24 April 2020

WISDOM -----

  विवेक  के  अभाव  में  व्यक्ति  भेड़  चाल  चलता  है  l   एक  भेड़   सबसे  आगे  चलते - चलते  कुएं  में  गिर  जाती  है   तो  सब  भेड़ें  उसके  पीछे  कुएं  में  गिर  जाती  हैं  l   इसी  तरह  मनुष्य  कितना  ही  पढ़ा - लिखा  हो  ,  विद्वान्  हो  लेकिन  यदि  उसका  विवेक  जाग्रत  नहीं  है  ,  चेतना  परिष्कृत  नहीं  है   तो  वह  किसी  भी  बात  की  तह  में   जा  कर  सच्चाई  को  परखने  की  कोशिश    ही  नहीं  करता   l  बिना  सोचे  समझे  बस ,  अंधानुकरण  करता  है  l
 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  कहा  है  -- भौतिक  प्रगति  के  साथ  जीवन  में  अध्यात्म  का  प्रवेश  जरुरी  है  l   चेतना  का  परिष्कार  ही  सच्चा  अध्यात्म  है  l '  

WISDOM ------ जीवन में सतर्कता जरुरी है

 इस  संसार  में  भिन्न - भिन्न  मनोवृतियों  के  लोग  हैं  l   अनेक  व्यक्ति  ऐसे  होते  हैं  जो  अपने  वर्तमान  में  बहुत  सफल  और  संपन्न  होते  हैं ,  बहुत  संपन्न  न  भी  हों  तो  आराम  से  जीवन  व्यतीत  करते  हैं  ,  लेकिन  फिर  भी  उनके  अंदर  एक  कुंठा  होती  है  l   उनके  पिता ,  पितामह    या   परिवार    के  साथ  कभी  किसी  ने  बुरा  व्यवहार  किया  हो  ,  और  अब  चाहे  वे  सब  जीवित  भी  न  हों ,  तब  भी  कुंठाग्रस्त  व्यक्ति   बदले  की  भावना  से  ग्रसित  रहता  है   और   और  अपनी  इस  कुत्सित  मनोवृति  को  कार्यरूप   देने  का  प्रयास  करता  रहता  है  l   इसलिए  ऋषियों  ने  संसार  में  सजग  होकर   रहने  को  कहा  है  l
       एक  प्रसंग  है  -----   गुरु   गोविन्द सिंह जी   उन  दिनों  गोदावरी  तट   पर  नगीना  नाम  का  घाट   बनवा  रहे  थे  l   दिन  बार  उस  काम  में  व्यस्त  रहकर    वे  सांयकाल  प्रार्थना  कराते  और  लोगों  को   संगठन  तथा  बलिदान  का  उपदेश  दिया  करते  l   किसी  युद्ध  में    गुरूजी  के  हाथ  से  एक  व्यक्ति  मारा  गया  था  ,  उसके   अनाथ  पुत्र  को    गुरूजी  ने  आश्रम  में  रखकर  पाल  लिया  था  ,  अन्य  सभी  शिष्यों  के  समान   वह  भी  प्रेम  से  गुरु  की  छत्रछाया  में  रहता  था  l   किन्तु  उनकी  यही  दया   और  शत्रु  के  पुत्र  के  साथ   की  गई  मानवता    उनके  अंत  का  कारण  बन  गई  l
  उस   ने  गुरूजी  के  प्रेम  को  नहीं  समझा   और  हर  समय  इस  घात  में  रहता  था   कि  कब  गुरु जी  को  अकेले  असावधान  पाए   और  मार   डाले  l   अवसर  मिलने  पर  एक  दिन  उसने  पलंग  पर  सोते  हुए  गुरूजी  की  काँख   में  छुरा  भौंक  दिया   l   गुरु  गोविन्द  सिंह जी  तत्काल  सजग  होकर  उठ  बैठे   और   वहीँ  कटार   निकालकर    भागते  हुए  विश्वास  घाती   को  फेंककर  मारी  l   वह  कटार   उसकी  पीठ  में  धंस  गई   और  वह  तुरंत  गिर  कर  ढेर  हो  गया  l
  गुरु  के  घाव  पर  टाँके  लगा  दिए  गए  l   सांयकाल  उन्होंने  प्रार्थना  सभा  में   लोगों  को  बतलाया  कि   मेरी  इस  घटना  से  शिक्षा  लेकर   हर  सज्जन  व्यक्ति  को   यह  नियम  बना  लेना  चाहिए    कि   यदि  शत्रु  पक्ष  को  ,  निराश्रय   की  स्थिति  में   सहायता   भी  करनी  हो  तो  भी  उसे   अपने  निकट   नहीं  रखना  चाहिए   और  सदा  उससे  सावधान  रहना  चाहिए   क्योंकि   कभी - कभी     असावधान    परोपकार     भी    
   अनर्थ     का  कारण     बन   जाता   है    l