6 July 2020

WISDOM ------

 मनोरंजन  के  साथ  नीतिशास्त्र  की  शिक्षा  देने  वाली  ' पंचतंत्र ' की  कहानियां   विश्व  को  भारत  की  अमूल्य   देन   है  l  आज  लगभग  दो  हजार  वर्ष  बीत  जाने  पर  भी ,  युग  और  देश - काल  के  सर्वथा  बदल  जाने  पर  भी   विष्णु  शर्मा  द्वारा  रचित ' पंचतंत्र '  की  कहानियां    नवीन    हैं   l   इन  कहानियां   में  राजनीति  की  शिक्षा  का   पूरी  तरह  समावेश  किया  गया  है  l   केवल  राजनीति   ही  क्यों ,  जीवन  के  हर  क्षेत्र  में  उपयोगी  हैं  और  हमें  जीवन  जीने की  शिक्षा  देती  हैं  l   जैसे   एक  कहानी  है  -------
  '  दो  बिल्लियां  थीं  l   एक  रोटी  के  लिए  आपस  में  लड़  रही  थीं  l  दूर  पेड़  पर  बैठा  एक  बन्दर  यह  देख  रहा  था  ,  उसने  मौके  का  फायदा  उठाना  चाहा  l   वह  बिल्लियों  के  पास  गया   और  बोला   मैं  न्याय  करूँगा   l   तुम  दोनों  को  बराबर  रोटी   मिलेगी  l   वह  एक  तराजू  ले  आया   और  रोटी  तोड़कर  दोनों  पलड़ों  पर  रखी l   जिस  तरफ  रोटी  ज्यादा  होती  तो  बराबर  करने  के  लिए   वह  उतनी  तोड़  कर  खा  जाता   l   इस  तरह   तराजू  के  दोनों  पलड़ों  में  रोटी  बराबर  करने  का  झांसा   देते  हुए  वह  पूरी  रोटी  खा  गया  और  यह  कहते  हुए  भाग  गया   कि '  दो   की  लड़ाई  में  तीसरे  का  फायदा  होता  है  l ' 
  इसी  तरह    एक   कथा  संसार  के  लिए  बहुत  उपयोगी  है ---- चार  दोस्त   एक  जंगल    में  से   जा  रहे  थे l   रास्ते  में  शेर  का  कंकाल  देखा  l   उनमे  से  तीन  मित्र  अपने  ज्ञान  और  कौशल से   उस  शेर  को  जीवित  करने  लगे  l   चौथे  मित्र  ने  बहुत  समझाया  कि   अपने  से  ताकतवर  चीज  का  निर्माण  नहीं  करो  ,  लेकिन  वे  माने  नहीं  ,  चौथा    मित्र   पेड़  पर  चढ़  गया  l   उन  तीनों  ने  जैसे  ही  शेर  को  जीवित  किया  ,  शेर  ने  उन्ही  तीनों  को  पहले  खा  लिया  l   ---- आज  विज्ञान   अपने  से  शक्तिशाली  प्रकृति  को  जीतने  का  प्रयास  कर  रहा  है  l   विज्ञान    के  नए - नए  आविष्कार ,  उनसे  निकलने  वाली  तरंगे   पशु - पक्षी , वनस्पति  और  मानव  जीवन  के  अस्तित्व  के  लिए  खतरा  है  l   जब  मनुष्य  पर  दुर्बुद्धि  का  प्रकोप  होता  है   तब  वह  स्वयं  अपने  विनाश  के  साधन  जुटाता  है  l 

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 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  लिखा  है ---- " मनुष्य  जीवन  पाने  की  सार्थकता  यही  है   कि   स्वयं  ज्ञान  की  सुवास  से  सुन्दर  फूल  की  तरह  सुवासित  रहे  और  जब  इस  धरती  से  विदा  ले   तो  भी  अपने  पीछे  वैसी  ही  सुवास  छोड़ता  हुआ  जाये  l  " ----- वर्ष 1900  के  लगभग  इंग्लैण्ड  में  एडवर्ड  सम्राट  का  राज्याभिषेक  हुआ  l  जयपुर  के  महाराज  सवाई  माधोसिंह  भी  इस  समारोह  में  सम्मिलित  हुए  l  राज्याभिषेक  के  अवसर  पर   ऑक्सफोर्ड   यूनिवर्सिटी   में  संस्कृत  के  विभागाध्यक्ष  श्री  मैकडानल , कैम्ब्रिज  विश्वविद्दालय  के  संस्कृत  के  प्रसिद्ध   विद्वान  वैडाल  और  सुविख्यात  संस्कृत के  विद्वान  श्री  टोनी  एवं   डॉ. टामस  जैसे  प्रतिभाशाली  यूरोपीय  पंडित  भी  सम्मिलित  हुए  थे  l
 महाराज  माधोसिंह  के  साथ  सादी   वेशभूषा  में  एक   पण्डित  जी  भी  थे  ,  नाम  था  उनका --- पं. मधुसूदन ओझा   l   उस  समय  पाश्चात्य  विद्वानों  में   भारतीयों   को  ज्ञान  की  कसौटी  पर  कसने  की  आदत   सी  थी  l 
 विलक्षण  विद्वान  डॉ. टामस   से  जब   मधुसूदन  ओझा  का  परिचय   कराया  गया   तो  उन्होंने  संस्कृत  का   पद्य  बनाकर   पंडित जी  से  प्रश्न  किया  - जिसका  अर्थ  था --'- माननीय  महोदय ! मैंने  सुना  है   मधुसूदन ( विष्णु जी ) के  पास  तो  सदैव  ही  लक्ष्मी  का  वास  रहता  है   पर  यहाँ  मैं  आपको  अकेला  देख  रहा  हूँ   l '
यह  संकेत   उनकी  पत्नी  के  साथ  न  होने  पर  था  और  साथ  ही  पंडित जी  की  अत्यंत  सादगी  और  निर्धनता  पर  व्यंग्य  भी  था  l
पंडित मधुसूदन  ओझा  ने  तुरंत   वाग्विनोद  के  साथ  संस्कृत   में   उत्तर  दिया ,  जिसका  अर्थ  था --- 'हे  सौम्य  !  मधुसूदन  को  सरस्वती  की   सेवा  में  संलग्न  देखकर   लक्ष्मी  रुष्ट  होकर   यहाँ  लन्दन  चली  आईं ,  उन्हें  मनाने  यहाँ  आया  हूँ  l  '     पंडित जी  का  चुटीला  उत्तर  सुनकर  विद्वान्  मंडली  हास्य विभोर  हो  गई  l   उनकी  विद्व्ता  और  प्रतिभा  के  समक्ष  मैकडानल   जैसा  विद्वान्   भी  नत - मस्तक  हो  गया  l  लन्दन  में  उनके  कई  भाषण  हुए  l  उनके  मुख मंडल  पर  तपस्या  का  तेज  था   l   उनसे  प्रभावित  होकर  वेस्ट  मिनिस्टर  गजट  ने  उनकी  प्रशंसा  में  बहुत  कुछ  लिखा   और  यह  भी  माना  कि ---
 " भारतीय - ज्ञान , संस्कृत   और  अध्यात्म   विश्व - शिरोमणि  है  l  जब  तक  संसार  उसको  अवगाहन   और  अनुशीलन   नहीं  करता   अक्षय  सुख - शांति   के  द्वार  तब  तक  बंद  ही  रहेंगे   l  "