18 September 2018

WISDOM -------

  महर्षि  दयानन्द   फर्रुखाबाद  में  रुके  हुए  थे   ल  एक  व्यक्ति  दाल- चावल  बना  कर  लाया  I  वह  गृहस्थ  था  और  मजदूरी  कर  के  परिवार  का  पालन - पोषण  करता  था   I  स्वामीजी  ने  उसके  हाथ  का  अन्न  जो  वह  बड़ी  श्रद्धा  से  लाया  था  ,  ग्रहण  किया   I  ब्राह्मणों  को  बुरा  लगा   l  वे  बोले  आप  संन्यस्त  हैं  I  इस  हीन  कुल  के  व्यक्ति  के  हाथ   का  भोजन  लेकर  आप  भ्रष्ट  हो  गए   l  स्वामीजी  बोले  ---- " कैसे ,  क्या  अन्न  दूषित  था  ? "  ब्राह्मण  बोले  --- " हाँ ,  आपको  लेना  नहीं  चाहिए  था  I "
  स्वामीजी  बोले ----- " अन्न  दो  प्रकार  से  दूषित  होता  है  -- एक  तो  वह  जो   दूसरों  को  कष्ट  देकर    शोषण  द्वारा  प्राप्त   किया  जाता  है   इ  और  दूसरा  वह  ,  जहाँ  कोई  अभक्ष्य  पदार्थ  उसमे  गिर  जाता  है   इस  व्यक्ति  का  अन्न  तो  दोनों  ही  श्रेणी  में  नहीं  आता  ल इसका  अन्न  परिश्रम  की  कमाई  का  है  ,  फिर  दूषित  कैसे  हुआ  ,  मैं  भ्रष्ट  कैसे  हो  गया   ?  आप  सबका  मन  मलिन  है  ,  इसी  से  आप  दूसरों  की  की  चीजें  मलिन  मानते  हैं   I  मैं  जाति  जन्म  से नहीं ,   कर्म  से  मानता  हूँ  I  भेदभाव  त्याग  कर  सबके  लिए  जीना  सीखना  चाहिए   I