30 April 2023

WISDOM -----

  1 .  लघु -कथा ---- एक  बिच्छू  की  कछुए  से  दोस्ती  हो  गई  l  बिच्छू  बोला --- " तुम  मुझे  पार  पहुंचा  दो  , डंक  नहीं  मारूंगा  l "  कछुआ  राजी  हो  गया   और  बिच्छू  को  पीठ  पर   बैठाकर  पानी  में  तैर  चला  l  अभी  कुछ  ही  दूर  चला  था  कि  बिच्छू  ने  डंक  मार  दिया  l  कछुए  ने  पूछा --- ' यह  क्या  किया  ? "  बिच्छू  बोला --- "यह  तो  मेरा  स्वभाव  है  l " कछुए  ने  कहा --- "  अच्छा  हुआ  मैंने   अपने  को  सुरक्षित  किया  हुआ  है  ,  पर  तेरे  आततायीपन  का  दंड  तो  तुझे  मिलना  ही  चाहिए  l "  यह  कहकर   कछुए  ने  पानी  में  दुबकी  मार  ली   और  बिच्छू  पानी  में  डूबकर  मर  गया  l   ' अपने  ही  दोष  अंततः  विनाशकारी  सिद्ध  होते   हैं  l '

2 .  लघु -कथा  ---- एक  भला  खरगोश  था  l  सभी  पशुओं  की  सहायता  करता  और  मीठा  बोलता  था  l  जंगल  के  सभी  जानवर  उसके  मित्र  थे  l  एक  बार  खरगोश  बीमार  पड़ा  , उसने  आड़े  समय  के  लिए  कुछ  चारा -दाना  अपनी  झाड़ी  में  छिपा  रखा  था  l  सहानुभूति  प्रदर्शन  के  लिए  जिस  मित्र  ने  सुना  वही  दौड़ा  आया   और  आते  ही  संचित  चारे -दाने  में  मुंह   मारना    शुरू  किया  l  एक  ही  दिन  में  वह  सब  समाप्त  हो  गया  l  खरगोश  अच्छा  तो  होने  लगा  , पर  कमजोरी  में  चारा  ढूंढने  के  लिए  जा  न  सका   और  भूखों  मर  गया  l  उथली  मित्रता  और  कुपात्रों  की  सहानुभूति  सदा  हानिकारक  ही  सिद्ध  होती  है  l  सच्चे  मित्र  थोड़े  ही  हों  पर  भले  हों  , वक्त  पर  काम  आ  सकें  l  

27 April 2023

WISDOM -----

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  के  विचार और  उनके  द्वारा  लिखे  गए  ' प्रेरणाप्रद  द्रष्टान्त  '  हमें  जीवन  जीने  की  कला  सिखाते  हैं  l  आज  की  परिस्थितियों  में  जब  लोग  बड़ी  जल्दी  निराश  होकर  आत्महत्या  कर  लेते  हैं  ,  ऐसे  में  आचार्य जी  के  विचार   मनुष्यों  को  सकारात्मक  सोच  प्रदान  करते  हैं   l   आचार्य जी  लिखते  हैं ------- -----" जो  उपलब्ध  है  उसे  कम  या  घटिया  मानकर   अनेक  लोग  दुःखी   रहते  हैं  l  यदि  हम  इन  लालसाओं  पर  नियंत्रण  कर  लें और  अपना  स्वाभाव  संतोषी  बना  लें   तो  शांतिपूर्वक  रह  सकते  हैं   l  अपने  से  अधिक  सुखी  , अधिक  साधन संपन्न  लोगों  के  साथ   यदि  अपनी  तुलना  की  जाये   तो  प्रतीत  होगा  कि   सारा  अभाव  और  दारिद्रय   हमारे  ही  हिस्से  में  आया  है  l  परन्तु  यदि  उन  असंख्य  दीन -हीन  , पीड़ित , परेशान  लोगों  के  साथ  अपनी  तुलना  करें  तो  अपने  सौभाग्य  की  सराहना  करने  को  जी  चाहेगा  l  l  केवल  मात्र  द्रष्टिकोण  के   परिवर्तन  से   सुख -शांति  से  जीवन  जिया  जा  सकता  है  l  "   एक  कथा  है ----- एक  अँधा  भीख  माँगा  करता  था  l  जो  पैसे  मिल  जाते  उसी  से  अपनी  गुजर -बसर  करता  l  एक  दिन  एक  व्यक्ति  ने  उसके  हाथ  में  पांच  रूपये  का  नोट  रखा  l  उसने   उस  कागज  को  टटोला  और  समझा  कि  किसी  ने  ठिठोली  की  है   l  उसका  मन  उदास  हो  गया  और  उसने   खिन्न  मन  से  उसे  जमीन  पर  फेंक  दिया  l  एक  सज्जन  ने  उसे  वह  नोट  उठाकर  दिया  और  कहा  यह  पांच  रूपये  का  नोट  है  , तब  वह  प्रसन्न  हुआ  और  उससे  अपनी  आवश्यकता  पूरी  की   l   आचार्य जी  लिखते  हैं ---- "  ज्ञान  चक्षुओं  के  अभाव  में  हम  भी   परमात्मा  की  अपार  देन   को  देख  और  समझ  नहीं  पाते  हैं   और  सदा  यही  कहते  रहते  हैं  कि  हमारे  पास  कुछ  नहीं  है  , हम  साधनहीन  हैं  ,  पर  यदि  हम   जो  कुछ  हमें  नहीं  मिला  है , उसकी  शिकायत  करना  छोड़कर  ,  जो  मिला  है  ,  उसी  की  महत्ता  समझें  तो  मालूम  होगा  कि   जो  कुछ  मिला  हुआ  है  वह  अद्भुत  है   l "

26 April 2023

WISDOM ----

     पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " जो  कार्य  अभी  हो  सकता  है  , उसे  कल  के  लिए  न  छोड़ें  , उसे  तत्काल  करें  l     अभी  हो  सकने  वाले  कार्य  को  घंटे  भर  बाद  करने  की  मनोवृत्ति  आलस्य  की  निशानी  है  l  आलस्य  मनुष्य  का  सबसे  बड़ा  शत्रु  है  l  "    एक  लघु  कथा  है ----- ------  पत्नी  ने  पति  को  सुझाव  दिया  --- 'वर्षा  समीप  है  , अब  छत  पर  मिटटी  डाल  लेनी  चाहिए  l ' पति  थे  आलसी  ,  बोले ---- " ऐसी  क्या  जल्दी  है  , डाल  लेंगे  l  मिटटी  डालने  में  कितना  समय  लगता  है  l "  पत्नी  चुप  हो  गई  l  फिर  आकाश  में  कुछ  बदल  घिर  आए  , पत्नी  बोली --- 'देखिए , बरसात  सिर  पर  आ  गई   अब  मिटटी  डाल  लेनी  चाहिए  l '  पति  महोदय  ऊँघते  हुए  बोले --- "  बादल   तो  रोज  ही  आते  हैं  l  रात  में  ही  बादल  नहीं  बरस  पड़ेंगे  l  "  वह  दिन  भी  निकल  गया  और  मिटटी  छत  पर  नहीं  पड़ी  l  फिर  एक  दिन  एकाएक  आँधी  आई   और  अपने  साथ      बादलों  का  एक  झुण्ड  भी  बहा  लाइ  l देखते  ही  देखते  आकाश  में  काले  बादल   छा    गए  l  बिजली  चमकी  और  तेज  वर्षा  आरम्भ  गिल  कई  दिन  तक  घनघोर  वर्षा  हुई  , परिणाम  यह  हुआ  कि  पूरा  मकान  धराशाई   हो  गया  l  पति  महोदय  रोने  लगे  -- "  अब  इन  बच्चों  का  क्या  होगा  ? "  पत्नी  ने  धीरे  से  कहा --- "  वही  जो  आलसियों  के  बच्चों  का  होता  आया  है  l " 

WISDOM ----

   पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- 'प्रत्येक  छोटे  से  लेकर  बड़े  कार्यक्रम   शांत  और  संतुलित  मस्तिष्क  द्वारा  ही  पूरे  किए  जा  सकते  हैं  l  संसार  में  मनुष्य  ने  अब  तक  जो   कुछ  भी   उपलब्धियाँ  प्राप्त  की  हैं  , उनके  मूल  में   धीर -गंभीर  शांत  मस्तिष्क  ही  रहे  हैं  l  कोई  भी  साहित्यकार  , वैज्ञानिक , कलाकार -शिल्पी , यहाँ  तक  की  बढ़ई , लोहार , सफाई  करने  वाले  श्रमिक   तक  अपने  कार्य  , तब  तक  भली  भांति  नहीं  कर  सकते , जब  तक  उनकी  मन:स्थिति  शांत  न  हो   l '                            कार्ल मार्क्स  ने  अपनी  विश्वविख्यात   कृति  ' दास कैपिटल  '   एक  पैर  पर  खड़े  होकर  लिखी  , क्योंकि  उन  दिनों  उनके   नितंब  पर  फोड़ा  निकला  हुआ  था  , जिससे  वह  बैठ  नहीं  पाते  थे  l  कार्ल मार्क्स  ने  अपने  मित्र  से  एक  बार   हँसी  में  कहा  था  कि  मेरा  यह  फोड़ा  पूंजीपतियों  को  बहुत  दरद  देगा   और  उनकी  यह  बात  सच  निकली  l  

25 April 2023

WISDOM ----

    लघु कथा ---- बंदरों  का  एक  दल  आम  के  बाग़  में  निवास  करता  था  l  बन्दर  जब  भी  आम  तोड़ने  का  प्रयास  करते  तो  आम  तो  कम  हाथ  लगते  ,  पर  बाग़  के  रखवालों  के  पत्थर  ज्यादा  झेलने  पड़ते  l  तंग  आकर  बंदरों  के  सरदार  ने   एक  दिन  बंदरों  की  सभा  बुलाई   और  उसमे  घोषणा  की  कि  ' आज  से  हम  लोग   अपना  अलग  बाग़  लगाएंगे  और  उसमें  आम  के  पेड़  लगाएंगे  l  इससे  रोज -रोज  के  इस  झंझट  से  मुक्ति  मिलेगी   l  बात  बाकी  बंदरों  को  जँच  गई  l  सबने  आम  की  एक -एक  गुठली  ली  और  जमीन  में  गड्ढा  कर  के   बो  डाली  l  बंदरों  में  प्रसन्नता  की  लहर  व्याप्त  हो  गई  कि   अब  शीघ्र  ही  हर  बन्दर   आम  के  एक  पेड़  का  स्वामी  होगा  l  लेकिन  कुछ  ही  घंटे  गुजरे  थे  कि  बंदरों  ने   जमीन   खोदकर  गुठलियाँ  बाहर  निकाल  लीं  ,  ताकि  ये  देख  सकें  कि   गुठलियों  से  पेड़  निकला  या  नहीं   l  देखते  ही  देखते  सारा  बाग़   उजड़  गया  l  दूर  से  यह  द्रश्य  देखकर  संत  ने  अपने  शिष्यों  से  कहा ----- 'कर्मों  का  इच्छानुसार  फल  प्राप्त  करना  हो  तो   प्रयत्न  के  अतिरिक्त  धैर्य  की  भी  आवश्यकता  होती  है  l  अधीर  मनुष्यों  का  हाल  भी  इन  मूर्ख  वानरों  के  समान  ही  होता  है  l  हर  विकास  के  लिए  एक  समय  विशेष  अनिवार्य  है  l  '

23 April 2023

WISDOM ------

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " समाज  में  कुछ  लोग  ऐसे  होते  हैं   जो  अपने  से  संबंधित  किसी  भी  सच्चाई  को  स्वीकारना   ही  नहीं  चाहते   और  सच्चाई  को  छुपाने  के  लिए   भांति -भांति  के  आडम्बर  ओढ़ते  हैं , झूठ  बोलते  हैं  l  इस  कारण  उनके  व्यक्तित्व  के  ऊपर  इतने  नकाब  चढ़  जाते  हैं  कि   वे  अपनी  वास्तविक  पहचान  से  बहुत  दूर  हो  जाते  हैं  l  ओढ़े  गए  आडम्बर  कभी  भी  जीवन  में   सुकून   और  शांति  नहीं  देते   और  इसका  परिणाम  भी  कभी  हितकारी  नहीं  होता  l  गोस्वामी  तुलसीदास जी  ने  रामचरितमानस  में  लिखा  है  -------' उधरहिं  अंत  न  होइ   निबाहू  , कालनेमि  जिमि  रावण  राहू  l   अर्थात  जो  वेशधारी  ठग  हैं  , उन्हें  भी  अच्छा   साधु  का  वेश  बनाये  हुए  देखकर   उनके  वेश  के  प्रताप  से  जग  उन्हें  पूजता  है  ,  परन्तु  एक न  एक  दिन  उनका  भेद  खुल  जाता  है  , अंत  तक  उनका  कपट  नहीं  निभता , जैसे  कालनेमि , रावण  और  राहू  का  हाल  हुआ  l  राक्षसराज  रावण   के  कहने  पर  कालनेमि  ने   साधु  का  वेश  धारण  किया   और  जब  श्री  हनुमान जी  संजीवनी  बूटी   लाने  के    लिए  हिमालय  जा  रहे  थे  , तब  उनका  मार्ग  रोका  l  साधु वेशधारी  कालनेमि  की  राम भक्ति  से  हनुमान जी  बहुत  प्रभावित  हुए   लेकिन  जब  उन्हें  सच्चाई  का  पता  चला  कि  यह  कालनेमि  तो  राक्षस  है  , उनका  मार्ग  रोकने  के  लिए  यह  कार्य  कर  रहा  है  , तो  उन्होंने  तत्क्षण  उसका  वध  कर  दिया  l  इसी  तरह  रावण  ने  साधु  का  वेश  धारण  कर  के  और  स्वयं  को  तपस्वी   बताकर  सीताजी  का  अपहरण  किया  l  इस  कपट  का  दंड   सम्पूर्ण  राक्षस  वंश  को   अपने  प्राण  देकर  चुकाना  पड़ा  और   अंत  में   महाज्ञानी , शक्तिशाली  रावण  का  भी     इस  कपट  के  कारण  अंत  हुआ  l    यही  हाल  राहु  का  भी  हुआ  l  समुद्र  मंथन   में  जब  अमृत  निकला   और  भगवान  विश्वमोहिनी  रूप  धारण  कर  अमृत  बाँट  रहे  थे   तब  राहु  देव  रूप  धारण  कर  देवताओं  के  समूह  में  बैठ  गया   और  अमृत पान  कर  लिया  किन्तु  जैसे  ही   सूर्य  और  चन्द्र देव  ने  भगवान  को  बताया  कि  यह  तो  असुर  है   तो भगवान  ने  अपने  सुदर्शन चक्र  से   उसका  सिर  धड़  से  अलग  कर  दिया   l  तब  तक  राहु  अमृत  पी  चुका  था  इसलिए  मरा  नहीं  और  दो  भागों   में  विभाजित  -राहु  और  केतु  --नवग्रह  में  अपना  स्थान  पाया  l  आचार्य  श्री  लिखते  हैं  --- व्यक्ति  को  आडम्बर युक्त  जीवन  का  चयन  नहीं  करना  चाहिए  ,  बल्कि   सच्चाई  के  साथ  जीवन  जीना  चाहिए  l  ऐसा  जीवन  ही  व्यक्ति  को  आत्मबल  प्रदान  करता  है  l 

22 April 2023

WISDOM ----

   महाभारत  में  अनेक  रोचक  प्रसंग  हैं  ,  इनमें  एक  प्रसंग  है  ---- जरासंध  वध  ---- जरासंध  मगध  देश  का  राजा  था  , उसने  सभी  राजाओं  को  जीतकर  अपने  अधीन  कर  लिया  था  l  शिशुपाल  जैसे  शक्तिशाली  राजा  ने  भी  उसकी  आधीनता  स्वीकार  कर  ली  थी  l जरासंध   की  बेटी  से   कंस  ने  विवाह  कर  लिया  था  , कंस  का  साथ  मिल  जाने  से  वह  और  शक्तिशाली  हो  गया  था  l  स्वयं  भगवान  कृष्ण  अपने   बंधुओं  के  साथ  लगातार  तीन  वर्ष  तक  उससे  युद्ध  किया    और  हार  गए  l  जरासंध  के  भय  से  उन्हें  मथुरा  छोड़ना  पड़ा  और  द्वारका  में  दुर्ग  बनाकर  रहना  पड़ा  l    जब  पांडवों  को  खांडव प्रस्थ   मिला  यह  जंगल  था  , जिसे  पांडवों  ने   पुन:  बसाकर  इन्द्रप्रस्थ  बना  लिया  l  तब  युधिष्ठिर  को  उनके  मित्रों  ने  सलाह  दी  कि  सम्राट  पद   प्राप्त  करने  के  लिए  राजसूय  यज्ञ  करें  l  इस  संबंध  में  जब  उन्होंने  भगवान  श्रीकृष्ण  से  सलाह  ली  तब  उन्होंने  बताया  ---- जरासंध  अजेय  पराक्रमी  है  , उसने  आज  तक  पराजय  का  नाम  नहीं  जाना  l  जरासंध  का  वध  किए  बिना  राजसूय  यज्ञ  संभव  नहीं  है  l  श्रीकृष्ण   ने  पांडवों  को  बताया  कि  जरासंध  बहुत  अत्याचारी  है  , उसने  बिना  किसी  अपराध  के  अनेक  राजाओं  को  जेलखाने  में  डाल  रखा  है  l  उसका  इरादा  है  कि  जब  पूरे   सौ  राजा  पकड़े  जा  चुके  होंगे   तब  पशुओं  की  बलि  के  स्थान  पर   उन  राजाओं  का  वध  कर  के    वह  यज्ञ  का  अनुष्ठान  करेगा  l  इसलिए  ऐसे  अत्याचारी  का  अंत   आवश्यक  ही  नहीं  कर्तव्य  भी  है  l   श्रीकृष्ण , भीम  व  अर्जुन  जरासंध  की  राजधानी   पहुंचे   और  उसे   द्वन्द   युद्ध  के  लिए  ललकारा  l    उन  दिनों  कोई  युद्ध  के  लिए  ललकारे  तो  उससे  युद्ध  करना  क्षत्रिय  धर्म  था  l  जरासंध   बोला  --- कृष्ण  तुम  क्षत्रिय  नहीं  हो , ग्वाले  हो  और  अर्जुन  अभी  बालक  है  , तुम  दोनों  से  तो  मैं  नहीं  लडूंगा  ,   भीम  की  वीरता  के  किस्से  सुने  हैं  , इसलिए  मैं  भीम  से   मल्ल - युद्ध  करूँगा  l   भीम  और  जरासंध  में  भयंकर  युद्ध  हुआ  ,  बिना  विश्राम  किए  वे  तेरह  दिन  और  तेरह   रात    लगातार  लड़ते  रहे  l   भीमसेन  भी  पस्त  होने  लगे  तब  चौदहवें  दिन   भगवान  श्रीकृष्ण  ने   एक  घास  का  तिनका  उठाया  और  भीम  को  इशारों  से  समझाया   कि  घास  के  तिनके  को  बीच  से  चीरकर  दांया  हिस्सा  बांयी  ओर  और  बांया  हिस्सा  दांयी  ओर   फेंक  दो  l  भीम  इशारा  समझ  गए  और  इसी   तरह  उन्होंने  जरासंध  का  वध  कर  दिया    श्रीकृष्ण  और  भीम  व   अर्जुन  ने   उन  सभी  राजाओं  को  मुक्त  कर  दिया  , जिन्हें  जरासंध  ने  बंदी  बना  रखा  था  l  जरासंध  के  पुत्र  को  मगध  की  गद्दी  पर  पर  बिठाकर   अपनी  विजय  यात्रा  पूर्ण  की  l  

21 April 2023

WISDOM -----

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " धन  का  आकर्षण  बड़ा  जबरदस्त  है  l  जब  लोभ  सवार  होता  है  तो  मनुष्य  अँधा  हो  जाता  है   और  पाप -पुण्य  में  उसे  कुछ  भी  फर्क  नजर  नहीं  आता  l  पैसों  के  लिए  वह  बुरे  से  बुरे  कर्म  करने  पर  उतारू  हो  जाता  है   और  अंत  में  स्वयं  भी  उस  पाप  के  फल  से  नष्ट  हो  जाता  है  l ------ इसी  सत्य  को  समझाने  वाली  एक  कथा  है ---- तीन  मित्र  किसी  कार्य  वश  जा  रहे  थे  l  रात्रि  में  जो  गाँव  पड़ता  , वहां  विश्राम  कर  लेते  l  एक  गाँव  में  उन्हें  पता  चला  कि  किसी  दबंग  ने  गरीबों  की  जमीन  हड़प  ली  और  बहुत  बड़ा  सेठ  बन  गया  l   दूसरी    रात्रि  जिस  गाँव  में  रुके  वहां  पता  चला  कि  एक  व्यक्ति  ने  चोरी ,डकैती  और  लूटपाट  से  अथाह  संपदा  एकत्र  कर  ली  थी ,  उसकी  संपदा  को   लूटने    के  लिए   किसी  ने  उसकी  हत्या  कर  दी  l  एक  अन्य  गाँव  में  पहुंचे  तो  वहां   देखा  कुछ  महिलाएं  सड़क  के  किनारे  बैठी  रो  रहीं  थीं  , पूछने  पर  पता  चला   कि  समर्थ  लोगों  ने  ही  उनका  सब  लूटकर  उन्हें  बेघर  कर  दिया  l  यह  सब  देख -सुनकर  वे  तीनों  बहुत  दुःखी  हुए  और  विचार  करने  लगे   कि  ये  पाप  उत्पन्न  कहाँ  से  होता  है  ?   आखिर  इस  पाप  का  बाप  कौन  है  ?   उसे  समाप्त  कर  देने  से  फिर  पाप  उत्पन्न  नहीं  होगा  l  अब  तीनों  पाप  के  उत्पत्ति  स्थान  का , कारण  का  पता  लगाने  चल  दिए  l  रास्ते  में  उन्हें  एक  वृद्ध  पुरुष  मिला  , उससे  उन्होंने  पूछा  कि   इस  पाप  का  बाप  कौन  है  ?  वृद्ध  ने  पहाड़  की  गुफा  की  ओर   इशारा  कर  दिया  l  तीनों  भागते -भागते  उस  गुफा  तक  पहुंचे   तो  देखा  उसमे   स्वर्ण ,हीरा , मोती , जवाहरात  जगमगा  रहे  हैं  l  अब  वे  तीनों  अपना  उदेश्य  तो  भूल  गए   और  यह  संपदा  इकट्ठी  करने  में  लग  गए  l  जितना  भर  सकते  थे  उतना  भर  लिया  और  चल  पड़े  l  रास्ते  में  भूख  लगी   तो  दो  मित्र  भोजन  लेने  गए   और  तीसरे  से  कहा  --तुम  इस  कीमती  माल  की  देखभाल  करो  l  अब  तीनों  के  मन  में  लोभ , लालच  आ  गया  l  जो  दो  भोजन  लेने  गए  थे  उनमें  से  एक  ने  चालाकी  से  दूसरे  की  हत्या  कर  दी   और    भोजन  में  विष  मिला  दिया  ताकि   जो  सामान  की  देखभाल  कर  रहा  है  वह  भोजन  खाकर  मर  जाये   तो  पूरी  संपदा  उसकी  हो  जाएगी  l  इधर  इसको  भी  लालच  आ  गया   और  दरवाजे  के  पीछे  छुपकर  बैठ  गया  l  जैसे  ही  उसका  मित्र  भोजन  लेकर  आया  उसने  तलवार  से  उसकी  हत्या  कर  दी   और  बड़ा  प्रसन्न  हुआ  कि  इस  संपदा  से  अब  वह  ऐशो आराम  का  जीवन  जिएगा  l  उसे  बड़ी  भूख  लगी  थी  , उसने  सोचा  पहले  खाना  खा  लें  फिर  चलें  l  भोजन  में  विष  था  , खाते  ही  उसके  हाथ -पैर  ऐंठने  लगे  औए  वह  भी  मर  गया  l   आचार्य श्री  कहते  हैं---- 'जब  भी  लालच  के  अवसर  आएं  तो  बुद्धि  को  सतर्क  रखना  चाहिए   l  लोभ  आते  ही  पाप  की  भावनाएं  बढ़ती  हैं , उत्पन्न  होती  हैं  l  बुद्धि  काम  नहीं  करती  , वह  इस  पाप  का  भयानक  परिणाम  समझ  नहीं  पाता  l  '   

19 April 2023

WISDOM ----

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " चिन्तन  परिक्षेत्र  बंजर  हो  जाने  के  कारण  कार्य  भी  नागफनी , बबूल  जैसे  हो  रहे  हैं  l  इससे  मानवता  का  कष्ट पीड़ित  होना  स्वाभाविक  है  l   कार्य  में  श्रेष्ठता  की  अभिव्यक्ति  होना   तभी  संभव  है  ,  जब  उसके  मूल  में  चिन्तन  की  उत्कृष्टता  हो  l  "         आचार्य जी  लिखते  हैं --- " प्रत्येक  व्यक्ति  समाज  पर  अपना  भला -बुरा  प्रभाव  छोड़ता  है  ,  किन्तु  सुगंध  की  अपेक्षा  दुर्गन्ध  का   विस्तार  अधिक  होता  है  l  एक   नशेड़ी   , जुआरी  , दुर्व्यसनी  , कुकर्मी    अनेकों  संगी  साथी   बना  सकने  में  सफल  हो  जाते  हैं   लेकिन  आदर्शों  का  , श्रेष्ठता  का   अनुकरण  करने  की  क्षमता  हल्की  होती  है   l  गीता  पढ़कर   उतने  आत्मज्ञानी  नहीं  बने   , जितने  कि   दूषित  साहित्य , अश्लील  द्रश्य   , अभिनय  से  प्रभावित  होकर   कामुक  अनाचार  अपनाने  में  प्रवृत्त  हुए  l    समाज  में  छाए  हुए  अनाचार , असंतोष   और  दुष्प्रवृतियों  का   मात्र  एक  ही  कारण  है  कि   जन -साधारण  की  आत्मचेतना  मूर्च्छित  हो  गई  है  l  "

18 April 2023

WISDOM -----

 पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " जीवन  में  उतार -चढ़ाव  तो  आते  ही  रहते  हैं  l  अनुकूलता  व  प्रतिकूलताओं  से  ही  जीवन  बना  है  l  ऐसा  कभी  नहीं  हो  सकता  कि  जीवन  में  सब  कुछ  अनुकूल  हो   और  ऐसा  भी  नहीं  हो  सकता  कि  जीवन  में  सब  कुछ  प्रतिकूल  हो  l   जीवन  की  परिस्थितियां  तो  बदलती  ही  रहती  हैं   l   यदि  व्यक्ति  अपनी  मन:स्थिति   को  परिस्थितियों  के  अनुरूप  ढाल  ले   तो  वह  अनावश्यक  उलझनों   से  बच  जाता  है   और  हर  स्थिति  का  लाभ  उठा  सकता  है  l  जीवन  में  कुछ  ऐसी  भी  परिस्थितियां   भी   आती  हैं  , जिन्हें  स्वीकार  करना  पड़ता  है   इसलिए  जिनकी  सोच  सकारात्मक  है    , वे  अनावश्यक  संघर्ष  में   अपना  समय  और  शक्ति  नहीं  गंवाते  ,  बल्कि  मन:स्थिति  बदलकर   उनका  लाभ  उठाते  हैं  l  ये  गुणग्राही  होते  हैं  , उनके  लिए  हर  स्थिति  विकास  का  अवसर  है  l  "     एक  प्रसंग  है -----   एक  दिन  एक     शिष्य  ने  अपने  गुरु  से  कहा --- "  गुरुदेव  !  एक   व्यक्ति    ने   आश्रम  के  लिए  गाय  भेंट  की  है   "  गुरु  ने  कहा  --- " अच्छा  हुआ  दूध  पीने  को  मिलेगा  l "  एक   सप्ताह   बाद  शिष्य  ने  आकर  कहा ---- "गुरूजी  !  जिस  व्यक्ति  ने  गाय  दी  थी  , वह  अपनी  गाय  वापस  ले  गया  l  "  गुरु  ने  कहा --- "अच्छा  हुआ   !  गोबर  उठाने  के  झंझट  से  मुक्ति    मिलेगी  l "  बदलती  परिस्थिति  के  साथ  सकारात्मकता  बनाये  रखना  ही  जीवन  में  सफलता   का   एकमात्र   सूत्र  है  l  

17 April 2023

WISDOM -----

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " नियत  के  अनुसार   नियति  होती  है  l  नियति  कर्मों  का  परिणाम  होती  है  l  जैसा  हम  सोचते  हैं   एवं  करते  हैं ,   वैसी  ही   हमारी  नियति  होती  है  l  सतत  सत्कर्म ,  सदाचरण   एवं   सद्भाव  के  द्वारा हमारी  नियति  श्रेष्ठता  से  परिपूर्ण  हो  जाती  है  l  लेकिन  इसके  विपरीत  स्थिति  में  नियति  अत्यंत   कष्टसाध्य  बन  जाती  है  l "       महाभारत  में  पांडवों  के  साथ  तो  भगवान  श्रीकृष्ण  थे   लेकिन  कौरव  सदा  से  षड्यंत्रकारी , फरेबी , झूठे  व  अहंकारी  थे  l   उनके  जीवन  का  उदेश्य  दूसरों  को  तरह -तरह  से  परेशान  करना   और   स्वयं   को  स्थापित  करना  था l   पांडवों  के  साथ  निरंतर  छल -कपट  और  षड्यंत्र  कर  के , भरी  सभा  में   अपनी  ही   कुलवधू  महारानी  द्रोपदी  का  अपमान  कर  के   दुर्योधन  ने  स्वयं  ही  कौरव  वंश  के  विनाश  की  नियति  लिख  ली  थी   l  नियति  के  अनुरूप  कौरव  मिट  गए   और  पांडवों  को  विजय  प्राप्त  हुई  l  अनीति  और  अत्याचार  जो  करता  है  , वह  तो  डूबता  ही  है  , जो  उसके  साथ  जुड़े  होते  हैं , वह  उन  सबको  ले  डूबता  है  l   किसी  भी  जाति  या  धर्म  में  पैदा  होना  व्यक्ति  के  वश  की  बात  नहीं  है  ,  लेकिन  श्रेष्ठ  कर्मों  से  , पवित्र  भावनाओं  से   और  छल -कपट  रहित  जीवन  से  हम  अपनी  श्रेष्ठ  नियति  का  निर्माण  कर  सकते  हैं  l  

16 April 2023

WISDOM ------

   अनमोल  वचन ----- पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " महत्वाकांक्षा  की  धुरी  पर  घूमने  वाला  जीवन वृत्त  ही  नरक  है  l  महत्वाकांक्षा  का  ज्वर  जीवन  को  विषाक्त  कर  देता  है  l  जो  इस  ज्वर  से  पीड़ित  हैं  , शांति  का  संगीत   और  आत्मा  का  आनंद  भला  उनके  भाग्य  में  कहाँ  ?    महत्वाकांक्षा  यों  तो   प्रगति  के  लिए   अत्यंत   आवश्यक  है  ,  पर  वह  अनियंत्रित  होने  पर   दुःख . शोक  का   कारण  बनती  है  l " 

 आचार्य जी  लिखते  हैं --- "  जब  तक  अहंकार  जिन्दा  है  ,  आदमी  दो  कौड़ी  का  है  l   जिस  दिन  वह  मिट  जायेगा  ,   आदमी    बेशकीमती   हो  जायेगा  l   अहं  ही  है   जिसके  कारण   न  सिद्धांत , न  सेवा  , न  आदर्श  आ  पाते  हैं  l  व्यक्ति  लोक सेवा  के  क्षेत्र    में   प्रवेश  कर  के  भी  अनगढ़  बना  रहता  है  l  "

15 April 2023

WISDOM -----

   इस  धरती  पर  असुरता  का  अंत  कर  देवत्व  की  अभिवृद्धि  के  लिए  भगवान  ने  समय -समय  पर  अवतार  लिए  l  ऋषियों  की  हड्डियों  का  पर्वत  देखकर  भगवान  राम  ने  हाथ  उठाकर  पृथ्वी  को  राक्षसों  से  विहीन  करने  की  प्रतिज्ञा  की  थी  l   ऋषि  विश्वामित्र  के  यज्ञ   में  विध्न  फ़ैलाने  वाले  ताड़का , सुबाहु ,  मारीचि  आदि  असुरों  का  वध  किया  l  छोटे  भाई  सुग्रीव  के  साथ  अन्याय  करने  वाले  बालि  का  अंत  किया  l  ऋषियों  को  त्रास   देने  वाले  खर -दूषण  का  दमन  किया   और  अंत  में  अधर्मी , अत्याचारी  सत्ताधीश  रावण  का  अंत  किया  l  असुरता  का  अंत  इसलिए  भी  आवश्यक  होता  है   क्योंकि  ये  असुर  स्वयं  तो  अत्याचार  करते  ही  हैं  , इसके  साथ  वे  जनता  के  सामने   अधार्मिकता  की  विजय  के  उदाहरण  प्रस्तुत  कर   उसे  भी  कुमार्ग  पर  चलने  का  लालच  उत्पन्न  करते  हैं  l  अच्छाई  की  अपेक्षा  बुराई  का  मार्ग  सरल  है  , इसलिए  असुरता  का  साम्राज्य  तेजी  से  फैलता  है  l  रावण  का  अंत  हो  गया  , लेकिन  द्वापर  युग  में  पुन:  असुरता  प्रबल  हो  गई   l  तब  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  अवतार  लेकर   अनीति  बरतने  वाले   त्रनासुर ,  अघासुर , बकासुर , पूतना , कालिया  नाग  आदि  का  अपनी  बाल्यावस्था  में  ही  अंत  किया  फिर  बड़े  होने  पर  अत्याचारी  अन्यायी  शासक  कंस  का  अंत  किया  l  अपनी  कुशल   नीति   से  अत्याचारी  और  अहंकारी  शासकों  जरासंध , शिशुपाल  आदि  का  अंत  किया   और  अंत  में  अनीति  और  अत्याचार , अधर्म  का  अंत  करने   के  लिए  महाभारत  में  अर्जुन  के  सारथि  बने  l  अधर्म  का  अंत  और  धर्म  की  स्थापना  हुई  l  लेकिन  समस्या  समाप्त  नहीं  हुई ,   कलियुग   में  सम्पूर्ण  धरती  पर  ही  असुरता  का  बोलबाला  है  l  छल , कपट , षड्यंत्र , अनीति , भ्रष्टाचार , स्वार्थ , लालच , महत्वाकांक्षा   जैसी  बुराइयों  से   कोई  परिवार , कोई  भी  संस्था ,  यहाँ  तक  कि  संसार  में  कोई  भी  अछूता  नहीं  बचा  है  l  संभवतः  ये  धरती  टिकी  रहे , उसके  लिए  जितने  अच्छे , सच्चे  लोगों  की  जरुरत  होगी  , केवल  मात्र  उतने  ही   अच्छे -सच्चे  धरती  पर  होंगे  l  समस्या  ये  है  कि  जब  असुरता  का  साम्राज्य  इतना  व्यापक  है  तो  उसका  अंत  कैसे  हो  ?  यह  समस्या  ईश्वर  के  भी  सामने  है  कि  कहाँ  तक  अवतार  लें  ?  ये  पृथ्वीवासी  तो  सुधरते  ही  नहीं  ,  असुरता  का  अंत  होना  तो  दूर  , संख्या  बढ़ती  ही  जाती  है  l  असुरों  के  नाम  पर  कुछ  का  अंत  कर  भी  दिया  तो  क्या  ?  रावण  एक  विचार  है  , उस  विचार  का  अंत  होना  जरुरी  है  l   लोगों  के  विचार  सकारात्मक  हों , चेतना  का  परिष्कार  हो  , इसी  कार्य  के  लिए   दैवी  शक्तियों  ने  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी  को  धरती  पर  भेजा  l  उन्होंने  बताया  कि  गायत्री मन्त्र  में  ही  वह  शक्ति  है   जो  दुर्बुद्धि  का  नाश  करती  है   और  सद्बुद्धि  को  जाग्रत  करती  है  l  जब  विचार  अच्छे  होंगे , तो  कार्य  भी  सकारात्मक  होंगे  l  इसके  साथ  जरुरी  है  कि  अपने  आचरण  से  शिक्षा  दो , पहले  स्वयं  सुधरो , फिर  दूसरों  को  सुधारो  l  'अपना  सुधार  ही  संसार  की  सबसे  बड़ी  सेवा  है  l '

14 April 2023

WISDOM -----

   महाभारत  एक  ऐसा  महायुद्ध  था  जिसके  लिए  कहा  जाता  है  ---' न  भूतो  , न  भविष्यति  l '  उस  युग  में  अनीति  और  अत्याचार  अपनी  चरम सीमा  पर  था  l  महाभारत  की  यह  कथा  हमें  बताती  है  कि  अत्याचारी  कभी  अकेला  नहीं  होता  , अनेक  समर्थ  और  बुद्धिमान  लोग  सुख -वैभव  का  जीने  की  लालसा  में  उसके  साथ  होते  हैं  , उन्हीं  की   दम    पर  अत्याचार   फलता -फूलता  है  l  यदि  भीष्म पितामह , द्रोणाचार्य , कृपाचार्य    ---- दुर्योधन  का  साथ  देने  से  इनकार  कर  देते   तो  महाभारत  का  युद्ध  टल  सकता  था  ,  लेकिन  आरम्भ  से  ही  उन्होंने  दुर्योधन  की  गलत  नीतियों  का  साथ  दिया  l  ये  सब  ज्ञानी  थे  ,  धर्म , अधर्म , नीति  अनीति  का  उन्हें  ज्ञान  था   और  जानते  भी  थे   कि   पांडवों  के  विरुद्ध  दुर्योधन  जो  षड्यंत्र  रचता  है  , उनका  मौन  रहकर  समर्थन  करने  से  उनका  भी  दर्दनाक  अंत  होगा  l  सब  जानते  हुए  भी   वे  दुर्योधन  के  ही  पक्ष  में  रहे  l  कहते  हैं  कि  दुर्योधन  को  सबसे  ज्यादा  कर्ण  पर  विश्वास  था  ,  यदि  कर्ण   , दुर्योधन  का  साथ  नहीं  देता  तो  यह  युद्ध  नहीं  होता  l  लेकिन  युद्ध  होना  ' दैवीय  विधान  '  था  l  उस  समय   अनीति , अत्याचार , छल , कपट , षड्यंत्र  आदि  बुराइयाँ  राजपरिवारों  तक   सीमित  थीं  ,  लेकिन  अब  ये  जन -जन  में  व्याप्त  हैं  l  इसलिए  अब  स्थिति  भयावह  है  l स्वार्थ , लालच , महत्वाकांक्षा   की  अति  है   l  हर  व्यक्ति  सोचता  है  कि  उसकी  दुकान  चलती  रहे , संसार  से  क्या  लेना -देना  ?   लेकिन   एक ' तीसरी  आँख  '  है  ,  जिसे  हर  पल  की  खबर  है  l  ईश्वर  स्वयं  किसी  को  दंड  नहीं  देते , बस !  उसके  कर्मानुसार  उसे  सद्बुद्धि  या  दुर्बुद्धि  दे  देते  हैं   l  व्यक्ति  स्वयं  अपनी    राह   चुनता  है   और  उसके  अनुरूप  परिणाम  प्राप्त  करता  है  l 

13 April 2023

WISDOM ----

     श्रीराम  और  रावण  में   बुनियादी  अंतर   केवल  अहंकार  को  लेकर  था  l  भगवान  श्रीराम  अहंकार शून्य  थे  ,  जबकि  रावण  के  अहंकार  की  कोई  सीमा  नहीं  थी  l अहंकार  का  मतलब  है -- ' मैं '  को  प्राथमिकता  देना   और  यही  ' मैं ' रावण  के  व्यक्तित्व  का  आधार  था  l  रावण  ने  यमलोक  पर  आक्रमण  किया  l कालदंड  भी  कब्जे  में  कर  लिया  l भयवश  यम  भी  अद्रश्य  हो  गए  l  नवग्रह  भी  उसके  कब्जे  में  आ  गए  ,  तप  व  पुण्य  का  बल  उसका  साथ  दे  रहा  था   लेकिन  कोई  कितना  ही  बलशाली   क्यों  न  हो  ,  अहंकार  कितना  ही  बड़ा  क्यों  न  हो  , काल  उसे  मिटा  देता  है  l  पानी  का  बुलबुला  कितना  ही  बड़ा  हो,  फूट  जाता  है  l  अहंकारी  संवेदनहीन  होता  है   l  संसार  में  जहाँ  भी  अत्याचार , अन्याय , हिंसा , शोषण , उत्पीड़न  है  उसके   लिए  कोई  न  कोई  अहंकारी  ही  उत्तरदायी  है  l अहंकारी  न  तो  स्वयं  चैन  से  जीता  है  और  न  ही  दूसरों  को  चैन  से  जीने  देता  है  l  

12 April 2023

WISDOM ------

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- 'आसक्ति  ही  सब  दुःखों  की  जननी  है  , यहाँ  तक  कि  वही  पुन:  जन्म  लेने  को  बाध्य  करती  है  l  यह  आसक्ति  ही  मनुष्य  को  तरह -तरह  से  दुःख  देती  है   और  बंधनों  से  बाँधती  है  l  इसलिए  मनुष्य  को  चाहिए  कि  कुल , वंश , पद  तो  क्या  इस   शरीर  से  भी  आसक्ति  न  करे  l  मृत्यु  के  बाद  भी  इस  शरीर  से  मोह  नहीं  छूटता   l    अनासक्त  रहकर  कर्तव्यपालन  करे  l  "  एक  कथा  है  -------  एक  सेठ जी  थे  l  बहुत  धर्मात्मा  थे   लेकिन  उन्हें  अपनी  संपदा  से  और  पुत्र  से  बहुत  मोह  था  l   संतों  का  उनके  यहाँ   सत्संग  होता  था l  संतों  ने  उन्हें  समझाया  कि  अति  का  मोह  अच्छा  नहीं  होता  लेकिन  सेठजी  विवश  थे  l  उन्हें  मालूम  था  कि  इस  मोह  के  कारण  और  कुछ  दुष्कर्मों  के  परिणामस्वरुप   उन्हें  अगले  जन्म  में  बन्दर  का  रूप  धारण  करना  पड़ेगा  l   उन्होंने  अपने  प्रिय  पुत्र  से  कहा --- " देखो , मृत्यु  के  बाद  मैं  बन्दर  के  रूप  में  जन्म  लूँगा   और  जंगल  में  एक  बरगद  के  पेड़  पर   बैठा  रहूँगा  l  तुम  मुझे  गोली  से  मार  देना  तो  मेरी  मुक्ति  हो  जाएगी  l  "  पिता  की  मृत्यु  के  बाद  पुत्र  एक  पंडित  को  लेकर  जंगल  पहुंचा   तो  देखा  कि  एक एक  बंदरिया  अपने  बच्चे  को  सीने  से  चिपकाए   बैठी  हुई  है  l   उसने  बंदूक   चलाई  तो  बंदरिया  तो  डर  के   कारण  बेहोश  हो  गई   और  बच्चा  कूदकर  ऊँची  डाल  पर  चढ़  गया  l  बहुत  प्रयत्न  करने  के  बाद  भी  वह  उसे  पा  नहीं  सका  l  साथ  में  जो  पंडित जी  थे  उन्होंने  कहा --- " इस  सेठ  को  अब  इस  बन्दर  शरीर  से  मोह  हो  गया  है  ,  चलो  अब  वापस  चलो  , अब  वह  मरना  ही  नहीं  चाहता  l  शरीर  चाहे  बन्दर  का  हो  या  कीड़े  का , कोई  मरना  नहीं  चाहता  l  ये  मोह  है ,  जो  मरकर  भी  नहीं  छूटता  l  "

10 April 2023

WISDOM ----

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ----" इस  समय  का  सबसे  बड़ा  दुर्भाग्य  यह  है  कि   इस  समय  सभी  वर्णों  ने  अपनी -अपनी  गरिमा  को  भुला  दिया  है  l  इस  समय  केवल  एक  ही  वर्ण  रह  गया  है   वह  है  ---व्यापारी  l   केवल  एक  ही  बात  सबके  दिमाग  में  आती  है   कि  पैसा  कैसे  कमाया   जा  सकता  है  ?  डॉक्टर , इंजीनियर , कलाकार , शिक्षक , जन-प्रतिनिधि   आदि  सब  अपना  कर्तव्य  भूलकर   केवल  धन  के  पीछे  लगे  हैं  l  आजकल  सारा  व्यवहार  पैसे  से  ही  चल  रहा  है  l  "        ऐसी  विचारधारा  का  सबसे  बड़ा  नुकसान  यह  हुआ  है  कि  व्यक्ति  हो  या  राष्ट्र  सब  कर्ज  में  लद  गए  हैं   और  इस  कर्ज  ने , उधारी  ने  सबका  सुख -चैन  छीन  लिया  है  l  इसका  कारण  यही  है  कि  व्यक्ति  अध्यात्म  से  दूर  है  और  भौतिक  सुख -सुविधाओं  के  पीछे  भाग  रहा  है   और  तृष्णा  का  कोई  अंत  नहीं  है   इसलिए  समस्याओं  का  और  तनाव  का  भी  अंत  नहीं  है  l   आज  व्यक्ति  धार्मिक  होने  का  ढोंग  तो  बहुत  करता  है  लेकिन  ईश्वर  के  बताए  मार्ग  पर  नहीं  चलता   l  श्री  हनुमान जी  का  चरित्र  हमें  हमें  प्रेरणा  देता  है  ------ श्री  हनुमान जी  के  संबंध  में   भगवान  राम  ने  कहा  था  कि   समाज  के  सभी  वर्णों ---ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य  और  शूद्र  चारों  का  रूप  हनुमान जी  में  दिखाई  देता  है   अर्थात  हनुमान जी  सभी  के  हैं  l  श्री  हनुमान जी  ने  प्रभु  श्रीराम  से  स्वयं  यह  जानना  चाहा  कि  ' आपने  मुझे  ब्राह्मण  भी  कहा , क्षत्रिय  भी  कहा   लेकिन  वैश्य  क्यों  कहा  ?  आपको  मुझमें  ऐसे  क्या   वणिक   गुण  दिखाई  पड़े  ?  "      तब  श्रीराम  जी  ने  उनसे  कहा --- " प्रिय  हनुमान  ! वैश्य  दूसरों  पर  कर्जा  चढ़ा  देता  है  ,  तुमने   मेरी  इतनी  सेवा  कर  दी  है   कि    इसे  चुकाना  मेरे  लिए  आसान  बात  नहीं   l  "  इसका  अभिप्राय  यही  है  कि   अपनी  असीमित  इच्छाओं  के  कारण   किसी  व्यक्ति  या  राष्ट्र   के  ऋणी   होकर , उनके  आगे  सिर  झुका  कर  चलने  से  तो  बेहतर  है  कि  अपनी  आवश्यकताओं  को   सीमित  करे   और  सत्कर्म  करे ,  सन्मार्ग  पर  चले  ताकि  दैवी  शक्तियां  भी   हमें  अनुदान  देने  को  विवश  हो  जाएँ   जैसे  हनुमान जी  ने  निष्काम  सेवा  से  भगवान  को  भी  ऋणी  बना  दिया  l  

9 April 2023

WISDOM -----

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " किसी  को  ईश्वर  संपदा  , विभूति  अथवा  सामर्थ्य  देता  है   तो  निश्चित  रूप  से   उसके  साथ  कोई  न  कोई   सद्प्रयोजन  जुड़ा  होता  है  l  हमें  यह  देखना  चाहिए  कि  उसका  लाभ  गलत  व्यक्ति  तो  नहीं  उठा  रहे  हैं  l  नहीं  तो  ये   अच्छाइयाँ   व्यर्थ  चली  जाएँगी   l  "  श्री  हनुमान जी  के  चरित्र  से  हमें  यही    सीख    मिलती  है   कि   सद्प्रयोजनों  के  लिए , अत्याचार  व  अन्याय  के  अंत  के  लिए  जब   अपनी  शक्ति  और  विभूतियों  का  सदुपयोग  किया  जाता  है   , तब  असंभव  भी  संभव  हो  जाता  है   l  श्री  हनुमान जी   भगवान  श्रीराम  के  प्रिय  भक्त  और  उनके  सबसे  बड़े  सेवक  हैं  l  भगवान  के  कार्य  को  पूरा  करना  ही  उनका  लक्ष्य  था  l  अत्याचारी , अन्यायी   कितना  भी  शक्ति संपन्न  क्यों  न  हो , उन्होंने  उसका  साथ  नहीं  दिया  ,  उन्होंने  बाली  को  छोड़कर  सुग्रीव  का  साथ  दिया  l  जब  समुद्र  को  पार  कर  श्री  हनुमान जी  लंका  पहुंचे  , तो  लंका  के  द्वार  पर   लंका  की  रक्षा  करने  वाली  लंकिनी  नामक  राक्षसी  मिली  , उसने   उन्हें  रोकने  का  प्रयास  किया  l  श्री  हनुमान जी  ने  देखा  कि  यह  लंकिनी  अत्याचारी  और  अन्यायी  रावण  की  सेवा  में  है  , जिसने  छल  से  माता  सीता  का  हरण  किया  है  ,  एक  गलत  व्यवस्था  की  रक्षा  कर  रही  है   इसलिए  उस  पर  प्रहार  करना  चाहिए  , तब  उन्होंने  मुक्का  मारकर  लंकिनी  को   घायल  कर  दिया      l                                                            

8 April 2023

WISDOM -----

     विज्ञान   के  चमत्कारों  ने  इस  युग  को  वैज्ञानिक  युग   का  दर्जा  दे  दिया   लेकिन  इससे  भी  अधिक  उन्नत  दशा  में  हम  महाभारत काल  में  थे   l  यह  जरुरी  है  कि  हम   अपने  प्राचीन  ज्ञान -विज्ञान    को  बार -बार  याद  करें  l  अतीत  का  गौरव   किसी  भी  देश  के  नागरिकों  के  स्वाभिमान  को  जगाने  और  उसे  मजबूत  बनाने  में  सहायक  होता  है  l  आज  वैज्ञानिक  जिस  ब्लैक  होल  की  बात  करते  हैं  ,  हमारे  महान  ऋषि  उससे  पहले  से  ही  परिचित  थे  l ------- महाभारत  के  वन  पर्व  के  अंतर्गत   तीर्थयात्रा  पर्व  के  एक  सौ  बत्तीसवें  अध्याय  में  कहोड़  मुनि  और  अष्टावक्र  की  कथा  आती  है  l  शास्त्रार्थ  में  पराजित  मुनि  कहोड़  को  जल  समाधि   दे  दी  गई  थी  l  बाद  में  मुनि  के  पुत्र  अष्टावक्र  ने   अपने  पिता  के  अपराधी   पण्डित  वन्दी  को  पराजित  कर  उसे  भी  समुद्र  में   डुबोने  की  सजा  दी  ,  तो  वरुण  पुत्र  वन्दी  ने   क्षमायाचना  सहित  कहा  कि  पण्डितों  को  जान  से  मारने  का   मेरा  तनिक  भी  इरादा  नहीं  है  l  वस्तुतः  मेरे  पिता  वरुण  के  राज्य  में   विशाल  यज्ञ   हो  रहा  है  l  यहाँ  से  विद्वान्  पण्डितों  को  चुन -चुनकर  मैं  वहीँ  भेज  रहा  था  l  शास्त्रार्थ  में  में  हराकर  जल  में  डुबोना   तो  एक  निमित्त  मात्र  था  l  अब  यज्ञ   समाप्ति  पर  है   और  सभी  ब्राह्मण  लौटने  वाले  हैं  l  कुछ  समय  पश्चात्  सभी  ऋषिगण  सामने  से  आते  दिखाई  पड़े  ,  इनमे  ऋषि  कहोड़  भी  थे  l    यह  समुद्र  में  ब्लैक होल  ही  था  , जिसमे  से  ऋषियों  को  वरुण  लोक  भेजा  गया  l  उस  समय  के  ऋषि  कोई  रहस्यमय  विद्या  अवश्य  जानते  थे   , जिसकी  मदद  से  वे  पृथ्वी लोक  पर  वापस  आ  गए   l    उस  समय  हमारा  ज्ञान -विज्ञानं  चरम उत्कर्ष  पर  था   l  युगों  की  गुलामी , आपसी  फूट  , जाति  और  धर्म  के  नाम  पर  मतभेद  , विदेशी  आक्रमण   में  उलझकर   लोग  इस  वैभव  को  भूल  गए   l  इस  वैभव  को  पुन:  प्राप्त  करने  के  लिए  परस्पर  एकता  और  स्वाभिमान  जरुरी  है  l  

7 April 2023

WISDOM -----

   सुकरात  महान  दार्शनिक  थे  , उन्होंने  अपने  आचरण  द्वारा  ही  शिष्यों  को  ज्ञान  दिया  l  उन्होंने  अपना  स्वयं    के   उदाहरण   से  शिष्यों  को  समझाया  कि  ज्योतिष  का  आकृति  विज्ञानं   हमारे  चेहरे  की  आकृति  को  देखकर  जो  दुर्गुण  बताता  है  ,  उन  दुर्गुणों  पर   विवेक  के  जागरण  से   विजय  संभव  है  , सद्बुद्धि  के  जागरण  से  गुण , कर्म  और  स्वभाव  में   आमूलचूल  परिवर्तन   कर  उन  दुर्गुणों  पर  अंकुश  रखा  जा  सकता  है  l --------  एक  बार  सुकरात  अपने  शिष्यों  के  साथ  गंभीर  विषयों  पर  चर्चा  कर  रहे  थे  , उस  समय  एक  ज्योतिषी  आया  और  उसने  कहा  मैं   किसी  के   चेहरे  की  आकृति  देखकर   उस  व्यक्ति  के  स्वाभाव  और  चरित्र  के  बारे  में  बता  सकता  हूँ   l  आप  मुझे  एक  अवसर  प्रदान  करो  l  "    सुकरात  स्वयं  कहते  थे  कि  वे  बदसूरत  हैं  , उन्होंने  अपने  शिष्यों  से  कहा --- "  तुम  सभी  इस  ज्योतिषी  से   मेरी  आकृति  का  सत्य  सुन  लो  l "   कुछ  गंभीर  होकर  वे  कहने  लगे  --" अपनी  आकृति  का  रहस्य  बाद  में  मैं  तुम्हे  बताऊंगा  l "    सुकरात  ने  ज्योतिषी  को  अनुमति  दी  कि  वह  उनकी   चेहरे  की  आकृति  का   परीक्षण  करे  l    ज्योतिषी  कहने  लगा ---- " इनके  नथुनों  की  बनावट  बता  रही  है  कि  इस  व्यक्ति  में  क्रोध  की  भावना  प्रबल  है  l  इसके  माथे  और  सिर  की  आकृति  के  कारण  यह  निश्चित  रूप  से  लालची  होगा  l  "  अपने  गुरु  के  बारे  में  अपमानजनक  टिप्पणी  सुनकर  शिष्य  बहुत  नाराज  होने  लगे  l  सुकरात  ने  शिष्यों  को  रोककर  अपनी  बात  आगे  बढ़ाने  को  कहा  l   ज्योतिषी  कहने  लगा --- "इसकी  ठोड़ी  की  रचना  कहती  है   कि  यह  सनकी  है  l  इसके  होठों  और  दांत  की  बनावट  के  अनुसार  यह  व्यक्ति  सदैव  देशद्रोह  करने  के  लिए  प्रेरित  रहता  है  l  "  सुकरात  ने  ज्योतिष  विद्या  के  आधार  पर  स्वयं  के  संबंध  में  लगाये  गए  तथ्यों  को  बड़े  ध्यानपूर्वक  सुना   और  अंत  में   ज्योतिषी  की  प्रशंसा  कर   उसे  इनाम  देकर  विदा  किया   l सुकरात  के   ज्योतिषी  के  प्रति  इस  व्यवहार  को  देखकर   व्शिश्य  भौंचक्के  रह  गए  l  शिष्यों  की  उलझन  को  सुलझाते  हुए  सुकरात  ने  कहा ---- "  यथार्थ  को  छिपाना  ठीक  नहीं  l  ज्योतिषी  ने  मेरे मेरे  संबंध  में  जो  कुछ  बताया  ,  वे  सभी  दुर्गुण  मुझमे  हैं   l  यही  मेरी  स्थूल  आकृति  का  सत्य  है  ,  किन्तु  उस  ज्योतिषी  से  एक  भूल  अवश्य  हुई ,  वह  है  कि   उसने  मेरी  आत्मिक  ज्ञान  की  शक्ति   पर  जरा  भी  गौर  नहीं  किया  l    उस  ज्ञान  की  मदद  से   मैं   अपने  सद् विवेक  को  जाग्रत  कर   अपने  समस्त   दुर्गुणों  पर  अंकुश  लगाए  रखता  हूँ  l "    सद्बुद्धि  ही  सब  कार्यों  में  प्रकाशित  है  l  सद्बुद्धि  की  जरुरत  हर  युग  में  है   l  गायत्री  मन्त्र  के  माध्यम  से  हम  ईश्वर  से  सद्बुद्धि  के  लिए  प्रार्थना  कर    सद्बुद्धि  और  सद विवेक  को  जाग्रत  कर  सुख -चैन  का  जीवन  जी  सकते  हैं  l  

6 April 2023

WISDOM -----

    पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- "एक -एक  कदम  चलकर  ही  हम  लक्ष्य  को  प्राप्त  कर  सकते  हैं  l  साथ  ही  लक्ष्य  तक  पहुँचने  के  लिए  जितना  महत्व   प्रयास  व  श्रम  का  है  , उतना  ही  महत्त्व   विश्राम  का  भी  है  l  विश्राम  करने  से  हमें  मार्ग  की  थकान  से   राहत   मिलती  है   और  आगे  बढ़ने  के  लिए   ऊर्जा  भी  मिलती  है  l  अति  उत्साह  और  लालच  का  परिणाम  नुकसान दायक   हो  सकता  है  l  इसलिए  मंजिल  तक  पहुँचने  के  लिए   उत्साह  तो  बनाये  रखना  चाहिए  ,  लेकिन  अति  उत्साह  में  अपना  नियंत्रण  नहीं  खोना  चाहिए  l  "------------  पंचतंत्र  की  एक  कहानी  है ---- एक  जंगल  में  दो  पक्षी  रहते  थे  l  उस  जंगल  के  एक  छोर  पर  एक  वृक्ष  था  , जिसमें  वर्ष  में  एक  बार  स्वादिष्ट  फल  लगते  थे  l  जब  फलों  का  मौसम  आया  तो  उन  दोनों  पक्षियों  ने  वहां  जाने  की  योजना  बनाई  l  l  पहले  पक्षी  ने  दूसरे  से  कहा --- " वह  वृक्ष  यहाँ  से  बहुत  दूर  है   इसलिए  मैं  तो  वहां  आराम  से  पहुँच  जाऊँगा  l  अभी  फलों  का  मौसम  दो  माह  रहेगा  l "  दूसरा  पक्षी  अति उत्साहित  था  , कहने  लगा ---" नहीं  मित्र  ! मुझसे  तो  रहा  नहीं  जा  रहा  है  l  उन  स्वादिष्ट  फलों  के  बारे  में  सोचकर  ही  मेरे  मुँह  में  पानी  आ  रहा  है  l  इसलिए  मैं  तो  एक  ही  उड़ान  में  वहां  पहुंचकर  मीठे  फल  खा  लेना  चाहता  हूँ  l "  दूसरे  दिन  दोनों  पक्षी  अपने  घोंसले  से  निकलकर  उस  वृक्ष  की  ओर  उड़  चले  l  कुछ  दूर  जाने  पर  पहले  पक्षी  को  जब  थकान  होने  लगी  तो  वह  एक  पेड़  की  टहनी  पर   ठहर  गया   लेकिन  दूसरा  पक्षी  थकान  के  बावजूद  भी   रुका  नहीं ,  अति उत्साह  में   उड़ता  गया  l  अब  उसे  दूर  से  ही  फलों  का  वृक्ष   दिखाई  देने  लगा  , मीठे  फलों  की  सुगंध  भी  आ  रही  थी  l  वह  बुरी  तरह  थक  भी   चुका  था  ,  उसके  पंख  लड़खड़ाये   और  वह  आसमान  से  जमीन  पर  आ  गिरा  l  उसके  पंख  बिखर  गए   और  वह  उन  फलों  तक  कभी  नहीं  पहुँच  सका  l    लेकिन  पहला  पहला  पक्षी  जो  धैर्य  के  साथ   कुछ  देर  विश्राम  कर   उड़  रहा  था  , वह  फलों  तक  आराम  से  पहुँच  गया   और  उसने  जी  भरकर  स्वादिष्ट  फल  खाए  l    आचार्य जी  कहते  हैं  जैसे  एक -एक  सीढ़ी  चढ़कर  ही  हम  मंजिल  तक  पहुँचते  हैं  ,  अति  शीघ्रता  में   कभी -कभी  पाँव  फिसलने  और  गिरने  का  डर  रहता  है  , सावधानी  जरुरी  है  l  

5 April 2023

WISDOM ----

  कौए  ने  विद्वान्  हंस  से  प्रश्न  किया --- " शास्त्रों  में  सत्संग  की   इतनी  महिमा  क्यों  कही  गई  है  ?  "  हंस  ने  उत्तर  दिया ---- " संग  जिसके  साथ  का  होता  है  ,  उसके  जैसे  गुण  संग  करने  वाले  को  प्राप्त  होते  हैं  l  गरम  लोहे  पर  पड़ने  से   जल  का  निशान  नहीं  पड़ता  , परन्तु  वही  जल  कमल  के  पत्ते  पर  पड़ने  से   मोती  सा  चमकने  लगता  है    और  वही  जल  स्वाति  नक्षत्र  में  सीप  के  मुंह  में  पड़  जाने  से  मोती  बन  जाता  है  ,  कोई  केले  में  गिरी  तो  कपूर  बन  गई  l  ठीक  ऐसे  ही  संसर्ग  जैसा  हो  ,  प्राणी  वैसे  ही  उत्तम , माध्यम   अथवा  अधम  गुण  प्राप्त  करता  है   l  "

WISDOM -----

   गोस्वामी  तुलसीदास जी  ने   कहा  है ---- "प्रशंसा  केवल  अच्छाई  की  ही  हो  ,  यह  जरुरी  नहीं  , बुराई  की  भी  प्रशंसा  होती  है  l  जैसे  अमृत  की  प्रशंसा  है  कि   थोड़ी  सी   मात्रा    में  होते  हुए  भी  वह  कितनी  शीघ्रता  से  जीवन  को  बचा  सकता  है   और  विष  की  प्रशंसा  यह  है  कि   विष  की  छोटी  सी  बूंद  भी  कितने  हजारों  को  क्षण  भर  में  मृत्यु  दे  सकती  है  l  "    पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- ' प्रशंसा   मधु  (शहद )  ने  सद्रश  है  ,  यदि  इसमें  व्यक्ति  की  आसक्ति  हो  जाये   तो  व्यक्ति  भी   मक्खी  की  तरह  इसमें  फँसकर   अपना  सब  कुछ  गँवा  देता  है   l  अर्थात  यदि  प्रशंसा  सुनकर   व्यक्ति  का  अहंकार  प्रबल  हो  जाये  ,  तो  धीरे -धीरे   उस  अहंकारी  व्यक्ति  के  पास   वास्तव  में  प्रशंसा  के  करने  योग्य   कुछ  बच  नहीं  पाता  ,  क्योंकि  अहंकार  रूपी  दुर्गुण   उसके  समस्त  गुणों  को   आवृत   कर  लेता  है  l  प्रशंसा  का  एक  सकारात्मक  पक्ष  भी  है  कि  यदि  व्यक्ति  को  अपनी  प्रशंसा   में  अपने  सद्गुण  नजर  आने  लगे   तो  वह  स्वयं  को  सुधारने  में  लग  जाता  है  l  "  

4 April 2023

WISDOM -----

   ग्रीस  का  राजा   प्रसिद्ध   दार्शनिक  सुकरात  से  मिलने  पहुंचा  l  उसने  उनसे  प्रश्न  किया ---- " कृपया  ये  बताएं  कि  संसार  में  इतनी  असमानताएं  हैं  , हर  जगह  विसंगतियां  हैं  , इनका  निस्तारण  कैसे  हो  सकता  है  ? "  सुकरात  ने  उत्तर  दिया ---- " राजन  !  दुनिया  भर  की  असमानता  हटाने  की   आवश्यकता  क्या  है   ?  यदि  हम  संसार  के  सारे  पर्वत  समतल  कर  दें   तो  पर्वतों  पर  रहने  वाले  प्राणी  कहाँ  रहेंगे  और  यदि  संसार  के  सारे  समुद्र   और  खाइयाँ  पाट  दी  जाएँ   तो  मछलियाँ  कहाँ  रहेंगी?  समुद्र  और  जल  में  रहने  वाले  अन्य  प्राणी  कहाँ  रहेंगे   ?  इसलिए  यह  सोचने  के  बजाय  कि  संसार  की  सारी  असमानता  हटा  दी  जाये  ,  तुम  अपने  मन  से  इस   भेदभाव  को  हटाने  का  प्रयत्न  करो  ,  तो  तुम्हे  सारी  विसंगतियों  में  भी  समरसता  दिखाई  पड़ने  लगेगी  l  सुखी  जीवन  का  यही  मार्ग  है  l  "                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                            

WISDOM -----

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- "भगवान  का  हमारे  साथ  होना  एक  ऐसा  विश्वास  है  , जो  हमें  कठिन  पलों  में  जबरदस्त  संबल  देता  है  , सकारात्मकता  से  जोड़ता  है  ,  जीवन  को  आशा  भरी  नजरों  से  देखने   और  इन  जटिल  पलों  में  भी  बेहतर  करने  के  लिए  प्रेरित  करता  है  l " --------- तपस्वी  से  राहगीर  ने  पूछा ---- " आप  इस  बियावान  में  अकेले  रहते  हैं  , आपको  भय  नहीं  लगता   ? "  तपस्वी  ने  उत्तर  दिया  -- " जो  श्रेष्ठ  विचारों   से  घिरें  हैं  ,  अपने  लक्ष्य  के  प्रति  एकाग्र  हैं  और  ईश्वर  के  चिन्तन  में  निमग्न  हैं  ,  वे  भला  कब  और  कैसे  एकाकी  हो  सकते  हैं  ?  उनके  साथ  उनके  प्रभु  परमेश्वर  सदा  ही  रहते  हैं  l  "

2 April 2023

WISDOM -----

   लघु -कथा --- एक  राजा  के  राज्य  में  एक  नदी  बहती  थी  l  जो  आगे  चलकर  दूसरे  राजा  के  राज्य  में  जाती  थी  l  राजा  ने  कई  जगह  बाँध  बनवा  रखे  थे   ताकि  पानी  खेतों  में  पहुँचता  रहे  , फिर  भी  अगले  राजा  के  राज्य  में   भी  नदी  का  पानी  पहुँचता  ही  था  l  पहला  राजा  बड़ा  ईर्ष्यालु  था  l  उसने  हुकुम  दिया  कि   अपनी  नदी  का  एक  बूंद  पानी  भी   पड़ोसी  राज्य  में   न  जाने  पाए  l  इसके  लिए  उसने  ऊँचे -ऊँचे  बाँध  बनवा  दिए  l  इस  प्रकार  दूसरे  राज्य  में   सूखे  की  स्थिति  हो  गई   और  पहले  राजा  के  राज्य  में   रुका  हुआ  पानी  इतना  अधिक  जमा  हो  गया   जिससे  सारी  जमीन  डूब  गई   और  लोगों  के  मकान  भी  बैठ  गए  l  जो  दूसरों  का  बुरा  चाहता  है  उसका  बुरा  पहले  होता  है  l 

1 April 2023

WISDOM -----

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---' सच्ची  लगन  और  एक  निष्ठा  के  साथ  विवेकपूर्ण  प्रयत्न  करने  से  ही  सफलता  प्राप्त  होती  है  l  परिश्रम  और  प्रयत्न  से  मनुष्य  के  भीतर  छिपी  हुई   अनेकानेक  शक्तियां   और  योग्यताएं  प्रस्फुटित  होती  हैं  , फिर  उनके  द्वारा  वह  संपदाएँ  प्राप्त  हो  जाती  हैं   जो  कल्प वृक्ष  द्वारा  प्राप्त  होनी  चाहिए  l  जो  अपनी  मदद   आप   करता  है  , परमात्मा  भी  उसकी  मदद  करता  है  l  " -----  एक  नन्हा  बीज  अपने  संकल्प  के  साथ  धरती  की  गोद  में  गिरा  , तभी  प्रकृति  ने  उसके  संकल्प  की  परीक्षा  लेनी  शुरू  की  l  धरती  ने  उस  पर  अपना   भार   बढाया   l  तभी  कहीं  से  बीज   को  जल  की  एक  बूंद   मिली   और  बीज  फूट  पड़ा   और  अंकुर  में  बदल  गया  l  धीरे -धीरे  उस  अंकुर  में  से  तना  निकला  l  उस  तने  की  परीक्षा  के  लिए  वायुदेव  ने   भयंकर  उपक्रम  किया  , जिसमें  बड़े -बड़े  वृक्ष  धराशायी  हो  गए  , लेकिन  वह  पौधा  विनम्रता  के  साथ   इधर -उधर  झुकता  रहा   और  आंधी  उसका  कुछ  न  बिगाड़  सकी  l  अब  इस  बार  उसका  सामना  उपवन  में  फैली  खरपतवार  से  हुआ  l  उसने  उसे   चारों  ओर  से  घेर  लिया  , पर  माली   पौधे  के  संकल्प  से  बहुत  प्रभावित  हुआ  l  उसने  पौधे  के  चारों  ओर  फैली  झाड़ियाँ  काट  दीं  l  वह  पौधा  संकल्प  के    साथ   आगे  बढ़ता  हुआ  वृक्ष  बन  गया   l  गुरु  ने  अपने  शिष्यों  को  समझाते  हुए  कहा --- 'जो  बीज  की  भांति  स्वयं  को  गलाना  जानता  है , बाधाओं  से  टकराना   जानता  है  , प्रतिघातों  से  जो  विचलित  नहीं  होता  , तप -तितिक्षा  से  जो     कतराता   नहीं  ,  उसी  का  जीवन  सुरभित , प्रस्फुटित  और  विकसित  होता  है  l  '