7 September 2022

WISDOM -----

 लघु -कथा ---- मगध  देश  के  राजा  श्रेणिक  एक  बार  भ्रमण  के  लिए  महल  से  बाहर  निकले  l  उनने  देखा  कि  एक  साधु  नदी  तट  पर  बैठे  पूजा -पाठ  में  मग्न  हैं  l  वे  साधू  महाराज  के  पास  गए  और  बोले  --- आप  इतनी  अल्प  आयु  में  घर  से  निकल  पड़े  हैं  l  आपका  चेहरा  तप  से  दीप्तिमान  हो  रहा  है  l  आप  कौन  हैं ? कहाँ  रहते  हैं  ?  साधु  ने  उत्तर  दिया --- 'मैं  एक  अनाथ , असहाय  हूँ  l  किन्तु  इस  उत्तर  से  राजा  संतुष्ट  नहीं  हुए  l  उन्होंने  कहा --- मुझसे  कुछ  न  छिपाएं ,  सच -सच  बताएं  ल  यदि  आप  अनाथ  भी  हैं  तो  मैं  आपका  संरक्षक  हूँ  l  मेरे  राज्य  में  कोई  अनाथ  और  असहाय  नहीं  है  l   महात्मा  ने  कहा  ---राजा , भले  ही  आप  विपुल  सम्पति  के  मालिक  हैं l  हठी , घोड़े , सैनिक , राज्यकोष  , राजमहल  सब  कुछ  है  ,  फिर  भी  आप  किसी  न  किसी  मामले  में   अनाथ  और  असहाय  हैं  ही  l  किन्तु  राजा  मानने  को  तैयार  न  था  l  तब  साधु  ने  आपबीती  कह  सुनाई  l  उसने  कहा ---- मैं  कौशाम्बी  नगर  के   नगर  सेठ  धनराज  का  पुत्र  हूँ  l  मुझे  आइखों  के  रोग  ने  घेर  लिया  l  समस्त  उपचार  कराए  गए  l  वैद्य , राज वैद्य  सभी  परेशान  व  हैरान  थे  l  धन -सम्पदा , मित्र , संबंधी  , परिवार  कोई  भी  मेरे  रोग  में  सहायक  न  बन  सके  l  ऐश्वर्य  कुछ  काम  न  आ  सका  तो  मुझे  मेरे  हाल  पर  छोड़  दिया  गया  l   बस ,  मैं  प्रभु  से  प्रार्थना  करने  लगा  l  अंतत:  ईश्वर  ने  मेरी  प्रार्थना  सुनी  ,  वही  भगवान  काम  आए  और  मैं  रोगमुक्त  हो  गया  l  तब  से  मैं  भगवान  के  ध्यान , स्मरण   और  उनके  काम  में  लगा  रहता  हूँ  l  सेवा -पूजा  के  बाद  बचे  समय   को  अशक्त , रोगी , असहाय , निर्बलों , अभावग्रस्तों  की  सेवा  में  लगाकर  व्यतीत  करता  हूँ  l  राजा  की  आँखें  खुल  गईं  ,  वह  समझ  गया  कि  ईश्वर  ही  समर्थ  हैं  ,  सबकी  सहायता  कर  पाने  में  l  

WISDOM -----

   महाराजा  सगर  की  दोनों  रानियों  ने  तप  किया   और  वरदान  मांगने  के  अवसर  पर   एक  ने  हजार  पुत्र  माँगे  और  दूसरी  रानी  ने  एक  पुत्र  माँगा  l  समुचित  भावनात्मक  पोषण  के  अभाव  में  हजारों  पुत्र  झगड़ालू , उपद्रवी  और  अनाचारी  निकले  l  अंतत:  अपने  दर्प  एवं  दुर्बुद्धि  के  कारण  महर्षि  कपिल  के  साथ  अन्याय  कर  बैठे  और  मारे  गए  l  दूसरी  रानी  का  जो  एकमात्र  अकेला  पुत्र  था  उसने  समुचित  भावनात्मक  पोषण , मार्गदर्शन  प्राप्त   कर  महर्षि  कपिल  को  भी  प्रसन्न  कर  लिया  तथा  राज्य  का  समुचित  सञ्चालन  भी  किया  तथा  कीर्ति  का  भागीदार  बना  l  नीतिशास्त्र  में  इसलिए  कहा  भी  गया  है  ----- 'सैकड़ों  मुर्ख  बेटों  की  अपेक्षा   एक  ही  गुणी  पुत्र  श्रेष्ठ  है  l  जैसे  अकेला  चाँद  अंधकार  को  दूर  करता  है  ,  हजारों  तारे  नहीं  l  उसी  प्रकार  एक  गुणी  पुत्र  समाज  में  अंधकार  को  दूर  करता  और  प्रकाश   फैलाता  है  l '