समय परिवर्तनशील है l एक समय था जब वर्ण व्यवस्था थी , यह एक प्रकार का श्रम विभाजन था , उस समय समाज के धन - संपन्न वर्ग राज कार्य में सहयोग के लिए धन देते थे , सामाजिक कार्यों में भी सहयोग देते थे l इसके पीछे उनमे लोक कल्याण का भाव था l वे जो भी दान - पुण्य करते थे वह परोपकार के लिए करते थे , शासन की नीतियों में उनका कोई हस्तक्षेप नहीं होता था l
भौतिक प्रगति के साथ धन का महत्व बढ़ता गया l जो ंजितना धनी है उसे उतना ही सम्मान मिलने लगा l महत्वाकांक्षा बढ़ती गई , धीरे - धीरे उन्होंने शासन की नीतियों में हस्तक्षेप शुरू कर दिया l अहंकार भी आ गया कि जब हम इतना सहयोग करते हैं तो नीतियां भी हमारे हित की होनी चाहिए l तभी से राजनीति व्यवसाय बन गई l इसी का परिणाम हुआ कि अमीर और अधिक अमीर होते गए l वे चाहते भी नहीं हैं कि गरीबों के जीवन में कोई सुधार हो , उनके प्रयास तो गरीबों का शोषण कर के उन्हें दीन - हीन बनाये रखने के ही हैं l इस निर्धन और शोषित वर्ग को स्वयं जागना होगा l
भौतिक प्रगति के साथ धन का महत्व बढ़ता गया l जो ंजितना धनी है उसे उतना ही सम्मान मिलने लगा l महत्वाकांक्षा बढ़ती गई , धीरे - धीरे उन्होंने शासन की नीतियों में हस्तक्षेप शुरू कर दिया l अहंकार भी आ गया कि जब हम इतना सहयोग करते हैं तो नीतियां भी हमारे हित की होनी चाहिए l तभी से राजनीति व्यवसाय बन गई l इसी का परिणाम हुआ कि अमीर और अधिक अमीर होते गए l वे चाहते भी नहीं हैं कि गरीबों के जीवन में कोई सुधार हो , उनके प्रयास तो गरीबों का शोषण कर के उन्हें दीन - हीन बनाये रखने के ही हैं l इस निर्धन और शोषित वर्ग को स्वयं जागना होगा l