8 July 2020

WISDOM ------

   महर्षि  चाणक्य  ने   अपनी  बुद्धि  और  संकल्पशीलता  के  बल  पर   तात्कालिक  नन्द वंश  का  विनाश  कर   उसके  स्थान  एक  साधारण  बालक  चन्द्रगुप्त   को  स्वयं  शिक्षित  कर   राज्य  सिंहासन  पर  बैठाया  l
 चन्द्रगुप्त  को  इस  बात   की  पूर्ण  आशंका  बनी   हुई  थी  कि  उसकी  सीमित   शक्ति  नन्द  वंश  का  मुकाबला   न     कर  सकेगी  l   सीधे    आक्रमण    साहस  नहीं  हो  रहा  था  ,  अंत  में  उसने  अपनी  आशंका  गुरु   चाणक्य   से  व्यक्त  कर  दी  l
महापंडित  चाणक्य  को    पद्मानंद   की  आंतरिक  कमजोरियों  का  पता  था  ,  उन्होंने  कहा --- " किसी  के  पास  विशाल  चतुरंगिणी   सेना  हो  ,  किन्तु  चरित्र  न  हो   तो  अपनी  इस  दुर्बलता  के  कारण  वह  अवश्य  नष्ट  हो  जाता  है  l  " चन्द्रगुप्त  का  अपने  हाथ  से  राज्याभिषेक  करते  हुए  चाणक्य  ने  कहा   था --- 
' केवल  एकनिष्ठ  कर्तव्यशीलता , आत्मविश्वास ,  अविरत  प्रयत्न   तथा  सत्य  के  पक्ष  में  रहने  के  बल  पर    कोई  साधन  न  होने  पर  भी  मेरी  प्रतिज्ञा  पूरी  हुई  l  l  '