पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' परमात्मा न तो अपने हाथ से किसी को कुछ देता है और न छीनता है l वह इन दोनों के लिए मनुष्य की आंतरिक प्रेरणा द्वारा परिस्थितियाँ उत्पन्न करा देता है , आप तटस्थ भाव से मनुष्य का उत्थान - पतन देखा करता है l जो कर्मयोगी अपने जीवन का विकास क्रमबद्ध योजना के अनुसार किया करते हैं उन्हें अपनी सफलता के आधार ज्ञात रहते हैं और वे हर मूल्य पर उनकी रक्षा कर के अपनी सफलता तथा उन्नति को स्थायी बना लेते हैं l वे इस तथ्य को जानते हैं कि अहंकार की अपेक्षा शालीनता में अधिक सुख और गौरव है l