पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना है -----' अधिकार के लिए आतुर और कर्तव्य से बचने वालों को घाटा भी पड़ता है और अपयश भी मिलता है l ' एक कहानी है ----चार चोर एक गाय चुराकर लाये l बंटवारा इस प्रकार हुआ कि चारों बारी - बारी से एक एक दिन उसे अपने घर रखें l चतुरता में चारों एक दूसरे से बढ़े चढ़े थे , जिस दिन जिसकी बारी होती तो गाय का दूध तो निकालते , पर घास यह सोचकर नहीं खिलाते कि पिछले दिन वाले ने इसका पेट भरा ही होगा और अगले दिन वाला भी खिलायेगा ही l एक दिन मैं न खिलाऊँ तो क्या हर्ज है l यह क्रम कई दिन चला l भूखी गाय का दूध भी सूखता गया और अंत में उसके प्राण ही निकल गए l --- अधिकार के साथ कर्तव्यपालन भी जरुरी है l
6 January 2022
WISDOM ----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- 'कर्मफल का सिद्धांत बड़ा ही अकाट्य और शाश्वत है , कर्मों के फल से कोई नहीं बच सकता l ' कबीर दास जी कहते हैं --- 'करै बुराई सुख चहै , कैसे पावै कोय l रोपे पेड़ बबूल का , आम कहाँ से होय l ' पाप और पुण्य दो बीज हैं l जो बोयेंगे , वही काटेंगे l पुराण में एक कथा है ----- एक बार देवर्षि नारद भगवान विष्णु से मिलने वैकुण्ठ पहुंचे l उन्होंने भगवान को नमन - वंदन करते हुए कहा --- " भगवान ! आजकल धरती पर तो कर्मफल विधान के विपरीत परिणाम देखने को मिल रहे हैं l सब देखकर मुझे बड़ी हैरानी है l पापी को सुख मिल रहा है और पुण्यात्मा कष्ट में हैं l " भगवान ने कहा ---- " नारद जी ! आपने ऐसा क्या देख लिया , मुझे विस्तार से बताएं l " नारद जी ने कहा --- " भगवन ! जब मैं धरती पर भ्रमण कर रहा था , जंगल के रास्ते में बहुत कीचड़ था तभी मैंने देखा एक गाय कीचड़ में गहरे धँस चुकी थी और बाहर नहीं निकल पा रही थी l तभी वहां से एक चोर निकला , गाय को बाहर निकालने की बात तो दूर वह गाय के शरीर पर पैर रखकर आगे निकल गया जिससे गाय कीचड़ में और भी धँस गई l जैसे ही वह चोर आगे बढ़ा , उसे एक वृक्ष के नीचे सोने की मोहरों से भरी थैली मिली, जिसे पाकर वह बहुत खुश हुआ l फिर मैंने देखा कि उसी मार्ग से एक साधु पुरुष जा रहे थे l जैसे ही उन्होंने उस गाय को देखा , तुरंत कीचड़ में उतर गए और बहुत मेहनत कर गाय को बाहर निकाल लिया l इसके बाद जैसे ही वे बाहर निकले कि वहां रखे एक पत्थर से उनका पैर टकरा गया और वे गिर गए जिससे उनके सिर में गहरी चोट लगी खून बहने लगा l " नारद जी आगे बोले ---- " भगवान ! ऐसा अनर्थ आखिर क्यों हुआ ? चोर को सोने की मोहरें मिली और गाय की मदद करने वाले को सिर में चोट लगी ? " भगवान विष्णु ने कहा --- " नारद ! पूर्व में किए गए एक शुभ कर्म के कारण चोर को सोने की मोहरें मिली , उससे ज्यादा उसे और कुछ नहीं मिल सकता था , लेकिन उस साधु पुरुष की तो आज जंगल में ही उसके पूर्व प्रारब्ध के कारण मौत लिखी थी , जो गाय की सेवा करने के कारण टल गई l " इस कथा से हमें यही प्रेरणा मिलती है कि हमारे द्वारा किए गए शुभ कर्म कभी निष्फल नहीं होते हैं , हमें उनका पारितोषिक किसी न किसी रूप में अवश्य मिलता है l इसलिए हम हमेशा पुण्य कर्म करें l निस्स्वार्थ भाव से किए गए पुण्य कर्म अकाल मृत्यु से हमारी रक्षा करते हैं , तनाव से मुक्ति और शांति प्रदान करते हैं l