30 September 2021

WISDOM--------

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ----- ' विश्व  के  शक्ति  भंडार  में  आत्मबल  सर्वोपरि  है   l   अध्यात्मबल  से  आत्मबल   उभरता  है   l  अध्यात्मबल  का  संपादन  कठिन  नहीं ,   वरन  सरल  है   l   उसके  लिए   आत्मशोधन   एवं  लोकमंगल  के  कार्यों   को  जीवनचर्या  का   अंग  बना  लेने  भर  से   काम  चलता  है  l   व्यक्तित्व  में  पैनापन  और  प्रखरता  का  समावेश  इन्ही  दो  आधारों  पर   होता  है   और  इतना  होने  पर   दैवी  अनुग्रह  अनायास  बरसता  है   और  आत्मबल   भीतर  से  उभरता  है   l  '  आचार्य श्री  लिखते  हैं ---- ' केवट , शबरी ,  अंगद , नल - नील ,  रीछ - वानर , सुग्रीव  की  निज  की  भौतिक  सामर्थ्य  बहुत  कम  थी  ,  पर  वे   ईश्वरीय  शक्ति  से  जुड़  गए   और  अपने  में  देवत्व  की  मात्रा   बढ़ा  लेने  पर  ही   इतने  मनस्वी  बन  सके   l  "      चन्द्रगुप्त  जब  विश्व विजय   की  योजना  सुनकर  सकपकाने  लगे     तो  चाणक्य  ने  कहा ---- " तुम्हारी  दासी -पुत्र  वाली  मनोदशा  को  मैं  जानता   हूँ  l   उससे  ऊपर  उठो   और   चाणक्य  के   वरद  पुत्र   जैसी  भूमिका  निभाओ   l  "  छत्रपति  शिवजी   जब  अपने  सैन्यबल   को  देखते  हुए   असमंजस  में  थे  कि   इतनी  बड़ी  लड़ाई  कैसे  लड़ी  जाएगी  ,  तो  समर्थ  रामदास  ने  उन्हें   भवानी  के  हाथों   अक्षय  तलवार  दिलाई  थी   और  कहा  था ---- "  तुम  छत्रपति  हो  गए  ,  पराजय  की  बात  ही  मत  सोचो   l  "    बड़े - बी अड़े  कार्य  देवत्व  की  शक्ति  के  बिना  असंभव  हैं   l