19 October 2023

WISDOM -----

   पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ----' लोभ  का  अर्थ  है --- कुछ  पाने  की  लालसा  , इस  लालसा  से  प्रवृत्त  होकर  मनुष्य  में  कामनाएं , महत्वाकांक्षाएं  पनपती  हैं   और  उनके  पूरा  न  होने  पर   मन  में  अशांति  जन्म  लेती  है  l  मन  एक  भिखारी  की  तरह  है  सदा  कुछ  मांगता  ही  रहता  है  l  उसे  जितना  दें ,   उतनी  ही   उसकी  कामना  बढ़ती  जाती  है  l   जितना  पाने  की  लालसा  या  लोभ  बढ़ता  है  ,  उतनी  ही  इनसान  की  दौड़ -धूप  बढती  है  l  उतना  ही  व्यक्ति  नए -नए  तरीकों  से  उस    वस्तु   को  पाने  का  प्रयत्न  करता  है  l  एक  तरीके  से  न  मिले   तो  दूसरे  तरीकों  की  तलाश  करता  है   l  लालसा  जितनी  तीव्र  होती  है  --- उतना  ही  मनुष्य   नए -नए  विभिन्न  तरीकों  के  कर्मों  से  उस  लालसा  को  पूरा  करने  का  प्रयत्न  करता  है  l  इससे  भी  जब  सारी  कामनाएं  मन  की  पूरी  नहीं  हो  पातीं  तो  मनुष्य  विक्षिप्त , अशांत   हो  जाता  है  l  '       शास्त्रों  में  ययाति  की  कथा  आती  है  ---- वह  राजा  था  l  उसने  सौ  वर्ष  का  जीवन  जी  लिया   तो  यम  के  दूत  उसे  लेने  आ  गए l  वह  उनके  आगे   हाथ -पैर  जोड़ने  लगा  --- मेरे  मन  में  अनेकों  लालसाएं  हैं  जो  अभो  पूरी  नहीं  हुईं  ,  कृपया  एक  मौका  और  दें  l  यमदूत  बोले --- " यदि   तुम्हे  कोई  अपनी  आयु  दे  दे  ,  तो  तुम  उसकी  आयु  का  भोग  कर  लेना  l "  ययाति  के  एक  पुत्र  ने  उसे  अपनी  आयु  दे  दी  l  जब  ययाति  ने  वह  आयु  भोग  ली   तो  यमदूत  दोबारा  आए  ,  ययाति  फिर  उनसे  प्रार्थना  करने  लगा  क्योंकि  उसकी  कामनाएं  शेष  थीं  l  फिर  किसी  ने  उसे  अपनी  आयु  दे  दी  l  कहते  हैं  ऐसा  हजार  वर्ष  तक  होता  रहा  ,  परन्तु  तब  भी  उसकी  कामनाएं  शांत  नहीं  हुईं  l  अंत  में  वह  विक्षिप्त  की  तरह  हो  गया  l                                                                                                                       पुराण  की  यह  कथा  कलियुग  की  एक  बहुत  बड़ी  समस्या  की  ओर  इशारा  करती  है  l  कलियुग  में  मनुष्य  की  बुद्धि   विकृत  हो  गई  है  , मानसिक  विकार  चरम  पर  हैं ,  विज्ञानं  ने  बहुत  आगे  बढ़कर  मनुष्य  के  मन  पर  भी  कब्ज़ा  करने  का  प्रयत्न  किया  है  l  उस  युग  में  ययाति  ने   अपने  पुत्र -पौत्रों  से  आयु  मांगी  थी  लेकिन  इस  युग  में   संसार  में  एक  बहुत  बड़ा  वर्ग  ऐसा  भी  है   जो  आयु  मांगकर  किसी  का  एहसान  नहीं  लेता   , वह   ऐसे  गुप्त  तरीकों  से  शारीरिक  और  मानसिक  रूप  से  स्वस्थ  लोगों  की  एनर्जी  चुराकर  ,  चूसकर  उन्हें  खोखला  कर  देता  है  और  उनकी  एनर्जी  पर  स्वयं  भोग-विलास  का  जीवन  जीता  है   और  संभवतः  दूसरों  को  भी  इस  एनर्जी  की  सप्लाई  करता  है  इन्हें  एनर्जी वैम्पायर '  कहते  हैं  l  ऐसे  लोगों  से  अपनी  सुरक्षा  करने  के  लिए  ही  हमारे  धर्म ग्रंथों  में   नमस्कार  करने   का  प्रावधान  है , हाथ  मिलाने  का  नहीं  l  केवल  जागरूक  होकर  ही  ऐसे  लोगों  से  सुरक्षा  संभव  है  l