13 March 2024

WISDOM -----

   वर्तमान समय  में   इतने  साधु , संत , समाज  सुधारक ,  कथा , प्रवचन  , सत्संग  इतना  अधिक  है  लेकिन  फिर  भी   सुधार  का  प्रतिशत  लगभग  शून्य  है  l  लोग  एक  कान  से  सुनते  हैं  और  दूसरे  कान  से  निकाल  देते  हैं  , याद  भी  रखते  हैं  तो  कही  सुनाने  के  लिए  , अपनी  छाप  छोड़ने  के  लिए  l  कमी  दोनों  तरफ  ही  है  l  आचार्य श्री  कहते  हैं  ---- ' एक  नशेड़ी  अपने  जीवन  में   सैकड़ों  नशा  करने  वालों  को  अपने  साथ  जोड़  लेता  है  l  ऐसा  इसलिए  संभव  होता  है  क्योंकि  वह  स्वयं  नशा  करता  है , फिर  दूसरों  को  भी  ऐसा  करने  के  लिए  प्रेरित  करता  है ,  वह  जो  कहता  है , वैसा  ही  करता  भी  है  l  उसकी  वाणी  और  उसका  आचरण  में  एकरूपता  होने  से   उसकी   नशे  के  लिए  प्रेरित  करने  वाली  बात  में  बल  आ  जाता  है l    लेकिन  सन्मार्ग  पर  चलने  का  , सत्य  बोलने  का  ,  किसी  का  हक  न  छीनो  , किसी  को  न  सताओ  ----ऐसा  उपदेश  देने  वाले  बहुत  हैं   लेकिन  उनकी   वाणी  और  व्यवहार  में  एकरूपता  न  होने  से   समाज  में  सुधार  नहीं    होता  है  l '     संसार  में  अच्छे  लोग  भी  बहुत  हैं , जो  अपने  आचरण  से  शिक्षा  देते  हैं   लेकिन  इतने  विशाल  संसार  में  उनकी  संख्या  बहुत  कम  है  l  प्रवचन  सुनने   भी  जो  आते  हैं ,  वे  उसे  टाइम पास  और  मनोरंजन  समझते  हैं  l    एक  कथा  है  ----- एक  संत  प्रव्रज्या  पर  निकले   और  चतुर्मास  के  दिनों  में   एक  गाँव  में  ठहर  गए  l   वहां  वे  नित्य  प्रति  व्याख्यान  देते   और  उन्हें  सुनने  के  लिए  अनेकों  गांववासी  एकत्रित  होते  थे  l  एक  भक्त  ऐसा  था  , जो  नित्य  प्रति  उनकी  सभा  में  उपस्थित  होता  और   प्रवचन  भी  सुनता  था  l  एक  दिन  उसने  संत  से  कहा --- "  महाराज  !  मैं  नित्य  आपका  प्रवचन  सुनता  हूँ  ,  फिर  भी  बदल  क्यों  नहीं  पाता  हूँ  ? "    संत  ने  उससे  पूछा  --- " वत्स  !  तुम्हारा  घर  यहाँ  से  कितनी  दूर  है  ? "  उस  व्यक्ति  ने  कहा --- " करीब  दस  कोस  दूर  l "  संत  ने  फिर  प्रश्न  किया  --- " तुम  वहां  कैसे  जाते  हो  ? "   उस  व्यक्ति  ने  उत्तर  दिया --- " महाराज  !  पैदल  जाता  हूँ  l "    संत  ने  पूछा  --- "  क्या  ऐसा  संभव  है  कि   तुम  बिना  चले , यहाँ  बैठे -बैठे  अपने  गाँव  पहुँच  जाओ   l "  वह  व्यक्ति  बोला  --- "  महाराज  !   ऐसा  कैसे  संभव  है  l   यदि  घर  जाना  है  तो  उतनी  यात्रा  तो  करनी  ही  पड़ेगी  l  "   संत  बोले  ---- " पुत्र  !  यही  तुम्हारे  प्रश्न  का  उत्तर  है  l   तुम्हे  घर  का  पता ,  वहां  जाने  का  मार्ग  सब  मालूम  है  लेकिन  जब  तक  तुम  उस  मार्ग  पर  चलोगे  नहीं  , तब  तक  घर  जाना  संभव  नहीं  होगा  l  इसी  प्रकार  तुम्हारे  पास  ज्ञान  है  ,  इसे  जीवन  में  उतारे   बिना   तुम  अच्छे  इन्सान  नहीं  बन  सकते  l   यदि  तुम्हे  स्वयं  के  भीतर  परिवर्तन  का  अनुभव  करना  है   तो  उसके  लिए  सीखी  गई  बातों  को  जीवन  में  उतारने  का  प्रयत्न  करना  होगा  l