7 January 2023

WISDOM -----

   'जीवन प्रसंग ---- ' बड़े  काम  के  मोह  में  छोटे  की  अवहेलना  न   हो ' ----- महर्षि  रमण   के  सत्संग  में   उनके  विचारों  से  प्रभावित  होकर  एक  युवक  ने   सेवा  कार्यों  में  उनका  सहायक  बनने  की  याचना  की  l  महर्षि  ने  उसे  दूसरे  दिन  आने  को  कहा  l  वह  युवक  निश्चित  समय  पर  उनसे  मिलने  चल  दिया  l    थोड़ी  ही  दूर  चला  था  कि  एक   वृद्ध  स्त्री  ने   उसे  पुकारा  , उसके  पास  एक  भारी  गट्ठर  था  , उसने  युवक  से  निवेदन  किया  कि  वह  उसे  गट्ठर  उठाने  में  सहायता  करे  l   युवक  ने  नाक -भौं  सिकोड़ते  हुए  कहा --- मैं  जरुरी  काम  से  जा  रहा  हूँ , मुझे  समय  नहीं  है  l   थोडा  और  आगे  बढ़ने  पर  एक  वृद्ध  गाड़ीवान  ने  उससे  अनुनय  की कि  उसकी  गाड़ी  का  पहिया  कीचड़  में  धंस  गया  है  , यदि  वह  उसकी  मदद  कर  दे   तो  पहिया  निकल  सकता  है   लेकिन  युवक  ने  मना  कर  दिया  कि  उसके  कपड़े  ख़राब  हो  जायेंगे  , मुझे  बड़ा  काम  करना  है  , ये  काम  नहीं  करना  l     थोडा  और  आगे  चला  तो  उसकी  आहट  पाकर  एक  अंधी  बुढ़िया  ने  उससे  कहा --- ' बेटा  !  मुझे  सड़क  पार  उस  बायीं  ओर  वाली  झोंपड़ी  तक  पहुँचाने  में  मेरी  मदद  कर  दो  l ' युवक   ने  तिलमिलाकर  कहा  --- 'मुझे  देर  हो  रही  है  , बड़ा  काम  करना  है  l  '   वह  शीघ्रता  से  महर्षि  के  आश्रम  में  पहुँच  गया   और  बोला --- 'बताइए  मेरे  लिए  क्या  सेवा  है  ? '    महर्षि  ने  कहा  --- 'थोड़ी  देर  बैठो ,  एक  और  व्यक्ति  को  भी  इसी  उदेश्य  से  आना  है , उसकी  प्रतीक्षा  है  l '  यह  युवक  सोचने  लगा ,  कैसा  है  वो  व्यक्ति  जिसे  समय  का  भी  ध्यान  नहीं  है , वह  क्या  सेवा  करेगा  ?   थोड़ी  ही  देर  में  वह  व्यक्ति   हांफता  हुआ  आ  गया  ,  उसके  वस्त्र  कीचड़  में  सने  हुए  थे  , महर्षि  को  साष्टांग  प्रणाम  कर  विनम्रता  से  एक  ओर  खड़ा  हो  गया  l  महर्षि  ने  कहा --- ' कहो  वत्स , शायद  तुम्हे  कुछ  विलंब  हो  गया  l  यह  हालत  कैसे  हुई  ? '   उन  व्यक्ति  ने  कहा --- " भगवान  !वैसे  तो  मैं  समय  पर  पहुँच  ही  जाता  ,किन्तु  रास्ते  में  एक  बोझ  उठाने  वाली  वृद्ध  महिला  की  सहायता  करने  में  , एक  वृद्ध  गाड़ीवान  की  गाड़ी  का  पहिया  कीचड़  से  निकालने  में  और  एक  अंधी  बुढ़िया  को  उसकी  झोंपड़ी  तक  पहुँचाने  में  विलंब  हो  गया  l  विलंब  के  लिए  मैं  क्षमा  चाहता  हूँ  l  " अब  महर्षि  ने  पहले  आने  वाले  नवयुवक  की  ओर  देखा  और  कहा --- " वत्स  !  तुम्हारी  राह  भी  वही  थी  l  तुम्हे  सेवा  के  अवसर  मिले  लेकिन  तुमने   उनकी  अवहेलना  की  l  बड़े  काम  के  मोह  में  तुमने  यह  न  जाना  कि  छोटे -छोटे  कामों  का  समायोग  ही  तो  बड़ा  काम  है  l  बड़ा  बनने  के  लिए  कभी  भी  छोटों  का  तिरस्कार  नहीं  किया  जाता  l  जो  दूसरों  का  भार  हलका  करने  में  सहायक  हो ,  जो  किसी  को  कठिनाई   से  निकालने  में  सहायता  दे   और  जो  किसी  को  लक्ष्य  तक  पहुँचने  में  मदद  करे  ,  वही  बड़ा  आदमी  है  l  तुम  अपना  निर्णय  स्वयं  दो  वत्स ,  क्या  तुम  सेवा  कार्य  में   मेरे  सहायक  बन  सकते  हो  ? "  वह  पहला  युवक   मौन  था , निरुत्तर  था  , उसके  पास  कोई  जवाब  नहीं  था  l