पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- काम , क्रोध , लोभ , मोह , ईर्ष्या , द्वेष हर मनुष्य की प्रकृति में बड़ी गहराई से अपनी जड़ें जमाए बैठे हैं और हर युग में उनका रूप देखने को मिलता है ll त्रेतायुग में इनका स्वरुप दुर्बल और कमजोर था लेकिन वर्तमान समय में इनका रूप अत्यंत भयावह , भीषण एवं विकृत हो चुका है l रामायण हो या महाभारत उनमे ऐसे अनेक पात्र मिल जायेंगे जिनमे ये मनोविकार आश्रय पा रहे थे ------- राजा दशरथ महाप्रतापी और धर्मपरायण राजा थे , परन्तु वे महारानी कैकेयी के सौंदर्य पर मुग्ध थे , और अपने पुत्र राम के अतिशय मोह में थे l मंथरा में ईर्ष्या का दुर्गुण अपने चरम पर था l वह सदैव भगवान राम से ईर्ष्या करती थी और भरत को अधिक महत्व देती थी l महारानी कैकेयी राम पर अधिक वात्सल्य लुटाती थीं , परन्तु क्रोध , अहंकार और कुसंग ऐसे महविष हैं जो पवित्र दिव्य प्रेम पर भी ग्रहण लगा देते हैं l सबसे अधिक घातक था --- मंथरा जैसी निकृष्ट दासी का कुसंग l इसी कुसंग ने महारानी कैकेयी के अहंकार व क्रोध को इतना भड़का दिया कि वे राजा दशरथ से राम को वनवास और भारत को राजगद्दी मांग बैठीं l आचार्य श्री लिखते हैं --- प्रकृति सत्पात्रों का चयन श्रेष्ठता और सृजन के लिए करती है l कैकेयी ने वरदान माँगा , इसी वजह से भगवान राम ने वन में रहकर रावण आदि असुरों का विनाश किया और रामराज्य की स्थापना की l आचार्य श्री कहते हैं --- जिसकी चेतना जितनी परिष्कृत होगी उसमे इन मनोविकार की जड़ें उतनी कमजोर होगी l इस युग की सबसे बड़ी समस्या यह है कि लोगों की चेतना मूर्च्छित है इसलिए ये मनोविकार और आसुरी प्रबृति का भयावह रूप सामने है l
29 December 2020
WISDOM ------
महापंडित राहुल सांकृत्यायन ईश्वर और धर्म में विश्वास नहीं करते थे l उन्होंने काशी की संस्कृत पाठशाला में शिक्षा प्राप्त की थी l देश - विदेश भ्रमण करने के पश्चात् वे अस्सीघाट स्थित अपनी पुरानी पाठशाला में अपने बचपन के एक नेत्रहीन मित्र से मिलने पहुंचे l मित्र ने उनसे पूछा ---- " दुनिया घूम आए , कोई नई बात बताओ l " राहुल सांकृत्यायन बोले ---- " नई बात यह है कि विज्ञान ने ईश्वर को मार डाला है l " उनके मित्र उनके कंधे पर हाथ रखते हुए बोले ----- " मेरा अनुभव भी सुनो l असमय मेरी आँख चली गईं और मैं बिना आँखों के काशी जैसे नगर में आया l सोचता था कि मुझ जैसे नेत्रहीन व्यक्ति का गुजारा इतने बड़े नगर में कैसे होगा l परन्तु एक रात मैंने आँखें न होते हुए भी देखा कि एक धनुर्धारी युवक मेरे कमरे में खड़ा है और मुझे निश्चिंत होने को कह रहा है l वो मेरे इष्टदेव श्रीराम थे l अब तुम मेरे इष्टदेव को नकारने का साहस न करना l " ऐसा कहते हुए उनके मित्र रो पड़े l राहुल सांकृत्यायन की आँखें भी सजल हो उठीं और वे बोले ---- " नहीं मित्र ! अब मैं तुम्हारी आस्था को कभी ठेस नहीं पहुंचाऊंगा l "