31 August 2020

WISDOM ----

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  कहते  हैं ---' अपने  जीवन  में  चाहे  जितने  भी  रिश्ते  हों  ,  लेकिन  एक  रिश्ता  भगवान  से  भी  रखना  चाहिए   और  अपने  मन  की  हर  बात  को  उनसे  बताना  चाहिए   l    यह संवाद  भले  ही  एकतरफा  होता  है ,  लेकिन  जिंदगी  की  बहुत  सारी   उलझनों  को    सुलझाता  है  l   इससे  हमारी  भावनाओं  को   संबल   मिलता  है   कि   कहीं  कोई  है  जो  हमारा  ध्यान  रखता  है   और  मुसीबत  के  समय  भी  हमें  गिरने  नहीं  देता  है  ,  संभाल   लेता  है  l   इसके  साथ  ही  अपने  कर्तव्य  का  पालन   और  प्रबल  पुरुषार्थ  करने  से  भी  पीछे  नहीं  हटना  चाहिए  l   जिंदगी  स्वयं  में  एक  शिक्षक  की  तरह  है  ,  जो  हर  कदम  पर  शिक्षण  देती  है  l 

WISDOM -----

     मनुष्य   को यह  जन्म  अपनी  प्रगति  और  विकास  के  लिए  मिला  है   और  उसे  सदा  इस  दिशा  में  प्रयत्नशील  रहना  चाहिए  l  ऋषि  पुलस्त्य  के  पुत्र  विश्रवा   को  एक  कुरूप  और  बेडौल  पुत्र  उत्पन्न   हुआ  l  उसका  नाम  था  कुबेर   l  उसे  देखकर  सभी  घरवाले  खिन्न  हो  गए   l  बालक  कुबेर  जब  बड़ा  हुआ   तो  उसे  अपनी  ये  उपेक्षा  सहन  नहीं  हुई  l   उसने  अपनी  योग्यता  बढ़ाने  का  निश्चय  किया  l   वह  कठोर  तप  द्वारा   धनाधीश  लोकपाल  बनकर  अलकापुरी  में  राज्य  करने  लगा  l   जो  लोग  पहले  कुबेर  का  उपहास  करते  थे  ,  उन्हें  कुबेर  के  समक्ष  नतमस्तक  होना  पड़ा  l   लोकमान्य  बाल  गंगाधर  तिलक  कहा  करते  थे  ---- " मैं  संसार  में  एकमात्र  वस्तु   को  पवित्र  मानता   हूँ   और  वह  है  ---- मनुष्य  का  अपनी  प्रगति  के  लिए  किया  गया   अनवरत  प्रयास  l   मानव - मात्र  के  प्रति  निश्छल  प्रेमभाव   रखते  हुए   और  ईर्ष्या - द्वेष  आदि   कलुषित  भावनाओं  से  दूर  रहकर   निष्काम  भाव  से   श्रमशील  रहने  की  भावना  ही   जीवन  की  सर्वोच्च  साधना  है  l  "

30 August 2020

WISDOM ---- कथा - उपदेश वाणी की कला नहीं है , इसके पीछे आस्था का बल होना चाहिए ---- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

  आचार्य  श्री  ने  लिखा  है  --- कथा - उपदेश  का   जनता  पर  प्रभाव  तब  पड़ता  है  , जब  उसके  पीछे  आस्था  का  बल  हो  ,  और  यह  बल   उपदेशों  को  पहले  अपने  जीवन  में  उतारने   से  आता  है   l  भागवत   करुणा  और  भक्ति  का  शास्त्र  है  l  आचार्य श्री  के  पिता  पंडित   रूपकिशोर जी   अपने  क्षेत्र  में  भागवत   व्यास  के  रूप  में  श्रद्धा   की  दृष्टि  से  देखे  जाते  थे  l  उनके  जीवन  की  एक  घटना  है  ------ पंडितजी  कथा  कहने  जा  रहे  थे  कि   रास्ते  में  उनकी  मुलाकात  धांधू  नामक   डकैत  से  हुई  , वह  कहने  लगा ---- आप  ब्राह्मण  देवता  हैं  , आपका  अनादर  तो  नहीं  करूँगा  ,  लेकिन  मैं  दस्यु  हूँ  l   लूटना  छोड़  दूँ   तो  अपना  और  आश्रितों  का  निर्वाह  कैसे  करूँगा   ?  इसलिए  आपके  साथ  बल प्रयोग  नहीं  करूँगा   सिर्फ  यही  चाहूंगा   कि   आपके  पास  जो  कुछ  भी  है   वह  चुपचाप  रख  दें  l   पंडित जी  निश्चिन्त  भाव  से  धांधू  को  निहारने  लगे  l   यह  देख  डाकू  अचरज  में  पड़   गया  और  बोला  ,  पंडित जी  मैंने  जो  कहा ,  वह  आपने  सुन  लिया  l   पंडित जी  ने  कहा --- सुन  लिया  है  ,  पर  मैं  अभी  तुम्हे  कानी   कौड़ी  भी  नहीं  दूंगा  l   अगर  कथा  सुनने  चलते  हो   तो  वचन  देता  हूँ  कि   वहां  जो  भी  दान - दक्षिणा   आएगी   सब  तुम्हे  सौंप  दूंगा  l   पंडित जी  की  आवाज  में  प्रभाव  था  कि   डाकू  कथा  सुनने  के  लिए  तैयार  हो  गया  और  उनके  साथ  चल  पड़ा  l   भागवत  सप्ताह   की पूरी  अवधि  में  उसने   ध्यान  से  कथा  सुनी  l   भागवत   सप्ताह  पूरा  होने  के  बाद   पंडित जी  ने  दान - दक्षिणा  समेटकर   धांधू  के  हाथ  में  सौंपी  l   रूपये , पैसे , आभूषण , मेवे , मिठाई  से   गठरी  बंध   गई  थी  l   डाकू  ने  गठरी  उठाई  , सिर   पर  रखी   और  बोला --- आदेश  करें  प्रभुजी ,  किधर  चलना  है   l  पंडित जी  ने  कहा --- जहाँ  तुम  ले  जाना  चाहते  हो  ले  जाओ  ,  मैंने   अपना वचन  पूरा  कर  दिया   l  धांधू  ने  गठरी  उतार कर  एक  तरफ  रख  दी  और  पंडित जी  के  पाँव  में  लोट  गया ,  जोर - जोर  से  रोने  लगा   और  कह  रहा  था  -- भगवन  क्षमा  करें , मुझे  राह  मिल  गई  ,  अब  मैं  मेहनत   और  ईमानदारी  की  कमाई  ही  खाऊंगा   और  उसी  से  परिवार    का गुजारा   करूँगा  l  '     जिसने  भी  देखा  उसे  विश्वास  ही  नहीं  हुआ  कि   धांधू  बदल  गया   l  

28 August 2020

WISDOM ------

 श्रीकृष्ण  द्रोपदी  से  कहते  हैं --- " कृष्णा  ! तुम्हारे  खुले  बालों  की  कीमत   सहस्त्रों  सैनिकों  की  बलि  नहीं  हो  सकती   l  दु: शासन  को  मारने  की  तुम्हारी  प्रतिज्ञा   से  मैं  बँधा   नहीं  हूँ   l  मैं  धर्म  की  संस्थापना  के  लिए  ,  अधर्म  का  निवारण  करने  के  लिए  आया हूँ  l 

  भगवान  कृष्ण  ने  हर  संभव  प्रयास  किए   कि   युद्ध  टल   जाये   लेकिन  दुर्योधन  अधर्म   और  अनीति    के  मार्ग  को  छोड़ने  के  लिए  राजी  नहीं  था  ,  वह  पांडवों  को  सुई  की  नोक  बराबर  भूमि  भी  नहीं  देना  चाहता  था   l   जब  युद्ध  भूमि  में  अपने  ही  परिवार  के  सदस्यों  को  सामने  देख  अर्जुन  ने   गांडीव  धनुष  जमीन   पर  रख  दिया    तब  भगवान  कृष्ण  ने  गीता  का  उपदेश  देकर  अर्जुन  को  समझाया   कि ----- ' पाप  को  हम  न  मारें ,  अधर्म , अनीति  का  संहार  हम  न  करें    तो  निर्विरोध  स्थिति  पाकर   ये  पाप , अधर्म   व  अनीति   हमें , हमारी  सामाजिक  व्यवस्था   को  मार  डालेंगे   l  '  इसलिए जीवित  रहने  पर  सुख   और  मरने  पर  स्वर्ग  का  उभयपक्षीय   लाभ  समझाते   हुए   उन्हें  युद्ध  के  लिए   उठ  खड़े  होने  का   उद्बोधन   देते  हैं   l 

27 August 2020

WISDOM -----

   अमरदास  सिख  संप्रदाय   के  तृतीय  गुरु  थे  l   उन्होंने  अपने  अनुयायियों  को  सामूहिक  लंगर   में  भोजन  कराने  की  प्रथा  का  सूत्रपात  किया  ,  ताकि  मनुष्य - मनुष्य  के  बीच  ऊंच - नीच   के  भेद  को  मिटाया  जा  सके  l   एक  बार  एक  अधिकारी  ने   आकर   सेवकों  के  माध्यम  से   अमरदास जी  को   सूचना    भिजवाई   कि   शहंशाह  अकबर   आपके  दर्शन  करना  चाहते  हैं  ,  भोजन  भी  यहीं  करेंगे  l   अमरदास जी  बोले ---- " यहाँ  सभी  समान  हैं  l  यदि  शहंशाह   सामान्य  नागरिक  की  तरह  आकर   सबके  साथ  बैठकर   लंगर  भोजन   करने  को  तैयार   हों  तो  आ  सकते  हैं   l  "   बादशाह  ने  वैसा  ही  किया  ,  तब  कहीं  गुरु - दर्शन  प्राप्त  हुए   और  उनके  सत्संग  का  लाभ  मिला  l     अहंकार   के  हटने  पर  ही   श्रेष्ठता  का  सान्निध्य   प्राप्त   हो सकना  संभव  हो  पाता   है  l 

26 August 2020

WISDOM -----

  सोलहवीं  शताब्दी  में   जन्में  रहीम  खानखाना  ने   बड़ी  भक्ति पूर्वक   राम कथा  को  गाया  और  अपनाया  l   रहीम  मुसलमान   थे  , परन्तु  प्रभु  श्रीराम  पर  उनकी   अटल  श्रद्धा  थी  l  वह    कहा  करते  थे  ---- ' रहिमन   धोखे  भाव  से ,  मुख  तें   निकसे  राम  l  पावन   पूरन  परम  गति  ,   कामादिक  को   धाम   l '  उन्होंने  स्पष्ट  कहा  कि   संसार  सागर  से      पार   उतरने  का  एकमात्र  उपाय   प्रभु  श्रीराम   की    शरणागति   है  l  वे  कृपामय  प्रभु  जगत  की  विषय - वासना  से  प्राणी  को  मुक्त  कर  उसे  अपनी  भक्ति  प्रदान  कर  निर्भय  कर  देते  हैं   l  उनका  कथन  है ---- ' गहि  सरनागति  राम  की  , भवसागर  की  नाव  l   रहिमन  जगत  उधार  कर   ,  और  न  कछु  उपाय  l 

WISDOM ----

   एक  बार  एक  व्यक्ति  ने  अपना  सर्वस्व  परोपकार  में  लगाकर  संन्यास  ग्रहण  किया  l  वह  सभी  प्रकार  से  ईश्वर  के  लिए  समर्पित  हो  गया  l   उसके  समर्पण  के  कारण  भगवान  को   उसके  योग  व  क्षेम  का  भार  उठाने  के  लिए  सहर्ष  ही  बाध्य  होना  पड़ा  l   उसके  लिए  नित्य  प्रति  एक  देवदूत  एक  थाली  में  सुस्वादु  भोजन  लाता   और  उसे  करा  कर  लौट  जाता  l  यह  देख  एक  अन्य  व्यक्ति  ने  भी  अपना  सब  कारोबार  लड़कों  को  सौंपकर  , गेरुए   वस्त्र  पहन  कर  उस  स्थान  पर  तप  करने  लगा  l   अब  देवदूत  दो  थालियाँ   लगाकर  लाया  --  एक  में  सूखी   रोटी  थी   तो  दूसरे  में  स्वादिष्ट  भोजन  l    दूसरे  व्यक्ति  ने  अपनी  थाली  में   सूखी   रोटी  देख   देवदूत  से  प्रश्न  किया  --- ' मुझे  ही  सूखी   रोटी  क्यों  मिल  रही  है  ? '  देवदूत  ने  उत्तर  दिया --- " इस  थाली  में  भोजन  व्यक्ति  के  संचित  पुण्य  के  अनुसार  ही  मिलता  है  l   उस  व्यक्ति  ने   अपना  जीवन  परोपकार  में  लगा  दिया   और  उसके  उपरांत   उसकी  ईश्वर  शरणागति  के  पुण्य  के  रूप  में   उसका  जीवन  भगवान  की  धरोहर   हो  गया  , इसलिए  उसे  सुस्वादु  भोजन  मिलता  है  l   जबकि  आपने  जीवन  में  मात्र  एक  बार  एक  व्यक्ति  को  अहंकार  से  भरकर   सूखी   रोटी  दी  थी  ,  वही   सूखी    रोटी   आज  आपकी  थाली  में   आपके  लिए  लौटकर  आई  है  l   अब  आपकी  सूखी   रोटी  भी  समाप्त  होने  को  है  ,  कल  से  आपको  कुछ  नहीं  मिलेगा  l  "  अब  उस  व्यक्ति  की  चेतना  जाग्रत  हुई  ,  उसने  अपनी  वह  सूखी   रोटी  भी  दान  में   दे  दी   और  स्वयं  भूखा  रहा  l   इसके  बाद  उसने  परोपकार  के  कार्य  किये   फिर  वह  भी  प्रभु  की  कृपा  का   अधिकारी बना  l  

25 August 2020

WISDOM -----

  इस  संसार  में  अनेक  लोग  ऐसे  हैं   जो  अपने  अधिकारी ,   अमीरों  और  शक्ति संपन्न  लोगों  की  खुशामद  किया  करते  हैं   ताकि   कम    समय  और  कम  परिश्रम   में  उन्हें  अधिक  लाभ  मिल  जाये   लेकिन  जो  कर्मयोगी  हैं  ,  ईश्वर विश्वासी  हैं  , उनके  लिए    ' परमात्मा    पर्याप्त  है  l '   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---' जिनके  पास  सब  कुछ  है  ,  सारा  ऐश्वर्य  है  ,  ईश्वर  के  बिना  वे  दरिद्र  दिखाई  देते  हैं   l   ऐसे  संपत्तिशाली   भी  मिले  ,  जिनके  पास   कुछ  भी  नहीं  है  ,  केवल  परमात्मा  है   l   '

 एक  पुरानी   कथा  है  ---- किसी  चारण  ने   एक  सम्राट  की  बहुत  तारीफ   की  l   उसकी   स्तुति  में   अनेक  सुन्दर  गीत  गाये  l  यह  सब  उसने  कुछ  पाने  की  लालसा  से  किया  l   उसकी  प्रशंसाओं  से  सम्राट  हँसता  रहा   फिर  उसने  स्तुतिगान  करने  वाले   उस  चारण  को  सोने  की  बहुत  सी   मुहरें    भेंट  की  l   उस  चारण  ने  जब  इन    मुहरों  पर  निगाह  डाली   तो  उसके  अंदर  कुछ  कौंध  गया   l   उसने  आकाश  की  और  कृतज्ञता  भरी  नज़रों  से  देखा  l   उन  मुहरों  को  देखकर  उसमें  न  जाने  कैसी  क्रांति  हो  गई  ,  अब  वह  चारण  न  रहा  ,  संत  बन  गया   l   बहुत  वर्षों  बाद   किसी  ने  उससे  पूछा  --- 'ऐसा  क्या  था  उन  मुहरों  में  ? '  वह  हँसा   और  बोलै  --- मुहरें  नहीं , वह  वाक्य  जादुई  था  ,  जो  उसमे  लिखा  था  l   उस  पर  लिखा  था ---- 'जीवन  की  सभी  आवश्यकताओं  के  लिए  परमात्मा  पर्याप्त  है  l  '

24 August 2020

WISDOM ----- दोष एवं गलतियों का निराकरण - परिमार्जन सबसे बड़ी साधना है ---- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

  आचार्य श्री  लिखते  हैं --- ' महत्वपूर्ण  बात  यह  है  कि   हमें   दोष अपना  देखना  चाहिए  , दूसरों  का  नहीं  l   दूसरों  की  ओर   ताक - झाँक  हमें  आत्मविमुख  कर  देती  है  और  घोर  पतन  की  राह   पर धकेल  देती  है  l 

  अपने  दोषों  को  खोजना   और  दूसरों  से  अपनी  कमियाँ  - खामियाँ   सुनना   बहुत  कठिन  काम  है   l  इन  सब  में  हमारा  अहंकार  आड़े  आता  है  l   आचार्य श्री  लिखते  हैं  --- ' मनुष्य  होने  के  नाते  हम  सब  से  गलतियाँ   होना  स्वाभाविक  है  l  हम  जीवन  के  प्रति  होश  में  रहें  l   यह  सर्वाधिक  महत्वपूर्ण  तथ्य  है  कि  हमें   अपनी  छोटी  सी  गलती  भी   साफ - साफ  दिखाई  दे  l   भूल  को  स्वीकार  करने  का  साहस  हो  l   अगर  कभी  गलती   हो जाये   तो  अपने  को   तथा औरों  को  कोसने  के  बजाय   शांतिपूर्वक   परिस्थिति  व  कारण  की  खोज  करनी  चाहिए   तथा  इसे  न  दोहराने  के  लिए  कटिबद्ध  होना  चाहिए  l   अपनी  कमजोरी  के   छोटे  पक्ष  को  ,  एक  छोटी  सी  गलती  को   अत्यंत  धैर्य  और  साहस  के  साथ    सुधारने  का  प्रयास  करना  चाहिए   l  हमें  हमारे  दोष  बार - बार  गिराते   हैं   और  हम  गिरते   हैं ,  पर  गिरकर  हमें  उठना  नहीं  आता   l   हर  गलती  से  सीख  लेकर   अगर  हम  उठ  सकें   तो  हमारा  जीवन  पवित्रता  को  पा  सकता  है  ,  यही  अध्यात्म   का प्रवेश  द्वार  है   l  "

23 August 2020

WISDOM -----

   श्रीमद्भगवद्गीता  में   भगवान      श्रीकृष्ण  कहते  हैं ---- " जैसे  जल  में  चलने  वाली  नाव  को   वायु  हर  लेती  है  ,  वैसे  ही  विषयों  में   विचरती  हुई  इन्द्रियों  में  से   मन  जिस  इन्द्रिय  के  साथ  रहता  है  ,  वह  एक  ही  इन्द्रिय   इस  पुरुष  की   बुद्धि  को  हर  लेती   है  l "

जब  इंद्रिय   व  मन   मिल  जाते  हैं  तो  उनका  पक्ष  प्रबल  हो  जाता  है  ,  तब  अकेली  रह  जाने  के  कारण  बुद्धि  अपना  काम  नहीं  कर  पाती  ,  और  बुद्धि  कुबुद्धि  बनकर   अनर्थकारिणी  बन  जाती  है   l   एक  विचारक  का  कथन  है --- " जो  मनुष्य  अधिकतम  संतोष  और  सुख  पाना  चाहते  हैं  ,  उनको  अपने  मन  और  इन्द्रियों  को  वश  में  रखना  चाहिए  l   आर्थिक  दृष्टि  से  मनोनिग्रह    और  संयम  का  मूल्य  लाखों - करोड़ों  रूपये  से  भी  अधिक  है  l   जो  मनुष्य  अपना  स्वामी  है   और  इंद्रियों   को    इच्छानुसार  चलाता   है  ,  वासना  से   नहीं हारता  है  ,  आर्थिक  दृष्टि  से  सुखी  रहता  है  l   प्रलोभन  एक  तेज  आंधी  के  समान   है  ,  जो  मजबूत  चरित्र  को  भी  ,  यदि  वह  सतर्क  न  रहे  ,  गिराने  की  शक्ति  रखता  है   l   जो  जागरूक  है  ,  वही   संसार  के   नाना  प्रलोभनों -  आकर्षणों   और  मिथ्यादंभ  से  मुक्त  रह  सकता  है  l 

WISDOM -----

  अनावृष्टि  से  संकटग्रस्त  जनता  की  सहायता  के  लिए   छत्रपति  शिवाजी   एक  बाँध  बनवा  रहे   थे  l  मजदूरी  करके  सहस्त्रों  व्यक्तियों  के  भरण - पोषण  की  व्यवस्था  हो  रही  थी  l  छत्रपति  शिवाजी  ने  एक  दिन  यह  देखा   तो  गर्व  से  फूले   न  समाये   कि   वे  ही  इतने  लोगों   को  आजीविका  दे  रहे  हैं  l   यदि  वे  ये  प्रयास  न  करते   तो  उतने  लोगों  को  भूखे  मरना  पड़ता   l    समर्थ  गुरु  रामदास  उधर  से  निकले   l   शिवाजी   ने  उनका  सम्मान - सत्कार  किया   और  अपने  उदार - अनुदान  की  गाथा  कह  सुनाई  l    समर्थ  गुरु  उस  दिन  तो  चुप  हो  गए  ,  पर  जब  दूसरे  दिन  चलने  लगे   तो  शांत  भाव  से   एक  पत्थर  की  ओर   संकेत  कर  के   शिवाजी  से  कहा --- ' इस  पत्थर  को  तुड़वा  दो  l  '   पत्थर  तोडा  गया   तो  उसके  बीच  एक   गड्ढा  निकला  ,  उसमें  पानी  भरा  था  l  एक  मेढ़की  कल्लोल  कर  रही  थी  l   समर्थ  गुरु  रामदास  ने   शिवाजी   से  पूछा  --- " इस  मेढ़की  के  लिए   संभवत:  तुमने  ही  पत्थर  के  भीतर    यह  जीवन  रक्षा   की  व्यवस्था  की  होगी  ? "  शिवाजी  का  अहंकार  चूर - चूर  हो  गया   , वे  समर्थ  के  चरणों  में  गिर  पड़े  l   समर्थ  गुरु  रामदास  ने  उन्हें   अपनी  भूमिका  का  बोध  कराया   और  आततायियों  से  संघर्ष  हेतु   नीति   बनाने  के  लिए  बाध्य  किया  l   समर्थ  गुरु  का  मार्गदर्शन  एवं   कृपा  ही  थी   जिसने  शिवाजी  को  समय - समय  पर   सही  सूत्र  देकर   आपत्ति  से  बचाया   व  श्रेयपथ  पर  अग्रसर  किया  l 

22 August 2020

WISDOM ------

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " कहावत  है  कि   अपनी  अक्ल  और  दूसरों  की  संपत्ति   चतुर  को  चौगुनी   और  मूर्ख   को  सौ   गुनी  दिखाई  पड़ती  है  l   संसार  में  व्याप्त  इस   भ्रम  को  महामाया  का   मोहक  जाल   ही  कहना  चाहिए   कि    हर  व्यक्ति   अपने  को  पूर्ण  निर्दोष  एवं   पूर्ण   बुद्धिमान   मानता   है   l  न  तो  उसे  अपनी  त्रुटियाँ   सूझ  पड़ती  हैं   और  न  अपनी  समझ  में   कोई  दोष  दिखाई   देता  है  l  इस  एक  ही  दुर्बलता  ने  मानव  जाति   की  प्रगति  में   इतनी  बाधा  पहुंचाई  है  ,  जितनी  संसार  की  समस्त  अड़चनों  ने  मिलकर   भी  नहीं  पहुंचाई  होगी  l   "

आचार्य  श्री आगे  लिखते  हैं ---- " अध्यात्म - विद्द्या   का प्रथम  सूत्र  यह  है   कि प्रत्येक  भली - बुरी  परिस्थिति  का   उत्तरदायी   हम  अपने   आप   को    मानें   l   बाह्य  समस्याओं  का  बीज   अपने  में  ढूंढें   और  जिस  प्रकार  का  सुधार   बाहरी  घटनाओं  , व्यक्तियों  और  परिस्थितियों   में   चाहते   हैं ,  उसी  के  अनुरूप   अपने  गुण  , कर्म , स्वाभाव  में  हेर - फेर  प्रारम्भ  कर  दें  l  "

वैचारिक   प्रदूषण   से  भरे    इस  समाज  में   कम - से - कम   अपने  चिंतन  को  ऊर्जावान  बनाये  रखें   l   अपना  सुधार  ही   संसार  की  सर्वश्रेष्ठ  सेवा  है   l 

21 August 2020

WISDOM -----

   एक  दिन  पार्वती  जी  ने  महादेव जी  से  पूछा  ---- ' आप  हरदम  क्या  जपते  रहते  हैं  ? '   उत्तर  में  महादेव जी  विष्णुसहस्रनाम  कह  गए  l   अंत  में  पार्वतीजी  ने  कहा --- ' ये  तो  एक  हजार  नाम  आपने  कहे  l  इतना  जपना  तो  सामान्य  मनुष्य  के  लिए   असंभव  है  l   कोई  एक  नाम  कहिये   जो  सहस्त्रों  नामों  के  बराबर  हो   और  उनके  स्थान  में  जपा  जाये  l '    इस  पर   महादेव जी  ने  कहा  ---  ' राम  रामेति   रामेति   रमे   रामे   मनोरमे  l   सहस्त्रनाम   ततुल्यं    रामनाम  वरानने   l   राम   राम  शुभ  नाम  रटि ,  सबबख़न   आनंद - धाम  l  सहस  नाम  के  तुल्य  है  ,  राम - नाम  शुभ नाम   l  "      शिवजी  श्रीराम  जी  से  कहते  हैं ---( श्लोक  का  अभिप्राय )  '  मरने  के  समय   मणिकर्णिका  घाट   पर    गंगा जी  में   जिस  मनुष्य  का  शरीर  गंगाजल  में  पड़ा  रहता  है   उसको  मैं  आपका  तारक  मन्त्र  देता  हूँ  ,  जिससे  वह  ब्रह्म  में  लीन  हो  जाता  है  l '

19 August 2020

WISDOM ------ भय से आनंद नहीं , भीरुता आती है l

   भगवान  श्रीकृष्ण  की  बाल  लीलाएं  हैं  ,  जो  हमें  कुछ  सन्देश  देती  हैं , कुछ  सिखाती  हैं  l   ऐसी  ही  एक  लीला  है ---- वृंदावन  में  इंद्रोत्सव  की  तैयारियाँ   चल  रहीं  थीं  l   गर्गाचार्य   ने  नन्द बाबा  से  कहा  कि   इस  बार  श्रीकृष्ण  को   यजमान  बनाया  जाये  l  इस  हेतु  वे  श्रीकृष्ण  के  पास  गए   l   तब  कृष्ण जी  ने  उनसे  कहा ---- ' आपका  आदेश  है  तो  मैं  मना  नहीं  करूँगा   लेकिन  इंद्रोत्सव  मुझे  पसंद  नहीं  l '  गर्गाचार्य  को  बहुत  आश्चर्य  हुआ  ,  उन्होंने  कहा ---' प्राचीन  काल  से  यह  उत्सव  मनाया  जा  रहा  है   l  तुम्हे  इससे  क्या  विरोध  है   ? '     श्रीकृष्ण  ने  कहा ----- "  यज्ञ  में  हम  ढेरों  सामग्री  इसलिए  समर्पित  कर  देते  हैं    क्योंकि  हम  इंद्र  से  भय  खाते  हैं   l   उसकी  आराधना  नहीं  करेंगे  तो  वह  कुपित  हो  जायेगा  l   मेरा  अन्तस्  कहता  है   कि   भय  से  जो  मनाया  जाये  ,  वह  उत्सव  नहीं  हो  सकता ,  वह  आतंक  है  l   भय  से  भीरुता  आती  है  l "

  गर्गाचार्य  ने  कहा  कि   तुम  क्या  चाहते  हो  ?  तब   श्रीकृष्ण  ने  कहा  ----- " मैं  ऐसा  उत्सव  पसंद  करता  हूँ  ,  जो  प्रेम  और  उल्लास  को  जगाए  l  अपने  गोप - गोपियों  के  सम्मान  में  उत्सव  मनाया  जाये  तो  उत्तम  होगा  l  दूध , मक्खन  और  घी  देने  वाली   गायों   के लिए  उत्सव  मनाएं  l  शीतल  छाया  देने  वाले  वृक्षों  के  लिए  उत्सव  मनाएं  ,  जिनसे  फल - फूल  और  ईंधन  मिलता  है  ,  उनसे  हमें  वन  में  ही  नहीं , घर  में  भी  आश्रय  मिलता  है  l  हमें  इंद्र  के  कोप  से  भयभीत  नहीं  होना  चाहिए  l "  उनके  इस  विचार  का  समर्थन  वहां  आये   मुनि  सांदीपनि  ने  भी  किया   l   उनकी  प्रेरणा  थी  कि  गोपोत्सव मनाकर  गोवर्धन पूजा  की  जाये  , यज्ञ  का  आयोजन  हो  , उसमे  आहुतियां  भी  दी  जाएँ  लेकिन  वे  निमित  मात्र  हों  l   इंद्र  उत्सव  के  लिए  जो  मनो  दूध , घी  और  अन्न   आदि संचित  कर  रखा  गया  था  , वह  व्रज  के  बालकों  के  लिए  रखें   l   गोवर्धन  पूजा  की  नई   परंपरा  शुरू  हुई  l 

18 August 2020

WISDOM ------ गुरु बिन ज्ञान नहीं

      भगवान   श्रीकृष्ण  और  बलराम   ने  सांदीपनि  ऋषि  के  आश्रम  में  रहकर  ज्ञान  प्राप्त  किया  l   उस  समय  आश्रम  में  रहने  के  जो  नियम  थे  उनका  पालन  किया  l   सांदीपनि  सद्गृहस्थ  ऋषि  थे  l   भगवान  कृष्ण  और  बलराम जी  उनसे  शिक्षा  प्राप्त  कर   वापस   जाने  लगे   तो  उन्होंने  अपने  गुरु  से  दक्षिणा  का  आग्रह  किया   l   गुरु  जानते  थे  कि  श्रीकृष्ण  साक्षात्  परब्रह्म  है   l   उन्होंने  असमय   मृत्यु  को  प्राप्त  हुए  अपने  पुत्र  को  मांग  लिया  l   श्रीकृष्ण  ने  गुरु  के  पुत्र  को   यमलोक  से  वापस  लाकर   दिया  और  दक्षिणा  चुकाई   l   ऋषि  सांदीपनि  ने  गुरु  रूप  में   श्रीकृष्ण  और  बलराम  को  ज्ञान  दिया ,  गुरु  माता  ने  स्नेह   लुटाया   और  इस  सत्य  को  जानकर  कि   श्रीकृष्ण  साक्षात्  परमेश्वर  हैं   उनकी  आराधना  की   l 

17 August 2020

WISDOM -----

   स्वामी  विवेकानंद  कहा  करते  थे --- जिसके  मन  में  साहस  तथा  हृदय  में  प्रीति   है ,  वही  मेरा  साथी  बने  l  साहस  के  साथ  यदि  संवेदना  न  हो  तो  युवक  विनाश  की  ओर  बढ़ने  लगते  हैं  ,  जबकि  साहस  के  साथ  संवेदना  हो   तो  मानवता  की  सेवा  की  जा  सकती  है  l  "

16 August 2020

WISDOM ----

     संत  तुकाराम   ने  सेवा  धर्म  को  भी  ईश्वर  भक्ति माना  l   उन्होंने  सबसे  पहले  पूर्वजों  द्वारा  स्थापित   बिट्ठल  मंदिर  का   जीर्णोद्धार  कराया  l   तुकाराम  के  पास  धन  तो  था  नहीं  ,  उन्होंने  श्रमदान  के  द्वारा  इस  कार्य  को  पूर्ण  किया   और  इसी  को  भगवान   की  कायिक  सेवा  मान  लिया  l   इसके  लिए  तुकाराम  ने  स्वयं  पहाड़  से  पत्थर  लाकर  एकत्र   किए ,  मिटटी  भिगोकर  गारा  तैयार  किया   और  फिर  उसकी  दीवार  बनाई  l   यह  सब  कार्य  उन्होंने  अपना  पसीना  बहाकर   किया  l   अपने  इस  उदाहरण  से  उन्होंने  यह  सन्देश  दिया  कि   केवल  कीर्तन  और  नाम  जप   ही  भगवान  की  भक्ति  के  चिन्ह  नहीं  हैं  ,  वरन  किसी  प्रकार  की   प्रत्यक्ष  सेवा   भगवद् भक्ति   का  ही  दूसरा  रूप  है  l 

15 August 2020

WISDOM -----

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  का  कहना  है ----'  पाप , पतन , अनीति  का  मार्ग   शीघ्र  सफलता  का  स्वप्न  जरूर   दिखाता  है  ,  परन्तु     पहुंचता  कहीं  भी  नहीं   है  l  हमारी  चाहतें  अति शीघ्र  पूरी  हो  जाएँ  ,  इस  लालच  में  लोग   धर्म  और  सदाचार  का  पथ  छोड़कर    अपूर्ण  महत्वाकांक्षाओं  की  पूर्ति  के  लिए  निकल  पड़ते  हैं  ,  परन्तु  वो  पथ  मात्र  कीचड़  भरे  दलदल   में  पहुँचाने  के  अतिरिक्त   कुछ  नहीं  करता  l   धर्म   का पथ  समय  साध्य  हो   या  कर्तव्यों  से  परिपूर्ण  --- यह  जीवन  का  राजमार्ग  है  l   उस  पर  चलते  हुए   जीवन  के  उद्देश्य  को  प्राप्त  करना  ही  श्रेयस्कर  है  l   '  आचार्य श्री  लिखते  हैं ---- ' जीवन  में  सुख  आये  या  दुःख  ,  इस  राजमार्ग   को छोड़ने   की भूल   हमें  कभी  नहीं  करनी  चाहिए  ,  क्योंकि  अंतत:   गंतव्य  तक  पहुँचाने  का  कार्य  मात्र  राजपथ  ही  करता  है    l                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                            

WISDOM ----- ' ईश्वर बंद नहीं है मठ में , वह तो व्याप रहा घट - घट में '----- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

   स्वामी  विवेकानंद  के  जीवन   की घटना  है ---  बात   1899  की  है  , जब  स्वामी  विवेकानंद   राजस्थान   में  माउंट  आबू  में   नक्की  झील  के  किनारे  एक  गुफा  में  ठहरे  थे  l  एक  मुसलमान   वकील  के  आग्रह  पर   वे  उसके  घर  पर  रहने   को  चले  गए  l   कुछ  समय  बाद  उस  वकील  ने   महाराजा  खेतड़ी  के   व्यक्तिगत  सचिव   मुंशी  जगमोहन  लाल  को  स्वामी जी  से  मिलने   के  लिए    आमंत्रित  किया  l   जब  मुंशी  जी  ने    स्वामी जी  से    उनके  एक  मुसलमान   के  घर  ठहरने  के  औचित्य  पर  प्रश्न  किया  ,  क्योंकि  वहां  रहने  पर   मुसलमान   द्वारा   उनके  भोजन  का  स्पर्श  होना  स्वाभाविक  था  ,   तब  स्वामी जी  ने  कहा ---- " महाशय  ! आप  क्या  कहते  हैं  ?  मैं  एक     अछूत  के  साथ  भी  भोजन  कर  सकता  हूँ   l   मैं  सर्वत्र  ब्रह्म  के  दर्शन  करता  हूँ  ,  क्षुद्रतम    जीव   में  भी    मैं  ब्रह्म   को   देखता हूँ   और  फिर   सभी  उपासनाओं   का  सार   भी  तो  यही  है   कि   हम  पावन , पुनीत ,  पवित्र , निर्मल ,  निश्छल  , निष्कपट   और  निर्दोष  बनें  l  "    वास्तव   में  एक  ब्रह्मनिष्ठ  व्यक्ति  की  दृष्टि  में   जाति , पंथ ,  मजहब  की  सारी    दीवारें ढह  जाती  हैं   हैं  और   सर्वत्र   उसे ब्रह्म  का  ही  अस्तित्व  दीख  पड़ता  है   l      जब  स्वामी  विवेकानंद  , नरेंद्र  रूप  में  पहली  बार   दक्षिणेश्वर  काली  मंदिर  में   श्री रामकृष्ण परमहंस   से  मिलने  आये  थे  ,  तब   उनके बारे  में   परमहंस जी  ने  कहा  था  ---- " नरेंद्र  ने  पश्चिमी  द्वार  से  कमरे  में  प्रवेश  किया   l   न  तो  वेशभूषा  या  शरीर  की   ओर   उसका  ध्यान  था   और  न  ही  संसार  के  प्रति  आकर्षण ---- कलकत्ते  के  भौतिकवादी  वातावरण  में    इस प्रकार   आध्यात्मिक  चेतना  संपन्न  व्यक्ति  के  आगमन  से   मैं  चकित  रह  गया  l  "   स्वामीजी   की  कविता  की  पंक्ति  है ---- ' बहु  रूपों  में  खड़े  तुम्हारे  आगे  ,  और  कहाँ  हैं  ईश  ?----- 

14 August 2020

WISDOM ------- हम जागरूक हों , यह विश्व बाजार है , इसकी पहुँच हमारी भावनाओं तक है l

   एक  पुरानी   कथा  है --- डाकू  खड़ग  सिंह   और   भोले  संत  बाबा  भारती   की   l    साधु  स्वभाव   के  बाबा  भारती   के  पास  एक  अच्छी   नसल   का  बेशकीमती  घोड़ा  था  l   जिसे   उनसे  छीनने  के  लिए    डाकू  खड़ग  सिंह  ने   हर  जतन   किए , छल - बल  की  युक्ति   और  कुटिलता  ,  सभी  का  सहारा  लिया  ,  परन्तु  सचेत - सावधान   बाबा  भारती  ने  उसकी  हर  चाल  को   नकामयाब  कर  दिया   l   फिर  अंत  में  उसने  बाबा  की  भावनाओं  को    छलने  के  लिए  व्यूह  रचा   l   एक  दिन  शाम  को   जब  बाबा  भारती   अपने  घोड़े  की  पीठ  पर  बैठे   सैर  पर  जा  रहे  थे  ,  उन्होंने  एक  लंगड़े  की  दर्द  भरी  पुकार  सुनी  ---- " अरे  ! मुझसे  चला  नहीं  जाता ,  मुझ  लंगड़े  की   मदद  करो  बाबा  ! "  बाबा  भारती   इस दर्द  भरी  पुकार  पर   अपने  को  रोक  न  सके   और  उन्होंने  घोड़े  पर  खड़ग  सिंह  को  बैठा  दिया  l   कथा  कहती  है  कि   डाकू  खड़ग   सिंह  अपनी  सफलता  पर  हँसा   और  बोला --- ' तुमने  आसानी  से  मुझे  यह  घोड़ा  नहीं  दिया  ,  मैंने  तुम्हारी  भावनाओं   को छल कर  इस  घोड़े  पर  अपना  कब्ज़ा  कर  लिया  l "

  तब  बाबा  भारती  ने  दरद   भरे  स्वर  में  कहा ---- "  अपनी  यह  चालबाजी  किसी  को  मत  कहना   खड़ग  सिंह    अन्यथा  कोई  किसी  लंगड़े  की  मदद   नहीं  करेगा  l  "       लेकिन   लगता  है  डाकू  खड़ग   सिंह  ने  अपनी  सफलता  की  कथा    सबको  विशेष  रूप  से  कॉरपोरेट  जगत  को  सुना  दी  l   उस  ज़माने  में  एक  से  एक अमीर  थे , राजे - महाराजा  थे  , डाकू   खड़ग   सिंह  ने  उनका  किसी  का  घोड़ा  नहीं  छीना  l  सीधे  - सरल ,  भावुक  बाबा  भारती  के  साथ  ही  छल  किया  l    यही  स्थिति  आज  है    सीधी - सरल  ,  रोजी - रोटी  की  चिंता  में  डूबी  हुई  जनता   की  भावनाओं  को  छलकर ,  कभी  भय  दिखाकर ,  कभी  सपने  दिखाकर   कुछ   मुट्ठी भर  लोग   अमीर  व  शक्तिशाली  हो  जाते  हैं  -----

13 August 2020

WISDOM ----- सद्बुद्धि ही संसार के समस्त कार्यों में प्रकाशित है

  सद्बुद्धि   से  अभिप्राय  है  --- दूरदर्शी  विवेकशीलता   l   बुद्धि   तो सभी  मनुष्यों  के  पास  होती  है  ,  पर  यदि  मनुष्य  सद्बुद्धि  संपन्न  हो   तो  वह  अपना  निज  का  कल्याण  करने  के  साथ - साथ   समाज  को  भी  अपनी  विभूतियों  से  लाभान्वित  करता  है  l  भगवान  श्रीकृष्ण  ने   श्रीमद्भगवद्गीता  में    इस  सद्बुद्धि  को  ही   बुद्धिमानों  की  विभूति  और  अपना  स्वरुप  बताया  है   l   गायत्री  उपासना   का सर्वोपरि  लाभ  सद्बुद्धि  के  जाग्रत  होने  के  रूप  में  ही  साधक  को  मिलता  है  l  गायत्री  उपासना  का  प्रत्यक्ष  उपहार  --- सद्बुद्धि  है  l   सद्बुद्धि  जाग्रत  होने  पर  व्यक्ति  श्रेष्ठ   का चयन   करता है   l 

कहते  हैं    जिस  प्रकार  ग्वाला  लाठी  लेकर  पशुओं  की   रक्षा  करता  है  ,  उस  तरह  देवता  किसी  की  रक्षा  नहीं  करते   l   वे  जिसकी  रक्षा  करना  चाहते  हैं  ,  उसकी  बुद्धि  को  सन्मार्ग  पर  नियोजित  कर  देते  हैं   l  जब  व्यक्ति  सद्बुद्धि  से , विवेक  से  कार्य  करता  है  तो  उसका  परिणाम  भी  शुभ  होता  है  l   इसीलिए   चाणक्य  ने  भी  भगवान  से  प्रार्थना  की  कि   भले  ही  मेरा  सब  कुछ  चला  जाये  पर   सद्बुद्धि   बनी     रहे   l 

11 August 2020

WISDOM -----

   " दुःख  में  सुमिरन  सब  करें ,  सुख  में  करे  न  कोय   l  जो  सुख  में  सुमिरन  करे , दुःख  काहे   को  होय  l  "   श्रीमद्भगवद्गीता  में  भगवान   कहते  हैं  --- शुभ  और  अशुभ  दोनों  ही  प्रकार  के  कर्मों  का  फल  मनुष्य  के  लिए   बाधक  है  l '  --------- इस  तथ्य  को  समझाते   हुए  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं   -----  शुभ  कर्मों  का  फल  भोगते - भोगते   कर्तापन  का  अभिमान  हो  जाता  है  l  भाग्य  अच्छा  होता  है  तो  मिटटी  भी  सोना  बन  जाती  है   और  फिर  अहं   और  ऐश्वर्य   सिर   पर  चढ़कर  बोलने  लगता  है  ,  जहाँ  खड़ा   हो जाता  है  वहां  जय - जयकार  होने  लगती  है  l  राजनीति , समाजतन्त्र , धर्मतंत्र   में  कई  ऐसे  व्यक्ति  देखे  जाते  हैं  , जिनके  शुभ  फलों  का  उदय  होते  ही   वे  छलांग  लगाने  लगते  हैं  , रातोंरात  चर्चित  हो  जाते  हैं  ,  पर  यह  सब  स्थायी  नहीं  है  l    अशुभ  फल  जब  पैदा  होते  हैं   तो  हर  जगह  विपदा  ही  विपदा  नजर  आती  है  , अपमान  , षड्यंत्रों  की  श्रंखला  आ  जाती  है    l   हमें  अशुभ  के  क्षणों  में  शुभ  की    तैयारी    करते  रहना  चाहिए   और  शुभ  के  क्षणों  में ,  सुख  के  समय   अशुभ  के  लिए  भी  तैयार  रहना  चाहिए  l  हम  सुख  के  क्षणों  को   योगमय  बना  लें  l   सबको  साझीदार  बनाकर  पुण्य  बांटे   l   सुख  में  कभी  भगवान   को  न  भूलें   l   सुख  आये  तो  उसे  सहज  रूप   स्वीकार  कर  लें  , बौराएँ  नहीं    और  दुःख  आए   तो  उसे  तितिक्षा  मानकर  झेल  लें  l   परमात्मा  सबकी  परीक्षा   दुःखों   के  माध्यम  से  लेता  है   l 

10 August 2020

WISDOM -----

   भगवान  बुद्ध  पहले  ऐसे  महायोगी  थे  , जिनके  भिक्षुओं  में   राजकुमारों  एवं   राजाओं   की  संख्या  बहुलता  से  थी  l   उन्होंने  इन  सबको   पार्थिव  ऐश्वर्य  से  एक  बड़े   ऐश्वर्य  के   दर्शन  कराये  थे  l   बड़ी  चीज   मिल जाने  पर   छोटी  चीज  छूट  जाती  है  l 

 जीवन  भर  भटके  हुए  लोगों  को   सन्मार्ग  दिखाने   वाले  भगवान  बुद्ध  मृत्युशैया  पर  थे  l  सुभद्र  नामक परिव्राजक   ने  जब  सुना  कि   बुद्ध  जैसे  महापुरुष  का  अवसान   होने  जा  रहा  है   और  मैंने  अपने  अहंकार  के  कारण   आज  तक   अपनी  शंकाओं  का  निवारण  नहीं  किया  l   ऐसा  अवसर  , ऐसे  महापुरुष  का  अवतरण  अब  कब  होगा  l   वह  शालिवन    पहुंचा   और  आनंद  से  कहा ---- "  मेरे हृदय  में   धर्म  संबंधी   शंकाएं  हैं  ,  यदि  अब   न मिटीं   तो  कभी  नहीं  मिट  सकेंगी  l  "  आनंद  ने  कहा ---- " वे  निर्वाणशैया  पर  हैं  , अब  उन्हें  कष्ट  मत  दो  l  "  इस  पर  सुभद्र  ने   कहा  ---- "  अच्छा  मुझे  दर्शन  कर  लेने  दो  l "  आनंद  ने  मना  कर  दिया  l   संवाद  बुद्ध  के  कानों  तक  पहुंचा  l   करुणानिधान   भगवान  बुद्ध  बोले --- " आनंद  सुभद्र  को  मत  रोको  ,  आने  दो , वह  ज्ञान प्राप्ति  के  लिए  आया  है  l    l "  सुभद्र  ने  पहली  बार  उनके  दर्शन  किये  और  कहा --- " भंते  !  मैं  धर्मसंघ     की  शरण  में  आना  चाहता  हूँ  , आप  आज्ञा  दें   ल मुझे  भिक्षु   बना लें  l "  बुद्ध  ने  आनंद  से  कहा --- " इसे  अभी  प्रव्रज्या  में  दीक्षित  करो  l  '  और  उसे  अंतिम  उपदेश  दिया  l   सुभद्र  भगवान   बुद्ध  का  अंतिम  शिष्य  था  l  मृत्यु  निकट  है ,  यह  जानकर  भी  जो  परोपकार  से  मुख  न  मोड़े ,  वही  सच्चा  , आत्मज्ञानी   महापुरुष  है  l 



9 August 2020

WISDOM ----- कमजोरी को अपनी ताकत बनाएं

    प्रसिद्ध   मानव  व्यवहार  विशेषज्ञ   ग्रेस  फ्लेमिंग  , आत्म विश्वास  को  सफलता  की  कुंजी  मानते  हैं   l   अपनी  पुस्तक  ' बिल्डिंग  सेल्फ कॉन्फिडेंस  '  में  उन्होंने  कहा  है  ---- " यदि  मनुष्य  अपना  आत्म विश्वास  बढ़ाना  चाहता  है   तो  सबसे  पहले  वह  अपनी  कमजोरियों  को  पहचाने   तथा  उन्हें  दूर  करने  की   खुद  में  शक्ति  पैदा  करे  l   ये  कमजोरियाँ   हमारे   व्यक्तित्व  में  किसी  भी   प्रकार   की  हो  सकती  हैं ---- जैसे  हमारा  ख़राब  स्वास्थ्य  , रूप - रंग , पारिवारिक  पृष्ठभूमि , रहन - सहन , वजन ,  गुण ,  बुरी  आदत   अथवा  गरीबी  आदि  l   हमें  अपनी  कमजोरियों  की  तह  में  जाकर  इनके  कारगर  समाधान  ढूंढ़ने   चाहिए  l   अपनी  इन  कमजोरियों  का  मुकाबला  करने  में   सबसे  पहले  हमें  डर   लगेगा  ,  लेकिन  इस  डर   को  दूर  कर  के  ही  हम   अपनी  कमजोरियों  को  दूर  कर  सकेंगे   और  अपने  आत्म विश्वास  को  बढ़ा  सकेंगे   l  " 

 पं. श्रीराम  शर्मा    आचार्य जी  लिखते  हैं  --- ' कमजोरियों  को  जानना   ही जरुरी  नहीं  है  ,  बल्कि  इनके   भीतर    शक्ति  को  तलाशना   भी  आवश्यक  है  l  हर  व्यक्ति  दुर्लभ   प्रतिभा  को  लेकर   संसार  में  आता  है  l   उस  नैसर्गिक  प्रतिभा  से    आत्म विश्वास   की  पूंजी  में   विस्तार   संभव  है  l '

8 August 2020

WISDOM ----- भय दासता है और साहस विजय

  वर्तमान  विश्व   में जिस  एक  वस्तु  का  व्यापार   सबसे  अधिक  हो  रहा  है  ,  वह  कोई  उत्पाद  नहीं  वरन  एक  प्रकार  का  भय  है   l   गरीब  और  अभावग्रस्त  लोगों  के  पास  खोने  के  लिए  कुछ  नहीं  होता   इसलिए   वे  भयभीत  नहीं  होते  l   जो  जितना  अधिक  संपन्न  और  जितना  शक्तिशाली  है  , वह  उतना  ही  भयभीत  है  l   आधुनिक  सभ्यता  में  भय   बिकता  है   और  यह  सारे  संसार   को  अपनी  चपेट  में  ले  लेता  है  l   भय  के  कारण  व्यक्ति  मानसिक  रूप  से  इतना  परेशान   हो  जाता  है   कि   दुर्घटना , आत्महत्या  , अपराध  बढ़  जाते  हैं   l  भय  मानवी  मनो - मस्तिष्क  को  प्रभावित  करने  वाला   एक  बड़ा  कारक  है  , इसलिए  भय  का  कारोबार  करने  वाले   मनुष्य  की  इस  कमजोरी   से  लाभ  उठाते  हैं  l     भय  पैदा  करने   वाली  फ़िल्में ,  कॉमिक्स   आदि  अब  पुराने   हो  चुके  l   आधुनिक  सभ्यता  ने  भय  को  भी  भयभीत  कर  दिया   और  लोगों  के  मनोमस्तिष्क  पर  छा  गया  है  l 

ईश्वर  विश्वास  से  ही  सब  प्रकार  के  भय  से  मुक्ति   संभव  है  l 

7 August 2020

WISDOM -----

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  अपने  जीवन  के  माध्यम  से   बहुत  ही   क्रांतिकारी    सन्देश  दिए  हैं  ,   जिनमे  से  एक  है ----'  शिक्षा  ही  नहीं  ,  विद्द्या  भी   l  मनुष्य  का  जीवन  अनगिनत   संभावनाओं     से  भरा  हुआ  है   और  ये   संभावनाएं  यह  तय  करती  हैं  कि   मनुष्य  श्रेष्ठताओं  का  चयन  कर  के    उत्कृष्टता   के  पथ  पर  आगे  बढ़ता   है  या  अपने  गलत  कार्यों  से    पतन  के  गर्त  में  गिरता  है  l   मनुष्य  के  पास  कंस  बनने  की   संभावना  तो  है  ,  लेकिन  उसके  पास   कृष्ण  बनने  का  अवसर  भी  है   l   उसमे  रावण  बनने  की   संभावना  तो  है  ,  राम  बनने  का  अवसर  भी  है  l    आचार्य श्री  ने  आगे  कहा  कि --- मनुष्य  के  जीवन  में  अवसर  का  प्रारम्भ  विद्दालय   से  होता  है   l   वर्तमान  की  शिक्षा  प्रणाली  अपूर्ण  है   और  उसे  पूर्णता  तक  पहुँचाने  के  लिए  विद्द्या  की  आवश्यकता  है  l   शिक्षा  हमें  साक्षरता   देती है   तो  विद्द्या  हमारे  जीवन  को  सार्थकता  देती  है  l        जीवन  में  त्याग , बलिदान  , समर्पण , सेवा   आदि  भावनाओं   का विकास   विद्दार्थियों  में   विद्दा  के  माध्यम  से  ही  किया  जा  सकता  है  l                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      

WISDOM ----- यज्ञ का मर्म

 युगों  से  संसार  में  सभी  धर्मों  के  लोग   अपने - अपने  तरीके  से   अपने  ईश्वर  को  पूजते  हैं  , उन्हें  प्रसन्न  करने  के  लिए   बहुत  कुछ  करते  हैं  ,  लेकिन  इन  सब  के  बाद  भी  धरती  पर  पाप , अत्याचार  बढ़ता  ही  जा  रहा  है  ,  लोगों   का जीवन  पहले  से  अधिक  तनावग्रस्त  हो  गया  है  l    कारण  यही  है  कि   लोगों  की  भावनाएं  पवित्र   नहीं हैं  ,    संवेदना , करुणा  नहीं   है  l  स्वार्थ , लालच  और  अहंकार  बढ़  गया   है l ----
 महाभारत   में   राजसूय  यज्ञ  की  कथा  आती  है  , इसमें  नेवले  का  प्रसंग  है  ---पांडवों  द्वारा   किया  गया  राजसूय  यज्ञ  श्रीकृष्ण  की  उपस्थिति  में  संपन्न  हुआ  l  अब  पांडवों  में  बहुत  अहंकार  आ  गया   कि   हमने  इतना  दान  किया , इतने  यज्ञ  किये , इतना  भोजन  कराया  ----   भगवान  श्रीकृष्ण   ने  देखा  कि   पांडवों  में  अहंकार  पल  रहा  है  , यह  यज्ञ  यज्ञीय   भाव  से  नहीं  हुआ   l   श्रीकृष्ण  सभी  को  यज्ञ स्थल   के  पास  ले  गए  ,  वहां  देखा  एक  नेवला   लोट  रहा  है   जिसका  आधा  शरीर  सोने  का  था  और  आधा  सामान्य  था  l   भगवान  श्रीकृष्ण  ने    जानना   चाहा  कि   उसका  यह  शरीर  कैसे  हुआ   ?  नेवले  ने  बताया  ---- ' मैंने  पहले  भी  एक  महायज्ञ  भाग  लिया  था  ,  उसमे  मेरा  आधा  शरीर  सोने  का  हो  गया  l  यहाँ  भी  मैं  इसी  आशा  से  आया  हूँ  कि  बचा   हुआ शरीर  भी  सोने  का  हो  जाये  ,  लेकिन   यहाँ ऐसा  नहीं  हुआ  l "
पांडवों  की  उपस्थिति  में  श्रीकृष्ण  ने   नेवले  से  पूछा   कि   बताओ  पिछले  यज्ञ  कैसा  था   ?    नेवले  ने  बताया  ---- " एक  ब्राह्मण  परिवार  अनुष्ठान  कर  रहा  था , भयंकर  अकाल  की  स्थिति  थी   l  ऐसे  में  उन्होंने  नौ  दिन  पश्चात्  बचा  हुआ   भोजन  लेने  का  विचार  किया  था  l   साधन - सुविधा  कुछ  नहीं  थी  अत:  नवें  दिन   भावनात्मक  पूर्णाहुति  कर   वह  परिवार  ज्यों  ही  भोजन   करने  बैठा   कि   एक  चांडाल  आ  गया  ,  उसने  कहा  कि   हमें  भूख  लगी  है   l   ब्राह्मण   ने अपना  भोजन  उसे  दे  दिया  l   भोजन  करने  के  बाद  उसने  कहा  कि   पेट  नहीं  भरा  , तब  ब्राह्मण  की  पत्नी  ने  भी  अपना  भोजन  उसे  दे  दिया  l  लेकिन  तब  भी  उसका  पेट  नहीं  भरा  l  तब  अंतिम  आस  के  रूप  में   दोनों  पुत्रों  के  पास  जो  भोजन  था  , वह  भी  उन्होंने  चांडाल  को  दे  दिया  l   चांडाल  ने   भोजन  किया  और  तृप्त   हो गया  ,  उसने  पूछा  कि  अब  आप  लोग  क्या  खाएंगे   ?  ब्राह्मण  ने  कहा -- ईश्वर  की  जैसी  इच्छा , हम  पानी  पीकर  पारायण  कर  लेंगे  l  "
    नेवले   ने पांडवों  और  श्रीकृष्ण  को  बताया  --- "  चांडाल  ने    भोजन  कर  के   तृप्त  होकर  जिस  स्थान  पर  कुल्ला  किया  , वहां  कुछ  भोजन  के  कण  भी  गिर  गए  ,  मैंने   उसी में  लोट  लगाईं  थी   तो  मैं  आधा  सोने  का  हो  गया  l   फिर  मैंने  देखा  कि   ब्राह्मण  सपरिवार   चांडाल  रूपी  अतिथि  को  प्रणाम  करने  झुके   तो वहां  स्वयं  नारायण हरि   प्रकट   हो गए  l   भगवान  स्वयं  चांडाल   का रूप  धरकर   ब्राह्मण  परिवार  की  यज्ञीय   वृत्ति  को  परखने  आये  थे   l  "  नेवले  ने  कहा  -- में  युगों  युगों   से प्रतीक्षा  कर  रहा  हूँ  कि   ऐसा  यज्ञ   पुन:  हो  ,  यहाँ  भी  मैं  इसी  आशा  से  आया  था   लेकिन   मेरा दुर्भाग्य  है  कि   अधूरी  आशा   और  आधा  सोने  का  शरीर  लिए  जा  रहा  हूँ  l '
  भगवान  श्रीकृष्ण    ने  पांडवों से  कहा --- ' प्रतिकूलताओं  में  जिसका  यज्ञीय   भाव  जिन्दा   हो  ,  जो  देने  की  आकांक्षा  रखता  हो  ,  जिसकी  भावनाएं  पुष्ट  व  पवित्र  हों  वही  देवता  है   और  इस  भाव  से  किया   गया   यज्ञ  ही  सार्थक  है  l   भगवान  के   ऐसा कहते  ही  घनघोर  घटायें  बरसीं  और  अकाल  दूर  हुआ  l   यह  सब  सुनकर  पांडवों   का अहंकार  दूर  हुआ  l   भगवान  ने  कहा  कि   पहले  यज्ञ   के मर्म  को  समझो  ,  यज्ञमय   जीवन   का मर्म  समझो  ,  तभी  हवं - पूजन ,  यज्ञ  सार्थक  है  l '
  

5 August 2020

WISDOM -----

पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  कहा  करते  थे  -- मनुष्य  वही  है  जो  संवेदनशील  हो  ,  दूसरोँ   की  पीड़ा  जिसे  व्यथित  करती  है   l   वे  कहते  थे  हर  साधन - संपन्न   व्यक्ति  को  अपने  आप  से  पूछना  चाहिए  , जब  देश  में , दुनिया  में   करोड़ों  बच्चे  भूखे  हैं  ,   लेकिन    हमारे  बच्चों  को  अच्छा  भोजन , अच्छे  कपड़े   और  अच्छा  घर  प्राप्त  है    तो  अन्य  बच्चों  को  क्यों  नहीं   ?
 आचार्य श्री  ने  लिखा  है  ---जन्म  लेने  के  बाद  भी  मनुष्य  जीवन  को  प्राप्त  नहीं  करता  l  वह  जन्मते  ही  स्वार्थ  सीखता  है   और  फिर  बड़ा  होने  के  साथ - साथ   इसी  में  पारंगत  और  प्रवीण  हो  जाता  है  l   अपने  स्वार्थ  व  अहं   को  पूरा  करने  के  लिए   चतुराई  व  चालाकी  का  सहारा  लेता  है  l   जन्म  लेने  के  बाद  मनुष्यत्व  को  कैसे  प्राप्त  करें  ,  यही  समझाने   के  लिए   आचार्य श्री  ने  विशाल  साहित्य  रचा   और  इसे  जन - जन  तक  पहुँचाने  के  लिए  अखण्ड  ज्योति   का  आविर्भाव  हुआ  l 
  आचार्य श्री  लिखते  हैं ---'  हमें  स्वाधीनता  मिले  कितने  ही  दशक  हो  गए  ,  पर  द्वेष , दुर्भाव  से  हम  आज  तक  स्वाधीन  नहीं  हो  सके  l    हम  मनुष्य  के  प्रति  विश्वास  और  सद्भाव  को  खो  चुके  हैं  l  हम  अपने   ही  समान  पड़ोसी   को   मनुष्य  रूप  में  देखने  से  पहले    उसे  कुल , बिरादरी , धर्म  व  सम्प्रदाय   के  हिस्सों  के  रूप  में  देखते  हैं  l   यह  मनुष्य  की  संकीर्णता  ही  है   कि   कुल ,  जाति  , धर्म , सम्प्रदाय  के  कारण  ही    एक  इनसान   दूसरे  इनसान   से  घृणा  करने  लगता  है  , इसी  प्रवृति  का  परिणाम  हैं  दंगे ,  जो  यदा - कदा   पूरे   देश  और  देशवासियों  को  दागदार  बनाते  हैं  l  '
 आचार्य श्री  ने  बार - बार  यही  समझाया  है   कि   हमें  जन्म  भले  ही  मनुष्य  शरीर  के  रूप  में  मिला  है ,  परन्तु  जीवन  का  आधार  आत्मचेतना  है   l    चेतना  जाग्रत  हो  ,  हम  सब  एक  माला  के  मोती  हैं  ,  सच्चे  इनसान   बने  l 

4 August 2020

WISDOM -----

  राम कथा  जिसे  हम  पीढ़ी  दर  पीढ़ी   सुनते  आये  हैं  ,  हमें  बताती  है  कि   राम  और  रावण  ,  दोनों  में  बुनियादी  फरक   बस   अहंकार  को  लेकर  था   l   श्रीराम  अहंकारशून्य  थे  ,  जबकि  रावण  के  अहंकार  की  कोई  सीमा  नहीं  थी   l   अहंकार  का  मतलब  है  --- ' मैं  '  को  प्राथमिकता  देना   l   राम  ने  ' मैं  '  को  कभी  प्राथमिकता  नहीं  दी  ,  जबकि  रावण  के  लिए  यही  उसके    अस्तित्त्व  का  आधार  था  l   इसी  अहंकर  के  कारण  रावण  का  अंत  हुआ  l 

WISDOM ------

  गुजरात  की  राजमाता  मीनल  देवी  ने   भगवान  सोमनाथ  का  विधिवत  अभिषेक  कर  के   उन्हें  स्वर्ण  दान  किया  l   राजमाता  के  मन  में  अहंकार   आ  गया  कि  भगवान  को  ऐसा  दान   किसी  ने  नहीं  किया  होगा  l   रात्रि  को  स्वप्न  में   भगवान  सोमनाथ  ने  राजमाता  से  कहा  --- " मेरे  मंदिर  में  आज  एक  गरीब  महिला  आई  है  l   उसका  आज  का  पुण्य   तुम्हारे  स्वर्णदान  की  तुलना  में  कई   गुना  ज्यादा  है  l "
   राजमाता  ने  उस  महिला  को  महल  में  बुलवा  लिया   और  उससे  बोलीं ---- " तुम  मुझे  अपने  संचित  पुण्य  दे  दो  उसके  बदले  में  जितनी  भी  धनराशि  लगेगी  , वह  मैं  देने  को  तैयार  हूँ   l  '
  वह  गरीब  महिला  बोली --- " राजमाता  ! मुझ  गरीब  से  भला  क्या   पुण्य कार्य  हुआ  होगा  ? मुझे  तो  यह  भी  नहीं  पता  कि   मैंने  क्या  पुण्य  किया  है   तो  मैं  क्या  अर्पित  करुँगी  ? "
राजमाता  ने   उसके  विगत  दिवस  के  क्रियाकलाप  के  विषय  में  पूछा  ,  ताकि  यह  पता  चल  सके   कि   उसे  किस  कार्य    हेतु  अपार  पुण्य  मिला  है  l   प्रत्युत्तर  में  वह  गरीब  महिला  बोली --- "  राजमाता  !  मैं  तो  अत्यंत  गरीब  हूँ  l   मुझे  कल  किसी  व्यक्ति  ने  दान  में  एक  मुट्ठी  बूँदी   दी  थी  l   उसमें  से  आधी  बूँदी  मैंने  भगवान   सोमेश्वर  को  भोग  में  चढ़ा  दी   और  शेष  आधी  खाने  चली  थी   तो  एक  भिखारी  ने  मुझसे  मांग  ली   तो  वह  मैंने  उसे  दे  दी  l  "  राजमाता  समझ  गईं   कि   उस  महिला  का  निष्काम  कर्म   उनके  स्वर्णदान  से  बढ़कर  है  l   भगवान   भावनाओं  का  मोल  समझते  हैं  l 

3 August 2020

WISDOM ------

 श्रीमद्भगवद्गीता  में  भगवान  अर्जुन  से  कहते  हैं --- तू  तो  केवल  निमित्त मात्र  बन  जा  l
इसका  अर्थ  है  कार्य  का   कर्ता    भगवान  को  मानना   और  स्वयं  को  उनकी  शक्ति  का  स्रोतवाहक  समझना  l      जब  व्यक्ति   कर्ता   बनकर  किसी  कार्य  को  करता  है   तो  उसका  अहं   जाग्रत  हो  जाता  है   और  यह  अहंकार  व्यक्ति  को   क्षुद्र  बना  देता  है  l
अहंकारी  व्यक्ति  बाहर  से  तो  बहुत  शक्तिशाली  दीखता  प्रतीत  होता  है   लेकिन  वह  अंदर  से  बहुत  कमजोर  होता  है   क्योंकि  उसका  अहंकार  बार - बार  चोटिल  होता  है   जिससे  वह  अपमानित  और  क्रोधित  होता  है  l
पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं --- इस  संसार  में  थोड़ा - बहुत  अहंकार   सभी  पालते  हैं   और   अहंकार  की  खास  बात  यह  होती  है   कि   वह  दूसरों  के  अहंकार  को  सहन  नहीं  कर  पाता  और  स्वयं  को  श्रेष्ठ  साबित  करने  में   उसके  लड़ाई - झगड़े   होते  हैं  l  श्रेष्ठता  इस  बात  में  नहीं   कि   किसका  अहंकार   कितना  बड़ा  है  ,  बल्कि  इस  बात  में  है  कि   किसका  व्यक्तित्व  ज्यादा  महान  है   l   जिस  व्यक्ति  में  अनगिनत  शक्तियों , विभूतियों   और  प्रतिभाओं   के  साथ  विनम्रता   होती  है , वही  सबसे  श्रेष्ठ  व्यक्ति  है   l 

1 August 2020

WISDOM ----- पराजय हमेशा अधर्म की हुई है

 अधर्म  की  शक्तियाँ ---असुर , दानव , दैत्य , राक्षस  सभी  रावण  के  नेतृत्व  में   संगठित  और  व्यूहबद्ध  थे  l   रावण  के  पास  शस्त्रबल ,  शास्त्रबल, बुद्धिबल ,  तपोबल  था  l   यहाँ  तक  कि   देवी  निकुम्भिला  के  साथ   महादेव  व  ब्रह्मदेव  के  वरदान  भी  उसकी  रक्षा  कर  रहे  थे  l   वह  महान  विद्वान्  था , उसका  राजनीतिक   कौशल  भी  अकाट्य  था  l  इन  सब  बलों   के  होते  हुए  भी  उसके  पास  एक  बल  की  कमी  थी ,  और  वह  था ---- धर्मबल   l   इस  बल  के  बिना  वह  बलहीन  था  l  इसके  साथ  ही  वह  अहंकारी  था  , उसने  छल  से   सीताजी  का  अपहरण  किया  था  l
भगवान  श्रीराम   की  शक्ति  का  स्रोत  धर्म  था  ,  उनकी  क्षमता  अनंत  थी  l   धर्म  की  सारी   शक्तियां   भगवान  श्रीराम  के  नेतृत्व  में  संगठित  हुई     स्वयं  देवी  ने  श्रीराम  को  विजयी  होने  का  आशीर्वाद  दिया  l  रावण  ने  भी  शक्ति - पूजा  की  ,  देवी  ने  उसे '  कल्याण  हो '  का  आशीर्वाद  दिया  l   रावण  का  कल्याण   भगवान  के  हाथों  मिट  जाने   में   ही  था   l