28 December 2018

WISDOM ----- हमारा जीवन हमारे ही कर्मों की अभिव्यक्ति है

 दुनिया  में  हम  जिसे  भी  देखते हैं  --- पिता - पुत्र , गुरु - शिष्य , संतान ,  रिश्ते - नाते ,  जो  कोई  भी  हैं  ,  वे  सब  हमारे  ही  कर्मों  का  परिणाम  है   l  अतीत  में  किए  गए   हमारे  अपने  ही   कर्म   आज  भांति - भांति  के   रूप धारण    कर    हमारे    सामने  हैं   l 
   ऋषियों  का कहना  है ---- " जैसे  हजारों  गायों  के  मध्य  बछड़ा  अपनी  माँ  को  स्वत:  ढूँढ  निकालता  है  ,  वैसे  ही हमारे अपने किये  गए  कर्म    हमको  किसी  भी  योनि  में  सहजता  से  ढूँढ  निकालते  हैं   l    हमारे  कर्म  हमारा  पीछा  नहीं  छोड़ते  ,  वे  तब  तक  समाप्त  नहीं  होते  ,  जब  तक  हम  उन्हें  भोग  नहीं  लेते  l  "
         कर्मफल  का  विधान  सबके  लिए  एक  समान  है   l 
    महाभारत   के  युद्ध    पश्चात  एक  बार  अत्यंत  व्यथित  ह्रदय  से    धृतराष्ट्र   ने   वेदव्यास  जी  से  पूछा  ---- " भगवन  !  यह  कैसी  विडम्बना  है   कि  मेरे  सौ  के  सौ  पुत्र    मारे  गए   और  मैं    अँधा   बूढ़ा  बाप   जिंदा  रह  गया  l  मैंने  इस  जन्म    इतने  पाप  तो  नहीं   किए  हैं    और   पूर्व    कुछ  पुण्य    होंगे  ,  तभी  मैं   राजा  बना  हूँ   l  किस  कारण  से  यह  घोर  दुःख  भोगना  पड़  रहा  है  ? 
 तब  वेदव्यासजी  ने  ध्यान  में  जाकर  उनके  पूर्व  जन्मों  को  जाना   l  उन्होंने  धृतराष्ट्र  से  कहा  ----  " पूर्वजन्म  में  तुम  राजा  थे    और  शिकार  करने  के  लिए  जंगल  में  गए  l  वहां  हिरन  को  देखकर  उसके  पीछे  दौड़े  ,  लेकिन  तुम  हिरन  का  शिकार  नहीं  कर  पाए  l  वह  जंगल  की  झाड़ियों  में  दिखना  बंद  हो  गया   l   क्रोध  में  आकर    तुमने  वहां  आग  लगा  दी  l  जिससे  वहां  उगी  घास  और  सूखे  पत्ते जल  गए  l  वहीँ  पास  में  एक  सांप  का  बिल  था  l  उसमे  सांप  के  बच्चे  थे  जो  अग्नि  में  जलकर  मर  गए   और  सरपिनी  अंधी  हो  गई  l  तुम्हारे  उस   कर्म  का  बदला  इस जन्म  में  मिला  l  इससे  तुम  अंधे  बने  हो  और  तुम्हारे  सौ  बेटे  मर  गए  हैं   l  "  इस  प्रकार  जन्म - जन्मांतरों  तक  हमारे  कर्म  हमारा  पीछा करते  हैं  l 
 उचित  यही  है    कि   हमें  सदा  शुभ  कर्म   निष्काम  भाव   से   करने  चाहियें   l