जलियांवाला बाग के बाद गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने जगह - जगह यात्राएं की l एक यात्रा तो कलकत्ता से पेशावर तक बैलगाड़ी से की l जलियांवाला कांड से गुरुदेव बहुत आहत हुए और उन्होंने ' सर ' की उपाधि का त्याग करते हुए तत्कालीन वायसराय चेम्स फोर्ड को पत्र लिखा l उसमे सर या नाइट की उपाधि को सम्मान का पट्टा बताया था l उस पत्र का एक अंश पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने अपनी नोट बुक में लिख लिया था l वह अंश इस प्रकार है ------ " हमारी आँखें खुल गई हैं कि हमारी अवस्था कैसी असहाय है l भारतीय जनता को इस समय जो दंड दिया गया , उसकी मिसाल किसी भी सभ्य देश और सभ्य सरकार के इतिहास में नहीं मिलती l विडंबना है कि इस कृत्य के लिए लज्जा और ग्लानि अनुभव करने के स्थान पर आप अपने आपको शाबाशी दे रहे हैं कि आपने भारतीयों को अच्छा सबक सिखाया l " " अधिकांश एंग्लोइंडियन अख़बारों ने इस निर्दयता की प्रशंसा की है ----- सरकारी अधिकारियों ने उन पत्रों पर तो कोई प्रतिबंध नहीं लगाया , उलटे भारतीय समाज से सहानुभूति रखने वाले पत्रों का ही गला दबाया l इस अवसर पर मैं कम से कम इतना तो कर ही सकता हूँ कि जो भी दुष्परिणाम हों , उन्हें भोगने के लिए तैयार रहकर उन करोड़ों देशवासियों की ओर से विरोध व्यक्त करूँ , जो आतंक और भय के कारण चुपचाप सरकारी दमन सहन कर रहे हैं l सरकार द्वारा दिए गए सम्मान के पट्टे राष्ट्रिय अपमान के साथ और मेल नहीं खा सकते , वे हमारी निर्लज्जता को और भी चमका देते हैं l अत: मैं विवश होकर आदर सहित अनुरोध कर रहा हूँ की आज मुझे सम्राट की दी हुई नाइट की उपाधि से मुक्त कर दें l "