6 December 2020

WISDOM -----

   रामायण   में एक  चौपाई  है --- 'उधरहिं  अंत  न  होइ  निबाहु  l   कालनेमि  जिमि  रावन   राहू  ll     अर्थात  जब  धर्म  का  ढोंग  करने  वाले   अधर्मीजनों  की  पोल  खुलती  है  ,  तो  उनका  कहीं  निर्वाह  नहीं  होता  ,  उन्हें  कहीं  ठिकाना  नहीं  मिलता   l   उनका  वही  हाल  होता  है  ,  जो  संन्यासी  बनकर  भिक्षा  मांगने  वाले   रावण  का  हुआ  l   वह  अपने   परिवार सहित  दुर्गति  को  प्राप्त  हुआ   l   जो  हाल  साधु  बनकर  रामनाम  जप  का  आडम्बर  करने  वाले  कालनेमि  असुर  का  हुआ   l   वह  महावीर  हनुमान  के  हाथों  मारा  गया    l  और  जो  हाल  राहु  का  हुआ   l   देवता  बनने   का  स्वांग  भरने  वाले   इस  असुर  को  अपना  सिर   कटवाना  पड़ा  l   ढोंगियों  का  ऐसा  हाल  होता  रहेगा  l   आचार्य श्री  लिखते  हैं   धर्म  की  सम्पूर्ण  रचना  ' तमसो  मा   ज्योतिर्गमय  '  का  महान  उद्देश्य  लेकर   विकसित  हुई  है   l   धर्म  की  वैज्ञानिक  दृष्टि  अति  आवश्यक  है   l 

WISDOM ----

   किसान  और  उसकी  पत्नी  साथ - साथ  खेत  पर  जा  रहे  थे   l   पत्नी  राजमहल  की  शोभा  देखती  पीछे  रह  गई   l   किसान  ने  पुकारा  --- " व्यर्थ   क्यों समय  खराब   करती  हो  ?   इस  महल  से  तो  हमारा  महल  सौ   गुना  अच्छा  है  l '    राजा  ऊपर  बैठा  यह  वार्तालाप  सुन  रहा  था   l   उसने  बुलाकर  पूछा  --- "  भला  तुम्हारा  महल  कहाँ  है  ? '  किसान  ने  कहा  ---- " हरे - भरे  खेतों  का  फला - फूला   क्षेत्र  ही  हमारा  महल  है  ,  जिससे  असंख्यों  का  पेट  भरता  है  ,  आपके  महल  में  यह  विशेषता  कहाँ  है  ? "  राजा   नतमस्तक  हो  गया  l 

WISDOM------

 इतिहास  में  ऐसे  बहुत  कम  उदाहरण   हैं   , जहाँ    किसी  ने  भगवान  को  इस  तरह  अपने  जीवन  में  घोल  लिया  हो  ,  जैसे   वे  कभी  उनसे  पृथक  ही  न  हुए  हों  l  मीरा  की  भक्ति  अद्वितीय  थी   l   मीरा  का  व्यक्तित्व  ऐसा  था   जिसने  अपने  जीवन  में   भगवान  श्रीकृष्ण   की  मूर्ति  में   श्रीकृष्ण  को  जीवंत   कर  लिया  था   l   उन्होंने  स्थूल  दृष्टि  से   न  तो  कभी   भगवान  श्रीकृष्ण  को  देखा  ,  न  उनकी  वाणी  सुनी  ,   न उनका  सान्निध्य  पाया ,  लेकिन   फिर  भी  अपने  मन  में   श्रीकृष्ण  की  मूरत  को  ऐसा  बैठाया   कि   भगवान  को  हर  पल   उनके  साथ  रहना  पड़ा  l   उनकी  सुरक्षा  का  पूरा  दायित्व  भी  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  अपने  ऊपर  ले  लिया  था  l   इसी  कारण  विष   का प्याला  ,  साँप   की  पिटारी   आदि  भी    मीरा  के    प्राण   न  ले  सके   l   मीरा  को  जिसने  जन्म  दिया  ,  वह  माँ  उसे  बचपन  में  ही  छोड़कर  चली  गई ,  मीरा  की  जिससे  शादी  हुई  वह  कुंवर  भोजराज  भी   ज्यादा  दिन  जीवित  न  रहे  l   उनके  बाबा  राव  दूदा ,  जिन्हे  वह  अपना  बहुत  मानती  थीं , पिता  रतन सिंह  ,  सह उम्र  का  भाई  --ताऊ जी  का  बीटा  जयमल  --- एक - एक  कर  के  सब  उन्हें  छोड़कर  चले  गए   और  इस  संसार  में  ऐसे  लोगों  से  उनका  पाला   पड़ा  ,  जो  उनका  अपमान  करते ,  उन्हें  तिरस्कृत  करते   और  यहाँ  तक  कि   उनके  प्राण  लेने  के  लिए   तरीके  सोचते  और  उसके  लिए  प्रयास  करते  l   ऐसे  लोगों  के  बीच  रहकर  भी   मीरा  के  मन  में  कभी  द्वेष , घृणा  ,  छल , कपट  ,  झूठ   और  बदला  लेने  का  भाव  नहीं  आया   l    वे तो  सदैव  ही  प्रेम  और  भक्ति  रस   में  डूबी  रहीं   और  सब  कुछ  भगवान  पर  छोड़कर   निश्चिंतता   व   निर्भीकता  के  साथ  रहीं   l   वे  केवल   कृष्णोपासिका  और  कृष्णप्रेमिका   नहीं  थीं  ,  बल्कि  उन्होंने  अपने  भक्तिरस  से   अनेकों  हृदयों  का   मैल   धो  दिया   और  बदले  की  आग  में  डूबे   हुए  ,  युद्ध , लूटमार , छल , कपट  के  साये  में   जीने  वाले  राजवंश   और  समाज  को   भक्ति का  पाठ  पढ़ाया   l