श्रीमद भगवद्गीता में भगवान कृष्ण अर्जुन को कहते हैं कि ' अशांतस्य कुत: सुखम अर्थात अशांत व्यक्ति कभी सुखी नहीं रह सकता l धन और सुविधाएँ व्यक्ति को शारीरिक सुख तो दे सकते हैं , किन्तु आत्मिक आनंद नहीं l सच्ची शांति व आनंद तो केवल संयम और संतोष से ही मिलता है l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं -- संयम के माध्यम से हमें शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के साथ सद्विवेक का जागरण होता है , जिससे हम अपनी ऊर्जाओं और क्षमताओं का सदुपयोग कर पाते हैं l संयमी व्यक्ति ही जीवन में सच्चे अर्थों में सफल होता है , स्वस्थ रहता है और अपने जीवन को सार्थक करता है l