एक बार भगवान कृष्ण से भेंट करने उद्धव गए l उद्धव और माधव दोनों बचपन के दोस्त थे l द्वारपाल ने कहा ---- " इस समय भगवान पूजा में बैठे हैं , इसलिए अभी आपको थोड़ी देर ठहरना होगा l समाचार पाते ही भगवान शीघ्र पूजा कार्य से निवृत होकर उद्धव से मिलने आए l कुशल - प्रश्न के बाद भगवान ने पूछा --- " उद्धव तुम किसलिए आए हो ? " उद्धव ने कहा --- " यह तो मैं बाद में बताऊंगा , पहले मुझे यह बताइये कि आप पूजा किसकी कर रहे थे ? " भगवान ने कहा --- " उद्धव ! तुम यह नहीं समझ सकते l " लेकिन उद्धव कब मानने वाले थे , उन्होंने जिद की l तब भगवान ने कहा --- " उद्धव ! तुझे क्या बताऊँ ? मैं तेरी ही पूजा कर रहा था l " उद्धव माधव की पूजा करता है और माधव उद्धव की पूजा करता है l भगवान भक्त की पूजा करते हैं और भक्त भगवान की l इस आदर्श से भगवान बताना चाहते हैं ----- " जो मालिक हैं , वे मजदूरों के सेवक बने l जो शासक हैं , वे प्रजा के सेवक बने l शिक्षक विद्दार्थियों के सेवक बने , उद्दोगपति श्रमिकों के सेवक बनें , माता - पिता अपनी संतान के सेवक बनें l जिस किसी को जिम्मेदारी का काम मिला है , वे सब सेवक बनकर काम करेंगे , तो दुनिया के सारे झगड़े मिट जायेंगे l "
31 October 2020
WISDOM ------ प्रकृति को अपनी रूचि बताना सीखें
हमारे द्वारा किए जाने वाले कार्य, हमारी हृदय की भावना , हमारे विचार और हमारी रूचि को प्रकट करते हैं l प्रकृति और मनुष्यों में निरंतर एक संवाद होता रहता है l हम अपने आचरण, अपनी भावनाओं के द्वारा प्रकृति को सन्देश देते हैं कि हमारी पसंद क्या है , हम क्या चाहते हैं ? यदि अधिकांश लोग जाति , धर्म , ऊंच - नीच , सम्प्रदाय आदि के आधार पर दंगे - फसाद करते हैं , तो प्रकृति को यही संदेश जाता है कि मनुष्य को हाय - हत्या , लड़ाई - झगड़ा , युद्ध , नाश जैसी नकारात्मकता ही पसंद है l प्रकृति अपने तरीके से मानव को समझाने का भी बहुत प्रयास करती है लेकिन ईर्ष्या , द्वेष , लोभ , अहंकार जैसी मानसिक विकृतियों से ग्रस्त मानव कुछ समझना चाहता ही नहीं है --' जब नाश मनुज पर छाता है , पहले विवेक मर जाता है l ' तरीका अलग - अलग है -- मनुष्य अपनी दुर्बुद्धि द्वारा अपना ही नाश करता है और प्रकृति अपने प्रकोप से भूकंप , बाढ़ , सुनामी आदि से तबाही ला देती है l भौतिक प्रगति तो हमने बहुत की , लेकिन जीवन जीना नहीं सीखा l बड़ी मुश्किल से मनुष्य जन्म मिला , कुछ सकारात्मक करने के बजाय लड़ते - झगड़ते , बीमारी , महामारी झेलते , रोते - पीटते संसार से चले जाते हैं l बहुमूल्य जीवन का कौड़ी बराबर भी मूल्य नहीं रह जाता l