12 January 2021

WISDOM ----- विद्वानों की ईर्ष्या अन्यों की अपेक्षा अधिक घातक और व्यापक परिणाम उत्पन्न करती है

   पुराणों  में  एक  कथा  है ----  एक  बार  वैशाली  क्षेत्र  में  दुष्ट - दुराचारियों  का  उत्पात - आतंक   इतना बढ़ा  कि    उस प्रदेश  में  भले  आदमियों  का  रहना  कठिन  हो  गया  l   लोग  घर  छोड़कर   अन्यत्र  सुरक्षित  स्थानों  के  लिए  पलायन  करने  लगे  l   इन  भागने  वालों  में  ब्राह्मण  समुदाय  का  भी  बड़ा  वर्ग   था  l   वैशाली  के  ब्राह्मणों  ने  महर्षि  गौतम  के  आश्रम  में  चलकर  रहना  उचित  समझा  l   महर्षि  गौतम  के  तप  का  प्रभाव  था  कि   वहां  गाय  और  सिंह  एक  ही  घाट   पर  पानी  पीते  थे  l  ब्राह्मणों  को  वहां  आश्रय  मिल  गया  , वे  सुखपूर्वक   रहने  लगे  l  एक  दिन  देवर्षि  नारद  वहां  से  निकले  ,  कुछ  समय  महर्षि  गौतम  के  आश्रम  में  रुके  l   इस  समुदाय  के  संरक्षण  की  नई  व्यवस्था  देखकर   वे  बहुत  प्रसन्न  हुए    और उदारता  की  भूरि -भूरि   प्रशंसा  करने  लगे  l   ब्राह्मण  समुदाय   से  महर्षि  गौतम  की  यह  प्रशंसा  बर्दाश्त   नहीं हुई  ,  ईर्ष्या  उन्हें  बेतरह  सताने  लगी  l  वे  सोचने  लगे  कि   हमने  ही  उन्हें  यश  दिलाया  ,  हमारे  ही  आगमन  से   उन्होंने  इतना  श्रेय  कमाया  l   अब  हम  अपना  पुरुषार्थ  दिखाकर  उन्हें  नीचा   भी  दिखाएंगे  l   षड्यंत्र   रचा  गया  l   रातों - रात  मृत  गाय   आश्रम  के  आंगन  में  डाली  गई   l   कुहराम  मच  गया  l   यह  गौतम  ने   मारी है , हत्यारा  है ,  पापी  है  ,  इसक्का  भंडाफोड़  सर्वत्र  करेंगे  l   महर्षि  गौतम  योग  साधना  से  उठे   और  यह  कुतूहल   देखकर अवाक  रह  गए  l   आगंतुकों  को  विदा  करने  का  निश्चय   हुआ  l   ऋषि  बोले  ---- ' मूर्द्धन्य  जनों  की  ईर्ष्या  अन्यों  की  अपेक्षा  अधिक  घातक  और   व्यापक परिणाम  उत्पन्न  करती  है  l   आप  लोग  जहाँ  रहते  थे  ,  वहां  चले  जाएँ  l   अपनी  ईर्ष्या  से  जिस  क्षेत्र  को  कलुषित  किया  था   , उसे  स्नेह - सौजन्य  के  सहारे  सुधारने    का नए  सिरे  से  प्रयत्न  करें   l 

WISDOM -----

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  कहते  हैं ---- ' मनोबल  ही  जीवन  है  l   वही  सफलता  और  प्रसन्नता   का उद्गम  है  l   मन  की  दुर्बलता  ही   रोग , दुःख  और  मौत  बनकर   आगे  आती  है  l  '                                                      एक  समय  था  जब  संसार  के  अधिकांश  देश  पराधीन  थे  l   अपनी  आजादी   के लिए  दृढ़   संकल्प  लिया  और  संगठित  प्रयास  किया  , अपने  मनोबल  को  जगाया   तो  सब  को  पराधीनता  से  मुक्ति  मिली  ,  गुलामी  की  जंजीरें  टूटी   और  आजादी  मिली  l      आत्मबल  से  गुलामी  से  मुक्ति  तो  संभव  है  लेकिन  यदि   मन: स्थिति  कमजोर  है  ,  आत्मबल  नहीं  है  , परावलंबी   हैं   तो   शक्तिशाली  तत्व  और  असुरता  उन्हें  ' कठपुतली ' बना  देती  है  l   ऐसे  में  स्वयं  निर्णय  लेने  की  शक्ति  नहीं  होती  l    यदि  आत्मबल  नहीं  है  ,  अपनी  कोई  सोच  ही  नहीं  है   तो    डोरी  जिसके  हाथ  में  होगी   ,  वैसा  ही  दृश्य  दिखाई  देगा  l