16 June 2020

WISDOM ------

    हिंसा   और    अत्याचार  को  रोकने  के  लिए  निष्क्रिय  विरोध , उपेक्षा  व  उदासीनता  से  काम  नहीं   चलता  l   उसे  रोकने  के  लिए  अदम्य  साहस   और  कठोर  संघर्ष  की  आवश्यकता  है   तभी   उसमें    सफल  हुआ  जा  सकता  है   l   यदि  संगठित  रूप  से   अत्याचार - अन्याय  का  प्रतिरोध  किया  जाये   तो  शक्तिशाली  बर्बरता  को  भी  परास्त  किया  जा  सकता  है  l 

जीवन उसका है , जो कठिनाइयों के मस्तक पर अपने मजबूत पाँव जमाकर खड़ा हो सकता है l

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी   लिखते  हैं --- ' संकटों  से  डर   कर  जीवन  से  भागना   भीरुता  है   और    इस  संसार  में  समस्त  दण्ड   विधान  भीरु  और  कायर   व्यक्ति  के  लिए  बनाये  जाते  हैं  l '
आचार्य श्री  लिखते  हैं  ---- ' मरकर  परिस्थितियों  को  बदला  नहीं  जा  सकता  l   कर्मों  का  नाश  नहीं  होता  l  अगला  जीवन  वहीँ  से  शुरू  होगा ,  जहाँ  से  तुमने  इसे  छोड़ा  था l  आत्महत्या  पाप  है  --- इसका  दोहरा  दंड  है  --- एक  -आत्महत्या  का  दंड  और  दूसरा   अपने  कर्मक्षेत्र  से  भागने  का  दंड  l '  ऋषि  का  कहना  है -- प्रारब्ध  प्राप्त  भोगों  को  शांति  और  धैर्य  के  साथ  भोग  लेने  में   ही  भलाई  है  ,  उनसे  भागना  नहीं  चाहिए  क्योंकि  प्रारब्ध  कभी  पीछा  नहीं  छोड़ता  ,  भोगना  ही  पड़ता  है  l
  पेशवाओं  के  पथ - प्रदर्शक  -- ब्रह्मेन्द्र  स्वामी ,  इनका  जन्म  का  नाम  विष्णुपंत  था  ,    जब  दस  वर्ष  के  थे  ,  तब  उनके   माता - पिता  की  मृत्यु  हो  गई  l   सारी   सम्पति  सगे - संबंधियों   ने  हड़प  ली   और  उन्हें  रूखी  रोटी  भी  नहीं  देते  थे  ,  ऐसा  व्यवहार  करते  थे  जैसे  वे  कोई  छूत   के  रोगी  हों  l   जीवन  से  निराश  होकर   बीस  वर्ष  की  आयु  में  वे  आत्महत्या  करने  पहाड़  की  चोटी   पर  पहुँच  गए   l   कूदने  ही  वाले  थे  कि    महायोगी  ज्ञानेंद्र  सरस्वती  ने  उन्हें  आवाज  देकर  रोक  दिया   और  उन्हें  समझाया  कि  --- मानव  जीवन   दुबारा    नहीं  मिलता ,  यह  बहुमूल्य  है  l   अपरिमित  शक्तियों  का  स्रोत  है  l   दूसरों  की  पीड़ा  को  भी  समझो   l   औरों  को  ऊँचा  उठाने  में  लगी  दुर्बल  भुजाएं  भी  थोड़े  समय  में  लौह - दंड    बन  जाएँगी  l  मानव  जीवन  की  गरिमा  को  पहचानों  l --- इस  तरह  उन्होंने  युवक  विष्णुपंत  को   जीवन  जीना  सिखाया   और  कहा   कि   निराशा  में  डूबे   हुए  व्यक्तियों  में  जीवन  चेतना  का  प्रसार  करो  l 
 जीवन  के  इस  महामंत्र  से  यही  युवक  ब्रह्मेन्द्र  स्वामी  में  बदल  गया   और  17  वीं   सदी  में   महाराष्ट्र  के  इतिहास  को  एक  नया  मोड़  दिया  l   साधारण  से  क्लर्क   बालाजी  विश्वनाथ  को  गढ़कर  पेशवा  बनाया  l