28 August 2021

WISDOM -----

   दुर्बुद्धि  का  प्रकोप     पतन  की  ओर   ले  जाता  है   l   व्यक्ति  जिस  स्तर  का  है  ,  वह    उसी  के  अनुरूप   क्षेत्र  को   अपनी  दुर्बुद्धि  की  चपेट  में  ले  लेता  है  l  दुर्बुद्धि   को  मनुष्य   अपनी  कमजोरियों  के  कारण  स्वयं  आमंत्रित  करता  है  l    ' महाभारत  '  का  यह  प्रसंग  इस  सत्य  को   स्पष्ट  करता  है   ------  ' भोगविलास , जुआखोरी , नशा  आदि  ऐसे  व्यसन  हैं   कि   उनसे  होने  वाली  बुराइयों  को  जानते  हुए  भी   लोग  उनके  चक्कर  में  आ  जाते  हैं   l   धर्मराज  युधिष्ठिर  का  राज्याभिषेक  हो     चुका    था  l  इंद्रप्रस्थ  के  वैभव  से  दुर्योधन  को  बहुत  ईर्ष्या  थी  ,  वह  उन्हें  आगे  बढ़ता  हुआ  नहीं  देख  सकता  था  , इसलिए  उसने   अपने  मामा    शकुनि  के  साथ  मिलकर  धृतराष्ट्र  को  इस  बात  के  लिए  राजी  कर  लिया  कि   वे  युधिष्ठिर  को  चौसर  खेलने  के  लिए  आमंत्रित  करें   l   उन  दिनों  क्षत्रियों  में  यह  नियम  था  कि    खेल  के  लिए  बुलावा  मिलने  पर  उसे  अस्वीकार  नहीं  किया  जा  सकता  था  l    फिर  युधिष्ठिर  को  चौसर  का  व्यसन  भी  था   l   खेल  शुरू  हुआ  , दुर्योधन  तुरंत  बोल  उठा   --- मेरी  जगह  मामा  शकुनि  खेलेंगे    लेकिन  दांव   लगाने  के  लिए  जो  धन - रत्न  आदि   चाहिए  वह   मैं     दूंगा   l   पासे   तो  शकुनि  के  इशारे  पर  चलते  थे   l   इंद्रप्रस्थ  में    अपार  वैभव  था   l   सम्राट  युधिष्ठिर  ने  दांव  लगाना  शुरू  किया  ----  पहले  रत्नों  की  बाजी  लगी ,  फिर  सोने - चाँदी   के  खजानों  की  ,  फिर  रथों  और  घोड़ों  की  ,  तीनो  दांव  हार  गए  l  युधिष्ठिर  ने   नौकर - चाकरों  को  दांव  पर  लगाया  ,  फिर  सारी   सेना  और   हाथी   - घोड़ों  की  बाजी  लगा  दी  ,  सब  हार  गए   खेल  में  युधिष्ठिर    एक - एक  कर  के     अपने  सारे  वैभव  की  बाजी  लगाते   गए  ,  यहाँ  तक  कि   अपने  देश  और  देश  की  प्रजा  को  भी  खो  बैठे   l  लेकिन  उनका   चस्का  न  छूटा   l  शकुनि  कपटी  था  , उसने   कहा  - अभी  तो  तुम्हारे  चार  वीर  भाई  हैं , उन्हें  दांव  पर  क्यों  नहीं  लगते   l  एक - एक  कर  के   युधिष्ठिर    ने  नकुल , सहदेव , भीम , अर्जुन    और  उनके  शरीर  पर  जो  वस्त्र - आभूषण  थे  सबको  दांव  पर  लगा  दिया  ,  यह  बाजी  भी  हार  गए   और  अंत  में  स्वयं  को  भी  हार  गए   l  शकुनि  ने  सभा  में  खड़े  होकर  घोषणा  की   कि   अब  पाँचों  पांडव  उसके  गुलाम  हो   चुके  हैं  l   शकुनि  बड़ा  दुष्टात्मा  था  ,  उसने  युधिष्ठिर  से  कहा  --- अभी  तुम्हारे  पास  एक  चीज  और  है  जो  तुमने  हारी  नहीं  है   और  वो  है  तुम्हारी  पत्नी   द्रोपदी  ,  तुम  उसको  दांव  पर  क्यों  नहीं  लगाते  ?  उसकी  बाजी  लगाओ  तो  अपने  आप  को  भी   छुड़ा  सकते  हो  l  "  जुए  के  नशे  में  चूर  युधिष्ठिर  के  मुँह   से  निकला  --- ' चलो , अपनी  पत्नी  द्रोपदी  की  भी  बाजी  लगाईं   l '  शकुनि  यही  चाहता  था    '  तो  यह  चला  '  कहते  हुए  उसने  पासा   फेंका   और  बोला ---- ' लो  यह  बाजी  भी  मेरी  ही  रही   l '   अब  दुर्योधन  बोला ---- ' द्रोपदी  अब  महारानी  नहीं  ,  हमारी  दासी  है  ,  उसे  सभा  में  ले  आओ -------------            विदुर  जी  ने  कहा  ----   युधिष्ठिर  स्वयं  को  हार  चुके  थे , वे  स्वयं   गुलाम  हो  गए  थे  इसलिए  उन्हें  द्रोपदी  को  दांव  पर  लगाने  का  कोई  हक  नहीं  l  '        लेकिन  जब  व्यक्ति   दूसरों  का  और  विशेष  रूप  से  अपनी  ही  कमजोरियों  का  गुलाम  हो  जाता  है   तो  उसको  आत्मविश्वास  कम    हो  जाता  है    तब   चालाक  और  छल -कपट  करने  वाले   इसका  फायदा  उठाकर  नीति   और  न्याय  विरुद्ध  कार्य  करते  हैं   l   परिणाम ---- महाभारत ,  विनाश   !