27 April 2020

WISDOM ------

  समय  परिवर्तनशील  है    l   एक  समय  था   जब  वर्ण  व्यवस्था  थी  ,   यह  एक  प्रकार  का  श्रम  विभाजन  था  ,  उस  समय  समाज  के  धन - संपन्न  वर्ग     राज  कार्य  में  सहयोग  के  लिए   धन  देते  थे  ,  सामाजिक  कार्यों  में  भी  सहयोग  देते  थे   l   इसके  पीछे  उनमे  लोक कल्याण  का  भाव  था  l   वे  जो  भी  दान - पुण्य  करते  थे   वह  परोपकार  के  लिए  करते  थे  ,  शासन  की  नीतियों  में  उनका  कोई  हस्तक्षेप  नहीं  होता  था  l
   भौतिक  प्रगति  के   साथ   धन  का   महत्व     बढ़ता  गया  l   जो  ंजितना  धनी   है  उसे  उतना  ही  सम्मान   मिलने  लगा   l   महत्वाकांक्षा  बढ़ती  गई  ,  धीरे - धीरे  उन्होंने  शासन  की  नीतियों   में     हस्तक्षेप  शुरू  कर  दिया  l   अहंकार  भी  आ  गया  कि   जब  हम  इतना  सहयोग  करते  हैं   तो  नीतियां  भी   हमारे  हित    की  होनी  चाहिए  l   तभी  से  राजनीति   व्यवसाय  बन  गई  l   इसी  का  परिणाम  हुआ  कि   अमीर  और  अधिक  अमीर  होते  गए  l   वे  चाहते  भी  नहीं  हैं  कि  गरीबों  के  जीवन  में  कोई  सुधार  हो  ,  उनके  प्रयास  तो  गरीबों  का  शोषण  कर  के   उन्हें  दीन - हीन    बनाये  रखने  के  ही  हैं  l   इस  निर्धन  और  शोषित  वर्ग  को  स्वयं  जागना  होगा   l 

WISDOM ------

  महाभारत  में  विभिन्न  प्रसंगों  के  माध्यम  से     संसार  को  शिक्षण  दिया  गया  है   जो  प्रत्येक  युग  में  और  प्रत्येक  व्यक्ति  के  लिए  उपयोगी  है   l   एक  प्रसंग  है  ----   अर्जुन  को  किसी  अन्य  राजा  के  साथ  युद्ध  में  उलझकर  द्रोणाचार्य  ने  चक्रव्यूह  की  रचना  की  l   पांडव  पक्ष  में  केवल  अभिमन्यु  ही  चक्रव्यूह  भेदना   जानता    था  l   चक्रव्यूह  में  सात  दरवाजे    थे  , अत:  यह  निश्चय  किया  गया  कि   प्रथम  द्वार  में  जैसे  ही  अभिमन्यु   प्रवेश  करेगा  ,  वैसे  ही  चारों  पांडव  भी  उसके  पीछे  उसमे  प्रवेश  कर  लेंगे  l
  प्रथम  द्वार  पर  जयद्रथ  था  ,  अभिमन्यु   ने  उसे  परास्त  कर   चक्रव्यूह  में  प्रवेश  कर  लिया  l   जयद्रथ  बहुत  वीर  था  और  उसे  वरदान  भी  प्राप्त  था  कि  अर्जुन  को  छोड़कर  वह  शेष  चार  पांडवों  को  एक  साथ  पराजित  कर  सकता  है  l   अत:  उसने  चारों  पांडवों  को  द्वार  पर  ही  रोक  दिया  , अंदर  नहीं  जाने  दिया  l   अभिमन्यु  अकेला  रह  गया  ,  जहाँ  अंत  में  सात  महारथियों  ने  मिलकर  उसे  मार  दिया  l
   अर्जुन  जब  सांयकाल  युद्ध  से  लौटा   और  ये  दुःखद   समाचार  सुना    तो  उसने  मालूम  किया   कि    उसके  पुत्र  की  हत्या  का  वास्तविक  जिम्मेदार  कौन  है  l
   तब  ज्ञात  हुआ  कि   प्रथम  द्वार  पर  जयद्रथ  था   जिसकी  वजह  से  चारों  पांडव  चक्रव्यूह   प्रवेश  नहीं  कर  सके  l   तब  अर्जुन  ने  प्रतिज्ञा  की  कि  '  यदि  कल  के  युद्ध  में  सूर्यास्त   से  पहले     वह  जयद्रथ  का  वध  नहीं  कर  सका   तो  स्वयं  को  अग्नि  में  समर्पित  कर  देगा , आत्मदाह  कर  लेगा  l '
   ' जयद्रथ  वध '  प्रसंग  के  माध्यम  से   इस  बात  को   स्पष्ट  किया  गया  है  कि   आसुरी  प्रवृति  के  लोग   अपने  ऊपर  मुसीबत  आने  पर  या  मुसीबत  आने  की  संभावना  होने  पर  छुप  जाते  हैं   लेकिन   प्रतिपक्षी  को  परेशान     देखकर  ,  जन - साधारण  को  भी  मुसीबत   में  झोंककर   उन्हें  बड़ा  सुकून  मिलता  है  ,  अपनी  ख़ुशी  छुपा  नहीं  पाते  और  सामने  आ  जाते  हैं  ,  तभी  हम  उन्हें  आसानी  से  पहचान  सकते  हैं  
   आज  के  युग  में   जब  सब  तरह  के  अपराधी  जमानत  लेकर  समाज  में  घुल-मिलकर  रहते  हैं  ,  न्याय   की  प्रक्रिया  है  ,  तब  हम  आसुरी  प्रवृति  के  लोगों  को  पहचानकर  सतर्क  होकर  रह  सकते  हैं   l
             अगले    दिन   युद्ध  शुरू  हुआ   l   दुर्योधन  ने  जयद्रथ  को  ऐसे  छुपा  दिया  कि   पूरा  दिन  बीत  गया  ,  लेकिन  अर्जुन ,    जयद्रथ  को  नहीं    ढूंढ   पाया  l   सूर्यास्त  हो  गया   l  प्रतिज्ञा   के  अनुसार      अब  चिता   सजाई  जाने  लगी  ,  अर्जुन  आत्मदाह  से   पूर्व  सबसे  विदा  लेने  लगा   l   यह  सब  देखकर  दुर्योधन  आदि  कौरव  बहुत  प्रसन्न  हुए   और  जयद्रथ  से  कहने  लगे  ---  चलो  ,  अर्जुन  चिता    में  समाने  जा  रहा  है  ,  ऐसा  सुन्दर  दृश्य  फिर  देखने  को  मिले , न  मिले  l   अब  सूर्यास्त  हो  गया   l ( उस  समय  सूर्यास्त  के  बाद  युद्ध  नहीं  होता  था  )    जयद्रथ  बहुत  प्रसन्न  था  ,  दुर्योधन  आदि  के  साथ  वहां  आ  गया  जहाँ  अर्जुन  आत्मदाह  की   तैयारी    में  था  l   जयद्रथ  अपनी  ख़ुशी  रोक  नहीं  पा  रहा  था  ,  उसने  कृष्ण  से  कहा ----( कवि   के  शब्दों  में )  --- गोविन्द  अब  क्या  देर  है  ,  प्रण   का  समय  जाता  टला    l 
  शुभ  कार्य  जितना  शीघ्र  हो ,  है  नित्य  उतना  ही  भला  l 
कौरव  चाहते  थे   अर्जुन  जल्दी  से  चिता     में  समा   जाये  जिससे   वे   बहुत  ख़ुशी  मना  सकें   l
     सुनकर  जयद्रथ  का  कथन  हरि   को  हंसी  कुछ  आ  गई ,  गंभीर  श्यामल  मेघ  में  विद्दुत  छटा  सी   छा   गई  l  भगवान   कृष्ण  ने  अर्जुन  से  कहा -- हे  पार्थ  ! प्रण   पालन  करो ,  देखो  अभी  दिन  शेष  है  l "
  दूसरों  का  विनाश  देखने  की  ख़ुशी  में  जयद्रथ  सामने  आ  गया  l   अर्जुन  के  साथ  स्वयं  भगवान   थे  ,  उसकी  चेतना  जाग्रत  थी  ,  उसने  उस  पल  का  उपयोग  करते  हुए  जयद्रथ  का  वध  कर    अपना  प्रण   पूरा  किया   l