16 September 2019

WISDOM ------

  चिंता  एक  ऐसा  रोग  है  जो  हमें  अंदर  ही  अंदर  खोखला  करता  रहता  है  l  एक  विचारक  का  कहना  है ---- " यदि  चलने को  तैयार खड़े    जलयान  में  सोचने - विचारने  की  शक्ति  होती  ,  तो  वह  सागर  की  उत्ताल  तरंगों  को  देखकर  डर  जाता  कि  ये  तरंगे  उसे  निगल  लेंगी   और  वह  कभी  भी  बंदरगाह  से  बाहर  नहीं  निकलता  l  लेकिन  जलयान  सोच  नहीं  सकता   इसलिए  उसे  चिंता  नहीं  होती  कि  जल  में  उतरने  के  बाद  उसका  क्या  होगा  ,  वह  तो  केवल  चलता  है  l "
  इसलिए  कहा  जाता  है  कि  यदि  मन  बहुत  सी  आशंकाओं  व  चिंता   से  भर  रहा  हो   तो  कभी  भी  बैठकर  उस  के  बारे  में  सोचना  नहीं  चाहिए  l  पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य  का  कहना  है  कि  ' व्यस्त  रहो ,  मस्त  रहो   l  चिंता  करने  के   बजाये    उसे   सकरात्मक    कार्यों  में   व्यस्त  रखें   l