31 October 2020

WISDOM -----

   एक  बार  भगवान  कृष्ण  से  भेंट  करने  उद्धव  गए   l   उद्धव  और  माधव  दोनों  बचपन  के  दोस्त  थे  l   द्वारपाल  ने  कहा ---- " इस  समय  भगवान  पूजा  में  बैठे  हैं  ,  इसलिए  अभी  आपको  थोड़ी  देर  ठहरना  होगा  l   समाचार  पाते  ही  भगवान   शीघ्र पूजा  कार्य  से  निवृत   होकर  उद्धव  से  मिलने  आए  l  कुशल - प्रश्न  के  बाद  भगवान  ने  पूछा  --- " उद्धव  तुम  किसलिए  आए   हो   ? "   उद्धव  ने  कहा --- " यह  तो  मैं  बाद  में  बताऊंगा  ,  पहले  मुझे  यह  बताइये  कि  आप  पूजा  किसकी  कर  रहे  थे  ? "  भगवान  ने  कहा --- " उद्धव  !  तुम  यह  नहीं  समझ   सकते  l "   लेकिन  उद्धव  कब  मानने  वाले  थे ,  उन्होंने  जिद   की   l  तब  भगवान  ने  कहा  --- "  उद्धव !  तुझे  क्या  बताऊँ   ?  मैं  तेरी  ही  पूजा   कर  रहा था   l  "  उद्धव  माधव  की  पूजा  करता  है   और  माधव  उद्धव  की  पूजा  करता  है   l   भगवान  भक्त  की  पूजा  करते  हैं  और   भक्त  भगवान  की  l   इस  आदर्श  से  भगवान  बताना  चाहते  हैं   ----- " जो  मालिक  हैं  ,  वे  मजदूरों  के  सेवक  बने   l   जो  शासक  हैं  , वे  प्रजा  के  सेवक  बने  l   शिक्षक  विद्दार्थियों  के   सेवक बने   , उद्दोगपति  श्रमिकों  के  सेवक  बनें  ,  माता - पिता  अपनी  संतान  के  सेवक  बनें  l   जिस  किसी  को  जिम्मेदारी  का  काम  मिला  है  ,  वे  सब  सेवक  बनकर  काम  करेंगे  ,  तो  दुनिया  के  सारे    झगड़े   मिट   जायेंगे   l  "

WISDOM ------ प्रकृति को अपनी रूचि बताना सीखें

     हमारे  द्वारा  किए   जाने  वाले  कार्य,    हमारी  हृदय  की  भावना ,  हमारे  विचार  और  हमारी  रूचि  को  प्रकट  करते  हैं  l   प्रकृति  और  मनुष्यों  में  निरंतर  एक  संवाद  होता  रहता  है  l   हम  अपने  आचरण,  अपनी   भावनाओं  के  द्वारा   प्रकृति  को  सन्देश  देते  हैं  कि   हमारी  पसंद  क्या  है  ,  हम  क्या  चाहते  हैं  ?    यदि   अधिकांश  लोग   जाति ,  धर्म  ,  ऊंच - नीच ,  सम्प्रदाय  आदि  के  आधार  पर   दंगे - फसाद  करते  हैं  ,   तो  प्रकृति  को  यही  संदेश   जाता  है  कि  मनुष्य  को   हाय - हत्या , लड़ाई - झगड़ा  ,   युद्ध , नाश  जैसी  नकारात्मकता  ही  पसंद  है  l   प्रकृति  अपने  तरीके  से  मानव  को  समझाने   का  भी  बहुत  प्रयास  करती  है   लेकिन  ईर्ष्या , द्वेष , लोभ , अहंकार   जैसी  मानसिक  विकृतियों  से  ग्रस्त  मानव    कुछ  समझना  चाहता   ही नहीं  है  --' जब  नाश  मनुज  पर  छाता   है ,  पहले  विवेक  मर  जाता  है  l '      तरीका  अलग - अलग  है  -- मनुष्य  अपनी  दुर्बुद्धि  द्वारा  अपना  ही    नाश    करता  है   और  प्रकृति   अपने  प्रकोप  से  भूकंप , बाढ़ ,  सुनामी  आदि  से  तबाही     ला  देती  है    l   भौतिक  प्रगति  तो  हमने  बहुत  की  ,  लेकिन  जीवन  जीना  नहीं  सीखा  l   बड़ी  मुश्किल  से  मनुष्य  जन्म  मिला  ,  कुछ  सकारात्मक  करने  के  बजाय   लड़ते - झगड़ते ,  बीमारी , महामारी  झेलते ,  रोते - पीटते  संसार  से  चले  जाते  हैं  l   बहुमूल्य  जीवन  का  कौड़ी  बराबर  भी  मूल्य  नहीं  रह  जाता  l