22 February 2020

WISDOM ------ अपने कामों की भूल ढूंढने और सुधारने का कार्य किया जाना चाहिए

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  लिखा  है ---- ' भूलों  से  कहीं  अधिक  घातक   होते  हैं  बुरे  इरादे  l   इनके  दुष्परिणाम   ज्यादा  बुरे  व  हानिकारक  होते  हैं   l   व्यक्ति  की  नियत  में  भ्रष्टता  के  तत्व   घुस  पड़ते  हैं  l   बाद  में  ये  ही  जाने - अनजाने   ऐसे  कृत्य  कराते   हैं  ,  जिन्हे  भूलें  कह  देने  भर  से  काम  नहीं  चलता   l   दुष्ट  इरादों  का  विष   इनमे  साफ़  झलकता  है  l  l   ये  इरादे  ही  मनुष्य  के   वास्तविक  व्यक्तित्व  का  सृजन  करते  हैं  l   चिंतन  इसी  आधार  पर   दिशा  पकड़ता  है  और  गतिविधियों  का  निर्माण   इसी  प्रेरणा  से  बन  पड़ता  है   l '
  आचार्य  श्री   लिखते  हैं ----   ये  इरादे  सकारात्मक  हैं  तो  अध्यात्म  की  भाषा  में  इन्हे   श्रद्धा  या  आस्था  आदि  नाम  से  पुकारा  जाता  है   l   ईमान  या  नियत  इसी  का  नाम  है  l
  यदि  ये  अनैतिक  व  असामाजिक  हैं    तो  उनका  निराकरण  व्यक्ति  को    स्वयं  ही  करना  चाहिए  l 
जिस  प्रकार  दूसरों  का  पर्यवेक्षण  तीखी  दृष्टि  से  किया  जाता  है  ,  उसी  तरह  अपना  भी  किया  जा  सके  तो   वे   कमियां  भी  समझ  में  आती  हैं    जो   सामान्य  क्रम  में  दिखाई  ही   नहीं  पड़ती   l   आत्म समीक्षा  जरुरी  है   और  इसका  पहला  चरण  है -- --अपनी  नियत  में   मानवीय  स्तर  से  नीचे  के   जो  भी  तत्व  घुस  पड़े  हों   उन्हें  समझा  जाये   और  उन्हें  निरस्त  करने  का  दृढ़   निश्चय  किया  जाये  l