होती  है  ?    इसके  पीछे  जो  मनोविज्ञान  है  उसी  को  स्पष्ट  करते  हुए   पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी  ने  'अखंड  ज्योति '  में  एक  लेख  में  लिखा  है -----   मनुष्य  जिससे  ईर्ष्या  करता  है  ,  वास्तव  में   वह  उसके  जैसा  बनना  चाहता  है   और  ऐसा  न  बन  पाने  की  अतृप्ति  उसे  ईर्ष्यान्वित  कर  देती  है   l 
 ईष्यालु    उस  व्यक्ति  की  विशिष्टता  को  सम्मान  नहीं  दे  पाता  l   आमने - सामने  उसकी  कटु  आलोचना  करता  है ,  अपने  कुतर्कों  से  उसे   अयोग्य    सिद्ध  करता  है   परन्तु  अन्दर - ही - अन्दर   उसे  बड़ी  हसरत  भरी  निगाहों  से  निहारता  है  ,  सोचता  है , काश!  हम  भी  उस  जैसे  होते   l  पर  ऐसा  न  हो  पाने  की  स्थिति  में ईर्ष्या  पैदा  होती  है   l  ईर्ष्या  की  भावदशा  में  ही  प्रारम्भ  होता  है  --- निंदा  और   षड्यंत्र  का  अंतहीन  सिलसिला  l  ईष्यालु  व्यक्ति  चाहता  है  की  वह जिससे  ईर्ष्या  करता  है  ,  उसकी  सब  उपेक्षा  करें   प्रताड़ित  करें  l  ऐसा  होने  पर  ईर्ष्यालु  प्रसन्न  होता  है  l 
  ईर्ष्या  व्यक्ति  को  मूल्यहीन   बनाती   है ,  पतन  की  राह  पर  धकेलती  है   l  

10 March 2019

WISDOM ----- श्रेष्ठता का आधार -- सच्ची कर्तव्य निष्ठा है

   वर्ष  1576  राजस्थान  के  हल्दीघाटी   नामक  पर्वतीय  क्षेत्र  में   मुगलों  और  राजपूतों  की  सेना  में  भयंकर  युद्ध  हुआ   l  आमेर  के  राजा  मानसिंह   और  महाराणा  प्रताप   का  सगा  भाई  शक्तिसिंह  भी  मुगलों   का  ही  सहायक  था  l  इस  युद्ध  में  उनका  घोड़ा  चेतक  बुरी  तरह  घायल  हो  गया  था   फिर  भी  वह   अपने  स्वामी  को  उबड़- खाबड़  पहाड़ी  भूमि  में  तेजी  से  ले  जा  रहा  था   l   रास्ते  में  नदी  थी , बहुत  घायल  होने  पर  भी   चेतक  महाराणा  को  लेकर  नदी  के  उस  पार  पहुँच  गया  l   अभी   तक  युद्ध  की  तीव्रता  और  जोश  के  कारण  वह  घायल  होने  पर  भी  तीव्रता  से  दौड़ता  रहा  ,  पर  अब  महाराणा  के  नीचे  उतर  जाने  पर   उसका  शरीर  शिथिल  होकर  भूमि  पर  गिर  पड़ा   l  अपने  स्वामी  को  सुरक्षित  स्थान   में  पहुंचाकर  उनके  मुख  की  तरफ  देखते  हुए  उसने  प्राण  त्याग  दिए   l  अपनी  रक्षा  करने  वाले  चेतक  को  इस  तरह  परलोक  जाता  देख  प्रताप  का  ह्रदय  रो  उठा   l  उन्होंने  चेतक  के  मस्तक  को  अपनी  गोद  में  रख  लिया  l  महाराणा  प्रताप  की  देशभक्ति  और  कर्तव्य परायणता  के  साथ    उनके   घोड़े  की  अपूर्व  स्वामिभक्ति  देख  कर    शक्तिसिंह  का  भी  ह्रदय  परिवर्तन  हुआ  ,  उसने  अब  उनसे  लड़ने   की  बजाय  उनके  कदमों  में  अपना  मस्तक  रख  दिया   l  कुछ  दिन  बाद  राणा  ने   चेतक  के  प्राण  त्याग  करने  के  स्थान  पर  एक  स्तम्भ  बनवा  दिया   जो  अभी  तक  मौजूद  है   l
  अपना  कर्तव्य  इतनी    निष्ठा    के  साथ  पालन  करने  से    पशु  होते  हुए  भी   चेतक  का  नाम  इतिहास  में  अमर  हो  गया   l  

9 March 2019

WISDOM ------ विचारों की शक्ति

  मनुष्य  जैसे  विचार  करता  है   उसकी  सूक्ष्म  तरंगे  विश्वाकाश   में  फैल  जाती  हैं  l  स्वामी  विवेकनन्द  ने  विचारों  की  शक्ति  का  उल्लेख  करते  हुए   बताया  है   कि---- " कोई  व्यक्ति  भले  ही  किसी  गुफा  में  जाकर  विचार  करे   और  विचार  करते - करते  ही  वह  मर  जाये  ,  तो  भी  वे  विचार  कुछ  समय  उपरांत   गुफा  की  दीवारों  का   विच्छेद  कर  बाहर  निकल  पड़ेंगे  ,  और  सर्वत्र  फैल  जायेंगे   l  वे  विचार  तब  सबको  प्रभावित  करेंगे   l  " 
रूस  की  जन क्रान्ति  के  नेता  महापुरुष  लेनिन  केवल  गर्मागर्म  भाषण  कर  के   लोगों  की  वाहवाही  से   संतुष्ट  होने  वाले  नेता  नहीं  थे  l  उन्होंने  लिखने  की  मेज  पर  बैठे  हुए   जो  स्वप्न  देखा  था  , वह  उन्हें  निरंतर  आगे  बढ़ने  को  प्रेरित  करता  रहता  था  l  उस  समय  अत्यंत  साधारण  और  गरीबी  की  दशा  में  रहने  पर  भी   लेनिन  एक  ऐसी  शक्तिशाली  संस्था  के   निर्माण  के  लिए  प्रयत्नशील  था   जो  रूस  में  उथल - पुथल  मचा  दे   और  जारशाही  का  तख्ता  पलट  दे   l   जिस  प्रकार  संसार  के  अन्य  प्रसिद्ध  योद्धा  --- सिकंदर , शिवाजी , नेपोलियन  आदि   छोटी  अवस्था  से  ही   एक  विशेष  भाव  से  अभिभूत  होकर   भावी  साम्राज्य  की  कल्पना  किया  करते  थे  ,  उसी  प्रकार  लेनिन  भी  ,  जिसने  एक  बड़ी  भारी  सल्तनत  को  पलटने  का  प्रण  किया  था  ,  लन्दन  के  हाईगेट  कब्रिस्तान  में   कार्ल  मार्क्स  की  कब्र  के  पास   घंटों  तक  बैठकर   असीम  शक्तिशाली  भावी  बोल्शेविक  दल  का  स्वप्न  देखा  करता  था  l  अन्तर  इतना  ही  था   कि  प्राचीन  काल  के  योद्धाओं  ने   देवताओं  अथवा  ईश्वर  का  नाम  लेकर  तलवार  उठाई  थी  ,   लेनिन  के  इस  कार्यक्रम  का  आधार   इतिहास  और  समाजशास्त्र  था   l 
  अधिकांश  सार्वजनिक  कार्यकर्त्ता  ख्याति  के  लोभ  को  रोक नहीं  पाते   और  किसी  न  किसी  प्रकार  अपने  को  जाहिर  कर  देते  हैं    पर  लेनिन  ऐसी   यश  की  लालसा  से  बहुत  ऊँचा  उठा  हुआ  था   और  वह  बराबर  एक    अँधेरी  कोठरी  में  बैठा  हुआ   गुप्त  रूप से  अपना  काम  करता  था  l  रुसी क्रांति  को   लेनिन  ने  कैसे  अपना  सर्वस्व  होम  कर  के  खड़ा  किया  --- यह  रुसी  इतिहास  की  अमर  गाथा  है   l  

8 March 2019

WISDOM ----- ---

 संसार  के  इतिहास  में  अनेक   ऐसी  महिलाएं  हुई  हैं  जिन्होंने  विभिन्न  क्षेत्रों  में  अपना  नाम  अमर  किया  है   l   देशभक्त  महिलाओं  की   सबसे  अधिक  संख्या  रूस  में  पाई  जाती  है  l  जब  रूस  में  जार  का  अत्याचारी  शासन  था  ,  प्रजा  दुःखी  थी   l  ऐसी  दशा  में   अनेक  स्वाभिमानी  युवक - युवतियों  ने  इस  अन्याय  का  खात्मा  करने  की  प्रतिज्ञा  की  l   वे  बम  और  पिस्तौल  लेकर  गुप्त  रूप  से  अत्याचारी  अधिकारियों  और  स्वयं  जार  पर  भी  हमला  करते  थे  l 
  द्वितीय  विश्व युद्ध  के  अवसर  पर   जब  जर्मन  सेना  ने  अकस्मात  आक्रमण  कर  के  रूस  के  एक  बड़े  भाग  पर  कब्ज़ा  कर  लिया   और  वहां  की  जनता  को  घोर  कष्ट  दिए   तब  वहां  अनेक  स्त्रियाँ  ऐसी   निकलीं  जिन्होंने  जर्मन  सेना  की  परवाह  न  कर  के  उनके  विरुद्ध  संघर्ष  किया  l  इनमे  ' जोया '  की  अठारह  वर्ष  लड़की  का  नाम  सबसे  अधिक   प्रसिद्ध  है   l  विभिन्न  रुसी  पत्रों  में  सैकड़ों  लेख  और  निबंध   इस  किशोरी  कन्या   की  बलिदान  कथा  पर  निकलते  हैं   l    एक  सामान्य  ग्रामीण  लड़की  की  इतनी  महिमा  इसलिए  है   कि  उसने  अपने  प्राणों  की  तनिक  भी   चिंता  किये  बिना  देश  के  शत्रुओं  को  नष्ट  करने  का  हर  तरह  से  प्रयत्न  किया  l   वह  पहले  तो  गुरिल्ला फौज  में  शामिल  होकर   जर्मन  सेना  को  तरह - तरह  से  हानि  पहुँचाने  की  कार्यवाही  करती  रही  l  फिर  एक  दिन  जर्मन  सेना  की  छावनी  के  पास  जाकर  उसमे  आग  लगाकर  चली  आई  ,  पर  जब  उसे  मालूम  हुआ  कि  उसकी  लगाई  आग  से   बहुत  थोडा  नुकसान  हुआ  ,  तो  फिर  वह  दूसरे  दिन  आग  लगाने  चली  l  उसके  साथियों  ने  उसे  रोका  की  आज  मत  जाओ  , जर्मन  सैनिक  सतर्क  होंगे  ,  लेकिन  वह  अपनी  प्रतिज्ञा  को  पूरा  करने   को चल  दी  और  आग   लगाते  हुए  पकड़  ली  गई   l  जर्मनों  ने  उसे पहले  गुरिल्ला  दल  का  भेद  पूछने  के  लिए  कोड़ों  से  बहुत  मारा  ,  अन्य  यातनाएं  दीं  फिर  फांसी  पर  चढ़ा  दिया   l     उसने  देश  की  आजादी  के  लिए  हँसते - हँसते  प्राण    न्योछावर   कर  दिए   l  तभी  से  जोया  के  जीवन - मृत्यु  की  अमर   गाथा  विश्व  भर  के  लिए   नवीन  चेतना  और  शक्ति  का  उद्गम  बन  गई  है   l   

7 March 2019

WISDOM ------ सत्य तथा सत्कर्मों का अवलंबन करने से मनुष्य की अंतरात्मा में प्रसुप्त शक्तियां स्वत: ही जाग्रत हो जाती हैं

   औरंगजेब  ने     गुरु  तेगबहादुर  का  सिर  काटने  का  आदेश   दिया  l  एक  भाई  जीवनदास  ने  गुरु  का  सिर  तो  उठा  लिया   किन्तु  औरंगजेब  ने  गुरु  का  शरीर  देने  से  इनकार  कर  दिया  l  यह  ह्रदय विदारक  घटना  जब  घटी  उस  समय   गुरु  तेग बहादुर  के  पुत्र  गुरु  गोविन्दसिंह  की   आयु मात्र  पांच -छह  वर्ष  की  थी   किन्तु  सच्ची  धार्मिकता   और  धर्म  व  जाति  की  रक्षा  की   सच्ची  भावना  ने   उनके  अन्दर  अपूर्व  शक्ति , शौर्य , प्रभाव  तथा  तेज  भर  दिया  था  l    इस  बाल योद्धा   ने  गुरु  की  मृत्यु  से  उदास  खड़े  सैकड़ों  लोगों  की  और  उन्मुख  होकर  कहा ---- " गुरु  के  बलिदान  ने  हमें  शिक्षा  दी  है  कि  हम  उनके  पद चिन्हों  पर  चलकर  देश , धर्म  और  जाति  की  रक्षा  करें  l   उन्होंने  कहा --- " आज  धर्म  की  रक्षा  में   मैं  संत  परंपरा  की  गद्दी  पर  होने  पर  भी  स्वयं  शस्त्र  उठाता  हूँ   और  सबको   आज्ञा    देता  हूँ    कि  वे  किसी  भी  जाति,  या  वर्ण  के   क्यों  न  हों   क्षत्रिय  धर्म  का  अंगीकरण  करें   और  अत्याचार  के  विरुद्ध  हथियार  उठायें   l 
  इतनी  छोटी  सी   उम्र  में  उन्होंने  विशाल  जन  शक्ति  को  संगठित  किया   और  उनके  मानसिक  और  बौद्धिक  विकास  के  लिए   सैकड़ों  विद्वानों  और  शिक्षकों  को  नियुक्त  किया  l  उन्होंने  स्वयं  हिंदी , संस्कृत  व  फ़ारसी   आदि  अनेक   भाषाएँ  पढ़ीं  और  जनता  को  भी   पढ़ने  को  प्रेरित  किया  l  सैकड़ों  अनुयायिओं  को  विद्दा अध्ययन  के  लिए  काशी  भेजा  ,  जहाँ  से  वे  विद्वान्  बनकर  आये  और  जनता  में  शिक्षण  करने  लगे   l   उन्होंने  जनता  में   चन्द्रगुप्त , समुद्रगुप्त ,  अशोक  आदि  महान  राजाओं  के  इतिहास  का  प्रचार  किया  ,  रामायण , भागवत  की  कथाओं   का  वाचन  कराया   जिससे  जाति  को  अपने  अतीत के  गौरव  का  ज्ञान  हो   और  सोया  हुआ  आत्मविश्वास  जागे  l  

6 March 2019

WISDOM ---- पहले स्वयं उत्तम गुण ग्रहण करने चाहिए और तब वे गुण दूसरों को सिखाने चाहिए ---- समर्थ गुरु रामदास

 समर्थ  गुरु  रामदास  के  धर्म ग्रन्थ  ' दासबोध '  की  शिक्षाएं   औरंगजेब  के  शासनकाल  में   जैसी  लाभदायक    थीं  वैसी  ही  इस  अणुयुग  में    भी  सुख  और  शांति  प्राप्त  करने  में  सहायक  हो  सकती  हैं   l           समर्थ  गुरु  रामदास  ने  अपने   अनुयायिओं  को  उस  राजनीति  की  शिक्षा  दी  जो  विवेक , सूझ - बूझ  और  सावधानी  पर  आधारित  होती  है   l  उनका  कहना  है --- " जो  डरकर  पेड़  पर  चढ़  जाये   उसे  दम - दिलासा  देना  चाहिए   और  जो  लड़ने  को  तैयार  हो  उसे  धक्का  देकर  गिरा  देना  चाहिए  "  इसका  आशय  यह  है  कि   सांसारिक  व्यवहार  में  भी  हमको  अकारण  किसी  का  अहित  नहीं  करना  चाहिए  ,  यथासंभव  समझौते  और  मेल - मिलाप   की  नीति  से  काम  लेना  चाहिए  l  लड़ना  तभी  चाहिए  जब  कोई   नीच  और  स्वार्थी  व्यक्ति   दुष्टता  करने  पर  उतारू  हो  l 
  शिवाजी  महाराज  ने  इसी    नीति   पर    चलकर  महाराष्ट्र  में  संगठन  शक्ति  उत्पन्न  कर  दी  और   औरंगजेब  जैसे  साम्राज्यवादी  के  छक्के  छुड़ा  दिए  l  वे  कहते  थे  कि  अकारण  देश  में  अशांति  या  रक्तपात  की   स्थिति   उत्पन्न  करना  श्रेष्ठ  नीति  नहीं  है  l  वे  कहते  थे  कि--- " सच्ची  राजनीतिवही  है  जिसमे  दुष्टों  के  दमन  के  साथ   शिष्ट  व्यक्तियों  के  रक्षण  और  पालन  का  भी  पूरा  ध्यान  रखा  जाये   l  "  

5 March 2019

WISDOM ---- जब भी कोई अपनी शक्ति और सामर्थ्य को पहचान लेता है तो प्रगति के उच्च शिखर पर पहुँच जाता है

 'मनुष्य  के  भीतर  असीमित  सामर्थ्य  है  ,  जब  वह  अपनी  इस  छिपी  हुई  शक्ति  को  पहचान  लेता  है   तो  सफलता  उसके  कदम  चूमती  है  l  इसी  बात  को  समझाने  वाली  एक  कथा  है ----  हंस  का एक  बच्चा  संयोग  से  बगुलों के  झुण्ड  में  जन्म  से  ही  पहुँच  गया  l  जब  वह  थोडा  बड़ा  हुआ  तो  अपनी  जाति  के  अनुसार  बगुलों  से   भिन्न  था   l  बगुलों  के  झुण्ड  में  पच्चीस - तीस  बगुले  थे  ,  जिनका  आकार,  रंग - रूप  एक  सा  था  l  पर  वह  हंस - शावक  उन  सबसे  अलग  था  l  अत:  सभी  बगुले  उसका  मजाक    उड़ाया   करते ,  उसकी  हंसी  करते   और  उसका  तिरस्कार  भी  करते  थे   l   इस  व्यवहार  से  वह  बड़ा  व्यथित  होता  था  l 
  एक  बार  वह  अपने  इन  दुष्ट  बगुला  साथियों  के  साथ   उड़  रहा  था  कि  ऊपर  नील  गगन  में   उसे     अपने  सामान  रंग - रूप  और  वर्ण  वाले   पक्षी  उड़ते  दिखाई  दिए   , वाज  बगुले  का  साथ  छोड़कर अपने उन  ,   जातिलोगों   से      जा    मिला  l   हंसों  ने  भी  अपने इस   भटके  सदस्य  का  स्वगत  किया  l
 ' वह  भटका  हुआ  हंस  का  बच्चा  था  l  तब  तक  उसे  दुःखी    रहना  पड़ा   जब  तक  उसे  अपने  स्वरुप    और  शक्ति  का  ज्ञान   नहीं  हुआ  l  और  जब  वह  अपने  आपको   पहचानने लगा   तो  आकाश  में इतनी  ऊंचाई  तक  उड़ा  ,  जहाँ  सामान्य  पक्षी  नहीं   पहुँच   पाता  l  '  यह  तथ्य    हर  व्यक्ति  के   सम्बन्ध  में     लागू     होता  है    l   '

3 March 2019

WISDOM ---- भाव - श्रद्धा ही उपासना को सार्थक बनती है , कर्मकांड नहीं

महाप्रभु  चैतन्य  के  जीवन काल  की  घटना   है  ---- वे  जगन्नाथपुरी  क्षेत्र  में  प्रचार   यात्रा   पर  निकले  थे  l मंडली  में  कई  विद्वान्  भी  थे  l  वटवृक्ष  के  नीचे  एक  किसान  को   उन्होंने  तन्मयता पूर्वक  गीता  पाठ  करते  हुए  देखा   l  उसकी  आँखों  से  आंसू  टपक  रहे  थे   l  मंडली  रूककर  पाठ  सुनने  लगी  l  नितांत  अशुद्ध  उच्चारण    था  l  अल्प   शिक्षित     था,  संस्कृत  नहीं  जनता  था   l  विद्वानों  ने  उसे  टोका  तो  वह  बोला ---  " मेरे  लिए  इतना  ही  बहुत  है  की  भगवन  जो  कह  रहे  हैं  , उसे  मेरी  आत्मा  अमृत  की  तरह  पी  रही  है  l  "   उस भक्त  को  नमन  करते  हुए  चैतन्य  महाप्रभु  ने कहा --- " भक्तों  !  इस  अशिक्षित  की  भावना  सराहनीय  है   l  यही  है  वह  तत्व  जो   भक्त  की  उपासना  को  सार्थक  बनता  है  l  समर्पण  का  भाव  नियोजित  किये  बिना  सारे  पूजा  उपचार  के  क्रम  खोखले  हैं   l  "

2 March 2019

WISDOM --- मनुष्य की संकीर्ण स्वार्थपरता सामूहिक जीवन के लिए सदा घातक रही है

  तक्षशिला  के  राजा   आम्भीक  के  निमंत्रण  प र   सिकंदर  ने  भारत  पर  आक्रमण  किया  l  जहाँ  आम्भीक  जैसे  देशद्रोही  थे  वहां  अनेक  देशभक्त  राजा  भी  थे  l  इन  राजाओं  में  देश भक्ति की  भावनाएं  तो  थीं  किन्तु   एकता  की  बुद्धि  का  सर्वथा  अभाव  था   l   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने अपने  वाड्मय  ' महापुरुषों  के  अविस्मरणीय  जीवन  प्रसंग ' में  पृष्ठ  1. 35  पर  लिखा  है  ----- " सिकंदर  के  विरोधी  होने  पर  भी  वे  आपसी  विरोध  को  भुला  न  सके  l  किसी  एक  राष्ट्र  के  कर्णधारों  में   परस्पर  प्रेम  रहने  से  ही  कल्याण  की  संभावनाएं  सुरक्षित  रहा  करती  हैं  ,  फिर  भी  यदि  उनमे  किसी कारण  से  मनोमालिन्य   रहेगा   ,  तब  भी   किसी  संक्रामक  समय  में  उन्हें  आपसी  भेदभाव   मिटाकर  एक  संगठित   शक्ति  से  ही   संकट  का  सामना  करना  श्रेयस्कर  होता  है   अन्यथा  आया  हुआ  संकट    अलग - अलग  सबको  नष्ट  कर  देता  है l "
       देशद्रोही    आम्भीक  को  देखकर  अन्य  राजा  भी  देशद्रोही     बनते  जा  रहे  थे   l   जब  कोई  पापी   किसी   मर्यादा   की  रेखा  उल्लंघन  कर  उदाहरण  बन  जाता  है  ,  तब  अनेकों  को  उसका  उल्लंघन  करने  में   अधिक  संकोच  नहीं  रहता   l  
  भारत  के  प्रवेश  द्वार  पर  ,  एकमात्र  प्रहरी  के  रूप  में  महाराज  पुरु  रह  गए  थे   l  अनेक  अभागे  राजा   सिकंदर  की  सहायता  करते  हुए   उसकी  विजयों  में  अपने  लाभ  का  भाग  देखने  लगे  थे  l  
  जब  तक  पुरु  जैसे  वीर   भारत- भूमि  पर पैदा  होते  रहेंगे  ,  इसकी  गौरव  पताका  युग - युग  तक  आकाश  में  फहराती  रहेगी   l  

1 March 2019

WISDOM --- त्याग और बलिदान की सामर्थ्य

  बात    उन  दिनों  की  है  जब  वैशाली  महानगरी  में  राज्य - महोत्सव   के  कारण  उल्लास  का  वातावरण  था   l  राजा - प्रजा   सभी  विभिन्न  रंगों  में  डूबे  थे  l अचानक  महल  में   लगे  विशाल  घंटे  की   आवाज  ने  सबका  ध्यान   तोड़ा   l  राज परम्परा  के  अनुसार  घंटे  का  निरंतर  बजना  संकट  का  परिचायक  था  ,  जिसका  अर्थ   होता  था   कि  शत्रु  ने  आक्रमण  कर  दिया  l   राग - रंग  थम  गया  और  युद्ध  की  रणभेरी   गूंजने   लगी  l   शत्रु  की  विशाल  सेना  और  पूर्व   तैयारी    न  होने  से  वैशाली  के  सैनिकों  के  पैर  उखड़ने  लगे  l  वैशाली  नगर   शत्रु  सेना  के  कहर  से  चीत्कार  कर  उठा  l 
  नगर नायक  महायायन  कभी  अपनी  शूरवीरता  के  लिए  विख्यात  था  किन्तु  वृद्धावस्था  के  कारण  उसका  अपना  शरीर  भी  साथ  नहीं  दे  रहा  था  l  वह  परेशान  था  कि  क्या   हमारी  आँखों  के  सामने  ही  यह  अत्याचार  होता  रहेगा  ?   यह  सोचकर  वृद्ध  नायक  चल   पड़ा  शत्रु  सेनाध्यक्ष  से  मिलने  l  शत्रु  को  सामने  देखते  ही  वह  बोल  पड़ा  कि  -- '  इन  मासूमों  पर  अत्याचार  बंद  करो  l " 
 शत्रु  सेना नायक  ने  महायायन  के  सामने  एक  विचित्र  शर्त  रखी   कि   तुम  सामने बह  रही   नदी  में  जितनी  देर  डूबे  रहोगे  ,  हमारी  सेना  लूट- पाट  एवं  हत्या  बंद  रखेगी   l   शर्त  स्वीकार  कर  वृद्ध महायायन   तुरंत  नदी  में  कूद  पड़ा   l  वचन बद्ध  शत्रु  सेनानायक  ने   सेना  को  तब  तक  लूटमार  और  संहार  बंद   रखने   को  कहा  जब  तक  वृद्ध  का  सर  पानी  के  बाहर   न  दिखाई  न  पड़े  l
  शत्रु  सेनाध्यक्ष  और  उसकी  विशाल  सेना     प्रात:  से  शाम  तक  महायायन   के  बाहर  निकलने  की  प्रतीक्षा  करती  रही  ,  लेकिन  महायायन  पानी  में  डूबा  ही  रहा  l    आखिर  गोताखोरों  को   वृद्ध  का  पता  लगाने  को  कहा  l  लम्बी  खोजबीन  के  बाद  महायायन  का  मृत  शरीर  चट्टान  से  लिपटा  पाया  गया  l  उसने  दोनों  हाथों  से  चट्टान  को  मजबूती  से  पकड़े  ही  दम  तोड़  दिया  था  l  इस अनुपम  त्याग  और  बलिदान  को  देखकर  शत्रु  सेनानायक  का  ह्रदय  भी  द्रवित  हो  उठा  l 
  मानवता  के  इस  वृद्ध  पुजारी  के  समक्ष  अपनी  हार  स्वीकारते  हुए  उसने  सैनिकों  को  लूट  की  वस्तुएं  वापस  देने    तथा  अपने  राज्य   की  ओर  वापस  लौटने   का  आदेश  दिया   l