भगवान श्रीकृष्ण ने अपने व्यवहार से संसार को शिक्षण दिया कि मनुष्य में नम्रता होनी चाहिए , अहंकार को त्याग देना चाहिए --- श्रीकृष्ण स्वयं अर्जुन के सारथि बने , पांडवों की ओर से एक स्वयंसेवक की भाँति व्यवहार करते हुए महाभारत युद्ध में भाग लिया l ऐसे निराभिमानी भगवान कृष्ण को अर्जुन ने अपने पक्ष में चुना , किन्तु दुर्योधन ने उनका महत्व नहीं समझा , वह तो उन्हें ग्वाला ही कहता था इसलिए उसने उनकी विशाल सेना को मांग लिया l जब राजसूय यज्ञ शुरू होने को था l सबके लिए काम बांटे जा रहे थे l श्रीकृष्ण ने भोलेपन से अपने लिए भी काम माँगा , लेकिन पांडवों ने कहा --- भगवन ! आपके लिए तो हमारे पास कोई भी काम नहीं है l बहुत ज्यादा जोर देने पर उनसे कह दिया कि वे अपनी पसंद का काम स्वयं ढूंढ़ लें l सभी ने देखा कि श्रीकृष्ण यज्ञ में आदि से अंत तक अतिथियों के चरण धोने , झूठी पत्तलें उठाने तथा सफाई रखने का काम स्वयं करते रहे l