6 November 2020

WISDOM -----

   कहते  हैं   विधाता  के  पास  हमारे  दो  घड़े  होते  हैं --- एक  पुण्य  का  और  दूसरा  पाप  का  l   हम  निष्काम  भाव  से  जो  पुण्य  कर्म  करते  हैं  तो  पुण्य  का  घड़ा  भरता  जाता  है  l    जब   मनुष्य   पाप  कर्म  बहुत  करता  है   तो  उसके  पुण्य  के  घड़े  से   उन  पापों  के  अनुपात  में  पुण्य  लेकर   विधाता   संतुलन  बना  देते  हैं   और   व्यक्ति का  जीवन  अच्छा  चलता  रहता  है  l  व्यक्ति  निरंतर  अत्याचार , अन्याय  आदि  पापकर्म  करता  रहे   तो  धीरे - धीरे  उसका  पुण्य  का  घड़ा  खाली   हो  जाता  है   और  फिर  शुरू  होता  है  प्रकृति  का  दंड  विधान  l  इस  संसार  में  हमसे  जाने - अनजाने  कुछ  न  कुछ  पाप  हो  ही  जाते  हैं  ,  इसलिए  कहते  हैं  प्रतिदिन  कुछ  न  कुछ  पुण्य  अवश्य  करना  चाहिए   जिससे  उन  पापों  की क्षतिपूर्ति  हो  जाये   और  हमारे  पुण्य  का  घड़ा  खाली  न  होने  पाए  l     महाभारत  में  एक  कथा  है ----  जब  युधिष्ठिर  ने   राजसूय  यज्ञ  किया  ,  उसमे  श्रीकृष्ण  को  प्रथम  पूज्य  बनाया   l   यह  बात  चेदिनरेश  शिशुपाल  को  सहन  न  हुई   और  वह  भगवान  को  गाली  देने  लगा , अपशब्द  बोलने  लगा  l   ईश्वर  के  पास  हम  सबके  पाप - पुण्य  का  लेखा - जोखा  है  l    उन्होंने शिशुपाल  को  सावधान  किया   और  कहा --- देखो ,  तुम्हारी  दी  गई  सौ    गालियों तक   मैं  कुछ  न  कहूंगा   लेकिन  उसके  बाद  क्षमा  नहीं  l   सौ  गालियों  के  बाद   उसके  इन   पापों  की  क्षतिपूर्ति  के  लिए  कोई  पुण्य  शेष  नहीं  बचते  ,  पुण्य   का घड़ा  पूरा  खाली   हो जाता  l  कहते  हैं ' विनाशकाले  विपरीत  बुद्धि  '  l   साक्षात्  भगवान  के  समझाने   पर  भी  वह  समझा  नहीं  ,  भगवान  गिनते रहे ,  उसे  सतर्क  करते  रहे --- 94 , 95 ------ 99,  शिशुपाल  चुप  हो  जाओ ,  लेकिन  वह  माना  नहीं ,  100  !  और  101  अपशब्द   बोलते  ही  कृष्ण जी  की  उँगली   में  सुदर्शन  चक्र  था  ,  शिशुपाल  को  कोई  नहीं  बचा  सका  l   यह  कथा  हमें  सिखाती  है  कि   हम  अपने  जीवन  को  होशपूर्वक   जिएं , अन्यथा  भगवान   के  हाथ  में  सुदर्शन  चक्र  आने  और  शिवजी  के  तृतीय  नेत्र  को  खुलने  में  देर  नहीं  लगती   l