21 November 2020

WISDOM ------- अधर्म और अनीति का साथ देने वाले कितने भी सामर्थ्यवान , शक्तिशाली एवं प्रखर योद्धा क्यों न हों , उनका पराभव सुनिश्चित है

 जब  दुर्योधन  ने  पांडवों  को  सुई  की  नोक  बराबर  भूमि  भी  देने  से  इनकार  कर  दिया   तब  महाभारत  का  होना  निश्चित  हो  गया  l   कर्ण   के  लिए  विपरीत  समय  में  काम  आने  वाले   दुर्योधन  का  मित्रधर्म   सर्वोपरि  था  l   वो  किसी  भी  कीमत  पर   अर्जुन   को  परास्त  कर    के    अपने  मित्रधर्म  से  उऋण  होना  चाहता  था    परन्तु  ऐसा  हो  नहीं  पा  रहा  था  l  अर्जुन  के  सामने   पराजय    का  सामना  करना  पड़ता  था  l    इसलिए  इस   समस्या   पर    भीष्म  पितामह  के  मनोभाव  जानने  के  लिए   वह  उनके  पास  गया   l   कर्ण   ने  कहा ----- "  हे  पितामह  !  युद्ध  में  तो  केवल  उसी  की  जीत   होती  है   जिसके  योद्धा  युद्ध  कौशल  में  निपुण  एवं   अति  साहसी  हों  l  जिसके  पक्ष  में  आप  जैसा  सेनापति   हो , आचार्य  द्रोण    के  समान  शस्त्रवेत्ता  हो  ,  कृपाचार्य  के  समान  कूटनीतिज्ञ  हो ,  अश्वत्थामा , दुर्योधन, दु:शासन  तथा  मुझ  जैसा  धर्नुधर   हो ,  कैसे  भला   कोई  हमें  परास्त  कर  सकता  है  l  हमारे  पास  तो  तमाम  राज्यों  की  सेनाएं  हैं  ,  कृष्ण  की  ग्यारह  अक्षौहिणी   सेनाएं  भी  हमारे  साथ  हैं   l   हमें  किस  बात  की  चिंता   ,   हम  तो  अजेय  और  अपराजेय  हैं   l   पांडवों   के  पास  क्या  है  ,  कृष्ण  हैं , वे  भी  निहत्थे ,  अस्त्र -शस्त्र  न  उठाने  की  उन्होंने  प्रतिज्ञा  की  है  l   ऐसे  में  क्या  हमारी  जीत  सुनिश्चित  नहीं  है   ? "  पितामह  कुछ  देर  मौन  रहे   फिर  बोले  --- " वत्स  कर्ण  !   तुम  श्री कृष्ण  को  निहत्था  समझने  की  महान  भूल  कर  रहे  हो  l   उन्हें  समझ  पाना  मानवीय  बुद्धि  की  सीमा  से  परे  है  l   तुम्हारी  बुद्धि   उस  दिव्य  एवं   अदृश्य  तत्व  को  परख  नहीं  पा  रही  है   जो  उनको   एक  सुरक्षा  कवच  से  आच्छादित  किए   हुए  है   और  उनका  कवच  है   उनके  कृष्ण ,   उनका  धर्म   !   धर्म  की  ही  जीत  होगी  l   जहाँ  धर्म  है , वहीँ  श्रीकृष्ण  हैं   इसलिए  अर्जुन  जीतेगा  l   कौरव  अधर्म  के  साथ  खड़े  हैं  ,  अधर्म  को  पराजय   का सामना  करना  पड़ेगा  l "