23 October 2020

WISDOM -----

  महात्मा  गाँधी  ने   भारतीय  किसानों  के  दर्द  को  गहराई  से  समझा  और  उसे  सुधारने  का  प्रयास  किया  l  उन्होंने  अपने  जीवन  में  ऐसे  कार्य  किए ,  ताकि  देश  का  किसान  आत्मनिर्भर  बन  सके  l   यद्द्पि  गाँधी जी  के  आस- पास  टाटा , डालमिया , बिड़ला और  बजाज  जैसे  उद्दोगपति  रहे  ,  लेकिन  उन्होंने  कभी  भी  बड़े  उद्दोगों  को  बढ़ावा  नहीं  दिया   और  रसायनमुक्त   जैविक  खेती  कर  रहे   किसानों   को प्राथमिकता  दी  l   गाँधीजी   द्वारा    ग्रामोद्दोग   को  बढ़ावा  देने  के  पीछे   उनका   व्यापक  वैज्ञानिक  दृष्टिकोण  था  , इसलिए  वे  चरखा , खादी ,  हाथकुटे   चावल ,  अहिंसक  चमड़े  के  जूते  जैसे  हस्तनिर्मित  ग्राम-उद्दोग   चलाने  पर  जोर  दे  रहे  थे  l   वे  मानते  थे  कि    यंत्रों  को  यथासंभव  दूर  रखा  जाए ,  क्योंकि  भारत  जैसे  विशाल  जनसँख्या  वाले    देश  में   यंत्र  चलाना   एक  तरह  से  मजदूरों  के  हाथ  काटने  के   समान   है   क्योंकि  यंत्रों  के   उपयोग  से   बहुत  सारे    मजदूर    बेरोजगार  हो  जायेंगे   l   आज  देश  को  गाँधी जी  के  विचारों  को  अमल  में  लाने  की  जरुरत  है  l   गाँधी जी  ने  तीस - चालीस  के  दशक  में  ही   रासायनिक  खादों  के  दुष्परिणाम  को  जान  लिया  था  l   आज  हम  देख  रहे  हैं  कि  रासायनिक  खाद  और  कीटनाशक  के  प्रयोग  से  खाद्द्य  पदार्थ   शरीर  को   नुकसान  पहुंचा  रहे  हैं  ,  संतुलित  और  संयमी  जीवन  जीने  वाले  भी   बड़ी  बीमारी  झेल  रहे  हैं  l  इसी  तरह  उन्होंने  कहा  था  कि  भारी - भरकम  यंत्रों  को  चलाने  के  लिए  जो  ऊर्जा  व्यय  होगी  ,  उससे  जंगलों  की  कटाई  होगी  , पर्यावरण  असंतुलित  होगा  l   उनके  ' स्वदेशी ' के  विचार  को  अपनाने  की  जरुरत  है   l   भारत   जैसे गरम  देश  में  छोटी  जोत   के  खेत   न  केवल   छायादार  झाड़ियों  और  वृक्षों  से  फसल  की  रक्षा  करते  हैं  ,  अपितु  नीचे   गिरे  पत्तों  से   मिटटी  में  उपजाऊपन  की  मात्रा  बढ़ाते  हैं   l