मानव शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना है --- पृथ्वी , जल , अग्नि , वायु और आकाश l यह तत्व प्रकृति की देन हैं , इन तत्वों में निश्चित रूप से ऐसी कुछ विशेषताएं हैं जिनके कारण हम किसी व्यक्ति को देखते ही समझ जाते हैं कि यह भारतीय है , यह विदेशी है , यह चीन का है , जापान का है ----- l जो पौधा विदेशी धरती में लगा है , वह वहां की जलवायु के उपयुक्त है , इसलिए वह वहीँ फलेगा - फूलेगा l उसे यदि वहां से उखाड़ कर दूसरे देश में लगाया जाये तो संभव है वह सूख जायेगा और जहरीला भी हो जायेगा l
जब विभिन्न देशों के मध्य आवागमन के साधन नहीं थे तब प्रत्येक देश के उसके प्राकृतिक साधनों के अनुरूप कृषि के तरीके थे , चिकित्सा की पद्धति थी , लोग स्वस्थ थे , संसार अपनी गति से चल रहा था l इन पांच तत्वों का ऐसा प्रभाव है कि प्रत्येक व्यक्ति जिस देश में पैदा होता है वह उसी देश के खाद - पानी में उगे हुए अनाज , फल आदि खा कर स्वस्थ रहेगा l देशी शरीर में विदेशी खाद और विदेशी बीज से तैयार फल , अनाज खा कर वह पूर्ण स्वस्थ नहीं रहेगा l इसी तरह सौंदर्य सामग्री है , इसमें जो देशी चीजें है , और हमारे ही देश के साधनों से बनाई गई हैं , उनके प्रयोग से कोई रिएक्श्न नहीं होता l यही स्थिति चिकित्सा के क्षेत्र में है l जो व्यक्ति जिस देश में पैदा हुआ , वह अपने ही देश की चिकित्सा पद्धति में और उसी के अनुरूप बनी दवा आदि में स्वस्थ रहेगा l विदेशी धरती पर या विदेशी सामग्री से बनी दवा , इंजेक्शन आदि को उसका शरीर आसानी से स्वीकार नहीं करेगा l कुछ समय के लिए स्वस्थ चाहे हो जाएँ , फिर उसका रिएक्शन अवश्य होगा l मनुष्य की महत्वाकांक्षा , उसका अहंकार की हम विभिन्न देशों की शिक्षा , कृषि , उद्दोग , चिकित्सा आदि सभी क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण कर उसे अपनी मर्जी से चलाएं , मनुष्य के इसी शौक की वजह से संसार में अनेक नई बीमारियां और समस्याएं पैदा हुई हैं l
यह सब परिस्थिति जल्दी बदलने वाली नहीं है , अब यह पूर्णरूप से व्यक्ति विशेष पर ही निर्भर है कि यदि उसे स्वस्थ रहना है तो वह प्रकृति के अनुरूप और प्रकृति के संरक्षण में रहे l हमारे पास ईश्वर की देन है --सूरज का प्रकाश है , आयुर्वेद है , अध्यात्म है --- l
जब विभिन्न देशों के मध्य आवागमन के साधन नहीं थे तब प्रत्येक देश के उसके प्राकृतिक साधनों के अनुरूप कृषि के तरीके थे , चिकित्सा की पद्धति थी , लोग स्वस्थ थे , संसार अपनी गति से चल रहा था l इन पांच तत्वों का ऐसा प्रभाव है कि प्रत्येक व्यक्ति जिस देश में पैदा होता है वह उसी देश के खाद - पानी में उगे हुए अनाज , फल आदि खा कर स्वस्थ रहेगा l देशी शरीर में विदेशी खाद और विदेशी बीज से तैयार फल , अनाज खा कर वह पूर्ण स्वस्थ नहीं रहेगा l इसी तरह सौंदर्य सामग्री है , इसमें जो देशी चीजें है , और हमारे ही देश के साधनों से बनाई गई हैं , उनके प्रयोग से कोई रिएक्श्न नहीं होता l यही स्थिति चिकित्सा के क्षेत्र में है l जो व्यक्ति जिस देश में पैदा हुआ , वह अपने ही देश की चिकित्सा पद्धति में और उसी के अनुरूप बनी दवा आदि में स्वस्थ रहेगा l विदेशी धरती पर या विदेशी सामग्री से बनी दवा , इंजेक्शन आदि को उसका शरीर आसानी से स्वीकार नहीं करेगा l कुछ समय के लिए स्वस्थ चाहे हो जाएँ , फिर उसका रिएक्शन अवश्य होगा l मनुष्य की महत्वाकांक्षा , उसका अहंकार की हम विभिन्न देशों की शिक्षा , कृषि , उद्दोग , चिकित्सा आदि सभी क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण कर उसे अपनी मर्जी से चलाएं , मनुष्य के इसी शौक की वजह से संसार में अनेक नई बीमारियां और समस्याएं पैदा हुई हैं l
यह सब परिस्थिति जल्दी बदलने वाली नहीं है , अब यह पूर्णरूप से व्यक्ति विशेष पर ही निर्भर है कि यदि उसे स्वस्थ रहना है तो वह प्रकृति के अनुरूप और प्रकृति के संरक्षण में रहे l हमारे पास ईश्वर की देन है --सूरज का प्रकाश है , आयुर्वेद है , अध्यात्म है --- l